अंधविश्वास पर निबंध | andhvishwas per Essay in Hindi
प्रस्तावना
हमारा भारत देश 21 वीं सदी में जीने के बाद भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं। आज भी अंधविश्वास को हमारे समाज में अनेक लोग मानते हैं बिल्ली द्वारा रास्ता काटने पर रुक जाना, सीखने पर काम न करना, उल्लू का घर की छत पर बैठने को अशुभ मानना, बाई आंख फड़कने पर अशुभ समझना और भी अनेक ऐसी ही घटनाएं आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। अधिकतर स्त्रियां पुत्र संतान पाने के लिए बाबाओ के चक्कर लगाते हैं। ऐसे में बाबा साधु भोली भाली महिलाओं से मोटी रकम वसूलते हैं इसलिए कभी भी ऐसे पाखंडी लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।
अंधविश्वास पर निबंध | andhvishwas per Essay in Hindi |
Table of contents
अंधविश्वास किया है?
किसी भी बात को बिना सोचे समझे और बिना किसी निश्चित निष्कर्ष के मानना, अंधविश्वास है फिर वह भगवान की भक्ति हो या किसी इंसान की।
“ मुरति धरि धंधा रखा, पाहन का जगदीश
मोल लिया बोले नहीं, खोटा विस्वा बीस।”
अर्थात – कबीर दास जी ने कहा है कि आज लोग ईश्वर की मूर्ति खरीद कर उसका धंधा करते हैं वह पत्थर की मूरत को भगवान कहकर खुद पैसा कमाते हैं जिस ईश्वर को वह मोल लेते हैं उसे खुद कुछ नहीं मिलता लेकिन उसके नाम पर एक खोटा बिना काम का व्यक्ति महान बन जाता है। निष्कर्ष यही है कि ईश्वर की आस्था मन एवं सत्कर्म से जाहिर होती है धार्मिक आडंबर से नहीं।
अंधविश्वास के कारण
हमारे देश में आए दिन अंधविश्वास की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। आखिरकार इसके पीछे क्या कारण हैं? हर व्यक्ति के जीवन में किसी ना किसी समस्या से वह जूझता रहता है। ऐसे में जब भी परेशान लोगों को कोई उपाय का लालच देता है तो लोग ऐसे लोगों के चक्कर में आ जाते हैं।
मान लो किसी को नौकरी नहीं मिल रही है, तो किसी के संतान नहीं हो रही है, किसी को पुत्र नहीं हो रहा है, किसी का बिजनेस नहीं चल रहा है। रोजमर्रा की ऐसी तमाम सी घटनाएं हमारे सामने आती ही रहती हैं। जिन को हल करने के लिए लोग साधु, तांत्रिक, बाबा, पाखंडीओं के जाल में फंस जाते हैं। अंधविश्वास का शिकार अनपढ़ और पढ़े-लिखे दोनों वर्ग के लोग होते हैं।
अंधविश्वास का अर्थ
अंधविश्वास का अर्थ है किसी पर आवश्यकता से अधिक विश्वास करना। जैसा कि हम सब जानते हैं इस दुनिया में अलग-अलग संस्कृति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। लोगों के भगवान को पूजने का तरीका भी अलग अलग है। लोगों में भगवान के प्रति अपार श्रद्धा है। परन्तु कुछ लोग इस श्रद्धा के नाम पर अंधविश्वास फैलाते हैं।
अंधविश्वास की परंपरा तो सदियों से चली आ रही है।कहीं धर्म के नाम पर लोगों में अंधविश्वास है तो कहीं रीति-रिवाज रूढ़िवादी परंपराओ के नाम पर अंधविश्वास पाया जाता है। यहां तक कि अंधविश्वास के नाम पर बेजुबान जानवरों तथा निर्दोष मनुष्यों की बलि भी चढा दी जाती है।
लोग अपनी बीमारी के इलाज के लिए डाक्टर से ज्यादा तांत्रिकों के पास जाते हैं। किसी को बेटा चाहिए वो तांत्रिक के पास जा रहा है, किसी की औलाद नहीं है वो तांत्रिक के पास जा रहा है, परीक्षा में सफलता चाहिए तो तांत्रिक के पास जा रहे हैं और कुछ पाखण्डी चार मंत्र बोलना सीखकर अड्डा बनाकर बैठ जाते हैं और लोग उन्हें ज्ञानी समझने लगते हैं।
इस तरह अंधविश्वास के नाम पर लोग लाखों रुपए खर्च कर देते हैं और कुछ भी करने को तैयार हो जातें हैं। आजकल तो टेलीविजन के माध्यम से भी अंधविश्वास फैलाया जा रहा है एक बाबा आकर बड़ी सी कुसी पर बैठ जाते है लोगो की भीड लगी रहती है लोग अपनी समस्या बाबा को बताते हैं और बाबा जो उपाय बता दें वही करने लग जाते हैं।
शिक्षित लोगों में अंधविश्वास
शिक्षित लोगों में अंधविश्वास अधिकतर पाए जाते है। उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों के बीच भी अंधविश्वास न केवल प्रर्चालत हैं, बल्कि ऐसे लोगों की आस्था भी इनमें ज्यादा है। चन्द्रास्वामी, बालयोगेश्वर या महेश योगी इसी स्तर में सांस्कृतिक नायक बने हुए हैं। अब तो चमत्कारी बाबाओं की धाक इस बात पर निर्भर करने लगी है कि विदेशों में उनकी कितनी मान्यता है। अनेक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अपने निजी जीवन में घोर अंधविश्वासों में लिप्त रहते हैं। ये वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में बहस के आधार पर प्रयोग करते हैं । सत्य की खोज में तर्क एक प्रमुख औजार बन गया है। प्रयोगशाला के बाहर वही वैज्ञानिक आस्थाओं, कर्मकांडों और अन्य कई प्रकार की गैर तार्किक परिस्थितियों में जीते हैं।
विश्वास और अनुभव की परीक्षा में असफल
विश्वास, सत्य और अनुभव जीवन का सहारा हैं। ये तीनों एक-दुसरे पर निर्भर हैं और एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए जरूरी भी हैं | बिना विश्वास के अनुभव नहीं होता और अनुभव सिद्ध हुए बिना किसी बात या तत्त्व को सत्य नहीं मानते। इस प्रकार सत्य और अनुभव के मूल में विश्वास ही है । विश्वास पर ही यह जीवन टिका है। यह मनुष्य की दुर्बलता भी है और शक्ति भी। जब विश्वास अनुभव की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो वह अंधविश्वास और पाखण्ड हो जाता है। मानव जीवन में ऐसे क्षण आते रहते हैं, जब वह अपने आपको असहाय, अकेला, निराश और असहज पाता है। ऐसे में उसे अपने आप से बाहर निकल कर सहारा ढूँढना पड़ता है और उस सहारे के प्रति विश्वास का ताना-वाना बुनना पड़ता है, चाहे वह छलावा ही क्यों न हो ? इसी प्रक्रिया में विश्वास, अंधविश्वास और मिथक जन्म लेते
अंधविश्वास पर निबंध (500 शब्द)
किसी भी विद्यालय, कॉलेज तथा किसी अस्पताल मे यदि 8 नम्बर का कमरा या वर्ड मिल जाता है। तो इस नम्बर को अशुभ माना जाता है। कई लोग इस नंबर के कमरे मे रहते ही नहीं है। तथा 2 नंबर को शुभ माना जाता है। यदि 2 नंबर शुभ होता है। तो हमे अपने कमरे ही नहीं अपने सम्पूर्ण मोहल्ले मे 2 नंबर की छाप लगा देनी चाहिए। जिससे लोगो के इन अंधविश्वासीपन को दूर कर सकें।
माना जाता है। कि मरने के बाद व्यक्ति भूत-प्रेत का रूप धरण कर लेते है। तथा हमारा वह नुकसान करते है। तथा मानते है। कि भूत-प्रेत किसी व्यक्ति कि जान भी ले सकते है। एक जिंदा व्यक्ति किसी को नहीं मर सकता जिसके पास एक शरीर,दीमाक तथा बल होता है। तो एक मरी हुई आत्मा किसी व्यक्ति को कैसे मार सकती है। जिसके पास न तो अपना शरीर होता है। एक आत्मा द्वारा मनुष्य को मारना असंभव होता है।
लोगो की बुरी नजर लगाने से बचाने के लिए छोटे बच्चे के शिर पर एक काला तिलक लगया जाता है। तथा नए निर्मित टांके पर ''बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला'' इस प्रकार का अंकित होता है। इस प्रकार का दृश्य मैंने भी देखा है। किसी की बुरी नजर तो लगती है। ये बात सही है। परंतु एक काले कालंग से नजर लगनी बंद नहीं होती है। उदाहरण के लिए भैस का सम्पूर्ण शरीर काला ही होता है। तो उसे नजर कैसे लगती है?
शादी, नई घर मे निवास तथा तीर्थ यात्रा करते लोग मुहूर्त से करते है। यदि मुहूर्त अच्छा प्राप्त होता है। तो वह इस दिन को ही अपना कार्य कर लेंगे नहीं तो वे अपने कार्य को मुहूर्त की वजह से स्थगित कर देंगे तथा अच्छा मुहूर्त मिलने पर अपना इस शुभ कार्य करेंगे।
माना जाता है। कि भूकंप (भूमि मे कंप) शेषनाग के हिलने से आता है। इसलिए भूकंप से बचाव के लिए ऋषि मुनि शेषनाग की पुजा करते है। तथा ग्रहण से बचने के लिए कठोर तपस्या तथा योग करते है। क्या इन सभी से हमारे वातावरण मे भी अंतर आता है।
सच यह है। कि न किसी नंबर से,न बिल्ली के द्वारा रास्ता काटने से, न किसी कि नजर से,न किसी मुहूर्त से हमारे शरीर पर कोई असर नहीं पढ़ता है। इस प्रकार के टोने-टोटको से न ही हमारा कोई कार्य शुभ होता है। और न ही अशुभ होता है। हम जिस प्रकार के कर्म करेंगे जिस प्रकार का हमे फल मिलेगा। जिस प्रकार कि मेहनत करेंगे। उसी प्रकार हमे सफलता मिलेगी।
जिस प्रकार का हम व्यवहार करेंगे उसी प्रकार का व्यवहार हमारे सामने भी होगा। यदि हम अच्छा बर्ताव करेंगे। तो हमारे साथ ही कोई अच्छा बर्ताव ही करेगा। इस प्रकार के अंधविश्वास मे पड़कर हम अपना मोक्ष नहीं कर सकते है। इसके लिए हमे अच्छे कर्म करने होंगे। हमे इन अंधविश्वासों को नजरअंदाज करते हुए। हमे अपने लक्ष्य कि और आगे बढ़ाना है। अंधविश्वास से हमे कोई लाभ या हानी नहीं होती है। परंतु इनसे हमारा बहुमूल्यी समय की बर्बादी होती है।
आज के इस अंधविश्वासी जमाने मे मीडिया तथा कई बड़े चैनल भी शामिल है। न्यूज के चैनल पर भी कभी-कभी अंधविश्वासी घटनाए देखने को मिलती है। कई चैनल पर तो इस प्रकार के वीडियो ही देखने को मिलते है। जैसे- यज्ञ, भुतिया कहानिया इस प्रकार के चैनल को देखकर हमारे देश मे अंधविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है।
फिल्मों तथा कई कहानियो मे इसे देखा जाता है। अंधविश्वासी के इस जाल मे अनपढ़ के साथ-साथ बड़े-बड़े ज्ञानी तथा शिक्षित वर्ग के लोग भी शामिल होते है। लोग भगवान को मनाने के लिए तीर्थ यात्राए करते है। भगवान के दर्शन के लिए मंदिरो मे जाते है। हिन्दू अपने पवित्र स्थान काशी जाते है। तो मुस्लिम अपने पवित्र स्थान काबा जाते है। कवि कबीर दस जी ने बहुत अच्छा दोहा लिखा है-
पाथर पूजे हरि मिले , तो मैं पूजू पहाड़।
घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार।
FAQ-question answer
प्रश्न-अंधविश्वास से क्या होता है?
उत्तर- अंधविश्वास में पड़ा हुआ मनुष्य कई बार इस प्रकार से कार्य करता है जो हास्य पद स्थिति पैदा कर देते हैं अंधविश्वास मनुष्य को आंतरिक रूप में कमजोर बनाता है वह ऐसी बातों पर विश्वास करने लगता है जिनका कोई अचित नहीं होता। मनुष्य इस विकार से ग्रस्त है जो समाज का बचपन संभव नहीं है।।
प्रश्न-भारत में अंधविश्वास क्यों है?
उत्तर- भारत में अंधविश्वास का प्रमुख कारण व्यक्ति का डर और स्वार्थ है जिसकी वजह से वह अंधविश्वास की ओर जाने से खुद को रोक नहीं पाता।
प्रश्न-अंधविश्वास का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर- भारत में अंधविश्वास का प्रमुख कारण व्यक्ति का डर और स्वार्थ है जिसकी वजह से वह अंधविश्वास की ओर जाने से खुद को रोक नहीं पाता।
प्रश्न-अंधविश्वास को कैसे रोके?
उत्तर- जब अंधविश्वास एक समस्या बन जाए तो क्या इसका कोई इलाज है? यदि अंधविश्वास आपके लिए बाधा बन गया है तो आपको एक मानसिक स्वास्थ्य विशेष के पास भेजा जाएगा जो मदद कर सकता है। उपचार के विकल्पों में संघात्मक व्यवहार थेरेपी एक्स्पोज़र थेरेपी और आदत उलट प्रशिक्षण शामिल है।
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