हल्दीघाटी युद्ध पर निबंध | Essay on battle of Haldighati in Hindi
हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का घमासान युद्ध प्रताप की सेवा तथा अकबर की सेवा के बीच लड़ा गया। अकबर की सेवा का नेतृत्व अमर के कछवाह बंसी मानसिंह कर रहे थे। मान सिंह मर्दाना नाम के हाथी पर सवार था। महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था। युद्ध का बिगुल बाजा आसमान में गर्जना हुई तथा तलवारों व भालों की आवाज खाना खाना और झनझनाहट से ओतपोत वीरों के साहस को बढ़ा रही थी।
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हल्दीघाटी युद्ध पर निबंध | Essay on battle of Haldighati in Hindi |
Table of contents
हल्दीघाटी युद्ध का महत्व
हल्दीघाटी का विश्व प्रसिद्ध युद्ध भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसके राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक परिणाम भले ही ज्यादा खास ना हो परंतु हल्दीघाटी युद्ध को युगों युगों तक याद किया जाएगा। क्योंकि यह युद्ध मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ा गया प्रताप ने स्वाभिमान के चलते सर्वोच्च त्याग और बलिदान दिया यह युद्ध प्रादेशिक स्वतंत्रता के लिए जाना जाता है। प्रताप संसाधनों के अभाव में तथा विषम परिस्थितियों होने के बावजूद भी संघर्ष करता रहा अंत तक उसने हार नहीं मानी। इसलिए हल्दीघाटी का युद्ध विश्व के सभी युद्ध में अनोखा है।
हल्दीघाटी युद्ध के कारण
राजपूत राज्यों के प्रति अकबर की नीति आक्रामक ना होकर सलाह एक कल की नीति का सहारा लिया। अकबर द्वारा आयोजित 1570 के नागौर दरबार में राजस्थान की अधिकांश शासको ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली
नागौर दरबार के बाद भी जिन रियासतों ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की तथा मुगलों के साथ व्यवाहिक संबंध स्थापित नहीं किया उनमें मेवाड़ प्रमुख रियासत थी।
दूसरी और महाराणा उदयसिंह के बाद मेवाड़ का शासक महाराणा प्रताप बनते हैं. महाराणा प्रताप स्वतंत्रता प्रिय शासक होने के साथ-साथ संघर्षी तथा स्वाभिमानी भी थे. महाराणा प्रताप चाहते तो मुगलों की अधीनता स्वीकार कर विलासिता पूर्ण जिंदगी दूसरे शासकों की तरह गुजार सकते थे। परंतु महाराणा प्रताप को उनके स्वाभिमान ने ऐसा करने नहीं दिया.
परिणाम स्वरूप महाराणा प्रताप ने दर-दर की ठोकरें खाकर अपने स्वाभिमान को जिंदा रखते हुए मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संपूर्ण जीवन का बलिदान कर दिया. प्रताप ने अपना प्रतिरोध जारी रखा. इसके लिए उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति का सहारा लिया.
अकबर ने प्रताप को मनाने के लिए 4 शिष्मंटडल भी भेजें꫰ परंतु प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की तब युद्ध अनिवार्य हो गया था.मेवाड़ रियासत गुजरात तथा दिल्ली मार्ग में होने के कारण अकबर इसे अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था.
अकबर यह जानता था कि महाराणा प्रताप के पास ना तो ज्यादा संसाधन है और ना ही बड़ी सेना.इससे अकबर का मनोबल सातवें आसमान पर था जिसने भी आक्रमण करने को बल प्रदान किया.अकबर धर्म सहिष्णु शासक था फिर भी वह किसी हिंदू राजा को स्वतंत्र रूप में नहीं देख सकता था.
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ भील जनजाति में भी दिया। भील जनजाति में प्रताप की का नाम से प्रसिद्ध थे तथा उनका बहुत सम्मान करते थे. भील योद्धा लड़ाई के लिए जाने जाते थे अर्थात लड़ाके थे. इसके अलावा भी लड़ाके पहाड़ी क्षेत्रों के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ थे तथा दुश्मन सेना को छापामार युद्ध पद्धति के द्वारा छक्के छुड़ाने के काबिल थे.
भील जनजाति के अलावा ग्वालियर के तनवर, मथुरा के राठौड़ प्रताप का हल्दीघाटी युद्ध में सहयोग कर रहे थे.
हल्दीघाटी का उद्देश्य
1570 इस में मुगल बादशाह अकबर ने नागौर में दरबार लगाया जिसमें मेवाड़ के अतिरिक्त अधिकांश राजपूत शासको ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। वही मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने हेतु भेजे गए चार दलों के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
इससे अकबर नाराज हो गया उसे महाराणा प्रताप को युद्ध में बंदी बनाने की योजना बनाई। अकबर महाराणा प्रताप को जीवित पड़कर मुगल दरबार में खड़ा करना अथवा मार देना चाहता था।
तथा उनके संपूर्ण राज्य को अपने साम्राज्य में मिल लेना चाहता था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मुगल बादशाह अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध हेतु मानसिंह को मुख्य सेनापति बनाया और उसके सहयोग हेतु आसिफ खान को नियुक्त किया।
हल्दीघाटी युद्ध का परिणाम
राजस्थानी स्रोत, राजप्रशस्ति, राज विलास स्पष्ट रूप से महाराणा प्रताप की विजय का उल्लेख करते हैं. वहीं फ़ारसी इतिहासकार मुगलों की विजय का उल्लेख करते हैं.
वास्तविकता यह हैं कि मुगल बादशाह अकबर मेवाड़ पर अधिकार करना चाहता था. उसकी यह अभिलाषा कभी पूर्ण नहीं हुई और उसने युद्ध इसलिए किया था कि वह महाराणा प्रताप को जिन्दा या मुर्दा अपने दरबार में देखना चाहता था.
उसकी यह अभिलाषा पूर्ण नहीं हुई. हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात भयभीत, आतंकित एवं रसद के अभाव में मुगल सेना की बड़ी दुर्दशा हो रही थी.
ऐसी स्थिति में महराणा प्रताप के छापामार दस्ते, मुगल सेना पर धावा बोलने लगे, अन्तः यह मुगल सेना भीलों की लुकती छिपती, लड़ती भिड़ती अजमेर पहुची.
अकबर और राणा प्रताप के बीच युद्ध
मुगल सी पर सर्वप्रथम आक्रमण इन्होंने किया, जिससे मुगल सेवा पूर्ण रूप से अस्त व्यस्त हो गई। रही कसर प्रताप के आक्रमण ने पूरी कर दी। मुगल इतिहासकार बदायूंनी स्वीकार करता है। की मेवाड़ी सेवा के आक्रमण का वेग इतना तीव्रता की मुगल सैनिक ने बनास के दूसरे किनारे से 5-6 कोश तक (10-15) भाग कर अपनी जान बचाई।
अब प्रताप ने अपने चेतक घोड़े पर चलांग लगाकर हाथी पर सवार मानसिंह पर अपने भाले से वार किया पर मानसिंह बच गया। उसका हाथी मानसिंह को लेकर भाग गया इस घटना में चेतन का पगला पर हाथी की सूंड में लगी तलवार से जख्मी हो गया। प्रताप को शत्रु सी ने घेर लिया।
लेकिन फिर भी प्रताप ने संतुलन बनाए रखा तथा अपनी शक्ति का अभूतपुर प्रदर्शन करते हुए मुगल सेवा में उपस्थित वरिष्ठ बहाल खान के वार का ऐसा प्रतिकार किया कि खान के जिले बख्तर सहित उसके घोड़े के भी दो फाड़ हो गए। इस दृश्य को देखकर मुगल सेवा में हड़कंप मच गया। और प्रताप ने युद्ध को मैदान की बाजाय पहाड़ों में मोड़ने का निश्चय किया।
उसकी सेवा की दोनों भाग एकत्र होकर पहाड़ों की ओर मुड़े और अपने गणतंत्र स्थान तक पहुंचे। तब तक मुगल सी को रोके रखने का दायित्व झाला मान को सोपा।
झाला मां ने अपना जीवन उत्सर्ग करके भी अपने कर्तव्य का पालन किया। इस युद्ध में मुगल सैनिकों का मनोबल इतना टूट चुका था कि उसमें प्रताप की सेवा का पीछा करने का साहस नहीं रहा।
हल्दीघाटी का युद्ध कौन जीता ? (Who Won The Battle Of Haldighati In Hindi)
राणा प्रताप अब अनुभव हो गया था कि युद्ध अवश्यंभावी हैं, तब प्रताप ने युद्ध की तैयारी प्रारम्भ कर दी. मेवाड़ के मूख्य पहाड़ी नाकों (पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश के संकरे मार्ग) एवं सामरिक महत्व के स्थानों पर अपनी स्थति मजबूत करना आरम्भ कर दी. मैदानी क्षेत्रों से लोगों को पहाड़ी इलाकों में भेज दिया तथा खेती करने पर पाबंदी लगा दी.
ताकि शत्रु सेना को रसद सामग्री नही मिल सके. प्रताप को सभी वर्गों का पूर्ण सहयोग प्राप्त था. अतः जनता युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार थी. उधर अकबर ने अन्य सैनिक अभियानों से मुक्ति पाकर मेवाड़ की ओर ध्यान केन्द्रित किया. उसने मानसिंह को प्रधान सेनापति बनाकर राणा प्रताप के विरुद्ध युद्ध करने भेजा.
महाराणा की विजय
महाराणा प्रताप की सेना प्रतिशोध की ज्वाला से शत्रु मुगल सेना पर बिजली की तरह टूट पड़ी, मेवाड़ी सेना के इस भीषण प्रहार को मुगल सेना झेल न सकी और उसकी अग्रिम पंक्ति ध्वस्त हो गई।
मेवाड़ी सरदारों ने मुगल सेना प्राण रक्षा के लिए लगभग 10-12 मील तक पीछे मुड़कर भागती हुई और बनास नदी के तट पर जाकर रुकी. इस प्रथम चरण युद्ध में महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खान सूर का नेतृत्व सफल रहा।
FAQ-question answer
प्रश्न -हल्दीघाटी का इतिहास क्या है?
उत्तर- हल्दीघाटी का दर्रा इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए 18 जून 1576 हल्दीघाटी युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यह अरावली पर्वत शृंखला में खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य एक ऐतिहासिक तंग प्राकृतिक दर्रा (pass) है।
प्रश्न -हल्दीघाटी का युद्ध क्यों हुआ था?
उत्तर- जयपुर की महाराजा मानसिंह उदयपुर पहुंचे थे तो उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ भोजन करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन महाराणा प्रताप ने मना कर दिया इससे मानसिंह गुस्सा होकर मेवाड़ छोड़ कर चले गए और माना जाता है कि इसी कारण से ही हल्दीघाटी का युद्ध नीव पड़ी।
प्रश्न -हल्दीघाटी का युद्ध कौन हारा था?
उत्तर- प्रमुख बिंदु दरअसल राजस्थान के उदयपुर में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में इतिहास के विषय में पढ़ाया जा रहा है कि हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की जीत हुई थी जबकि अनेक इतिहासकार इसके खिलाफ हैं। उनके अनुसार साक्ष्य यह साबित कर चुके हैं कि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी।
प्रश्न -हल्दीघाटी की कहानी क्या है?
उत्तर- हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप का समर्थन करने वाले घुड़सवारों और धनुर्धारियों और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लडा गया था जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप को भील जनजाति का सहयोग मिला ।
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