दैनिक जीवन में महंगाई का असर, महंगाई की समस्या पर निबंध//mahangai ki samasya per nibandh

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दैनिक जीवन में महंगाई का असर, महंगाई की समस्या पर निबंध//mahangai ki samasya per nibandh

दैनिक जीवन में महंगाई का असर, महंगाई की समस्या पर निबंध//mahangai ki samasya per nibandh


नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में आप लोगों को बताएंगे दैनिक जीवन में महंगाई का असर महंगाई की समस्या पर निबंध सभी जानकारी अपने को इस पोस्ट के माध्यम से दी जाएगी तो आप लोग इस पोस्ट में अंत तक जरूर बने रहें और इस पोस्ट को अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें साथ ही आप लोग कमेंट करें।

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रूपरेखा: प्रस्तावना-आवश्यक वस्तुओं हुई महंगी भारत की आर्थिक नीतियों की विफलता विदेशी कर्ज में डूबा देश गरीबी को दूर करके विकास को करना है संभव- उपसंहार|


परिचय| महंगाई की समस्या की प्रस्तावना-

कोई भी वस्तुओं और उत्पादों की कीमत मैं वृद्धि होने को महंगाई। महंगाई के कारण देश की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते हैं। महंगाई मनुष्य की रोजी-रोटी को भी प्रभावित करता है। बढ़ती हुई महंगाई भारत की एक बहुत ही गंभीर समस्या है। सरकार एक तरफ महंगाई को कम करने की बात करती है वहीं दूसरी तरफ महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में महंगाई मानव आसमान छू रही हो। कई लोग महंगाई के कारण शहर को छोड़कर अपने गांव बस जाते हैं क्योंकि रोज की महंगाई उन्हें शहर में बसने नहीं देती। आज सभी लोग महंगाई को कम करने की मांग कर रहे हैं परंतु महंगा इस देश में साल दर साल ऊपर चली जा रही है।


आवश्यक वस्तुओं हुई महंगी-कमरतोड़ महंगाई जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में निरंतर वृद्धि महंगी उत्पादन की कमी और मांग की पूर्ति में असमर्थता की परिचायक है। बढ़ती हुई महंगाई जीवन चालन के लिए अनिवार्य तत्वों (कपड़ा रोटी मकान) की पूर्ति गरीब जनता के पेट पर ईट बांधती है। मध्यवर्ग की आवश्यकताओं में कटौती करती है वही धनिक वर्ग के लिए आय के स्रोत उत्पन्न करती है। देसी घी तो आंख आंजने को भी मिल जाए तो गनीमत है वनस्पति देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भी बहुत रजत पुष्प चढ़ाने पड़ते हैं। पेट्रोल डीजल मिट्टी के तेल रसोई गैस की दिन प्रतिदिन बढ़ती मूल्य वृद्धि ने दैनिक जीवन पर तेल छिड़ककर उसे भस्म करने का प्रयास किया है। तन ढकने के लिए कपड़ा महंगाई के गज पर सुकुड रहा है। सब्जी फल डालें और अचार ग्रहण क्यों को पुकार पुकार कर कह रहे हैं रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पिए। रही मकान की बात अगर महंगाई की यही स्थिति रही तो लोग जंगल में रहने लगेंगे दिल्ली की हालत यह है कि दो कमरे रसोई का सेट ₹3000 किराए पर भी नहीं मिलता इतनी महंगाई में कैसे गुजारा करेंगे देश के गरीब वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग।


भारत की आर्थिक नीतियों की विफलता

बढ़ती हुई महंगाई भारत सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का परिणाम है। प्रकृति के रोष और प्रकोप का फल नहीं, शासकों की बद नियति और वदइंतजामी कि मुंह बोलती तस्वीर है। काला धन तस्करी और जमाखोरी महंगाई वृद्धि के परम मित्र हैं। तस्कर खुलेआम व्यापार करता है। काला धन जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है। काले धन की गिरफ्त में देश के बड़े नेताओं से लेकर उद्योगपति और अधिकारी तक शामिल हैं। काले धन का सबसे बुरा असर मुद्रा स्फीति और रोजगार के अवसरों पर पड़ता है। यह उत्पादन और रोजगार की संभावना को कम कर देता है और दाम बढ़ा देता है।


इतना ही नहीं सरकार हर मास किसी न किसी वस्तु का मूल्य बढ़ा देती है। जब कीमतें बढ़ती है तो किसी के बारे में नहीं सोचती। दिल्ली बस परिवहन ने किराए में शत-प्रतिशत वृद्धि के परिमाण था दूसरी और टैक्सी वालों ने भी रेट बढ़ा दिए। विदेशी कर्ज और उसके सेवा शुल्क ब्याज ने भारत की आर्थिक नीति को चौपट कर रखा है भारत का खजाना खाली हो रहा है।


विदेशी कर्ज में डूबा देश

एक और विदेशी कर्ज बढ़ रहा है तो दूसरी और व्यापारिक संतुलन बिगड़ रहा है। तीसरी और राष्ट्रीय कृत उद्योग निरंतर घाटे में जा रही है प्रोग्राम इन में प्रतिवर्ष अरबों रुपयों का घाटा भ्रष्ट राजनेताओं नौकरशाहों और बेईमान ठेकेदारों के घर में पहुंचकर जन सामान्य को महंगाई की ओर धकेल रखा है।


गरीब देश की बादशाही सरकारों की अनाप-शनाप बढ़ती खर्च देश की आर्थिक रीड को तोड़ने की कसम खाए हुए हैं मंत्रियों की पलटन आयोगों की भरमार साईं दौरे की योजनाओं की विकृति सब मिलाकर गरीब करदाता का खून चूस रही है। देश में खपत होने वाले पेट्रोलियम पदार्थों के कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा राजकीय कार्यों में खर्च होता है। लेकिन प्रचार माध्यमों से बचत की शिक्षा दी जाती है तेल की एक एक बूंद की बचत कीजिए।


गरीबी को दूर करके विकास को करना है संभव-सरकारों द्वारा आयात शुल्क तथा उत्पाद शुल्क बढ़ाए गए हैं। रेलवे में माल भाड़ा बढ़ाया है तथा यात्री किरायों में वृद्धि की है। डांस की दरें भी बड़ी है। लिफाफे का मूल्य ₹1 से बढ़कर ₹3 हो गया है। इन सब बढ़ोतरी का असर कीमतों पर पड़ना लाजमी है‌ कीमतें बढ़ने का मुख्य कारण आर्थिक उदारीकरण है। उदारीकरण के तहत उद्योगपतियों और व्यापारियों को खुली छूट दी गई है कि वे जितना चाहे ग्राहक से वसूले। जिन अनेक चीजों पर से मूल नियंत्रण उठा लिया गया है उनमें दवाएं भी हैं। अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि पिछले 500 वर्षों में दवाओं की कीमतें बेतहाशा बढ़ी है। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में वृद्धि का एक बड़ा कारण मार्केटिंग का नया तंत्र है ₹1 लागत की वस्तु ₹10 में बेची जाती है। इन सब से बचकर हमें गरीबी को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। गरीबी जब दूर होगी तभी देश की व्यवस्था ठीक होगी। हमें गरीबी को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। अगर हमें हमारे देश से गरीबी को हटाना है तो हमें महंगाई को जड़ से मिटाना होगा।


उपसंहार-

अधिक नोट छापने का गुर एवं विदेशी और स्वदेशी रेड घाटे की खाई को पार करने के सेतु है। खाई भरने की विधि नहीं। जब घाटे की खाई भरी नहीं जाएगी तो मुद्रा स्फीति बढ़ती जाएगी। ज्यों-ज्यों मुद्रास्फीति बढ़ेगी महंगाई छलांग मार मार कर आगे कूदेगी देगी। जनता महंगाई की चक्की में और पिसती जाएगी। महंगाई को रोकने के लिए समय-समय पर हड़ताली और आंदोलन चलाए गए हैं लेकिन फिर भी महंगाई कम नहीं हुई है।


महंगाई की वजह से गरीब लोग पहनने के लिए कपड़े नहीं खरीद पाते हैं तथा अपने परिवार एक वक्त का खाना ठीक से नहीं खवा पाते हैं। महंगाई को कम करने के लिए उपयोगी राष्ट्र नीति की जरूरत है जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है उस तरीके से महंगाई को रोकना बहुत ही जरूरी है नहीं तो हमारी आजादी को दोबारा से खतरा उत्पन्न हो जाएगा। हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण देश की बढ़ती जनसंख्या है। जब तक जनसंख्या को बस में नहीं किया जा सकता महंगाई कम नहीं होगी। महंगाई की वजह से निम्न वर्ग के लोगों को जरूरत की चीजें नहीं मिल पाती हैं और इससे अपने रोजमर्रा जीवन में खुशी से जीवन व्यतीत नहीं कर पाते हैं।



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