छायावाद की विशेषताएं लिखिए//chhayawad ki visheshtaen
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छायावादी युग-"स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह ही छायावाद है"
डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगी है और आत्मा की छाया परमात्मा में यही छायावाद है।
अचार रामचंद्र शुक्ल के अनुसार छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों से समझना चाहिए एक तो रहस्यवाद के अर्थ में जहां उसका संबंध का वस्तु से होता है अर्थात जहां कभी उसे अनंत और अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है।
जयशंकर प्रसाद के अनुसार जब वेदना के आधार पर स्वामीभूतमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया। ध्वन्यात्मकता, लक्षिणिकता सौंदर्य मय प्रतीक विधान तथा उपचार वक्ता के साथ स्वामी भूत की विवृति छायावाद की विशेषताएं हैं।
छायावादी युग की विशेषताएं-
प्रकृति का मानवीकरण-प्रकृति पर मानव व्यक्तित्व का आरोप छायावाद की मुख्य विशेषता है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को चेतना मानते हुए प्रकृति का सजीव चित्रण किया है।
कल्पना की प्रधानता-छायावादी काव्य में कल्पना को प्रधानता दी गई हैं छायावादी कवियों ने यथार्थ की अपेक्षा कल्पना को काव्य अधिक अपनाया है।
व्यक्तिवाद की प्रधानता-छायावादी काव्य में व्यक्तिगत भावनाओं की प्रधानता है छायावाद में कवियों ने अपने सुख दुख एवं हर्ष शोक को ही वाणी प्रदान करते हुए खुद को अभिव्यक्त किया है।
श्रंगार भावना-छायावादी काव्य मुक्ता श्रंगारी काव्य छायावाद का श्रंगार उपयोग उपभोग की वस्तु नहीं अपितु कौतूहल और विस्मय विषय है।
नारी भावना-छायावादी कवियों ने नारी के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाकर समाज में उसके सम्मानित स्थान को प्रतिष्ठित किया रीतिकालीन कवियों ने नारी को विलास की वस्तु और उपभोग की सामग्री मात्र माना जबकि छायावादी कवियों ने उसे प्रेरणा का पावन उत्सव मनाते हुए गरमा प्रदान की।
राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति-छायावादी काव्य में राष्ट्रीयता के स्वर भी मुखर हुए हैं। प्रसाद जी ने अपने नाटकों में जो गीत योजना की है उसमें राष्ट्रीय भावना की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेम-अज्ञात सत्ता के प्रति कवि की हृदय गति प्रेम की अभिव्यक्ति पाई जाती है। ऐसा ज्ञात सकता को कवि कभी प्रेसीय के रूप में कवि चेतन प्रकृति के रूप में दिखता है छायावाद की यह अज्ञात सत्ता ब्रह्म से भिन्न है।
जीवन दर्शन-छायावादी कवियों ने जीवन के प्रति भावात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। इसका मूल दर्शन सर्वात्मवाद है। संपूर्ण जगत मानव चेतना में संपादित दिखाई देता है।
रहस्यवाद-छायावादी कविता में रहे स्वाद एक आवश्यक प्रवृत्ति है। यह प्रवृत्ति हिंदी साहित्य की एक ऐसी प्रवृत्ति रही है इस कारण छायावाद के प्रत्येक कवि ने एक फैशन अथवा व्यक्तिगत रुचि से इस प्रवृत्ति को ग्रहण किया है।
लाक्षणिकता-छायावादी कविताओं में लाक्षणिकता का अभूतपूर्व सौंदर्य भाव मिलता है। इन कवियों से सीधी-सादी भाषा को ग्रहण कर लाक्षणिक एवं प्रस्तुत प्रधानों द्वारा उसे सर्वाधिक मौलिक बनाया है।
छंद विधान-छायावादी काव्य छंद के लिए भी अत्यधिक उल्लेखनीय है। इन कवियों ने मुक्तक छंद और रितु कांत दोनों प्रकार की कविताएं लिखी है। इसमें प्राचीन छंदों के सांसद नवीन छंदों के निर्माण की प्रवृत्ति भी मिलती है।
छायावाद के प्रमुख कवियों के नाम
छायावाद की चार विशेषताएं लिखिए
1-छायावादी काव्य में रहस्व चिंतन की प्रधानता है।
2-इसमें संवेदनशीलता का अधिक उत्कृष्ट प्रेम की अनुभूति है।
3-प्रकृति में मानवीकरण का आरोप।
4-भाषा संस्कृति के तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है जिसमें माधव और कोमलता का प्राचुर्य है।
5-छायावाद में अध्यात्मिकता भाव विकसित हुआ है।
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