Up board live class-12th solution शिक्षा शास्त्र पाठ - 6 भारतीय शिक्षिक: पंडित मदन मोहन मालवीय

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Up board live class-12th solution शिक्षा शास्त्र पाठ - 6 भारतीय शिक्षिक: पंडित मदन मोहन मालवीय

Up board live class-12th  solution शिक्षा शास्त्र पाठ - 6 भारतीय शिक्षिक: पंडित मदन मोहन मालवीय

 कक्षा -12 शिक्षा शास्त्र

पाठ- 6 भारतीय शिक्षक: पंडित मदन मोहन मालवीय


बहुविकल्पी प्रश्न


प्रश्न 1-  मालवीय जी किस पत्र के संपादक थे । 

(क) - हिंदुस्तान

(ख) - टाइम्स ऑफ इंडिया

(ग) - अमृत बाजार पत्रिका

(घ) - लीडर


उत्तर - हिंदुस्तान


प्रश्न 2-  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की थी। 


(क) श्रीमती एनी बेसेंट

(ख) पंडित मदन मोहन मालवीय

(ग) महात्मा गांधी

(घ) रविंद्र नाथ टैगोर


उत्तर पंडित मदन मोहन मालवीय । 


प्रश्न 3-  मालवीय जी के अनुसार शिक्षा का माध्यम क्या होना चाहिए। 

(क) हिंदी

(ख) अंग्रेजी

(ग) संस्कृत

(घ) उर्दू


उत्तर- हिंदी । 


प्रश्न4-  मालवीय जी का नारा क्या था। 

(क) जय जवान, जय किसान

(ख) हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान 

(ग) जय भारत महान

(घ) जय जवान जय किसान जय विज्ञान


उत्तर हिंदी ,हिंदू ,हिंदुस्तान । 


निश्चित उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1-  पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म कहां हुआ था।

उत्तर- इलाहाबाद। 


प्रश्न 2-मालवीय जी का जन्म कब हुआ था। 

उत्तर- 25 दिसंबर 1861 में। 


प्रश्न 3- मालवीय जी द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय का नाम बताइए। 

उत्तर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय। 


प्रश्न -4 मालवीय जी किस भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते थे। 


उत्तर  हिंदी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न1- मालवीय जी द्वारा किए गए चार कार्यों का उल्लेख कीजिए। 


उत्तर  मालवीय जी द्वारा किए गए कार्य। 


1.हिंदू धर्म का पुनरुत्थान

2.राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या का हल

3.भाषाओं में समन्वय का प्रयास किया

4.काशी विश्वविद्यालय की स्थापना की


प्रश्न 2- मालवीय जी के शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन संबंधी विचारों का उल्लेख कीजिए। 


उत्तर मालवीय जी चा के क्षेत्र में अनुशासन अनिवार्य मानते थे। परंतु मालवीय जी धनात्मक अनुशासन तथा अनुशासन के विरोधी थे। वह अनुशासन की स्थापना के लिए शारीरिक दंड को महत्व नहीं देते उनका प्रभाव नाथ मक अनुशासन में दृढ़ विश्वास था। वे विद्यार्थी के लिए प्रचार एवं इंद्रिय निग्रह को आवश्यक मानते थे। उनका कहना था कि बालक को मन वचन और कर्म का नियंत्रण रखना चाहिए। इस प्रकार वेद आत्मानुशासन के पक्ष में थे। उनका विचार था। कि विद्यालय एवं कक्षा में अनुशासन बनाए रखने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि शिक्षक स्वयं आदर्श चरित्रवान तथा उत्तम गुणों से युक्त हो तो छात्र उसका अनुसरण करते स्वता ही अनुशासित रहते हैं। 


प्रश्न 3- भाषा एवं धर्म की शिक्षा के विषय में मालवीय जी के विचारों को व्यक्त कीजिए। 


उत्तर मालवीय जी का विश्वास था कि संस्कृत के अध्ययन से चरित्र एवं बुद्धि का विकास होता है आता संस्कृत भाषा की शिक्षा पर जोर देना चाहिए उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति आधार पर धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था की उन्होंने मनुष्य की आध्यात्मिक विकास के लिए धार्मिक शिक्षा का समर्थन किया। 


लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1-  शिक्षा के पाठ्यक्रम के विषय में मालवीय जी के विचार प्रस्तुत कीजिए। 


उत्तर मालवीय जी को मत था। कि पाठ्यक्रम का आधार व्यक्ति समाज एवं देश की आवश्यकता संस्कृत एवं जीवन दर्शन होना चाहिए । इसलिए उन्होंने संस्कृत एवं धर्म की शिक्षा को पाठ्यक्रम का अनिवार्य विषय बनाने पर बल दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कलात्मक विषयों का विश्व विकार किया उनका कहना था। कि अंग्रेजी या किसी विदेशी भाषा का अध्ययन तभी करना चाहिए जबकि उससे भारतीय साहित्य विज्ञान एवं भाषा के अध्ययन में सहायता मिले उन्होंने पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे विषयों को भी स्थान दिया दिल से विद्यार्थी अपने जीवन की समस्या हल कर सके का कानून अध्यापन और इसके अतिरिक्त उन्होंने सामाजिक विषय इतिहास ,राजनीति ,अर्थशास्त्र ,पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया मालवीय जी ने सन 1904 में व्यवहारिक दृष्टिकोण से शिक्षा के एक व्यापक पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जिसमें प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक संपूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम  था। 


प्रश्न 2-  मालवीय जी के अनुसार उत्तम शिक्षा के लिए किन शिक्षण विधियों को अपनाया जाना चाहिए। 


उत्तर मालवीय जी ने अपनी कोई शिक्षण विधि नहीं बताई है। उन्होंने केवल अपने लेखों में कुछ ऐसी शिक्षा विधियों की ओर संकेत किया है। जो उच्च स्तर की कक्षाओं के लिए उपयुक्त मानी जा सकती है। इन शिक्षा विधियों का विवरण इस प्रकार है। 

व्याख्यान या भाषण विधि - मालवीय जी स्वयं एक कुशल वक्ता थे। इसलिए शिक्षण विधि के रूप में वह भाषण या व्याख्यान को अधिक महत्व देते थे । उन्होंने व्याख्यान विधि को भी उच्च शिक्षा के लिए उपयुक्त माना था। 


अभ्यास विधि - मालवीय जी ने शिक्षण प्रक्रिया में अभ्यास को विशेष महत्व दिया है । उन्होंने बताया कि विद्यार्थी को निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए,  क्योंकि अभ्यास से ज्ञान होता है। 


निरीक्षण विधि - उन्होंने निरीक्षण विधि का समर्थन करते हुए छात्रों द्वारा वास्तविक वस्तुओं के लिए सड़क पर बल दिया है। 


प्रयोगशाला विधि - मालवीय जी के अनुसार विद्यार्थियों को प्रयोग विषयों का ज्ञान प्रयोगशालाओं में प्रदान करना चाहिए विज्ञान की शिक्षा में विधि का बहुत महत्व है। 


विस्तृत उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न पहला भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में पंडित मदन मोहन मालवीय की सेवाओं का उल्लेख कीजिए। 


अथवा

पंडित मदन मोहन मालवीय की शैक्षिक विचारधारा का भारतीय शिक्षा में क्या योगदान है। 


अथवा। 

पंडित मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए। 


मालवीय जी के शैक्षिक विचार - 

मालवीय जी कहा करते थे कि मैं कोई शिक्षा शास्त्री नहीं हूं । लेकिन जब हम उनके कृतियों पर दृष्टिपात करते हैं। और उनके भाषणों और लेखों का विश्लेषण करते हैं। तो उन्हें किसी भी शिक्षा शास्त्री से कम नहीं पाते अधिकांश शिक्षा शास्त्री तू अपने सिद्धांतों और योजनाओं के कारण विख्यात होते हैं। किंतु मालवीय जी से हमें स्वाभाविक और स्थूल दोनों प्रकार के सचिव योगदान प्राप्त हुए हैं। 


शिक्षा का अर्थ - शिक्षा की मालवीय जी ने कोई निश्चित भाषा नहीं दी लेकिन विभिन्न स्थानों पर हत्या के संबंध में व्यक्त किए गए विचारों से उनकी परिभाषा बनाई जा सकती है। यह किस स्थान पर उन्होंने कहा था शिक्षा से मेरा मतलब विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा से है। शिक्षा के व्यापक रूप को विद्यालय में ग्रहण करने पर जोर देते थे शिक्षा में एक और विभागों के शारीरिक मानसिक नैतिक व चारित्रिक विकास को आवश्यक बताते थे और दूसरी और वर्गों के आध्यात्मिक विकास पर जोर देते थे।


 साथ ही वे शिक्षा को ऐसा रूप देना चाहते थे कि देश की बेकारी की समस्या भी हल हो सके शिक्षा के प्रसार द्वारा विदेश की पराधीनता भी दूर करना चाहते थे। इस प्रकार हम देखते हैं। कि उन्होंने शिक्षा के व्यापक अर्थ को ही ग्रहण किया और विद्यालय शिक्षा को भी यही रूप देना चाहते थे इन बातों के साथ-साथ शिक्षा में ज्ञानार्जन उन्होंने काफी अधिक महत्व दिया था और इसलिए अपने विश्वविद्यालय की योजना में उन्होंने अनेक विषयों का अध्ययन भी शामिल किया था। 


नैतिक व चारित्रिक विकास - मालवीय जी ने जीवन में चरित्र को बड़ा महत्व दिया है। इसलिए हर अवस्था में शिक्षा के सामने यह लक्ष्य होना चाहिए कि वे छात्र एवं छात्राओं ने नृत्य व चारित्रिक विकास करें। 


आध्यात्मिक विकास - शिक्षा का अंतिम उद्देश्य व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति में सहायता करना है। यह शिक्षा का आध्यात्मिक व देश है। यह उद्देश्य की हर आवश्यकता में लागू होती हैं। इनके अलावा विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए मालवीय जी ने अलग से कुछ उद्देश बताएं हैं। 


प्रश्न 2- पंडित मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक योगदान का सविस्तार वर्णन कीजिए। 


अथवा


पंडित मदन मोहन मालवीय का योगदान शिक्षा जगत में मैच दूर है। विवेचना कीजिए। 


उत्तर शिक्षा के क्षेत्र में मालवीय जी के योगदान को निम्नांकित सेवकों के अंतर्गत समझा जा सकता है। 


हिंदू धर्म का पुनरुत्थान - मालवीय जी ने हिंदू धर्म का पुनरुत्थान करके भारतीय समाज को अमूल्य योगदान दिया प्राचीन भारत में शिक्षा पूर्ण रूप से डर और आधारित एक और ,धर्म जीवन तथा शिक्षा आपस में स्थित है। धार्मिक ,विषयों वेद पुराण स्मृति आदि को पाठ्यक्रम में मैतपुर स्थान प्राप्त था मालवीय जी ने शिक्षा के क्षेत्र में इस परंपरा को पुनः स्थापना की। 


राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या -

मालवीय जी ने राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या हल करने के लिए नए प्रकार के विश्वविद्यालयों की स्थापना की भी शिक्षा के कार्य को भारतीय परंपराओं से इस मत करना चाहते थे।।।इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने चारों, वर्णों ,क्षत्रिय ,वैश्य, शूद्र और स्त्रियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर तक की समुचित व्यवस्था की। 


भाषाओं के सम्मेलन का प्रयास - मालवीय जी ने भाषाओं के समन्वय के सिद्धांतों का भी समर्थन किया अभी एक और दो प्राचीन संस्कृत का ज्ञान कराने के लिए संस्कृत भाषा का अध्ययन आवश्यक समझते थे और दूसरी ओर वर्तमान युग की परिस्थितियों के अनुकूल सफल जीवन व्यतीत करने के लिए मातृभाषा के अध्ययन पर बल देते थे इसके साथ ही साथ उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अंग्रेजी को भी स्वीकार किया। 


Writer by roshani kushwaha

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