मृत्युदंड का प्रभाव पर निबंध हिंदी में / Essay on Death Penalty Effective in Hindi

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मृत्युदंड का प्रभाव पर निबंध हिंदी में / Essay on Death Penalty Effective in Hindi

मृत्युदंड का प्रभाव पर निबंध हिंदी में / Essay on Death Penalty Effective in Hindi

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                      मृत्युदंड का प्रभाव पर निबंध

नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको मृत्युदंड का प्रभाव पर निबंध हिंदी में (Essay on Death Penalty Effective in Hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं।  तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।


Table of Contents

1.परिचय

2.मृत्यु दंड क्या है?

3.मृत्युदंड के प्रकार

4.भारत में मृत्युदंड की सजा का इतिहास

5.मृत्युदंड के कुछ सकारात्मक पहलू

6.आपराधिक गतिविधि पर रोकथाम

7.अपराधियों का अंत

8.मृत्युदण्ड के पक्ष में कुछ सकारात्मक तथ्य

9.कुछ नकारात्मक पहलू

10.निष्कर्ष


मृत्युदंड का प्रभाव पर हिंदी में निबंध 


परिचय :- हमारा समाज कुछ नियमों और कानून के अनुसार कार्य करता है और उन्हीं नियमों और कानून के तहत समाज में शांति और सौहार्द का माहौल बना रहता है। समाज के इसी सौहार्द को सृजनात्मक रूप से चलने के लिए किसी भी देश में कानून और संविधान का निर्माण किया जाता है। संविधान के बनाये इन नियमों को तोड़ना एक दंडनीय अपराध है। इस अपराध की सजा उस अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है। किसी भी गंभीर अपराध की सजा के लिए मृत्युदंड की सजा का भी प्रावधान है। देश के संविधान और मानव के अधिकारों के बीच संघर्ष हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है। समाज के संवैधानिक कानून और मानवी अधिकारों को बनाये रखने के लिए कुछ गंभीर अपराधों की सजा के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है। इस कानून के तहत अपराध को सिद्ध करके अपराधी को यह सजा सुनाई जाती है। जिसके कारण आक्रोश और इस प्रकार की गंभीर आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाया जा सकता है।


मृत्यु दंड क्या है?


किसी व्यक्ति को उसके अपराध के लिए कानूनी प्रक्रिया के तहत उस अपराध के सिद्ध होने पर उसके प्राणांत की सजा को ही "मृत्युदंड" कहा जाता है। मृत्युदंड को कई और नामों से भी जाना जाता हैं जैसे- डेथ पेनाल्टी (Death Penalty) और कैपिटल पनिशमेंट (Capital Punishment)। इसके तहत कुछ क्रूर अपराध जैसे- हत्या, सामूहिक हत्या, बलात्कार, यौन शोषण, आतंकवाद, युद्ध अपराध, राजद्रोह, इत्यादि मृत्युदंड की सजा के अधीन आती है। यह सामाजिक अवधारणा है कि समय के साथ ही दंड विधान की प्रक्रिया भी नरम होते जाते है और प्रचलित प्राचीनतम सजा धीरे-धीरे प्रचलन से बहार चली जाती है। मानवी समाज की यह धारणा हैं कि समय के अनुसार सामाज सभ्य होता जाता है और ऐसे सभ्य समाज में ऐसा कानून नहीं होना चाहिए जो उस सभ्य सामाज की सभ्यता के अनुकूल न हो। फाँसी की सजा को भी इसी कसौटी में परखा जाता है।


मृत्युदंड के प्रकार: भारतीय दंड संहिता में हत्या के अपराध को दो श्रेणी में - बता गया है- एक इरादतन और दूसरा गैर इरादतन हत्या । सोच-समझकर और जानबूझकर की गयी हत्या को इरादतन हत्या की श्रेणी में रखा गया है, और अपने बचाव या ऐसे जन्मे परिस्थिति में की गयी हत्या को गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में रखा गया है। हत्या की परिस्थितियों, उसकी जघन्यता, क्रूरता आदि को ध्यान में रखकर न्यायाधीश उस अपराध की सजा सुनाते है। हत्या इरादतन हो या गैर इरादतन उसकी गंभीरता को देखते हुए उसकी सजा मृत्युदण्ड सुनाई जाती है। फांसी, घातक इंजेक्शन, पत्थरबाजी, गोलियों से भुनवा देना, बिजली का शॉक देकर, इत्यादि मृत्युदंड लागू करने के कुछ विशेष तरीके है। समयानुसार कई देशों में मृत्युदंड की सजा को समाप्त कर दिया गया है, और कई देशों में क़ानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए आज भी वहां मृत्युदंड का प्रावधान है, जैसे भारत, चीन, सउदी अरब, मिस्र, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका, नाइजीरिया, जापान, ईरान, इत्यादि अन्य देशों में फांसी की सजा का प्रावधान आज भी है।


भारत में मृत्युदंड की सजा का इतिहास:-विश्व भर में मृत्युदंड की सजा किसी व्यक्ति को उसके अपराध के लिए दी जाने वाली सबसे बड़ी सजा के रूप में जाना जाता है। भारतीय इतिहास में इसका प्रचलन काफी पुराना है, लेकिन हाल के कुछ समय से मृत्युदंड के प्रावधान को ख़त्म करने की चर्चा काफी हो रही है। भारत का संविधान सन 1950 में लागू किया गया था। इससे पहले अंग्रेजी हुकूमत में मृत्युदंड की सजा आसानी से दिया जाता रहा। भारतीय संविधान लागू होने के प्रथम पांच वर्ष में किसी को भी उसके गंभीर अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा का प्रावधान था, क्योंकि उस समय मृत्युदंड की सजा का प्रावधान प्रचलन में था। इसके बाद उनके अपराधों की सजा में कुछ बदलाव किया गया। भारतीय संविधान में किसी अपराधी की सजा उसके अपराध की क्रूरता को ध्यान में रहकर दी जाने की प्रक्रिया शुरू की गयी। अपराधी व्यक्ति की क्रूरता को ध्यान में रखकर उसके अपराध की सजा उम्रकैद या मौत की सजा में मुकम्मल की जाने लगी।


मृत्युदंड के कुछ सकारात्मक पहलूः- हम सभी को पता है कि अपराधी को दी जाने वाली मृत्युदंड की सजा सबसे आखिरी और शीर्ष सजा है। कोई भी अपराध करने वाला व्यक्ति कानून का अपराधी होता है, और उसे उसके अपराधों की सजा दी जाती है। किसी व्यक्ति को उसके अपराधों की सजा मृत्युदंड दी जाती है तो उसका अपराध भी उच्च किस्म का होगा जो कि जनता और सामाज के लिए नुकसानदायी साबित होगा । कुछ विशेषज्ञों का तो यह मानना है की मृत्युदंड को लेकर समाज में यह धारणा भी प्रदर्शित होती हैं कि बुरे के साथ हमेशा बुरा और अच्छे के साथ हमेशा ही अच्छा होता है।


आपराधिक गतिविधि पर रोकथाम:- किसी भी अपराधी को उसके द्वारा किये गए जघन्य अपराध के लिए उसको मृत्युदंड की सजा दी जाती है। इस प्रकार की सजा से समाज के अपराधियों और समाज को एक सन्देश जाता है कि हमें इस तरह का अपराध नहीं करना चाहिए। समाज के अपराधियों और लोगों को एक सन्देश और उनके मन में एक डर पैदा हो जाता है। मृत्युदंड की सजा देने से अपराधियों के मन में यह बात बैठ जाती है कि अगर हम किसी के जीवन को नष्ट करे या उसके जीवन को किसी भी तरह का नुकसान पहुचाये तो हमे इसकी सजा मृत्युदंड के रूप में मिलेगी। इस सजा का डर उनकी आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने का कार्य करती है। 


अपराधियों का अंत:-मृत्युदंड की सजा से समाज के क्रूर और ऐसे अवांछित अपराधियों का अंत होता है, जो की ऐसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते है या ऐसे अपराधों की कल्पना करते है। मृत्युदंड की सजा उन सभी का अंत करती है, जो अपराधी होते है और जो इस प्रकार की आपराधिक सोच को रखते है। किसी अपराधी को ऐसे जघन्य अपराध के लिए यदि उन्हें मृत्युदंड न देकर उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो ऐसे अपराधी जेल के भीतर रहकर जेल के अंदर या बहार के लोगों को नुकसान पंहुचा सकते है। जिससे की ऐसे आपराधिक मामलों को बढ़ावा भी मिलता है। ऐसे अपराधियों को जेल में रखने से हमारी सरकार को भी नुकसान होता है। उनके ऊपर हमारे समाज के अन्य कार्यों को लिए दिए गए पैसों का नुकसान भी होता है। ऐसे अपराधियों को मृत्युदंड न देकर उन्हें जेल में रखने से इस प्रकार की आपराधिक प्रवृत्ति रखने वाले अपराधियों के मन से डर ख़त्म हो जाता है और समाज में वे आये दिन ऐसी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने का काम करते है ।


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मृत्युदण्ड के पक्ष में कुछ सकारात्मक तथ्य:- मृत्युदंड के पक्षकारों का मानना है की मृत्युदंड की सजा भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसे उदार लोकतान्त्रिक देशों में बरक़रार रखा गया है। "सभ्य देश" का हवाला देकर इसे समाप्त करना बहुत गलत सिद्ध हो सकता है। हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए मृत्युदंड ही न्यायिक और अंतिम रूप से सही फैसला है। इससे अपराधियों के मन में इस तरह के अपराध की धारणा रखने वाले अपराधियों के विचारों को भी मारा जा सकता है। मृत्युदंड के समर्थन में पक्षकार मानते है कि इस प्रकार का जघन्य अपराध करने वाला व्यक्ति किसी के जीवन जीने का अधिकार छीन लेता है। अतएव उसके ऐवज में उसे मृत्यु देना सही फैसला है। इससे पीड़ित को न्याय मिलता है। मृत्युदंड की सजा का अंदाजा अपराधियों से नहीं बल्कि समाज में ऐसे विचार रखने वालों पर इसके असर से लगाना चाहिए।


कुछ नकारात्मक पहलू:- अक्सर यह देखा गया है कि हमारे दोषपूर्ण न्याय प्रणाली व्यवस्था और न्याय अधिकार के चलते कई निर्दोष मारें जाते है। इस प्रकार की व्यवस्था के कारण निर्दोष व्यक्ति दोषी बन जाता है, और अपने को निर्दोष साबित करने में सफल नहीं हो पता है। जिसके कारण उसे मृत्युदंड प्राप्त होती है। किसी की हत्या करना या हत्या करने वाले अपराधी को दंड के रूप पे सजा-ए-मौत देना सही है। कुछ पक्षकारों का मानना है कि यह कार्य हत्या के कार्य के बराबर ही है। इसलिए कई देश मृत्युदंड की सजा समाप्त करने के पक्ष में रहे है। कुछ पक्षकारों का मानना है कि जीवन जीने और उसे सुधारनें के लिए अपराधियों को एक दूसरा मौका अवश्य देना चाहिए। अपराधियों को मौका देने से उन्हें अपने आपराधिक घटना का बोध होगा और जेल में रहकर वो अपने इस आपराधिक घटना का पछतावा कर सकता है। 


निष्कर्ष:-


मृत्युदंड की सजा क्रूर अपराध और असाधारण अपराध करने वालों के लिए सर्वोत्तम सजा के रूप में है। दुनिया की सारी सभ्यताओं में ही इसका प्रचलन रहा है। आदिकाल से ही मृत्युदण्ड की सजा यातनाओं और दर्दनाक होता था। वर्त्तमान समय के संविधान प्रणाली और कानून व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता है, ताकि दोषियों की सजा मिलें और ऐसे विचार रखने वालों के मन में डर पैदा हो सकें और इस प्रकार के अपराधों से हमारे समाज को मुक्ति मिलें।


FAQs


1.मृत्यु दंड क्या है?

उत्तर-किसी व्यक्ति को उसके अपराध के लिए कानूनी प्रक्रिया के तहत उस अपराध के सिद्ध होने पर उसके प्राणांत की सजा को ही "मृत्युदंड" कहा जाता है।


2.मृत्युदंड के कितने प्रकार हैं?

उत्तर-भारतीय दंड संहिता में हत्या के अपराध को दो श्रेणी में बताया गया है- एक इरादतन और दूसरा गैर इरादतन हत्या ।


3.मृत्युदंड के कुछ सकारात्मक पहलू बताइए।

उत्तर-मृत्युदंड को लेकर समाज में यह धारणा प्रदर्शित होती हैं कि बुरे के साथ हमेशा बुरा और अच्छे के साथ हमेशा ही अच्छा होता है।


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