UP board live solution class 10th social science unit 3 लोकतांत्रिक राजनीति -2 (नागरिक शास्त्र) अध्याय -4 जाति धर्म और लैंगिक मसले
UP board class 10th social science full solution
इकाई- 3 लोकतांत्रिक राजनीति 2 (नागरिक शास्त्र)
अध्याय- 4 जाति धर्म और लैंगिक मसले
बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न-1 महिलाओं की समाज में बराबरी की मांग के आंदोलन को क्या कहा जाता है?
(क) महिला मुक्ति आंदोलन
(ख) नारीवादी आंदोलन
(ग) स्त्री शक्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) नारीवादी आंदोलन
प्रश्न -2 भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात क्या है?
(क) बहुत ही कम
(ख) बहुत अधिक
(ग) एक समान
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) बहुत ही कम
प्रश्न-3 धर्म ही सामाजिक समुदाय का काम करता है, यह मान्यता किस पर आधारित है
(क) धर्म पर
(ख) संप्रदाय पर
(ग) समुदाय पर
(घ) सांप्रदायिकता पर
उत्तर-(घ) सांप्रदायिकता पर
प्रश्न-4 धर्मनिरपेक्ष राज्य में-
(क) धर्म का कोई स्थान नहीं
(ख) एक राष्ट्र एक धर्म में विश्वास
(ग) केवल बहुसंख्यक वर्ग के धर्म को मानता
(घ) सभी धर्मों को समान समझना
उत्तर-(घ) सभी धर्मों को समान समझना
प्रश्न-5 जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है-
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अंतर
(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान सुविधाएं
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात
(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना
उत्तर-(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएं
अति लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न-1 वर्ण व्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग हर हाल में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप से उनके नीचे।
प्रश्न-2 नारीवादी आंदोलन क्या है?
उत्तर- महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊंचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की मांग करने और उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की मांग करने वाले आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहा जाता है, श्रम का लैंगिक विभाजन कहलाता है।
प्रश्न-3 लोकतंत्र के लिए जातिवाद घातक है। इसके दो कारण बताइए।
उत्तर-
1- जातिवाद ने देश के विभिन्न जातीय समूहों में आपसी संघर्ष और टकराव को जन्म दिया है जो कि राष्ट्रीय एकता के लिए एक बड़ा खतरा है।
2- जातिवाद के आधार पर आरक्षण की राजनीति ने भी भारतीय लोकतंत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
प्रश्न-4 सांप्रदायिकता क्या होती है?
उत्तर- जब किसी संप्रदाय विशेष के लोग अपने संप्रदाय को श्रेष्ठ तथा दूसरे संप्रदायों को ही न समझें और उनके लिए उग्र रूप धारण करें, उसे सांप्रदायिकता कहते हैं।
प्रश्न-5 यदि सत्तारूढ़ दल धर्म को शासन का आधार मानता है ,तो उस से क्या हानि होगी दो तर्क दीजिए।
उत्तर-
1- सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा मिलेगा।
2- बहुसंख्यक वर्ग तथा अल्पसंख्यकवाद को बढ़ावा मिलेगा।
लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न-1 सांप्रदायिकता किस प्रकार एक समस्या बन जाती है?
उत्तर- किसी एक धर्म के लोगों का समूह संप्रदाय कहलाता है। जब यह संप्रदाय अपने आसपास को श्रेष्ठ तथा अन्य संप्रदायों को हीन समझने लगे तो सांप्रदायिकता की समस्या उत्पन्न होती है। यह समस्या तब शुरू होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है। समस्या और विकराल हो जाती है जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशेषताओं के और पक्षपोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयाई दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरे से श्रेष्ठ माना जाने लगता है। और कोई एक धार्मिक समूह अपनी मांगों को दूसरे समूह के विरोध में खड़ा करने लगता है। इस प्रक्रिया में जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है तो स्थिति और विकट होने लगती है। राजनीति से धर्म को जोड़ना ही सांप्रदायिकता है।
प्रश्न-2 राजनीति किस प्रकार जाति व्यवस्था को प्रभावित करती है?
या
भारत में जाति प्रथा का राजनीति एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- जाति प्रथा का राजनीति पर प्रभाव-
जिस प्रकार जाति राजनीति को प्रभावित करती है उसी प्रकार राजनीति भी जाति पर प्रभाव डालती है। इस प्रकार जाती भी राजनीति ग्रस्त हो जाती है-
1- हर जाति खुद को बड़ा बनाना चाहती है। इसलिए पहले वह अपने समूह की जनजातियों को छोटा या नीच बताकर अपने से बाहर रखना चाहती थी, अब वह उन्हें साथ लाने की कोशिश करती है।
2- चूंकि एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनीतिक ताकत पाने के लिए दूसरी जातियों और समुदायों को साथ लेने की कोशिश करती है।
3- राजनीति में एक किस्म की जातिगत गोलबंदी भी हुई है;
जैसे- अगड़ा और पिछड़ा।
प्रश्न-3 धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर- धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
1- भारतीय राज्य की तरफ से किसी भी धर्म को संरक्षण नहीं दिया गया है। यहां सभी धर्मों को समान माना जाता है।
2- धर्म के आधार पर किसी भी भेदभाव को अवैधानिक घोषित किया गया है।
3- संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। उदाहरण- यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न-1 जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र कीजिए जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं।
या
अपने देश में महिलाओं को सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार दिए जाने के पक्ष में तीन तर्क दीजिए। क्या उन्हें किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण प्राप्त है?
उत्तर- हमारे देश में आजादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। पर वे अभी भी पुरुषों से काफी पीछे हैं। हमारा समाज अभी भी पितृ प्रधान है। औरतों के साथ अभी भी कई तरह के भेदभाव होते हैं-
1- जनगणना 2011 के अनुसार महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 64.6 फीसदी है, जबकि पुरुषों में फ़ीसदी। स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या है उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती है। अभी भी मां-बाप अपने संसाधनों को लड़के- लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने की जगह लड़कों पर ज्यादा खर्च करना पसंद करते हैं।
2- साक्षरता दर कम होने के कारण ऊंची तनख्वाह वाले और ऊंचे पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है। भारत में स्त्रियां पुरुषों से अधिक काम करती हैं किंतु अक्सर उनके काम को मूल्यवान नहीं माना जाता।
3- काम के हर क्षेत्र में यानी खेल-कूद की दुनिया से लेकर सिनेमा के संसार तक और कल- कारखानों से लेकर खेत -खलियानों तक महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है। भले ही दोनों में समान काम किया।
4- भारत के अनेक हिस्सों में अभी भी लड़की को जन्म लेते ही मार दिया जाता है। अधिकांश परिवार लड़के की चाह रखते हैं। इस कारण लिंग अनुपात गिरकर प्रति हजार लड़कों पर 943 ( शिशु लिंगानुपात 919 )रह गया है।
प्रश्न- 2 विभिन्न तरह की सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक एक उदाहरण भी दीजिए।
या
सांप्रदायिकता लोकतंत्र के लिए घातक है। दो कारण लिखिए।
या
सांप्रदायिकता लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों हैं? जो तर्क दीजिए।
उत्तर- सांप्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है-
1- सांप्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में ही दिखती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी -बनाई धारणाएं और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएं शामिल है।
2- सांप्रदायिक भावना वाले धार्मिक समुदाय राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन किया जाता है तथा फिर धीरे-धीरे धर्म पर आधारित अलग राज्य की मांग करके देश की एकता को नुकसान पहुंचाया जाता है; जैसे- भारत में अकाली दल, हिंदू महासभा आदि दल धर्म के आधार पर बनाए गए। धर्म के आधार पर सिखों की खालिस्तान की मांग इसका उदाहरण है।
3- सांप्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा धर्म और राजनीति का मिश्रण किया जाता है। राजनीतिक दलों द्वारा अधिक वोट प्राप्त करने के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया जाता है; जैसे भारत में भारतीय जनता पार्टी धर्म के नाम पर वोट हासिल करने की कोशिश करती है। बाबरी मस्जिद का मुद्दा इसका उदाहरण है।
4- कई बार सांप्रदायिकता सबसे गंदा रूप लेकर संप्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगों और नरसंहार कराती हैं। विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान में भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए थे। आजादी के बाद भी बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई है। 1984 के हिंदू- सिख दंगे इसका प्रमुख उदाहरण है।
प्रश्न-3 राजनीति में जाति किस प्रकार अनेक रूप ले सकती है ?उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर- राजनीति में जाति-
सांप्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस समानता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। इस चिंतन पद्धति के अनुसार एक जाति के लोग एक स्वाभाविक सामाजिक समुदाय का निर्माण करते हैं और उनके हित एक जैसे होते हैं तथा दूसरी जाति के लोगों से उनके हितों का कोई मेल नहीं होता।
जैसा कि हमने सांप्रदायिकता के मामले में देखा है, यह मान्यता मारे अनुभव से पुष्ट होती है। हमारे अनुभव बताते हैं कि जाति हमारे जीवन का एक पहलू जरूर है लेकिन एकमात्र या उससे ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू नहीं है। राजनीति में जाति अनेक रूप ले सकती है-
1- जब पार्टियां चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती है तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जाति का हिसाब ध्यान में रखती हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाए। जब सरकार का गठन किया जाता है तो, राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों का उचित जगह दी जाए।
2- राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसा ते हैं कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।
3- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट की व्यवस्था नहीं राजनीतिक दलों को व्यवस्थित किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हो। इससे उन जातियों के लोगों में नई चेतना पैदा हुई उन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता है।
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