जाति प्रथा पर निबंध | Caste system aise ine Hindi

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जाति प्रथा पर निबंध | Caste system aise ine Hindi

जाति प्रथा पर निबंध | Caste system Essay in Hindi

प्रस्तावना


जाति व्यवस्था का समाज के विकास पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। इसने लोगों को उनके अधिकारों का लाभ उठाने से रोक दिया। इससे निचली जाति के लोगों में बड़े पैमाने पर भेदभाव और हीन भावना की भावना पैदा होती है। यहां तक कि उन्हें भोजन कपड़ा और यहां तक की भगवान का पालन करने के उनके बुनियादी अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया।


जाति प्रथा पर निबंध | Caste system aise ine Hindi


प्रत्येक समाज में सदस्यों के कार्य और पद को निश्चित करने के लिए और सामाजिक नियंत्रण के लिए कुछ सामाजिक व्यवस्थाएं की जाती हैं। संसार के प्रत्येक समाज में यह व्यवस्थाएं किसी न किसी रूप में पाए जाते हैं भारती वर्ण व्यवस्था इस सामाजिक व्यवस्था की एक प्रमुख संस्था है। वर्ण व्यवस्था का स्वरूप विकृत होकर जाति प्रथा बन गया है। जब हम जाति प्रथा जातिवाद अथवा भारती जाति प्रथा आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं तब हमारा तात्पर हिंदू समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था से होता है। भारतवर्ष जाति व्यवस्था का भंडार है भारत में मुसलमान और ईसाई सहित शायद ही कोई ऐसा समूह हो जो जाति प्रथा ना मानता हो अथवा उसके द्वारा ग्रस्त ना हो।


Table of contents 

जाति प्रथा पर निबंध | Caste system aise ine Hindi

प्रस्तावना

जाति प्रथा का इतिहास

जाति प्रथा का अर्थ 

जाति प्रथा निबंध 200 शब्द

प्रत्येक समाज में सदस्यों के कार्य

जातिवाद अथवा भारती जाति प्रथा

आज के भारतीय समाज

निष्कर्ष 

FAQ-question 


समय के प्रभाव के साथ वर्ण व्यवस्था का रूप परिवर्तित हो गया और उसने जाति व्यवस्था अथवा जाति प्रथा का रूप धारण कर लिया। विभिन्न व्यवस्थाओं के आधार पर अनेक जातियां उपजातियां बन गई हैं। इस व्यवस्था में अनेक दोष भी आ गए हैं उसने जातिवाद का दृश्य दिया है। उसमें छोटे बड़े उच्च नीच की भावना जैसी अनेक बुराइयों का समावेश हो गया है। आज तो गौरव में भी अथवा आठ कनोजिया 9 चूहे वाली कहावत चरितार्थ होती है। भारत में पाई जाने वाली जातियों एवं उपजातियां की संख्या 3000 से कुछ अधिक ही है। यह व्यवस्था वस्तु भारती समाज के ऊपर एक कलंक के रूप में बहु चर्चित वस्तु बन गई है।


जाति प्रथा का इतिहास


जाति प्रथा के इतिहास को जानना है तो भारत की संस्कृति और मानव इतिहास तक जाना पड़ेगा। ऐतिहासिक रूप से माना जाता है कि जाति व्यवस्था आर्यों के आगमन के साथ लगभग 1500 ईसा पूर्व में देश में आई थी। कहा जाता है कि आर्यों ने उस समय स्थानीय आबादी को नियंत्रित करने के लिए जाती प्रणाली की शुरुआत की थी जिसमें उन्होंने चीजों को व्यवस्थित तरीके से बनाने के लिए निश्चित कार्यों को लोगों के समूह में बांट दिया था।


परंतु कुछ लोग जाति प्रथा के इतिहास की इस सिद्धांत को खारिज करते हैं। कुछ लोग जाति व्यवस्था की शुरुआत वैदिक काल से मानते हैं लेकिन सभी विद्वाननों का इस पर एकमत नहीं है। हालांकि जाति व्यवस्था का उल्लेख हिंदू धर्म शास्त्रों में भी मिलता है और उन धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा ने अपने मुख भुजा, जंघा,और पेर से चार वर्णों को क्रमशः ब्रह्मा,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र उत्पन्न किया था।


इस वर्ण के आधार पर पुजारी और शिक्षक ब्रह्म वर्ग में आएंगे, वहीं राजाओं को और वीरों को क्षत्रिय वर्ण में शामिल किया गया था। बाकी सभी प्रकार के व्यापारी को वैश्य में और किसान और श्रमिकों को शुद्र वर्ण में रखा गया था। हालांकि जाति प्रथा का वास्तविक मूल अभी तक अज्ञात है। प्राचीन काल में भले ही जाति के नाम पर लोगों के लिए सीमित अधिकार थे परंतु आज भारतीय संविधान में दिए गए भारतीय नागरिकों के जो भी मौलिक अधिकार है वह सभी जातियों के लिए एक समान है।


हालांकि हम कह सकते हैं कि आज भारतीय समाज में पहले की तरह जाति प्रथा नहीं रही है परंतु अभी समाज में कुछ हद तक यह व्याप्त है। आज भी यह प्रणाली शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का आधार बनी हुई है। राजनीतिक कारणों के कारण जहां जातियां पार्टियों के लिए वोट बैंक का गठन करती है। देश में आरक्षण की व्यवस्था का हो रहा दुरुपयोग आज भी जाति प्रथा को बढ़ावा दे रही हैं।


जाति प्रथा का अर्थ 


वर्ण व्यवस्था का प्रारंभिक आधार कर्म था किन्तु कालान्तर में वर्ण कठोर होकर विभिन्न जातियों में परिणत हो गये तथा जाति का आधार विशुद्ध रूप से जन्म हो गया । वैदिक साहित्य में जाति प्रथा का कोई उल्लेख नहीं मिलता । धर्मसूत्रों में ‘जाति’ शब्द का प्रयोग केवल मिश्रित वर्णों के लिये किया गया है तथा उन्हें प्रायः शूद्र की संज्ञा दी गयी है ।


निरुक्त तथा अष्टाध्यायी में हमें सर्वप्रथम ‘कृष्णजातीय’ और ‘ब्राह्मण जातीय’ शब्दों का प्रयोग मिलता है । यह इस बात का सूचक है कि ईसा पूर्व पांचवीं शती तक समाज में जाति प्रथा प्रतिष्ठित हो गयी थी तथा चारों वर्ण भी कठोर होकर जाति का रूप लेने लगे थे ।


धर्मसूत्रों के समय से हमें ‘जातिधर्म’ का उल्लेख प्राप्त होने लगता है । यूनानी लेखकों के विवरण तथा जातक साहित्य से पता चलता है कि सामान्यतः प्रत्येक जाति के लोग अपने ही पेशे का अनुसरण करते थे । जाति शब्द ‘जन्’ से बना है जिसका अर्थ होता है जन्म लेना ।


जाति प्रथा निबंध 200 शब्द


हमारे यहाँ पर जाति प्रथा पर प्रचलित कहावत हैं ”जाति न पूछो साध की पूछ लीजिए ज्ञान” यानि व्यक्ति की पहचान उनकी जाति से नही बल्कि उनके ज्ञान के आधार पर होनी चाहिए. प्राचीन हिन्दू परम्परा में जाति व्यवस्था व्यक्ति के कर्म पर आधारित थी. 


मगर आज के भारतीय समाज में caste system का स्वरूप पूरी तरह से बिगड़ गया हैं, अब व्यक्ति की जाति का निर्धारण उनके जन्म के आधार पर ही कर दिया जाता हैं.


एक समय में जाति system को राजनितिक आर्थिक तथा सामाजिक रूप से एकता स्थापित करने के लिए बनाई गई थी, जो आज बिलकुल अनुपयोगी हो चुकी हैं.


समय में बदलाव के साथ कुछ ऐसी कुरीतियों तथा प्रथाओं ने जन्म ले लिया, जो समाज द्वारा खिची गईं लक्ष्मण रेखा के कारण पनपी और उनके उल्लघन को समाज के इन तथाकथित सुधारकों ने दंडनीय अपराध घोषित कर दिया.


सामाजिक बहिष्कार का दंड विधान, समाज से बहिष्कृत होने का भय किसी हिन्दू को या मुस्लिम से या फिर एक जाति के सदस्य को किसी अन्य जाति के सदस्यों से प्रेम या विवाह करने से रोकता हैं.


संभवत मानव समाजों में स्तरीकरण दो भिन्न दिशाओं से विकसित हुआ हैं, हालांकि दोनों एक दूसरे में काफी हद तक समा गये हैं. इसी प्रकार के स्तरीकरण को क्रमशः वंशागत (जातिगत) स्तरीकरण और सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं.  सामाजिक स्तरीकरण में एक समाज के अंतर्गत पद स्तरों की एक व्यवस्था विकसित हो जाती हैं.


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