Prithviraj Chauhan ki jivani// पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

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Prithviraj Chauhan ki jivani// पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

Prithviraj Chauhan ki jivani// पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय, पृथ्वीराज चौहान की जीवनी, पृथ्वीराज चौहान पर निबंध सभी की जानकारी इस आर्टिकल के माध्यम से दी जाएगी। तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें और अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

Prithviraj Chauhan ki jivani// पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
Prithviraj Chauhan ki jivani// पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

पृथ्वीराज चौहान कौन थे// पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब हुआ?// 

Table of contents 

पृथ्वीराज चौहान कौन थे?

पृथ्वीराज चौहान का जन्म

पृथ्वीराज चौहान का मित्र

पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली पर उत्तराधिकार

विवाह

FAQ

पृथ्वीराज चौहान की तलवार का वजन कितना है?

पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी का प्रथम युद्ध

पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी का द्वितीय युद्ध

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु


पृथ्वीराज तृतीय को भारतीय पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराज चौहान हिंदू चौहान वंश के राजा। उन्होंने 12 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में अजमेर और दिल्ली के राज्यपाल शासन कार्य। अपने बचपन में उन्होंने अपने हाथों से एक शेर को मार दिया।

पृथ्वीराज चौहान पृथ्वीराज चौहान सांभर अजमेर दिल्ली राज्य का अधिपति था। पृथ्वीराज चौहान को पृथ्वीराज तृतीय भी कहा गया है। भारत में चौहान वंश का प्रारंभ वासुदेव नामक एक व्यक्ति से माना जाता है।, इस वंश का अंतिम राजा पृथ्वीराज चौहान पृथ्वीराज (तृतीया) था


पृथ्वीराज चौहान का जन्म 

धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में हुआ, पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्वर और कपूरी देवी की संतान थे, पृथ्वीराज का जन्म उनके माता-पिता के विभाग के 12 वर्षों के पश्चात हुआ, यार आज में खलबली का कारण बन गया और राज में उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे, परंतु हुए बच्चे चले गए परंतु मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था, उसके बाद भी उन्होंने अपने दायित्व अच्छी तरह से नहीं भाई और लगातार अन्य राजाओं को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते हुए आगे बढ़ते रहे।


पृथ्वीराज चौहान का मित्र 

पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे। चंदबरदाई भाई बाद में दिल्ली के शासक हुए और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथौरागढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली में पुराने किले के नाम से विद्वान है।


पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली पर उत्तराधिकार

अजमेर की महारानी कपूरी देवी अपने पिता रंग पाल की एकलौती संतान थी इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका शासक कौन संभालेगा उन्होंने अपनी पुत्री और दामाद के सामने अपने रोहित को अपना अधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की और दोनों की सहमति के पश्चात युवराज पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, सन 11066 में महाराज अंग पाल की मृत्यु के पश्चात परसिया चौहान की दिल्ली की गद्दी पर राज्य अभिषेक किया गया और उन्हें दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया।


विवाह 

कमला की बड़ी बहन सुरसुंदरी कन्नौज के राजा विजयपाल से ब्याही थी जिसका पुत्र राजा जयचंद हुआ। राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता पृथ्वीराज की सूर्य वीरता से मोहित होकर उनकी और आकर्षित होने लगी। राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान का मौसेरा भाई पृथ्वीराज ईर्ष्या करता था। 


कहीं-कहीं पृथ्वीराज की माता कर्पूरी देवी को कहा गया है जो कि कल्चुरी राजा की पुत्री थी।


अपने पिता की मृत्यु के उपरांत 11 वर्ष की आयु में इसने अजमेर का शासन 1169 ने संभाला तथा प्रारंभ में 1 वर्ष तक कर्पूरी देवी ने राज्य कार्य में पृथ्वीराज का सहयोग किया। कहीं-कहीं ऐसा लिखा जो मिलता है कि चौहान वंश यह शासक 1173 में सत्तारूढ़ हुआ। अपने जीवन काल में पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने 1182 भांड को का दमन किया प्रत्यय चौहान तृतीय के समय गुजरात का चालू के शासक भीमदेव द्वितीय था।


प्रश्न 1-पृथ्वीराज चौहान की तलवार का वजन कितना है?

उत्तर- बताया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान की तलवार का वजन 61 किलोग्राम था वीराज चौहान की 38 इंच लंबी तलवार है।


प्रश्न 2-पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का प्रथम युद्ध।

उत्तर-अपने राज के विस्तार को लेकर पृथ्वीराज चौहान हमेशा सजग रहे थे, और इस बार अपने विस्तार के लिए उन्होंने पंजाब को चुना था। इशारों में संपूर्ण पंजाब पर मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी का शासक था, तो इसी उद्देश्य पृथ्वीराज ने अपनी विशाल सेना को लेकर गोरी पर आक्रमण कर दिया, अपने इस युद्ध में पृथ्वीराज ने सर्वप्रथम फांसी सरस्वती और शहीद पर अपना अधिकार किया परंतु इसी बीच फर्नहिल वाडा में विद्रोह हुआ और पृथ्वीराज को वहां जाना पड़ा और उनकी सेना ने अपनी कमाई होगी और सरहिंद का किला फिर खो दिया अब जब प्रतिवाद भीलवाड़ा से वापस लौटे उन्होंने दुश्मनों से छक्के छुड़ा दिए युद्ध में केवल उन्ही सैनिक बसे जो मैदान से भाग खड़े हुए इस युद्ध में भी अजमारे हो गए किंतु उनके एक सैनिक ने उनकी हालत का अंदाजा लगाते हुए उन्हें घोड़े पर डालकर अपने माल ले गया और उनका उपचार कराया इस तरह से युद्ध परिणाम हिना रहा यह युद्ध सरहिंद जिले के पास सराय नामक स्थान पर हुआ इसलिए इसे तराइन का युद्ध भी कहते हैं इस युद्ध में पृथ्वीराज ने लगभग 7 करोड रुपए की संपदा अर्जित की जिसे अपने सैनिकों में बांट दिया।


प्रश्न 3-मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान का दूसरा युद्ध

उत्तर-अपनी पुत्री संयोगिता के अपहरण के बाद राजा जाए चंद्र के मन में पृथ्वीराज के लिए कटुता बढ़ती चली गई तथा उसने पृथ्वीराज को अपना दुश्मन बना लिया

कन्नौज के गढ़वाल वर्षीय शासक जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया जिसमें पृथ्वीराज चौहान अपमान करने की दृष्टि से उनकी पाषाण मूर्ति स्वयंवर मंडप के द्वार पर लगवा दी संयोगिता ने उस मूर्ति को अपनी वरमाला पहना दी पृथ्वीराज ने इस स्थल से संयोगिता का हरण कर लिया इसे राजा जयचंद के मन में प्रतिशोध की आग भड़कने लगी। पृथ्वीराज के खिलाफ अन्य राजपूत राजाओं को भी भड़काने लगा जब इसने पृथ्वीराज के शत्रु गजनी के सुल्तान  मोहम्मद गौरी से दोस्ती कर ली वह इसे पृथ्वीराज को परास्त करने आमंत्रण भेजा तराइन के प्रथम युद्ध 1192 ईशा में पुनः पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया यह युद्ध बीच लड़ाई के मैदान में हुआ इस युद्ध के समय जब पृथ्वीराज की मित्र चंद्रवरदाई ने अन्य राजपूत राजाओं से मदद मांगी तो संयोगिता के स्वयंवर में हुई घटना के कारण उन्होंने भी उसकी मदद से इंकार कर दिया ऐसे में प्रत्यय चौहान अकेले पड़ गए और उन्होंने अपने 3लाख सैनिकों के द्वार मोहम्मद गौरी की सेना का सामना किया, क्योंकि गौरी की सेना में अच्छे घुड़सवार थे, उन्होंने प्रत्याशी सेना को चारों ओर से घेर लिया ऐसे में वे ना आगे बढ़ पाते ना पीछे हट पाते और जयचंद्र के गद्दार सैनिकों ने राजपूत सैनिकों का ही संहार किया और पृथ्वीराज की हार हुई, युद्ध के बाद पृथ्वीराज और उसके मित्र चंद्रवरदाई को बंदी बना लिया गया, राजा जयचंद को भी उसकी गद्दारी का परिणाम मिला उसे से मार डाला गया, अब पूरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नौज में गौरी का शासन था, इसके बाद में कोई राजपूत शासक भारत में अपनी वीरता साबित नहीं कर पाया।

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प्रश्न 4-पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु

उत्तर-गौरी से युद्ध के पश्चात प्रति आज को बंदी बनाकर उसके राज्य ले जाया गया, वहां उन्हें यातनाएं दी गई तथा पृथ्वीराज की आंखों को लोहे की गर्म सरियों द्वारा जलाया गया इससे वे अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे, जब पृथ्वीराज से उनकी मृत्यु के पहले आखिरी इच्छा पूछी गई, तो उन्होंने भरी सभा में अपने मित्र चंद्र बधाई के शब्दों पर शब्दभेदी बाण का प्रयोग करने की इच्छा प्रकट की, और इसी प्रकार चंद्रवरदाई द्वारा बोले गए दोहे का प्रयोग करते हुए उन्होंने गोरी के हत्या भरी सभा में कर दी, इसके बच्चे अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त कर ली, और जब संयोगिता ने खबर सुनी तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया।


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