Up board live class- 10th hindi खंडकाव्य मुक्ति दूत खंडकाव्य का सारांश लिखिए।
खंडकाव
प्रश्न.1 'मुक्ति- दूत खंडकाव्य का सारांश लिखिए । (2010, 11,12,13,15, 18, 21)
अथवा
मुक्तिदूत की कथावस्तु या कथासार अपने शब्दों में लिखिए। (2012, 13,15,17)
अथवा
मुक्ति दूत खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए। (2015, 17,19,)
अथवा
मुक्त दूत के खंडकाव्य के तृतीय सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए । (2015, 16,17)
अथवा
मुक्त दूत खंडकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। (2013, 15,16,17,18,20)
उत्तर - डॉ राजेंद्र मिश्र द्वारा रचित मुक्तिदूत नामक खंडकाव्य गांधीजी के जीवन दर्शन का एक चित्रकांत करता है। इस कथानक की घटनाएं सत्य एवं ऐतिहासिक है। कवि ने इसके कथानक को 5 सर्गों में विभाजित किया गया है ।
प्रथम सर्ग - मैं कवि ने महात्मा गांधी के अलौकिक एवं मानवी स्वरूप की विवेचना की है। पराधीनता के कारण इस समय भारत की दशा अत्यधिक देनी थी। आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक सभी परिस्थितियों में भारत का शोषण हो रहा था ऐतराज बाद की धारणा से प्रभावित होकर कभी कहता है। कि तो संसार में पाप और अत्याचार बढ़ जाता है। संसार में किसी महापुरुष के रूप में जन्म देता है, अन्याय रावण से मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए राम उसका और अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए श्री कृष्ण का अवतार हुआ । इसी क्रम में भारत भूमि के प्राण के लिए काठियावाड़ प्रदेश में पोरबंदर नामक स्थान पर करमचनद्र के यहां मोहनदास के नाम से एक महान विभूति का जन्म हुआ था।
महात्मा गांधी के दुर्बल शरीर में महान आत्मिक बल था भारत को स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने 30 वर्षों तक भारत का जैसा मित्र किया वह भारतीय इतिहास में सदा स्मरण रहेगा उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप स्वीट्स भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी ।
मुक्ती दूत के द्वितीय सर्ग मैं गांधी जी की मनोदशा का चित्रण किया गया है उनका हृदय यहां के निवासियों की दयनीय दशा को देखकर व्यथित और उनके उद्धार के लिए चिंतित था
एक दिन गांधीजी स्वप्न में अपने माता को देखते हैं। माताजी उन्हें समझा रहे हैं। कि जो तुम्हारा थोड़ा भी भला करे तुम उसका अधिकार दिक्षित करो ,गिरते को सहारा दो केवल अपना नहीं ,औरों का भी पेट भरो मां का स्मरण करके गांधी जी का हृदय भर आया उन्होंने सोचा मां ने सही कहा है। मैं मातृभूमि के बंधन काट लूंगा मैं, कोटि-कोटि दलित भाइयों की रक्षा करूंगा।
एक बार गांधीजी ने स्वप्न में श्री गोकुलेश गोपाल कृष्ण को देखा उन्होंने गांधीजी को निरंतर स्वतंत्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और यह आशा प्रकट की कि गांधीजी भारतवर्ष के मुक्तिदूत बनेंगे।
तृतीय सर्ग - मैं अंग्रेजों की दमन नीति के प्रति गांधी जी का विरोध व्यक्त हुआ है देश में अंग्रेजों का शासन था। और उनके अत्याचार चरम सीमा पर देख भारतीय व्यवसाई और अपमान की जिंदगी जी रहे थे। केवल वही लोग सुखी थे जो अंग्रेजों की चाटुकारिता करते थे। जब उनकी नीति से अंग्रेजों का हृदय नहीं बदला तब उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सविनय सत्याग्रह के रूप में संघर्ष छेड़ दिया।
गांधीजी ने प्रथम विश्व युद्ध के समय देशवासियों से अंग्रेजों की सहायता करने का आव्हान किया परंतु युद्ध में विजय पाने के बाद अंग्रेजों ने रौलट एक्ट पास करके अपना अत्याचारी शिकंजा और अधिक कड़ा कर दीया गांधीजी ने अंग्रेजो के इस काले कानून का उग्र विरोध किया उनके साथ ,जवाहरलाल ,नेहरू ,बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन ,मालवीय ,पटेल आदि नेता संघर्ष में सम्मिलित हो गए। इन्हीं दिनों जलियांवाला बाग की हमने भी घटना घटित हुई।
यह दृश्य देखकर गांधीजी का ह्रदय दहल उठा और उनकी आंखों में खून उतर आया इसलिए युगपुरुष ने क्रोध का जहर पीकर सभी को अमृत में आशा प्रदान की ओर और निश्चय कर लिया, कि अंग्रेजों को आग भारत में अधिक दिनों तक नहीं रहने देंगे।
चतुर्थ सर्ग - मैं भारत की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों का वर्णन है जलियांवाला बाग की नृशंस घटना हो जाने पर गांधी जी ने अगस्त सन 1920 में देश की जनता का असहयोग आंदोलन के लिए अहान किया लोगों ने सरकारी उपाधियां लौटा दी। विदेशी सामान का बहिष्कार किया ,छात्रों ने विद्यालय ,वकीलों ने कचरिया ,और सरकारी कर्मचारियों ने नौकरियां छोड़ दी ,इस आंदोलन से सरकार मान संकट और निराश की भंवर में फंस गई।
असहयोग आंदोलन को देखकर अंग्रेजों को निराशा हुई उन्होंने भारतीयों पर साइमन कमीशन ठोक दिया साइमन कमीशन के आने पर गांधी जी के नेतृत्व में सारे भारत में इसका विरोध हुआ परिणाम स्वरूप सरकार हिंसा पर उतर आई पंजाबी केसरी लाला लाजपत राय पर निर्मल लाठी प्रहार हुआ। जिसके फलस्वरूप देश भर में सॉन्ग क्रांति स्वर गई गांधीजी देशवासियों को समझा-बुझाकर मुश्किल से अहिंसा के मार्ग पर ला सके।
गांधी जी ने 79 व्यक्तियों को साथ लेकर नमक कानून तोड़ने के लिए गांधी की पैदल यात्रा की अंग्रेजों ने गांधीजी को बंदी बनाया तो प्रतिक्रिया स्वरूप देशभर में सत्याग्रह छिड़ गया।
बापू की एक ललकार पर देश भर में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन फैल गया। सब जगह एक ही स्वर सुनाई पड़ता था। अंग्रेजों भारत छोड़ो स्थान स्थान पर सभाएं की गई विदेशी वस्त्रों की होली जलाई , पुल तोड़ दिए गए रेलवे लाइनें उखाड़ दिए गई थानों में आग लगा दी। गई बैंक लूटने लगे अंग्रेजों को शासन करना दूभर हो गया।
मुक्त दूत के पंचम सर्ग मैं स्वतंत्रता की प्राप्ति तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है। कारागार में गांधीजी के अस्वस्थ होने के कारण सरकार ने उन्हें मुक्त कर दिया इंग्लैंड के चुनावों में मजदूर दल की सरकार बनेगी फरवरी सन 1947 में प्रधानमंत्री एटली ने जून 1947 से पूर्व अंग्रेजों के भारत छोड़ने की घोषणा की भारत में हर्ष उल्लास छा गया मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान बनाने की अपनी मांग पर अड़े रहे 15 अगस्त सन 1947 ईस्वी को भारत स्वतंत्र हो गया और देश की बागडोर जा लाल नेहरू जी के हाथों में आ गई। गांधी जी ने अनुभव किया कि उनका स्वतंत्र काला चूर्ण हो गया था वे संघर्ष को राजनीति से अलग हो गए। कनकावती अंत में गांधीजी भारतवर्ष के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। और इसी के साथ खंड का भी कथा समाप्त हो जाते हैं।
प्रश्न .,2- मुक्त दूत काव्य के चतुर्थ सर्ग की घटनाओं का सार अपने शब्दों में लिखिए। (2008, 10,11,13,17,
अथवा
मुक्तिदूत के आधार पर गांधी जी द्वारा संचालित प्रमुख मुक्ति आंदोलनों का विवरण लिखिए। (2010, 15,18)
अथवा
मुक्त दूध के कांड का व्यक्तित्व दूसरे की कथावस्तु को लिखिए। (2015, 16,17,19,21)
उत्तर - चतुर्थ श्रेणी में भारत की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों का वर्णन है जलियांवाला बाग की नृशंस घटना हो जाने पर गांधी जी ने अगस्त 1920 में देश की जनता का असहयोग आंदोलन के लिए जनता अहान किया लोगों ने सरकारी उपाधियां लौटा दी विदेशी सामान का बहिष्कार किया था। छात्रों ने विद्यालय मशीनों ने कचहरी और सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ दी।
बापू की एक ही कारण बाद देश भर में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन फैल गया सब जगह एक ही स्वर सुनाई पड़ता था अंग्रेजों भारत छोड़ो स्थानीय स्तर पर कब आएगी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई अंग्रेजों को शासन कराना दुबर हो गया उन्होंने दमन चक्र चलाया तो गांधीजी ने 21 दिन का अनशन कर दिया इन्हीं दिनों कारागार में गांधी जी की पत्नी की मृत्यु हो गई है इस अप्रत्याशित आघात से व्याकुल अगस्त हुए परंतु पत्नी के स्वर्गवास ने अंग्रेजों के विरुद्ध उनके मनोबल को और अधिक दृढ़ कर दिया तभी इसका चित्रण करता है।
Writer- roshani kushwaha
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