Up board live solution class 12th
समाजशास्त्र कक्षा 12
पाठ -3 सामाजिक संस्थाएं : निरंतरता एवं परिवर्तन
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न -1 किसने कहा संस्थाएं कार्य - विधियों की स्वीकृति दशाएं या स्वरूप हैं!
(अ) बोगार्ड्स
(ब) मैकाइवर और पेज
(स) गिनस बर्ग
(द) ग्रीन
उत्तर - मैकाइवर और पेज
प्रश्न.2 किसने कहा हम समितियों के सदस्य हैं, ना कि संस्थाओं के ।
(अ) मैकाइवर और पेज
(ब) ग्लेन और गिले
(स) आगबरन
(द) बोगार्डस
उत्तर - माइकाबल और पेज
प्रश्न . 3 निम्न में से कौन सा संस्था का उदाहरण नहीं है ।
(अ) विवाह
(ब) सम समूह
(स) परिवार
(द) नातेदारी
उत्तर - सम -समूह
प्रश्न.4 संस्थाओं को प्रेषित करने के लिए विशिष्ट संपत्तियों की आवश्यकता होती है यह तत्व महत्व रखता है।
(अ) केवल जटिल समाजों के लिए
(ब) केवल धर्म की संस्थाओं के लिए
(स) समितियों का आकार निर्धारित करने के लिए
(द) संस्थाओं तथा अन्य प्रति मानव के बीच मूल अंतर समझने के लिए।
उत्तर - समितियों का आकार निर्धारित करने के लिए
प्रश्न. 5 जाति का निर्धारण होता है।
(अ) जन्म द्वारा
(ब) कर्मी द्वारा
(स) व्यवसाय द्वारा
(द) जीवन शैली द्वारा
उत्तर - जन्म द्वारा
प्रश्न 6. जनजाति है।
(अ) आंशिक समाज
(ब) आंशिक संस्कृति
(स) संपूर्ण एवं आंशिक समान
(द) संपूर्ण समाज
उत्तर- संपूर्ण समाज
प्रश्न - 7 भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक थे!
(अ) स्वामी सहजानंद
(ब) चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत
(स) जयप्रकाश नारायण
(द) दयानंद सरस्वती
उत्तर - चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न -1 जनजातियों के स्थायी लक्षण क्या है?
उत्तर- क्षेत्र भाषा शारीरिक बनावट तथा पर्यावरण जनजातियों के स्थाई लक्षण हैं!
प्रश्न - 2 जनजातियों के अर्जित लक्षण क्या हैं?
उत्तर- जनजातियों के आयोजित लक्षण हैं - उनकी आजीविका के साधन तथा उनका भारतीय समाज की मुख्यधारा में समावेश!
प्रश्न - 3 भारत में जनजातियों का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया है?
उत्तर- जनजातियों के स्वभाव के आधार पर भारत में उनका वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है (1) स्थाई स्वभाव तथा (2) अर्जित स्वभाव!
प्रश्न - 4 जनजाति एकीकरण की क्या समस्याएं हैं?
उत्तर- कुछ जनजातियों के मुख्य धारा में एकीकरण किए जाने का विरोध करती है तथा प्रथक् स्वतंत्र राज्य की मांग करती है, जैसे नागा मिजो आदि!
प्रश्न - 5 भारत के किन्हीं पांच जनजातियों के नाम बताइए?
उत्तर ( 1) गोंड (2) भील (3) संथाल (4)ओरांव (5) मुंडा!
प्रश्न - 6 विस्तारित परिवार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर इस प्रकार के परिवार में सभी रक्त संबंधी एवं कुछ अन्य संबंधित भी सम्मिलित होते हैं ! ऐसे परिवारों के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती है!
प्रश्न - 7 नातेदारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर - सामाजिक रुप से मान्यता प्राप्त ऐसे बन संबंधों को नातेदारी या तो जनता कहा जाता है जो राष्ट्र विवाह दतकता पर आधारित होते हैं ।
प्रश्न 8- मात्र वंशी परिवार से आप क्या समझते हैं।
उत्तर - ऐसे परिवार निबंध परंपराओं के नाम से चलती है और मौत से उसके अगले वर्ष ना मिलते हैं मालावाला वालों के नामों में ही प्रथा प्रचलित है।
प्रश्न -9 नातेदारी के प्रमुख प्रकार लिखिए?
उत्तर - नातेदारी के दो प्रमुख प्रकार होते हैं! - (1) समर्थक संबंध (2) विवाह संबंध!
प्रश्न -10 अंत विवाह को समझ लीजिए?
उत्तर - जब तक व्यक्ति अपनी जीवनसाथी का चुनाव अपने ही समूह से करें तो ऐसी विवाह को अंतविवाह कहते हैं!
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न. 1 जनजाति समाज जाति आधारित खेती हर हिंदू समाज का एक हिस्सा है अगर वह एक विशेष प्रकार का समुदाय है।
उत्तर - जो लोग जनजातियों को जैसी हर हिंदू समाज का एक हिस्सा मानते हैं, उनका कहना है। कि जनजातियों खेतिहर समाज के मौलिक रूप के लिए नहीं है। किंतु उनका सिर्फ इसी कारण बहुत कम हुआ है। और साथियों से स्वाति विनीत के मामले में वे समुदाय आधारित अधिक तथा व्यक्ति आधारित कम है ,कि विरोधी पक्ष का कहना है। कि जाती है पूरी तरह से विनती है कि उन्हें सुविधा और असुविधा का कोई नहीं होता है।
प्रश्न- 2 जनजाति कश्यप जाति को आजीविका अलगाव धर्म के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया गया ।
उत्तर - 1970 के दशक तक यह दर्शाया गया कि जनजाति के शब्दार्थ के लिए योगा सोनिया निर्धारित की गई जब से अधिक का अलगाव हर आदमी किसी भी तरह से सही नहीं होता है इसके पीछे नहीं आती है।
प्रश्न-3 वर्तमान समय में जनजाति पहचान के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर - वर्तमान समय में जनजाति पहचान के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है।
1. वर्तमान काल में जनजातियों की पहचान जनजातियों के साथ जुड़ी किसी विशिष्ट आदिम विशेषता के साथ नहीं वर्णन समाज के साथ उनकी अतः क्रिया की प्रक्रिया के साथ जुड़ी है।
2. पृथक राज्यों के निर्माण की उपलब्धियां जैसे झारखंड ,छत्तीसगढ़ ,आदि।
3. माध्यम जनजाति समाज में बड़े पैमाने पर शिक्षित वर्ग का उदय।
प्रश्न -4 संस्कृतिकरण की अवधारणा का वर्णन कीजिए इसकी परिकल्पना थी ?
उत्तर- श्रीनिवास ने इस अवधारणा की व्याख्या निम्नलिखित तरीके से की है।
यह सामाजिक रीति रिवाज में का अनुभव तथा 3 वर्ष के विद्यार्थियों के द्वारा जातियों के कर्मकांड ओक्कियम वितरण की प्रक्रिया है
यह जाति अथवा विक्रम में वास्तविक परिवर्तन के नहीं होते।
अनुकरण करके जनजाति वर्ग के या यह समझता है कि उसने अपने क्षेत्र में सुधार किया।
प्रश्न 5 - किन अर्थों में नगरी उच्च जातियों की अपेक्षाकृत अदृश्य हो गई है।
उत्तर - जाति व्यवस्था में परिवर्तन का सर्वाधिक लाभ शहरी मध्यम वर्ग तथा उच्च वर्ग को मिला जब जाति व्यवस्था के कारण इन वर्गों को भरपूर आज के जिला सचिव संसाधन उपलब्ध हो जाती है विकास का लाभ कि उन्होंने पूरा पूरा उठाया विशेष और सबसे ऊंची जातियों के लोग आर्थिक सहायता प्राप्त सर्वजनिक विशेष रुप से उपस्थित होने में सफल हुए साथ ही स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद में क्षेत्र की नौकरियों में का भी लाभ उठाने में सफल रहे समाज के अन्य जातियों की तुलना में उनकी उच्च शैक्षणिक स्थिति में उनकी एक विशेष अधिकार वाली स्थिति प्रदान की।
अनुसूचित जाति जनजाति तथा पिछड़े वर्ग की जातियों के लिए परिवर्तन न कोई संदेश साबित हुआ इससे ज्यादा और अधिक स्पष्ट हो गई ,उन्हें विरासत में कोई से जुड़े तथा सामाजिक हाथ से नहीं मिली थी तथा उन्हें पूर्व स्थापित ऊंची जातियों से प्रतिस्पर्धा करने पड़ रही थी। वे अपनी जाति पहचान को नहीं छोड़ सकते हैं। उसी प्रकार के भेदभाव के शिकार हैं।
प्रश्न 6 - मात्रवंश और मात्र तंत्र में क्या अंतर है व्याख्या कीजिए।
उत्तर - मात्र वंश तथा मात्रतंत्र में निम्नलिखित अंतर देखने को मिलते हैं ।
मेघालय की समाज की खांसी जनता तथा गारो जनजाति में एवं केरल के नए नार जाति के परिवार में संबंधित का उत्तराधिकार मार्च से बेटी को प्राप्त होता है। भाई अपनी बहन की संपत्ति की देखभाल करता है, तथा बाद में बहन के बेटे को प्रदान कर देता है।
मात्र वंश पुरुषों के लिए गहरी धुंध की स्थिति उत्पन्न करता है, इसका कारण यह है। कि पुरुष अपने घर में उत्तरदायित्व के निर्धन के धन में फंस जाते हैं। कि वे सोचते हैं, कि मैं अपनी पत्नी और बच्चों की तरफ ज्यादा ध्यान दूं कि अपनी बहन के परिवार पपर
यह भूमिका दोनों महिलाओं में भी समान रूप से होता है। उनके पास केवल प्रतीकात्मक अधिकार होता है, अश्लीलता पुरुषों के पास ही होती है। मौत वंश के बावजूद शक्ति का केंद्र पड़ोसी होते हैं।
किंतु व्यावहारिक रूप से एक सैद्धांतिक अवधारणा ही बनकर रह जाती है क्योंकि स्त्रियों को भी वास्तविक प्रभुत्व कारी शक्ति प्राप्त नहीं होती।
वास्तविक रूप में यह मात्र वंशी परिवारों में भी विद्वान नहीं है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न . 1 जाति और जाति व्यवस्था से आप क्या समझते हैं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जाति एवं जाति व्यवस्था।
भारत में जाति एक प्राचीन संस्था है जो कि हजारों वर्षों से भारतीय इतिहास एवं संस्कृति का एक हिस्सा है जाति भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ी अनोखी संस्था है हिंदू समाज की संस्थापक विशेषता है पर इसका प्रचलन भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य धार्मिक समुदायों में भी फैला हुआ है विशेषकर मुसलमानों ईसाइयों और सिखों में।
अंग्रेजी के शब्द कास्ट की उत्पत्ति पुर्तगाली के शब्द भाषा से हुई है पुर्तगाली का अर्थ है विशुद्ध अंग्रेजी शब्द कास्ट का अर्थ है एक विस्तृत संस्थागत व्यवस्था से है जिसे भारतीय भाषाओं में दो विभिन्न शब्दों वर्ण और जाति के अर्थ में उपयोग किया जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ है रंग समाज के ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन चार श्रेणियों के विभाजन का वर्णन कहा जाता है। यदि इस विभाजन में जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण भाग शामिल नहीं है जो कि जाति बहिष्कृत विदेशियों दासु युद्ध में पराजित लोगों एवं अन्य लोगों से मिलकर बना है इन्हें कभी कभी पंचम या प्रणामी सैलरी भी कहा जाता है। जाति व्यापक शब्द है जो इस कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है इसमें अचेतन वर्षों से लेकर पेड़-पौधे जीव जंतु और मनुष्य भी शामिल होते हैं भारतीय भाषाओं में जाति शब्द का प्रयोग सामान्य जाति संस्था के संदर्भ में ही किया जाता है यद्यपि यह रुचिकर है कि भारतीय भाषा संस्थान बोलने वाले लोग अंग्रेजी शब्द कास्ट का प्रयोग भी करने लगे हैं।
वरुण को एक अखिल भारतीय समूह एक वर्गीकरण के रूप में समझा जा सकता है वहीं जाति को छत्रिय स्थानीय उप वर्गीकरण के रूप में समझा जा सकता है जिसमें सैकड़ों या यहां तक कि हजार जातियों एवं उप जातियों से बनी अत्यधिक जल योजना शामिल होती है इसका अर्थ है। कि जहां चार वर्गों का वर्गीकरण पूरे भारत में समान है। वहां जाति अधिगम के बरगी चली है। जो क्षेत्र एक दूसरे से क्षेत्र में बदलते रहते हैं 500 के बीच में जाति व्यवस्था वास्तव में वर्ण व्यवस्था ही थी। और इसी केवल चार विभाजन थे उत्तर वैदिक काल में ही जाति के कठोर बनी।
1. जात जन्म से निर्धारित होती है एक बच्चा अपने माता-पिता की जाति में जन्म लेता है जाती कभी चुनाव का विषय नहीं होती हम अपनी जाति का कभी बदल नहीं सकते छोड़ नहीं सकते या हम इस बात का चुनाव नहीं कर सकते कि हम जाति में शामिल होना या नहीं।
2. जाति की सदस्यता के साथ युवा संगठन शामिल होते हैं। विद्यार्थी समुद्र जादी होते हैं। ताकि बाद में शामिल हो सकते हैं।
3.जाति सदस्यता में खाने और खाना बांटने के बारे में नियम भी शामिल होते हैं ।
प्रश्न -2 मुख्यधारा के समुदायों का जनजातियों के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -मुख्यधारा के समुदायों का जनजातियों के प्रति दृष्टिकोण औपनिवेशिक युग की प्रारंभिक मानव वैज्ञानिक विधियों में जनजातियों को एकांकी समुदायों के रूप में वर्णित किया गया था लेकिन एकांकी समुदाय के रूप में वर्णित किया गया उनके संसार में पहले ही अटल परिवर्तन ला चुका था राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर जनजातीय समाजों को जोड़ देने वाले तथाकथित साहूकारों की उस पेड़ का सामना करना पड़ रहा था। साथ ही लेकर जनजाति आप्रवासी एक जगह पर बस जाने वाले लोगों के हाथों अपनी भूमि खोते जा रहे थे और वनों की आरक्षण की सरकारी नीति और खनन कार्यों का प्रारंभ होने लग जाने से वनों तक उनकी पहुंच गई समाप्त होती जा रही थी अन्य चेतन विरुद्ध जामुन का लगान अतिरिक्त आय का प्राथमिक तथा इन पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में 1 वर्ग जो जैसे प्राकृतिक संसाधनों का आयोजन भी ज्यादातर औपनिवेशिक सरकार के लिए आय का प्रमुख स्रोत तथा उन नीतियों में जनजाति क्षेत्रों में अनेक बाद सरकार ने और आय का प्रमुख स्त्रोत था 98 तथा 19वीं शताब्दी में जनजाति क्षेत्रों में अनेक विद्रोह हो जाने के बाद सरकार ने अब रजत और अंश अंश क्षेत्र घोषित कर दिए जहां गैर जनजातीय लोगों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित या विनियमित था ब्रिटिश सरकार इन क्षेत्रों में स्थानीय यात्रियों का मुख्य आयोग के माध्यम में रूप से शासन संचालन के पक्ष में 340 दशक में 50 रन बनाए इस विषय पर जो विविध वाद विवाद चला वह जनजाति समाज की पूरी संपूर्ण अस्तित्व के मानचित्र पर ही आधारित वादी पक्ष का विचार था कि जनजाति लोगों को व्यापारियों साहूकारों और हिंदू तथा ईसाई धर्म प्रचारक कौन से बचाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि यह सभी लोग जनजातियों का अलग अस्तित्व मिटा कर उन्हें भूमिहीन स्मिथ बनाना चाहते हैं ,दूसरी ओर एक काम की बात का विचार था कि जनजाति लोग पिछड़े हुए हिंदू ही हैं। और उनकी समस्याओं का समाधान उसी परिधि के भीतर ढूंढा जाए तो अन्य पिछड़े वर्गों के मामले में निर्धारित की गई है। इस विरोधी पक्ष में संविधान सभा के बाद विवादों में रहा समझौते के रूप में निर्धारित किया गया की जनजातियों के कल्याण के लिए ऐसी योजना बनाए जाएं जिससे माध्यम से उनका नियंत्रण संभव हो जाए इसलिए बाद में जनजाति विकास कि जो भी योजनाएं बनाई हुई जैसे पंचवर्षीय योजनाएं जनजाति उपयोजना जनजाति कल्याण खंड विशेष बहु प्रयोजन क्षेत्र योजनाएं वे सभी इसी विचार पर आधारित रही है। लेकिन आधारभूत विषय यह है। कि जनजातियों के कि करण ने उनकी अपनी आवश्यकताओं या इच्छाओं की उपेक्षा की है। एकीकरण मुख्यधारा की समाज की शर्तों पर और उन्हें गोला व्यक्त करने के लिए होता है,जनजातीय समाजों से उनकी भूमि और 1 चीन दिए गए हैं। और विकास के नाम पर उनके समुदाय को भी नष्ट कर दिया गया है।
प्रश्न -3 राष्ट्रीय विकास बनाम जनजाति विकास से आप क्या समझते हैं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर राष्ट्रीय विकास बनाम जनजाति विकास
जनजातियों के प्रति राज्य के दृष्टिकोण को विकास की अनिवार्यता ओं ने साबित किया है। और राज्य की निधियों को आकार दिया नेहरू युग में राष्ट्रीय विकास के नाम पर बड़े-बड़े बांध कारखाने स्थापित किए गए तथा खानों की खुदाई का कार्य आरंभ हुआ प्रदेश के खनिज संपन्न और भागों में जनजाति लोगों का आदिवासी ऐसे में जनजाति लोगों को सिर्फ भारतीय समाज की तुलना में विकास के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी इस प्रकार के विकास से जनजातियों की हानि की कीमत पर मुख्य धारा के लोग लाभ जानते हुए खनिजों के दोहन और जल विद्युत संयंत्र की स्थापना के लिए उपयुक्त खनिजों के दोहन और जल विद्युत संबंधों की स्थापना के लिए उपयुक्त फलों के उपयोग जिनमें से आने के स्थल जनजाति क्षेत्रों में स्थित है। एक आवश्यक उत्पाद है ताकि जनजाति लोगों से उनकी भूमि छिलने की एक प्रक्रिया आरंभ हो गई ज्यादातर जनजाति समुदाय वनों पर आश्रित इसलिए वंचित जाने से उन्हें भारी आघात लगा वनों को दोहन कटाई दो रूप से ब्रिटिश काल में ही शुरू हो गया था। और यह प्रवृत्ति स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी चलती रही भूमि पर निजी स्वामित्व दिए जाने से भी जनजाति लोगों पर विपरीत प्रभाव पड़ा क्योंकि उनके यहां समुदाय आधारित सामूहिक की प्रथा थी और उसके स्थान पर भी नहीं नई व्यवस्था लागू किए जाने गाड़ी पता थी। और उसके स्थान पर इसका एक सबसे नवीन वडाला नर्मदा पर बनाए जा रहे बांधों की श्रंखला है। जहां अधिकांश मोलरता जिन लोगों को इसके कारण से हानि हुई है। और लाभ तुरंत अनुपात में विभिन्न समुदाय और क्षेत्रों को मिल रहे हैं।
जनजाति लोगों की सघन जनसंख्या वाले अनेक क्षेत्रों और राज्यों को विकास के दबाव के कारण अर्जुन जी टी लोगों के बड़ी संख्या में प्रवास आकर बसने की समस्या से भी दो-चार होना पड़ रहा है। इसमें जनजाति समुदाय के वरिष्ठ होने और दूसरी संस्कृति के प्रभावित हो जाने के संकट उत्पन्न हो गया है। उदाहरण के लिए झारखंड की औद्योगिक क्षेत्र में वहां कहीं जनसंख्या में जनजाति अनुपात कम हो गया है लेकिन सबसे अधिक नाथ की स्थिति संभवत पूर्वोत्तर क्षेत्र से उत्पन्न हुई है। वहां त्रिपुरा जैसे राज्य की जनसंख्या मैं जनजाति लोगों का अनुपात एक ही दशक में 50% तक घट गया जिसके परिणाम स्वरुप में अर्थ संख्या बन गए अरुणाचल प्रदेश में भी ऐसा ही दबाव अनुभव किया जा रहा है।
प्रश्न. 4 - जाति विस्तार में पृथक्करण और आधी क्रम की क्या भूमिका है।
उत्तर- जाति व्यवस्था के सिद्धांतों को दो समुदायों के सहयोग के रूप में समझा जा सकता है। पहला भिन्नता और लगाओ पर आधारित है। और दूसरा संपूर्णता और अधिक रम पर बीती रात एक दूसरे से भिन्न है तथा इस प्रतिष्ठा का कठोरता से पालन किया जाता है। इस तरह के प्रतिबंधों में विवाह खान प्रधान तथा सामाजिक संबंध से लेकर व्यवसाय का तक शामिल है। भिन्न-भिन्न तथा प्रथम जातियों का कोई व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं है। संपूर्णता में ही उनका अस्तित्व है। यह सामाजिक संपूर्णता समास शादी होने के बजाय अधिक्रमित है। प्रत्येक जाति का समाज एक विशिष्ट स्थान होने के साथ-साथ एक क्लम्सिली भी होती है।
ऊपर से नीचे एक सीडी नुमा व्यवस्था में प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट स्थान होता है। जाति की यह अधिक्रमित व्यवस्था तथा तथा सुरक्षा के अंतर पर आधारित होती है।
वे जानिया जिन्हें कर्मकांड की दृश्य शुद्ध माना जाता है तथा उनका होता है और जिनको अशुद्ध माना जाता है उन्हें नियम स्थान दिया जाता है इतिहासकारों का मानना है कि युद्ध में पराजित होने वाले लोगों को निचली जाति में स्थान मिला।
जातियां एक दूसरे से सिर्फ कर्मकांड की दृष्टि से ही आसमान नहीं है। बल्कि यह एक दूसरे से पूर्व व कथा प्रतिस्पर्धी समूह है। जिसका अर्थ है। कि प्रत्येक जाति का इस व्यवस्था में अपना एक स्थान है। तथा यह स्थान कोई दूसरी जाति नहीं दे सकती जाति का संबंध रिश्ता ऐसा भी होता है।
वृद्ध आश्रम के विभाजन के अनुरूप कार्य करते हैं। इसमें परिवर्तनशील ताकि अनुमति नहीं होती है। तथा अधिगम का विचार वादी समाज में भेदभाव समानता तथा अन्य मूलांक व्यवस्था की तरफ इंगित करता है।
प्रश्न - 5 वे कौन से नियम है, इसका पालन करने के लिए जाति व्यवस्था माघ्य करती है? उसके बारे में बताइए!
उत्तर जाति व्यवस्था के द्वारा समाज पर आरोपित सर्वाधिक सामान्य अग्लिखित है
1 जाति का निर्धारण जन्म से होता है एक बच्चा अपने माता पिता की जाति में ही जन्म लेता है! कोई भी ना तो जाति को बदल सकता है ना छोड़ सकता है ,और ना ही इस बात का चयन कर सकता है कि वह जाति में शामिल है अथवा नहीं!
2 जाति की सदस्यता के साथ विवाह संबंधी कठोर नियम शामिल होते हैं! जाति समूह सजाती होते हैं तथा विवाह समूह के सदस्यों में ही हो सकते हैं!
3 जाति के सदस्यों को खानपान के नियमों का पालन करना होता है!
4 एक जाति में जन्म लेने वाला व्यक्ति उस जाति से जुड़े व्यवसाय को ही अपना सकता है यह व्यवसाय वंशानुगत होता है!
5 जाति में स्तर तथा स्थिति का आदिक्रम होता है! हर व्यक्ति की एक जाति होती है और हर जाति का सभी जातियों के अधिक्म में एक निर्धारित स्थान होता है!
6 जातियों का उप विभाजन भी होता है! कभी-कभी उप जातियों में भी उपजातियां होती हैं इसे खडात्मक संगठन कहा जाता है!
प्रश्न - 6 जनजातियां आदिम समुदाय है जो सभ्यता से अछूते रहकर अपना अलग-थलग जीवन व्यतीत करते हैं इस दृष्टिकोण के विपक्ष में आप क्या साक्षय प्रस्तुत करना चाहेंगे!
उत्तर यह मानने का कोई कारण नहीं है कि जनजातियां विश्व के शेष हिस्सों से कटी रहे हैं तथा सदा से समाज का एक दावा पिछला हिस्सा रही हैं! इस कथन के पीछे निम्नलिखित कारण दिए जा सकते हैं
1 मध्य भारत में अनेक गोंड राज रहे हैं, जैसे गढ़ मांडला या चांद!
2 मध्यवर्ती तथा पश्चिमी भारत तथा कथित राजपूत राज्यों में से अनेक राज्यवाड़े वास्तव में स्वयं आदिवासी समुदायों में स्त्री कारण की प्रक्रिया के माध्यम से ही उत्पन्न हुए !
3 आदिवासी लोग अक्सर अपनी आक्रामकता तथा स्थानीय लड़ाकू दलों से मिलीभगत के कारण मैदानी इलाकों के लोगों पर अपना प्रभुत्व कायम करते हैं!
4 इसके अतिरिक्त कुछ विशेष प्रकार की व्यापार पर भी उनका अधिकार था, जैसे वन उत्पाद, नमक और हाथियों का विक्रय!
जनजातियों को एक आदिम समुदाय के रूप में प्रमाणित करने वाले तथ्य
1 सामान्य लोगों की तरह जनजातियों का कोई अपना राज्य अथवा राजनीतिक पद्धति नहीं है!
2 उनके समाज में कोई लिखित धार्मिक कानून भी नहीं है!
3 ना तो वह हिंदू है ना ही खेतिहर!
4 प्रारंभिक रूप से वे खाद्य संग्रहण, मछली पकड़ने , शिकार कृषि इत्यादि गतिविधियों में लिप्त रहे हैं!
6 जनजातियों का निवास घने जंगलों तथा पहाड़ी क्षेत्रों में होता है!
प्रश्न - 7 उपनिवेशवाद के कारण जाति व्यवस्था में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान जाति व्यवस्था में प्रमुख परिवर्तन आय जाति का वर्तमान स्वरूप प्राचीन भारतीय परंपरा की अपेक्षा उपनिवेशवाद की ही अधिक देन है ! अंग्रेज प्रशासकों ने देश पर कुशलता पूर्वक शासन करना सीखने के उद्देश्य जाति व्यवस्था की जटिलताओं को समझने के प्रति शुरू किए!
जाति के संबंध में सूचना एकत्र करने के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण सरकारी वेतन 1860 के दशक में प्रारंभ किए गए यह जनगणना के माध्यम से किए गए!
सन 1901 में हरबर्ट रिजल्ट के निर्देशन कराई गई जनगणना विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी क्योंकि इस जनगणना के अंतर्गत जाति के सामाजिक अधिगम के बारे में जानकारी घटी करने का वेतन किया गया अर्थात श्रेणी क्रम में प्रत्येक जाति का सामाजिक दृष्टि के अनुसार कितना ऊंचा या नीचा स्थान प्राप्त है ! इसका आकलन किया गया !
अधिकृत रूप से की गई जांच की एक घटना के कारण भारत में जाति नामक संस्था की पहचान और अधिक स्पष्ट हो गई राजस्व बंदोबस्ती तथा अन्य कानूनों में उच्च जातियों के जाति आधारित अधिकारियों को वैध मान्यता प्रदान करने का कार्य किया बड़े पैमाने पर सिंचाई की योजनाएं प्रारंभ की गई तथा लोगों को बसाने का कार्य प्रारंभ किया गया! इन सभी प्रयासों का एक जाति आयाम था!
इस प्रकार उपनिवेशवाद वे जाति संस्था में अनेक प्रमुख परिवर्तन किए संक्षेप में अंग्रेजों ने निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रमुख परिवर्तन किए
1 जनगणना भारत की जातियों तथा उप जातियों की संख्या तथा आकार का पता लगाना!
2 समाज के विभिन्न वर्गों के मूल्यों विश्वासों तथा रीति-रिवाजों का समझना!
3 भूमि की बंदोबस्ती!
Class 12 Chapter- 4 समाजशास्त्र
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