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मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध -(2014 ,15)
प्रस्तावना - मैं यह तो नहीं कहता कि मैंने बहुत अधिक अध्ययन किया है; यद्यपि भक्तिकालीन कवियों में कबीर, सूर और तुलसी तथा आधुनिक कवियों में प्रसाद, पंत और महादेवी के काव्य का आस्वादन अवश्य किया है| इन सभी कवियों के काव्य का अध्ययन करते समय तुलसी के काव्य की अलौकिकता के समक्ष में सदैव नतमस्तक तक होता रहा हूं| उनकी भक्ति भावना समन्वयात्मक दृष्टिकोण तथा काव्य सौष्ठव ने मुझे स्वाभाविक रूप से आकृष्ट किया है|
जन्म की परिस्थितियां -तुलसी दास का जन्म ऐसी विषम परिस्थितियों में हुआ जब हिंदू समाज आसक्त होकर विदेशी चंगुल में फंस चुका था| हिंदू समाज की संस्कृति और सभ्यता प्रायः विनष्ट हो चुकी थी और कहीं कोई उचित आदर्श नहीं था|
इस युग में जहां एक और मंत्रियों का विध्वंस किया गया, मामो नगरी का विनाश हुआ वहीं संस्कारों को भ्रष्टता आदि चरम सीमा पर पहुंची| इसके अतिरिक्त तलवार के बल पर हिंदुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था और विभिन्न संप्रदायों ने धार्मिक विषमताओं का तांडव नृत्य हो रहा था अपने अपने डफली अपना अपना राग अलापना आरंभ कर दिया था | ऐसी परिस्थिति में भोली-भाली जनता यह समझने में असमर्थ थी कि वह किस संप्रदाय का आश्रय ले|
उस समय की दिग्भ्रमित जनता को ऐसे नाविक की आवश्यकता थी, जो उसकी जीवन नौका की पतवार को संभाल ले|
गोस्वामी तुलसीदास ने अंधकार के गर्त में डूबी हुई जनता के समक्ष भगवान राम का लोकमंगलकारी रूप प्रस्तुत किया और उसमें अपूर्ण आशा एवं शक्ति का संचार किया | युगदृष्टा तुलसी ने अपने श्रीरामचरितमानस द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न मतों संप्रदायों एवं धाराओं का समय वह किया | उन्होंने अपने युग को नवीन दिशा नई गति एवं नवीन प्रेरणा दी | उन्होंने सच्चे लोकनायक के सम्मान एवं वैमनस्य की चौड़ी खाई को पाटने का सफल प्रयत्न किया
तुलसीदास : एक लोक नायक के रूप में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन है लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके: क्योंकि भारतीय समाज में नाना प्रकार की परस्पर विरोधी नी संस्कृति या साधनाएं जातियां आचरनिष्ठा और विचार पद्धतियां प्रचलित है |
भगवान बुद्ध समन्वयकारी थे |"
तुलसी के राम - तुलसी उन राम के उपासक थे जो सच्चिदानंद परब्रह्म जिन्होंने भूमि का भार हरण करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था----
जब-जब जब होई धरम कै हानि |
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी||
तब-तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा |
हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा ||
तुलसी ने अपने काव्य में सभी देवी देवताओं की प्रस्तुति की है लेकिन अंत में वे यही कहते हैं_
माँगत तुलसीदास कर जोरे | बसहिं रामसिय मानस मोरे||
निम्नलिखित पंक्तियों मैं उनकी अनन्यता और भी अधिक पुष्ट हुई है--
एक भरोसा एक बल, एक आस विश्वास |
एक राम घनश्याम हित, चावक तुलसीदास||
तुलसी के समक्ष ऐसे राम का जीवन था, जो मर्यादाशील थे और शक्ति एवं सुंदर के अवतार थे |
तुलसीदास की निष्काम भक्ति-भावना -सच्ची भक्ति वही है जिसमें आदान-प्रदान का भाव नहीं होता है भक्तों के लिए भक्ति का आनंद ही उसका फल है तुलसी के अनुसार
मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुबीर |
अस विचारी रघुबंसमनि, हरहु विषम भव वीर ||
तुलसी की समन्वय साधना - तुलसी के काव्य की सर्वप्रथम विशेषता उसमें निहित समन्वय की प्रवृत्ति है | इस प्रवृत्ति के कारण ही वे वास्तविक अर्थों में लोकनायक कहलाए | उनके काव्य में समन्वय के निम्नलिखित रुप दृष्टिगत होते हैं
(क) सगुण निर्गुण का समन्वय - जब ईश्वर के सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों में संबंधित विवाद दर्शन एवं भक्ति दोनों ही क्षेत्रों में प्रचलित है तो तुलसीदास ने कहा
(ख) कर्म ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय -तुलसी की भक्ति मनुष्य को संसार से विमुख कर के अकमरणय बनाने वाली नहीं है, उनकी भक्ति तो सत्कर्म की प्रबल प्रेरणा देने वाली है| उनका सिद्धांत यह है कि राम के समान आचरण करो रावण के सदृश दुष्कर्म नहीं|
तुलसी ने ज्ञान और भक्ति के धागे में राम नाम का मोती पिरो दिया है|
(ग) - युगधर्म- समन्वय- भक्ति की प्राप्ति के लिए अनेक के बाह्य तथा आंतरिक साधनों की आवश्यकता होती है| यह साधन प्रत्येक युग के अनुसार बदलते रहते हैं और इन्हीं को युग धर्म की संज्ञा दी जाती है तुलसी ने इनका भी विलक्षण समन्वय प्रस्तुत किया है|
(घ) साहित्य समन्वय - साहित्य क्षेत्र में भाषा ,छन्द ,रस, अलंकार आदि की दृष्टि से भी तुलसी ने अनुपम समन्वय स्थापित किया| उस समय साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न भाषाएं विधमान थी| विभिन्न छंदों में रचनाओं की जाती थी| तुलसी ने अपने काव्य में संस्कृत अवधि तथा ब्रजभाषा का अद्भुत समन्वय किया|
तुलसी के दार्शनिक विचार- तुलसी ने किसी विशेष वाद को स्वीकार नहीं किया| उन्होंने वैष्णो धर्म को इतना व्यापक रूप प्रदान किया कि उसके अंतर्गत शैव शाकत और पुष्टिमार्पुगी भी सरलता से समाविष्ट हो गए| वस्तुतः तुलसी भक्त है और इसी आधार पर वह अपना व्यवहार निश्चित करते हैं| उनकी भक्ति सेवक सेवय भाव की है| वे स्वयं को राम का सेवक मानते हैं और राम को अपना स्वामी|
तुलसी कृत रचनाएँ - तुलसी के 12 ग्रंथ प्रमाणिक माने जाते हैं| यह ग्रंथ है_ श्रीरामचरितमानस ,विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, दोहावली, रामललानहछू, पार्वती मंगल ,जानकी मंगल, बरवे रामायण, वैराग्य -संदीपनी, श्री कृष्ण गीतावली, तथा' रामाज्ञाप्रश्नावली'| तुलसी की ये रचनाएं विश्व साहित्य की अनुपम निधि है|
उपसंहार- तुलसी ने अपने युग और भविष्य सवदेश और विश्व तथा शक्ति और समाज आदि सभी के लिए महत्वपूर्ण सामग्री दी है| तुलसी को आधुनिक दृष्टि ही नहीं प्रत्येक युग की दृष्टि मूल्यवान मानेगी ;क्योंकि मणि की चमक अंदर से आती है बाहर से नहीं|
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Writer name dipaka kushwaha
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