Up board live class- 10th हिंदी निबंध- स्वदेश प्रेम /देश प्रेम
निबंध
स्वदेश प्रेम /देश प्रेम (2008, 10,11, 12, 13,15,16,17,)
प्रस्तावना - ईश्वर द्वारा बनाई गई सर्वाधिक आधारित रचना है 'जननी' जो निस्वार्थ प्रेम की प्रतीक है, प्रेम का पर्याय है, सुरक्षा का अटूट कवच है, संस्कारों के पौधों को ममता के जल से सींचने वाली चतुर उद्यान रक्षिका है, जिसका नाम प्रत्येक देश को नमन के लिए झुक जाने को प्रेरित कर देता है! यही बात जन्म भूमि के विषय में भी सत्य है! इन दोनों का दुलार जिसने पा लिया उसे स्वर्ग का पूरा पूरा अनुभव धरा पर ही हो गया | इसलिए जननी और जन्म भूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है||
देश -प्रेम की स्वाभाविकता - प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है| अपना देश जाए बर्फ से ढका हुआ हो जहां गर्म रेत से भरा हुआ हो, चाहे ऊंची- ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ ,हो वह सब के लिए प्रयोग होता है! इस संबंध में रामनरेश त्रिपाठी की निम्नलिखित पंक्तियां दृश्य हैं
विषुवत रेखा का वार्षिक जो जीता है नेट हाफ हाफ कर,
रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर!
ध्रुववासी जो हम में तुम में जी लेता है कांफ-कांफ कर|
वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर॥
प्रातः काल के समय पक्षी भोजन पानी के लिए कलरव करते हुए दूर स्थानों पर चले तो जाते हैं, परंतु शाम काल होते हैं एक विशेष उमंग और उत्साह के साथ अपने -अपने घोसले की ओर लौटने लगते हैं| जब पशु पक्षियों को अपने घर से अपनी मातृभूमि से इतना प्यार हो सकता है तो भरा मानव को अपनी जन्मभूमि से ,अपने देश से क्यों प्यार नहीं होगा? कहा गया है कि माता और जन्मभूमि की तुलना में स्वर्ग का सुख भी तुच्छ है
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
देश प्रेम का अर्थ- देश - देश प्रेम का तात्पर्य है देश में रहने वाले जड़ चेतन सभी से प्रेम ,देश की सभी झोपड़ियों में महलों तथा संस्थाओं से प्रेम देश के ,रहन-सहन ,रीति-रिवाज ,वेशभूषा से, प्रेम विदेश, के सभी धर्मों ,मधु भूमि ,पर्वत, नदी वन ,लता सभी से प्रेम और अपनत्व रखना उन सब के प्रति गर्व की अनुभूति करना| सच्चे देश प्रेमी के लिए देश का कण- कण पावन और पूज्य होता है|
सच्चा प्रेम वही है जिसकी तड़पती आत्मा वाली पर हो निर्भर!
त्याग बिना निशान प्रेम है करो प्रेम प्राण निछावर॥
देश प्रेम व पंडित क्षेत्र अमल असीम त्याग विलसित|
आत्मा के विकास से जिस में मानवता होती है विकसित॥
सच्चा देश प्रेमी वही होता है जो देश के लिए निस्वार्थ भावना से प्रेम बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है! सिर्फ देसी वस्तुओं को स्वयं उपयोग करता है, और दूसरों को उनके उपयोग के लिए प्रेरित करता है सच्चा देशभक्त उत्साही ,सत्यवादी महत्वाकांक्षी, और कर्तव्य ,की भावना से प्रेरित होता है|
देश प्रेम का क्षेत्र - देश प्रेम का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है| जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति देशभक्ति की भावना प्रदर्शित करता है सैनिक युद्ध भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर, राजनेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर समाज सुधारक समाज का नवनिर्माण करके, धार्मिक नेता मानव- धर्म ,का उच्चारण से प्रस्तुत करके साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना और जन जागरण का स्वरूप होकर कर्मचारी श्रमिक एवं किसान अपने दायित्व का निर्वाह कर के व्यापारी का त्याग कर अपनी देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकता है संजीव में सभी को अपना कार्य करते हुए देश हित को सर्वोपरि समझना चाहिए|
देश के प्रति कर्तव्य- जिस देश में हमने जन्म लिया है, जिसका अन्य खाकर और अमृत के समान जल पीकर सुखद भाइयों का सेवन कर हम बलवान हुए हैं जिसकी मिट्टी में खेल खून कर हमने पुष्ट शरीर प्राप्त किया है, उस देश के प्रति हमारे अनंत कर्तव्य है| हमें अपने प्रदेश के लिए कर्तव्य पालन और त्याग की भावना से ज्यादा सेवा और प्रेम रखना चाहिए| हमें अपने देश की 1 इंच भूमि के लिए तथा उसके सम्मान और गौरव के लिए प्राणों की बाजी लगा देनी चाहिए|
भारतीयों का देश प्रेम- भारत मां ने ऐसे असंख्य रत्नों का जन्म दिया है जिन्होंने असीम त्याग भावना से प्रेरित होकर हंसते-हंसते मातृभूमि पर अपने प्राण अर्पित कर दिए हैं कितने ही ऋषि मुनियों ने अपने तप और त्याग से देश की महिमा को मंडित किया है तथा अनेक अनेक वीरों ने अपने अद्भुत सर से स्त्रियों के दांत खट्टे किए हैं 1-1 भटकते वाले महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाना से कार्य किया परंतु मातृभूमि के सत्रों के सामने कभी मस्तक नहीं झुकाया शिवाजी ने देश और मातृभूमि की रक्षा के लिए गुफाओं में छिपकर सत्र से टक्कर ली और रानी लक्ष्मीबाई ने महलों के सुखों को त्यागकर शत्रुओं से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद राजगुरु सुखदेव आदि न जाने कितने देश भक्तों ने विदेशियों की अनेक यातनाएं देते हुए मुख से वंदे मातरम करते हुए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया
उपसंहार- खेद का विषय है कि आज हमारे नागरिकों में देश प्रेम की भावना अत्यंत दुर्लभ होती जा रही है| नई पीढ़ी का विदेशों से बस तुम और संस्कृतियों के प्रति वह सब देश के बजाय विदेश में जाकर सेवाएं अर्पित करने के सजीले अपने वास्तव में चिंताजनक है ,हमारी पुस्तके भले ही इस राष्ट्रप्रेम की गाथाएं पाठ्य सामग्री की में सजाए रहे परंतु वास्तव में नागरिकों के हृदय में लहरा वा सच्चा राष्ट्रप्रेम ढूंढने पर भी उपलब्ध नहीं होता है| हमारे शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों को इस प्रश्न का समाधान ढूंढना ही होगा, अब मात्र उपदेश या अतीत के गुणगान से बहुत प्रेम उत्पन्न नहीं हो सकता अब हमें अपने राष्ट्र की दशा व सभी अनिवार्य रूप से सुधारने होगी|
प्रत्येक देशवासियों को यह ध्यान रखना चाहिए/ कि उसके देश भारत को एक ही देश रूपी बगिया में राज्य रूपी अनेक क्वालियां है ,किसी एक क्यारी की उन्नति एकांकी उन्नति है! और ,सभी उन्नति जिस प्रकार एक माली अपने उपवन की सभी गाड़ियों की देखभाल सामान भाव से करता है उसी प्रकार हमें भी देश का विकास करना चाहिए सब देश प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है, इसे संकुचित रूप में व्यापक रूप में ग्रहण करना चाहिए संकुचित रूप में ग्रहण करने से विश्व शांति को खतरा हो सकता है हमें सब देश प्रेम की भावना के साथ साथ समग्र भाव मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना चाहिए|
Writer roshani kushwaha
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