UP Board live solution class 12th Hindi निबंध : दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप
प्रस्तावना---
कुप्रभाव---
दहेज प्रथा एक ऐसी घातक एवं जघन्य प्रथा है कि जिसने हमारे समाज के मजबूत ढांचे को ही लड़खड़ा दिया है और हमारी सामाजिक व्यवस्था की गाड़ी की धुरी मानो तड़तड़ा कर विखंडित हो जाना चाहती हैं। दहेज की इस डायन ने समाज में भाई और बहन के बीच में द्वेष की दीवार खड़ी कर दी है पिता और पुत्री के बीच में घृणा की चिंगारी सुलगा दी है, पति और पत्नी के पावन संबंध में अनाचार और स्वार्थ का विष घोल दिया है- क्या नहीं किया इसका पापिन दहेज प्रथा ने? इसी कारण आज समाज में पुत्री पिता पर भार है, भाई बहन से लाचार है, पति को पत्नी से नहीं धन से प्यार है। ये सब इस कुल कलंकिनी दहेज प्रथा के ही कुपरिणाम हैं। अगणित कुलीन कन्याएं विष का घूंट पीकर यमलोक सिधार गई, कितनी ही अग्निदेव की गोद में समा गई और कुछ ऐसी भी है जो ठीक समय पर वैवाहिक संबंध ना हो पाने से जीवन के प्रकाशमान राज मार्ग से भटक कर ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी पर चल पड़ती है जो उन्हें पाप और संताप से परिपूर्ण अंधकारमय नरक की नगरी में पहुंचा देती हैं । समाज का कोई वर्ग, जीवन का कोई क्षेत्र दहेज के कुप्रभाव से सुरक्षित नहीं है।
दहेज प्रथा समाज का आधुनिक दोष है---
स्वार्थ से प्रेरित कुछ लोग इस प्रथा को भारतीय संस्कृति के अंतर्गत प्राचीन परंपरा सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं, यहां तक कि कुछ सुशिक्षित सज्जन वेदों जैसे पावन ग्रंथों में भी इस प्रथा का मूल खोजने का प्रयास करते हैं। परंतु हमारे जिन पूज्य महर्षियों ने वेदों और पुराणों की रचना की थी, उनके हृदय ज्ञानालोक से प्रकाशित हो चुके थे। उनमें से किसी ने इस निंदनीय प्रथा के समर्थन में मंत्र रचना की हो, यह सर्वथा असंभव है । यह बात मानी जा सकती है कि पिता अपनी पुत्री को उपहार दे, उसकी सुविधा के लिए उपकरण तथा सामान दे, अपनी कन्या को पतिग्रह को विदा करते समय सुंदर वस्त्र और आभूषण दे। यह भी बात कुछ समझ में आती है कि अपनी शक्ति के अनुसार समय-समय पर वह उसकी सहायता कर दे क्योंकि कोई भी पिता अपनी संतान को दुखी नहीं देखना चाहता किंतु 'कन्यारत्न दुष्कुलादपि' कह कर कन्या को रत्न मानने वाले ऋषि, अपनी कन्या को देने के लिए उसके लिए वर खरीदे या इस प्रकार की अनुमति दे, इस पर कदापि विश्वास नहीं किया जा सकता। यदि अतीत के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो सच्चाई इसके विपरीत दिखाई पड़ती है। वैदिक काल से लेकर राजपूतों के सामंती युग तक दहेज का कोई अवशेष दिखाई नहीं पड़ता। एक-एक कन्यारत्न को पाने के लिए अनेक राजकुमार स्वयंवरों में जाकर अपनी योग्यता प्रमाणित करते थे। राम और अर्जुन जैसे श्रेष्ठ वीरों को सुयोग्य कन्या के साथ विवाह के लिए अपनी वीरता का प्रमाण देना होता था। यह कैसी विडंबना है कि एक व्यक्ति किसी को अमूल्य रत्न दें और रत्न का ग्राहक रत्न देने वाले से ही उसका मूल्य मांगे? हमारे समाज में यह रोग सर्वथा आधुनिकतम है।
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दहेज प्रथा का अनौचित्य----
स्वतंत्रता के पश्चात देश में प्रजातंत्र की स्थापना हुई। हमारे संविधान ने स्त्री और पुरुष को समान अधिकार दिए परंतु यह कैसी विपरीत गति है कि एक ओर तो हम स्त्री को पुरुष के समान स्थान व सम्मान देना चाहते हैं और दूसरी ओर हमारे समाज में दहेज जैसी कुप्रथा को प्रोत्साहन मिलता जा रहा है जो नारी के अधिकारों का हनन करती जा रही है। वैसे समाज के सभी लोग इसके दुष्परिणामों से परिचित हैं, सभी इस बुराई को निर्मूल करना चाहते हैं। समाज की छोटी-मोटी व्यवस्था तो क्या सरकार के बनाए मजबूत कानून भी इसको निर्मूल करने में कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं।
दहेज प्रथा की समाप्ति के उपाय--
दहेज प्रथा के अंत के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत किए जाते हैं। यदि इनको काम में लाया जाए, तो इस प्रथा का अंत हो सकता है।
1. इस कुप्रथा के अंत के लिए युवक वर्ग को सामने आना चाहिए। यदि लड़के का पिता उसके विवाह के लिए दहेज की मांग करता है या कन्या का पिता दहेज देकर विवाह करना चाहता है तो ऐसी दशा में लड़के और लड़की, दोनों को ही विवाह करने से इंकार कर देना चाहिए।
2. सरकार ने दहेज की समाप्ति के लिए कानून बनाया हुआ है। सरकार उसका कठोरता से पालन करने के लिए प्रयत्नशील है, फिर भी यदि कोई भिखमंगा युवक लुकछिप कर दहेज की मांग करता है तो समाज के व्यक्तियों को चाहिए कि वे सरकार को उसकी सूचना दें।
3. इस विषय में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले युवक-युवतियों को इस प्रथा की कहानियां समझाई जाए और प्रेरित किया जाए कि वे माता-पिता द्वारा दहेज लेकर या देकर किए गए विवाह संबंध को स्वीकार ना करें । हमारे युवक-युवतियों को यह तथ्य समझ लेना चाहिए कि धन के लोभ में किया गया वैवाहिक संबंध सफल नहीं हो सकता--- "प्रेम खरीदा नहीं जाता, वह समर्पण चाहता है।"
उपसंहार----
दहेज प्रथा समाज के लिए घातक रोग है। इससे समाज को अनेक हानियां हैं। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार को कड़ाई करनी चाहिए। समाज के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह कानून के पालन में सरकार का पूरा सहयोग करे। आज देश के सभी युवक-युवतियों का यह कर्तव्य है कि वे इस भयानक पिशाच को मिटाने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाएं और जब तक इसका अंत ना हो, चैन की सांस ना ले। इसका अंत होने पर ही हमारा समाज विकसित और राष्ट्र उन्नत हो सकेगा।
Writer-Nitya Kushwaha
Nice
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