भारत में महिलाओं के अधिकार : संवैधानिक और कानूनी अधिकार

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भारत में महिलाओं के अधिकार : संवैधानिक और कानूनी अधिकार

भारत में महिलाओं के अधिकार : संवैधानिक और कानूनी अधिकार

नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको भारत में महिलाओं के अधिकार के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। दोस्तों अगर आपको हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने सभी दोस्तों को share जरूर करिएगा।


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भारत में महिलाओं के अधिकार : संवैधानिक और कानूनी अधिकार

भारतीय संविधान के Article (अनुच्छेद) 14 के अंतर्गत भारतीय विधि के सामने स्त्री एवं पुरुष समान हैं। कानून के तहत दोनों को समान संरक्षण प्राप्त हैं। इसके तहत विदेशी नागरिक भी आते हैं।


Article 15 (3) के अंतर्गत राज्य सरकारों को महिलाओं के हितों की रक्षा करने के लिए विशेष कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।


Article 16 के अंतर्गत राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों (स्त्री एवं पुरुष) को समान अवसर मिलता है। इसमें धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होता है।


Article 19 के अंतर्गत महिलाएं स्वतंत्र रूप से भारत के किसी क्षेत्र में आवागमन, निवास एवं व्यवसाय कर सकती हैं। महिला होने के कारण किसी भी कार्य से वंचित करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।


Article 21 के अंतर्गत किसी भी महिला को जीवन एवं स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। इस कानून के तहत कोई भी वयस्क महिला वयस्क पुरुष के साथ विवाह या अंतर्जातीय विवाह कर सकती है या लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती है।


Article 21 (A) के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष तक की महिलाओं को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त है। इसके अंतर्गत मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था सरकार द्वारा की गई है।


Article 23 के अंतर्गत महिलाओं के खिलाफ होने वाले शोषण यानी महिलाओं की खरीद, बिक्री, वेश्यावृत्ति के लिए जबरदस्ती करना, भीख मंगवाना, बेगारी करवाना आदि को दंडनीय माना गया है।


Article 24 के अंतर्गत 14 साल से कम उम्र के बच्चों (बालक या बालिका) को किसी कारखाने में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जा सकता है या किसी खतरनाक रोजगार या काम में नहीं लगाया जा सकता है।


Article 39 (क) के अंतर्गत महिलाओं को सामान्य न्याय एवं निशुल्क विधि सहायता एवं सामान्य कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था है।


Article 42 के अंतर्गत राज्य महिलाओं को काम करने की न्याय संगत एवं उपयुक्त दशाओं को सुनिश्चित करता है तथा प्रसूति सहायता के लिए उपबंध करता है।


Article 46 के अंतर्गत राज्य के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के महिलाओं के लिए शिक्षा एवं धन संबंधी हितों का विशेष ख्याल रखता है एवं सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से रक्षा करता है।


Article 51(e) के अंतर्गत व्यवस्था है कि लोग भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को समझें एवं ऐसी प्रथाओं का परित्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के खिलाफ है।


Article 243-D(3) के तहत पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान सुरक्षित किया गया है। इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की महिलाएं भी हैं।


Article 243-D(4) के तहत ग्राम पंचायतों में अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या ⅓ पद स्त्रियों के लिए आरक्षित है।


Article 243-T(3) के अनुसार नगर पालिका के चुनाव में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले कुल स्थानों का एक तिहाई स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित है। नगर पालिका में महिलाओं के लिए अध्यक्षों का पद ऐसी विधि से आरक्षित रहेंगे जैसा उसे राज्य का विधान मंडल निर्धारित करेगा।


Article 325 के अंतर्गत निर्वाचक नामावली में महिला एवं पुरुष को समान मताधिकार का अधिकार दिया गया है। 


भारत में महिलाओं की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए संविधान के द्वारा अनेक अधिकार दिए गए हैं। लेकिन शिक्षा के अभाव में महिलाएं इसका लाभ नहीं उठा पा रही हैं। आज आवश्यकता है कि सरकार, NGO एवं देश की जनता महिलाओं को कानून की जानकारी दें एवं महिलाओं को देश की मुख्यधारा में लाने का प्रयास करें।


महिलाओं के 40 महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार –


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शादीशुदा या अविवाहित स्त्रियां अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रताड़ना को घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत दर्ज कराकर उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमें वे रह रही हैं।


यदि किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके पैसे, शेयर्स या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा हो तो इस कानून का इस्तेमाल करके वह इसे रोक सकती है।


इस कानून के अंतर्गत घर का बंटवारा कर महिला को उसी घर में रहने का अधिकार मिल जाता है और उसे प्रताड़ित करने वालों को उससे बात तक करने की इजाजत नहीं दी जाती।


विवाहित होने की स्थिति में अपने बच्चे की कस्टडी और मानसिक/शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा मांगने का भी उसे अधिकार है।


घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती हैं, इसके लिए वकील को लेकर जाना जरूरी नहीं है। अपनी समस्या के निदान के लिए पीड़ित महिला - वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है।


भारतीय दंड संहिता 498 के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को दहेज के लिए प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है। अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा पाने की अवधि बढ़ाकर आजीवन कर दी गई है।


हिंदू विवाह अधिनियम 1995 के तहत निम्न परिस्थितियों में कोई भी पत्नी अपने पति से तलाक ले सकती है - पहली पत्नी होने के बावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक लापता होने पर, परिणय संबंधों में संतुष्ट न कर पाने पर, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर, पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर, यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए 1 वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो।


यदि पति बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले याचिका दायर कर दे, तब भी महिला को बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है।


तलाक के बाद महिला को गुजाराभत्ता, स्त्रीधन और बच्चों की कस्टडी पाने का अधिकार भी होता है, लेकिन इसका फैसला साक्ष्यों के आधार पर अदालत ही करती है।


पति की मृत्यु या तलाक होने की स्थिति में महिला अपने बच्चों की संरक्षक बनने का दावा कर सकती है।


भारतीय कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन गर्भ की वजह से यदि किसी महिला की स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है। ऐसी स्थिति में उसका गर्भपात वैध माना जाएगा। साथ ही कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यदि वह ऐसा करता है तो महिला कानूनी दावा कर सकती है।


तलाक की याचिका पर शादीशुदा स्त्री हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत गुजाराभत्ता ले सकती है। तलाक लेने के निर्णय के बाद सेक्शन 25 के तहत परमानेंट एलिमनी लेने का भी प्रावधान है। विधवा महिलाएं यदि दूसरी शादी नहीं करती हैं तो वे अपने ससुर से मेंटेनेंस पाने का अधिकार रखती हैं। इतना ही नहीं, यदि पत्नी को दी गई रकम कम लगती है तो वह पति को अधिक खर्च देने के लिए बाध्य भी कर सकती है। गुजारेभत्ते का प्रावधान एडॉप्शन एंड मेंटेनेस एक्ट में भी है।


सीआरपीसी के सेक्शन 125 के अंतर्गत पत्नी को मेंटेनेंस, जो कि भरण-पोषण के लिए आवश्यक है, का अधिकार मिला है।


लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है, जो किसी विवाहिता को मिलता है।


लिव इन रिलेशनशिप संबंधों के दौरान यदि पाटनर अपनी जीवनसाथी को शारीरिक प्रताड़ना दे तो पीड़ित महिला घरेलू हिंसा कानून की सहायता ले सकती है।


लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुई संतान वैध मानी जाएगी और उसे भी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार होगा।


पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई पुरुष दूसरी महिला से लिव इन रिलेशनशिप रखता है तो दूसरी पत्नी को भी गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है।


प्रसव से पूर्व गर्भस्थ शिशु का लिंग जांचने वाले डॉक्टर और गर्भपात कराने का दबाव बनाने वाले पति दोनों को ही अपराधी करार दिया जाएगा। लिंग की जांच करने वाले डॉक्टर को 3 से 5 वर्ष का कारावास और 10 से ₹16000 का जुर्माना हो सकता है। लिंग जांच का दबाव डालने वाले पति और रिश्तेदारों के लिए भी सजा का प्रावधान है।


1955 हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 26 के अनुसार, पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण पोषण और शिक्षा के लिए भी निवेदन कर सकती है।


हिंदू एडॉप्शन एंड सेक्शन एक्ट के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है।


यदि महिला विवाहित है तो पति की सहमति के बाद ही बच्चा गोद ले सकती है।


दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है। बच्चे की मां या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है।


विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है। इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजारा भत्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है।


हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 27 के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है। इसके अलावा पत्नी के अपने 'स्त्रीधन' पर भी उसका पूरा अधिकार रहता है।


1954 के हिंदू मैरिज एक्ट में महिलाएं संपत्ति में बंटवारे की मांग नहीं कर सकती थीं, लेकिन अब कोपार्सेनरी राइट के तहत इन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है। यह कानून सभी राज्य में लागू हो चुका है।


इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट रूल-5, शेड्यूल-5 के तहत यौनसंपर्क के प्रस्ताव को ना मानने के कारण कर्मचारी को काम से निकालने व एनी लाभों से वंचित करने पर कार्रवाई का प्रावधान है।


समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने का अधिकार है।


धारा 66 के अनुसार, सूर्योदय से पहले (सुबह 6बजे) और सूर्यास्त के बाद (शाम 7 बजे के बाद) काम करने के लिए महिलाओं को बाध्य नहीं किया जा सकता।


भले ही उन्हें ओवरटाइम दिया जाए, लेकिन कोई महिला यदि शाम 7:00 बजे के बाद ऑफिस में ना रुकना जाए तो उसे रूकने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।


ऑफिस में होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ महिलाएं शिकायत दर्ज करा सकती हैं।


यदि पुलिस एफआईआर दर्ज करती है तो एफआईआर की कॉपी देना पुलिस का कर्तव्य है।


सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किसी भी तरह की पूछताछ के लिए किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन में नहीं रोका जा सकता।


पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला कांस्टेबल का होना जरूरी है।


महिला अपराधी की डॉक्टरी जांच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति के दौरान कोई पुरुष डॉक्टर।


किसी भी महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। जरूरत पड़ने पर उससे पूछताछ के लिए पुलिस को ही उसके घर जाना होगा।


अन्य समुदायों की महिलाओं की तरह मुस्लिम महिला भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 126 के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं। मुस्लिम महिला अपने तलाकशुदा पति से तब तक गुजारा भत्ता पाने की हकदार है जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है।


हाल ही में मुंबई हाई कोर्ट द्वारा एक केस में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया कि दूसरी पत्नी को उसके पति द्वारा दोबारा विवाह के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह बात नहीं कल्पित की जा सकती कि उसे अपने पति के पहले विवाह के बारे में जानकारी थी।


मासूम बच्चियों के साथ बढ़ते बलात्कार के मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। अब बच्चियों से सेक्स करने वाले या उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलने वाले लोगों के खिलाफ बलात्कार के आरोप में मुकदमें दर्ज होंगे, क्योंकि चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूशन बलात्कार के बराबर अपराध है।


कई बार बलात्कार की शिकार महिलाएं पुलिस जांच और मुकदमे के दौरान जलालत व अपमान से बचने के लिए चुप रह जाती हैं। अतः हाल ही में सरकार ने सीआरपीसी में बहुप्रतीक्षित संसाधनों का नोटिफिकेशन कर दिया है, जो इस प्रकार है –

बलात्कार से संबंधित मुकदमों की सुनवाई महिला जज ही करेगी।

ऐसे मामलों की सुनवाई 2 महीनों में पूरी करने के प्रयास होंगे।

पीड़िता के बलात्कार बयान महिला पुलिस अधिकारी दर्ज करेगी।

पीड़िता के बयान घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में लिखे जाएंगे।


Frequently Asked Questions (FAQ'S)-


प्रश्न - महिला पर हाथ उठाने पर कौन सी धारा लगती है?

उत्तर - महिला पर हाथ उठाने में भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की धारा 323 लगती है‌


प्रश्न - महिला संविधान क्या है?

उत्तर - संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,39 व 42 में इसकी चर्चा की गई है। अनुच्छेद 14 महिलाओं को कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि राज्य किसी भी नागरिक से धर्म, जाति, लिंग व जन्म स्थान के नाम पर भेदभाव नहीं करेगा।


प्रश्न - बदनाम करने पर कौन सी धारा लगती है?

उत्तर - धारा 500 : जो कोई भी दूसरे को बदनाम करता है, उसे साधारण कारावास की सजा दी जाएगी, जो 2 साल तक है या जुर्माना या दोनों के साथ हो सकती है। उल्लेखनीय है कि आईपीसी, 1860 की धारा 499 पिछले 158 वर्षों से अनछुई है।

यह Blog एक सामान्य जानकारी के लिए है इसका उद्देश्य सामान्य जानकारी प्राप्त कराना है। इसका किसी भी वेबसाइट या Blog से कोई संबंध नहीं है यदि संबंध पाया गया तो यह एक संयोग समझा जाएगा।  

यहां पर आपको महिलाओं के संवैधानिक और कानूनी अधिकार के बारे में बताया गया है। इस प्रकार की अन्य जानकारी के लिए आप nityastudypoint.com पर विजिट कर सकते हैं। दोस्तों अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो अपने सभी दोस्तों को social media platform WhatsApp, Facebook or telegram पर share करिएगा।


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