Up board live solution class- 12 शिक्षा शास्त्र पाठ -1 प्राचीन भारत में शिक्षा

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Up board live solution class- 12 शिक्षा शास्त्र पाठ -1 प्राचीन भारत में शिक्षा

Up board live solution class- 12 शिक्षा शास्त्र  पाठ -1  प्राचीन भारत में शिक्षा

(कक्षा 12 )

(शिक्षा शास्त्र)

पाठ - 1( प्राचीन भारत में शिक्षा)


प्रश्न.1 वैदिक काल में शिक्षा का प्रारंभ किस संस्कार से होता था। 


(क) - पबजा

(ख) - उपनयन

(ग) - उपसंपदा

(घ) - मुंडन


उत्तर - पबजा


प्रश्न- 2 बौद्ध धर्म के प्रवर्तक कौन हैं। 

(क) - महात्मा बुद्ध

(ख) - शंकराचार्य

(ग) - महावीर

(घ) - अश्वघोष

उत्तर - महात्मा बुद्ध


प्रश्न 3- वैदिक काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या था

(क) - व्यवसायिक विकास

(ख) - शारीरिक विकास

(ग) - मानसिक विकास

(घ) - चारित्रिक विकास


उत्तर - चारित्रिक विकास


प्रश्न - 4 भारत में सर्वप्रथम विश्वविद्यालय कौन सा था

(क) - तक्षशिला

(ख) - प्रयाग

(ग) - मिथिला

(घ) - काशी


उत्तर -तक्षशिला


प्रश्न- 5 वैदिक काल में उपनयन संस्कार कब होता था । 

(क) - शिक्षा प्रारंभ के समय

(ख) - उच्च शिक्षा में प्रवेश लेते समय

(ग) - शिक्षा समाप्ति पर

(घ) -  कभी नहीं


उत्तर - शिक्षा प्रारंभ के समय


प्रश्न- 6 भारत में प्राचीन काल में प्रतिरक्षा प्रणाली को कहा जाता है । 

(क) - आध्यात्मिक शिक्षा

(ख) - वैदिक शिक्षा

(ग) - लौकिक शिक्षा

(घ) - अन्य शिक्षा

उत्तर -आध्यात्मिक शिक्षा



निश्चित उत्तरीय प्रश्न -


प्रश्न . 1- प्राचीन कालीन शिक्षा का एक सिद्धांत बताइए। 

उत्तर- सामूहिक शिक्षा के स्थान पर व्यक्तित्व शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता है। 


प्रश्न- 2- वेद कालीन शिक्षा की एक विशेषता बताइए! 

उत्तर -वेद कालीन शिक्षा में चरित्र निर्माण पर अधिक बल दिया जाता है। 


प्रश्न 3-  उपनयन संस्कार क्यों मनाया जाता है। 

उत्तर - गिद्ध आरंभ उपनयन संस्कार से किया जाता है। 


प्रश्न- 4- प्राचीन कालीन शिक्षा का एक दोष बताइए। 

उत्तर -प्राचीन कालीन शिक्षा भेदभाव पर आधारित है। 


प्रश्न-5-  प्राचीन काल में उच्च शिक्षा प्राप्त स्त्रियों को क्या कहते हैं। 

उत्तर  -प्राचीन काल में उच्च शिक्षा प्राप्त स्त्रियों को विदुषी कहते थे। 


अति लघु उत्तरीय प्रश्न -


प्रश्न -1 प्राचीन कालीन शिक्षा के चार उद्देश्य बताइए। 


अथवा

वेद कालीन शिक्षा के उद्देश्य बताइए। 


उत्तर - प्राचीन कालीन शिक्षा के चार उद्देश्य थे। 

1 प्राचीन काल में व्यक्त शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता था। 

2. साथ ही रुचि एवं योग्यता का ध्यान दिया जाता था। 

3. अनुशासन पर अधिक बल दिया जाता था। 

4. शिक्षा का प्रारंभ उपनयन संस्कार से प्रारंभ होता था। 


प्रश्न- 2-  समावर्तन संस्कार से आप क्या समझते हैं। 

उत्तर - यह संस्कार विद्यार्थी जीवन के अंत का सूचक था। समावर्तन संस्कार का तात्पर्य है। वेदों का अध्ययन करने के पश्चात गुरुकुल से घर की ओर लौटना इस संस्कार का एक मथुरा में स्नान था। ब्रह्मचारी अपने अध्ययन को समाप्त करने पर एक ऐसा व्यक्ति माना जाता था जिसने विद्या के सागर को पार कर लिया है। 


प्रश्न.2- उपनयन संस्कार से आप क्या समझते हैं। 

उत्तर - को इसे जनेऊ संस्कार भी कहते हैं। उपनयन एक धार्मिक संस्कार है। जिसमें बालक को भौतिक संस्कार के बाद आध्यात्मिक शरीर प्राप्त होता है। उपनयन के समय बालक की आयु ग्रहण के लिए 8 वर्ष छतरी के लिए 11 वर्ष तथा वैश्य के लिए 12 वर्ष निर्धारित की गई थी उपनयन के पश्चात की बालक ब्रह्मचारी बनता था और गुरुकुल में प्रवेश प्राप्त होता था। 


प्रश्न -3 वैदिक कालीन शिक्षा के प्रारंभ से अंत में कौन सी औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। 


उत्तर- गुरु कलाओं में विद्यार्थी उपनयन संस्कार के पश्चात प्रवेश लेते थे। तथा समानता 24 वर्ष तक की अवस्था तक गुरुकुल में रहकर विद्या अध्ययन करते थे विद्यार्थी जीवन की संपत्ति पर गुरुकुल में ही समावर्तन संस्कार होता था। इस संस्कार के बाद विद्यार्थी स्नातक कला तथा समावर्तन के पश्चात विद्यार्थी गुरु दक्षिणा देकर गुरुकुल में घर के लिए विदा होता था और गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता था। 


प्रश्न -5- वैदिक काल में गुरु शिष्य संबंध पर प्रकाश डालिए। 


उत्तर - प्राचीन काल में गुरु-शिष्य संबंध अत्यंत पवित्र और मधुर होते थे। विद्यार्थी गुरु की सेवा करते थे। और गुरु सिस्सो का पुत्र वध पालन करते थे। अपने शिष्य को अपने ही परिवार का सदस्य मानते थे। सिर्फ गुरु से नीचे आसन पर बैठते थे तथा उनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करते थे। 


लघु उत्तरीय प्रश्न - 


प्रश्न-1- गुरुकुल बेटा से आप क्या समझते हैं इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए। 


उत्तर - प्राचीन समाज वर्गों में विभक्त था। और समाज के सदस्यों के कार्य में विभक्त थे व्यक्तिगत जीवन भी मेन विभाग तथा जीवन के प्रथम 25 वर्षों का उपयोग मात्र व्यक्तिगत सर्वागीण विकास अर्थात शारीरिक मानसिक आर्थिक सामाजिक और आध्यात्मिक विकास करके एक सफल नागरिक बनता था। जीवन के इस प्रथम आश्रम के लिए ही गुरुकुल प्रथा का विकास हुआ था। 


प्रश्न- ,2- प्राचीन कालीन भारतीय शिक्षा बरारी का वर्तमान परिस्थितियों में क्या महत्व है। 


उत्तर- प्राचीन भारतीय शिक्षा की अनेकानेक विशेषताओं का वर्तमान शिक्षा के लिए विशेष महत्व उस समय की शिक्षा की निम्नांकित बातों को वर्तमान शिक्षा में स्थान देकर अधिक उपयोगी और ज्ञानवर्धक बनाया जा सकता है


आज के भौतिकवादी युग में प्राचीन शिक्षा के धर्म और अध्यात्म के सच्चे प्रदेश को वर्तमान शिक्षा का आवश्यक उद्देश बनाना चाहिए। जीवन की संपूर्णता के लिए शिक्षा को माध्यम बनाया जाना चाहिए यह प्राचीन शिक्षा की प्रमुख आदर्श था । प्रत्येक व्यक्ति अपना शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास करें प्राथमिक शिक्षा का यह आदर्श अधिग्रहण था। 


विस्तृत उत्तरीय प्रश्न -


प्रश्न .1-प्राचीन भारतीय शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 

उत्तर - प्राचीन कालीन भारतीय शिक्षा से आजाद कालीन शिक्षा से है। इस काल में वैदिक संस्कृति का बोलबाला था तथा जीवन के प्रत्येक पक्ष पर उसका प्रभाव था प्राचीन कालीन भारतीय शिक्षा दी वेदों से प्रभावित थी। 

प्राचीन भारत की शिक्षा की अनेक मैसूर विशेषताएं थी इस शिक्षा व्यवस्था में भारत को ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व को प्रकाशित किया उस समय के विश्व में भारत का सर्वोच्च स्थान था उसका कारण शिक्षा अपराधी की सफलता थी। 


प्राचीन भारत की विशेषताएं प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित थी। 


1. चयनात्मकता - प्राचीन काल की शिक्षा की पहली विशेषता उसकी चयनात्मक ताकि कुछ योगदान और नेताओं के आधार पर ही छात्र गुरु के आश्रम में प्रवेश पा सकते थे दूसरे शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए शिक्षा विभाग ने खोला था चरित्रहीन और भ्रष्ट बालकों को आश्रम में प्रवेश नहीं दिया जाता था इस प्रकार से चा केवल संयोग छात्रों के लिए होती थी। 

2. विद्यारंभ संस्कार अलतेकर - के अनुसार विद्यारंभ संस्कार 5 वर्ष की आयु में होता था और साधारणतया सब जातियों के बालकों के लिए था अधिकांश विद्वानों के अनुसार यह संस्कार उस समय होता था जब बालक प्राथमिक शिक्षा आरंभ करता था इस संस्कार के समय बालक को अक्षर ज्ञान कहा जाता था 


3. गुरुकुल प्रणाली - प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं गुरुकुल प्रणाली थी। इसलिए प्राचीन भारतीय शिक्षा अपराधी को गुरुकुल शिक्षा स्टडी के नाम से भी जाना जाता है। जब बालक 7 या 8 वर्ष का हो जाता था तो वह माता पिता को छोड़कर गुरु के आश्रम में प्रवेश करता रहा गुरु के आश्रम को ही गुरुकुल खा जाता था। अपने संपूर्ण अध्ययन काल तक छात्र को गुरुकुल में रहकर अध्ययन करना पड़ता था गुरु छात्रों को ना केवल शिक्षा प्रदान करता था वन संरक्षक के रूप में उनके भरण-पोषण वेशभूषा आदि की व्यवस्था भी करता था। 


4. दंड का सिद्धांत - प्राथमिक शिक्षा में मनोविज्ञान के सिद्धांतों के अनुकूल शिक्षा प्रदान करने की प्रवृति बढ़ती है। छात्र के शारीरिक दंड प्रदान करना अनुचित अपराध माना जाता था और मनु साधारण के पक्ष में थे परंतु गौतम नहीं आचार्य छात्रों को बौद्धिक क्षमता विधि तथा प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर ही शिक्षा प्रदान करते थे। 


5. गुरु शिष्य संबंध - प्राचीन शिक्षा गुरु शिष्य के मध्य प्रदेश संबंध रहता था शिष्य गुरु के सीधे संपर्क में रहता था आता गुरु शिष्य कि शारीरिक और मानसिक शक्तियों का भली प्रकार अध्ययन कर लेता था गुरु अपने शिष्यों के साथ पुत्र व स्नेह करते थे तथा उनके रहन-सहन ,भोजन ,वस्त्र आदि का उत्तरदायित्व उठाते थे। 


प्रश्न -2. वेद कालीन शिक्षा के प्रमुख गुण क्या थे? 

उत्तर - प्राचीन भारत की ब्राह्मण कालीन शिक्षा विश्व की एक अनूठी देन है तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों के तो वह क्षमता अनुकूल थी साथ ही उसके द्वारा ज्योति जलाई गई वह आज भी सारे विश्व में प्रकाश चला रही है इस काल की शिक्षा में अनेक गुण अनेक उपलब्धियां हैं? 


आध्यात्मिकता - ब्राह्मणी शिक्षा का जो अध्यात्मिक संदेश विश्व को मिला है वह विश्व के कोने-कोने को आलोकित कर रहा है प्राचीन भारतीय शिक्षा की विशेषता के कारण भारतीय संस्कृत अमर हो गई है और युग बीत जाने पर भी उसकी ज्योति आलोकित है । 


अनुशासन - शिक्षा में छात्रों के बाह्य और आंतरिक दोनों प्रकार के अनुशासन पर जोर दिया जाता था विद्यार्थी के जीवन में  उत्पन्न हो जाता था ।


मोक्ष की प्राप्ति - प्राचीन भारतीय शिक्षा अपराधिक का उद्देश्य व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त करने में सहायता करना चाहिए शिक्षा के द्वारा भारत में आर्थिक स्वतंत्रता उत्पादन करके उसका अर्थ पर आध्यात्मिक विकास किया जाता था कुछ लोग आज नवरात्र व्रत लेकर विद्यालय सीकर से रह जाते थे और तब द्वारा अपना आत्म विकास करके मोक्ष को प्राप्त करें कर लेते थे। 


चरित्र निर्माण में सफलता - प्राचीन शिक्षा प्रणाली के द्वारा बालकों के चरित्र निर्माण में पूरी सहायता मंत्री थी और यह इस काल की शिक्षा की एक बड़ी भारी उपलब्धि थी। 


वैदिक कालीन शिक्षा के दोष -


1. धार्मिक प्रधानता - ब्रह्म काल में शिक्षा धर्म प्रदान थी उसके अनुसार मनुष्य जीवन में धार्मिक तम को प्रधानता दी गई थी अधिकांश शिक्षक ग्राहक रोहित होते थे धार्मिक कर्मकांडओं की अधिकता थी,हर कार्य धार्मिक ढंग से होता था काले चोर इतिहास  अर्थशास्त्र ,भौतिक विज्ञान ,गणित इत्यादि विषयों को उतना महत्व नहीं दिया, गया जितना दर्शन धार्मिक कर्मकांड और धार्मिक सिद्धांतों को महत्व दिया जाता था। 


दमभ और भेदभाव को बढ़ाना - धार्मिक कृत्य धीरे-धीरे पाखंड और अनवर का रूप लेने पुरोहितों और शिक्षकों में दमभ की भावना प्रधान होने लगे जातिवाद फैलने लगा और समाज में भेदभाव जड़ पकड़ने लगे ।


हास्कार्य की उपेक्षा - ब्राह्मणों की प्रधानता और जाति तथा प्रजा के जटिल हो जाने तथा शास्त्रीय अध्ययन को अधिक महत्त्व मिलने के कारण देवगन विद्या मुकलावा हस्त कार्यों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। 


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शिक्षा शास्त्र पाठ -2 बौद्ध कालीन शिक्षा



Writer by - sandhya kushwah



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