महादेवी वर्मा का जीवन परिचय||Mahadevi Verma biography in Hindi
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय||Mahadevi Verma biography in Hindi |
संक्षिप्त परिचय
जीवन परिचय-
हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म वर्ष 1960 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ था। इनके पिता गोविंद सहाय वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। माता हेमनानी साधारण कवित्री थी एवं श्री कृष्ण में अटूट श्रद्धा रखते थे इनके नाना जी को भी ब्रज भाषा में कविता करने की रुचि थी। नाना एवं माता के गोलू का महादेवी पर गहरा प्रभाव पड़ा इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई थी 9 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ था।, किंतु इन्हीं दिनों इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। ऐसी विकट स्थिति में भी इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा।
अत्यधिक परिश्रम के फल स्वरुप इन्होंने मैट्रिक से लेकर आठवीं तक की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
वर्ष 1935 में इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य पद को सुभाषित किया इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया। साथ ही नारी की स्वतंत्रता के लिए यह सदैव संघर्ष करती रही इनके जीवन पर महात्मा गांधी का तथा कला साहित्य साधना पर रविंद्र नाथ टैगोर का प्रभाव पड़ा।
साहित्यिक परिचय-
महादेवी जी साहित्य और संगीत के अतिरिक्त चित्रकला में भी रुचि रखती थी।सर्वप्रथम इनकी रचनाएं 'चांद' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। यह चांद पत्रिका की संपादक का भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें 'सेकसरिया' तथा 'मंगला प्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपए का भारत-भारती पुरस्कार दिया। गया तथा इसी वर्ष का विक्रांत यामा पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ यह जीवन पर्यंत प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रही।
11 सितंबर 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गई।
भाषा शैली-
महादेवी जी ने अपने गीतों में सरल,तत्सम, प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीयकरण आदि अलंकारों की छटा देखने को मिलती है। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोग एवं व्यंजना के प्रयोग के कारण स्पष्टता व दुरूहता दिखाई देती है।
महादेवी वर्मा की कविताओं में कल्पना की प्रधानता है। परंतु गद्य में इन्होंने यथार्थ के धरातल पर स्थित रहकर ही अपनी रचनाओं का सृजन किया है। महादेवी जी की भाषा अत्यंत उत्कृष्ट समर्थ तथा सशक्त है। संस्कृत निष्ठा इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है।
इन्होंने संस्कृत प्रधान शुद्ध साहित्यिक भाषा को ही अपनाया है। इनकी रचनाओं में कहीं-कहीं पर अत्यंत सरल और व्यवहारिक भाषा के प्रदर्शन हैं। मुहावरों, लोकोक्तियां का प्रयोग किया गया है। लक्षणा और व्यंजनों की प्रधानता इनकी भाषा की महत्वपूर्ण विशेषता है। महादेवी जी की भाषा में चित्रों को अंकित करने तथा अर्थ को व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है। महादेवी जी की गद्य-शैली बिल्कुल अलग है। ये यथार्थवादी बदले के खाते इनको गद्य शैली में मार्मिक बौद्धिकता भागता काव्यात्मक सौष्ठव तथा व्यंगात्मक विद्यमान हैं।
शिक्षा -
छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत ही 9 वर्ष बाल्यावस्था में ही महादेवी वर्मा का व्यवहार डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ कर दिया गया। इससे उनकी शिक्षा का क्रम टूट गया।क्योंकि महादेवी के ससुर लड़कियों से शिक्षा प्राप्त करने के पक्ष में नहीं थे लेकिन जब महादेवी के ससुर का स्वर्गवास हो गया। तो महादेवी जी ने पुना शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया वर्ष 1920 में उमा देवी जी ने प्रयाग से प्रथम श्रेणी में मिडिल पास किया।
संयुक्त प्रांत के विद्यार्थियों में उनका स्थान सर्वप्रथम रहा इसके फलस्वरूप उन्हें छात्रवृत्ति मिली। 1924 में महादेवी जी ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और पुनः प्रांत बार में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस बार भी उन्हें छात्रवृत्ति मिली वर्ष 1926 में उन्हें इंटरमीडिएट और वर्ष 1928 में बी.ए की परीक्षा क गर्ल्स कॉलेज में प्राप्त की। 1933 में महादेवी जी ने संस्कृत में मास्टर ऑफ आर्ट m.a. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार उनका विद्यार्थी जीवन बहुत सफल रहा बीए में उनका एक विषय दर्शन भी था। इसलिए उन्होंने भारतीय दर्शन का गंभीर अध्ययन किया इस अध्ययन की छाप उन पर अंत तक बनी रही।
वैवाहिक जीवन-
सन 1916 में उनकी बाबा श्री बांके बिहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे श्री वर्मा इंटर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे महादेवी जी उस समय क्रॉस्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थी श्रीमती महादेवी वर्मा को वैवाहिक जीवन से विरक्त महादेवी जी का जीवन एक सन्यासिनी का जीवन था 1966 में पति की मृत्यु के बाद वह स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगे 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में इनका देहांत हो गया।
रचनाएं-
महादेवी जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं।
(अ) निबंध संग्रह- श्रृंखला की कड़ियां, साहित्यकार की आस्था, क्षणदा, अबला और सबला इन रचनाओं में इनकी विचारात्मक और साहित्यिक निबंध संग्रह है।
(ब) संस्मरण और रेखाचित्र- स्मृति की रेखाएं, अतीत के चलचित्र, पथ के साथी, मेरा परिवार इन समय समारोह में इनके ममतामई हृदय के दर्शन होते हैं।
(स) आलोचना- हिंदी का विवेचनात्मक गद्द।
(द) काव्य रचनाएं- सांध्य गीत, निहार, रश्मि, नीरजा, यामा, दीपशिखा इन काव्यों में पीड़ा एवं रहस्यवादी भावनाएं व्यक्त हुई हैं।
हिंदी साहित्य में स्थान-
महादेवी जी की कविताओं में नारी हृदय की कोमलता और सरलता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है इनकी कविताएं संगीत की मधुरता से परिपूर्ण है इनकी कविताओं में एकाकीपन की झलक देखने को मिलती है हिंदी साहित्य में पत्र लेखन के साथ-साथ अपने गद्य लेखन द्वारा हिंदी भाषा को सजाने-संवारने तथा अर्थ गाम्भीर्य प्रदान करने का जो प्रयत्न इन्होंने किया है वह प्रशंसा के योग्य हिंदी की रहस्यवादी कवियों में इनका स्थान सर्वोपरि है।
कवित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ एक कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थी। आधुनिक गीत काव्य में महादेवी वर्मा का स्थान सर्वोपरि है यह एक महान कवित्री होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य जगत में एक बेहतरीन गद्य लेखिका के रूप में भी जानी जाती हैं।
महादेवी वर्मा का निबंध कौन सा है?
क्षणदा महादेवी वर्मा का एकमात्र ललित निबंध ग्रंथ है। महादेवी वर्मा के प्रमुख कहानी संग्रह में गिल्लू प्रमुख हैं।
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