Jaishankar Prasad ka jivan Parichay|| जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय
लेखक संबंधी प्रश्न-
(1)- जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए|
(2) - जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं और कृतियों पर प्रकाश डालिए|
(3) जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देते हुए लिए कृतियों और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|
(4) - जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय दीजिए|
(5) - जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए|
जीवन परिचय- जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी जी सुगनी साहू नामक से प्रचलित अवश्य परिवार में सन 18 सो 90 में हुआ था प्रसाद जी के पितामह दादाजी शिवरतन साहू शिव के परम भक्त तरह दयालु स्वभाव के थे तथा इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था| प्रसाद जी का बचपन सुख से बीता /उन्होंने बाल्यावस्था में ही अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र ओकारेश्वर पुष्कर उज्जैन और ब्रिज आदि तीर्थों की यात्रा की अमरकंटक पर्वत श्रेणियों के बीच नर्मदा मीणाओं के द्वारा भी इन्होंने यात्रा की यात्रा से लौटने के पश्चात प्रसाद जी के पिता का स्वर्गवास हो गया था और उनके 4 वर्ष बाद उनकी माता का स्वर्गवास हो गया इसलिए शादी की शिक्षा तथा पालन-पोषण उनके बड़े भाई शंभूरत्न जी ने किया और उनका दाखिला क्वींस कॉलेज में करवाया गया ,
लेकिन जब प्रसाद जी का मान वहां नहीं लगा तब उनके लिए पढ़ाई की व्यवस्था घर पर ही कराई गई प्रसाद जी फारसी संस्कृत हिंदी उर्दू तथा अंग्रेजी शिक्षा की प्राप्ति घरेलू स्तर पर ही की वेद पुराण साहित्य दर्शन के स्वाध्याय से ही इन्होंने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया प्रसाद जी में कब सजन के गुण बाल्यावस्था से ही नहीं थे बड़े भाई के मृत्यु के कारण उनका व्यापार ठप हो गया तथा इनका परिवार निरस्त हो गया जड़ चुकाने के लिए इन्होंने पूरी पैतृक संपत्ति बेच दी!
प्रसाद जी को अपने जीवन में अनेकानेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा उनका पूरा जीवन संघर्षों में ही बीता किंतु वे कभी पराजित नहीं हुए प्रसाद जी ने छह रोग के शिकार हो गए तथा रंग के द्वारा इनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया काशी में 15 नवंबर सन 1937 को प्रसाद जी का स्वर्गवास हो गया|
साहित्यिक परिचय- प्रसाद जी जन्मजात प्रतिभा संपन्न साहित्यकार के रूप में हमारे सामने आते हैं| वह कभी पहले गद्दार बाद में थे कल्पना की उड़ान कलात्मक वहां का बिल लिखने गीत आत्मकथा के शीर्ष बिंदु स्पर्श करने में प्रसाद जी के समान कोई अन्य कविता खाली नहीं देता है| भाषा की प्रोडक्ट एवं संस्कृति का उद्घाटन करने में उन्होंने लक्ष्य सिद्ध किया प्रसाद जी चतुर्मुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे\, काव्य ,नाटक ,कहानी ,उपन्यास ,निबंध ,आदि के समस्त अंगों में उन्होंने अपने लेखक से समृद्ध किया है|
कृतियां-
प्रसाद जी एक श्रेष्ठ कवि नाटक का निबंध कर और आलोचक थे | उनकी प्रमुख कृतियां इस प्रकार है चित्राधार, कानन -कुसुम ,करुणालय ,महाराणा का महत्व,- प्रेम ,पथिक ,आंसू ,लहर ,झरना ,कामायनी आपकी काव्य -कृतियां है| चंद्रगुप्त ,स्कंदगुप्त ,राज्यश्री ,अजातशत्रु ,ध्रुवस्वामिनी ,विशाख, जन्मेजय का नाग यज्ञ ,एक घूंट आदि उनके प्रसिद्ध नाटक हैं | कंकाल ,तितली ,इरावती ,(अपूर्ण) जैसी महत्वपूर्ण उपन्यास तथा आकाशदीप इंद्रजाल प्रतिध्वनि , आदि प्रसिद्ध कहानियां है | 'काव्य -और कला नामक में उनके निबंध संग्रहित है|
महाकवि प्रसाद युग भारतीय-प्रवर्तक साहित्यकार थे| उनके काव्य में अनुभूति और अभिव्यक्ति का पूर्ण समन्वय था उनकी काव्य प्रतिभा अद्भुत थी\ उन्होंने मौलिक रचनाएं कर के साहित्य को रास्ते से हटा कर सोचने की ओर प्रवृत्त किया ! प्रेम सौंदर्य, देश प्रेम ,भारतीय संस्कृति ,दर्शन, प्रकृति -चित्रण ,रहस्यवाद- वर्णन पालनवादी चित्र तथा आधुनिक विषयों को जयशंकर प्रसाद ने अपने काव्य का विषय बनाया है|
भाषा-
प्रसाद जी ने अपने कोमल कांत पदावली युक्त भाषा के प्रयोग से खड़ी बोली की गड़गड़ाहट को मधुर रूप प्रदान किया है |कुछ प्रारंभिक रचनाओं को छोड़कर इन उनकी संपूर्ण रचना संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली में है| संस्कृत- शब्दों की बहुलता व्यंजन आत्मक शैली की प्रचुरता और भावों की गहराई से प्रसाद जी की भाषा में रिजल्ट आ गई है| तथा भाषा में लक्षणा व्यंजना शब्द शक्ति के प्रयोग से अधिक आ गई है|
शैली-
प्रसाद जी की गदा एवं पद्द सभी रचनाओं में उनके अध्ययन की गंभीरता और आध्यात्मिकता की गहरी छाप है| अतः संक्षेप में ,हम उसे काव्यात्मक गंभीर शैली कह सकते हैं काव्य के क्षेत्र में उन्होंने प्रबंध काव्य वर्म गीति -काव्य दोनों ही प्रकार की रचनाएं की हैं| उन के गद्द में भी सर्वोच्च भावात्मक था और का् काव्यात्मकता के दर्शन होते हैं उनकी शैली में ओज, प्रसाद एवं माधुर्य गुण विद्यमान है सचित्र चित्रात्मक प्रकृति माकपा सचिव सुबोध का सरलता एवं प्रभुविष्णुत्ता आदि गुण है|
हिंदी में साहित्य स्थान-
कल्पना की ऊंची उड़ान दर्शनिक तत्वों का विवेचन, राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति और ऐतिहासिक तत्वों के उद्घाटन में प्रसाद जी अपने युग के साहित्यकारों में अग्रणी है वे छायावाद के उन्नायक और सच्चे अर्थों में वाग्देवी के 'प्रसाद 'है| उन्होंने कलात्मक महाकाव्य"कामायनी ' 'लिखकर विश्व -साहित्य में अपना उच्च कोटि का स्थान बनाया है|
-गद्यांश-
रोहतास -दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युक्ति ममता शोर के बीच गंभीर प्रवाह को देख रही है ममता विधवा थी उसका एवं शोध के सम्मान ही उमड़ रहा था\ मन में वेदना मस्तक में आंधी आंखों में पानी की बरसात लिए वस्तु के कंटक चयन में विकल्प थी वह रोहतास -दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की अकेली रहती थी| फिर उसके लिए कुछ अभाव होना असंभव था परंतु वह विधवा थे हिंदू विधवा संसार में सबसे तुच्छ निराशा से प्राणी है - तब उसकी विडंबना का कहां अंत है |
व्याख्या - जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि रोहतास दुर्ग (राज्यप्रसाद) के मुख्य द्वार के पास अपने कक्ष में बैठी हुई ममता सोन नदी के तेज बहाव को देख रही है! लेखक ममता के योग और सोन नदी के प्रबल वेग से प्रभावित होने की तुलना करते हुए कहते हैं| कि जिस प्रकार सोन नदी अपने तेज बहाव से उफनती हुई वह रही है| उसी प्रकार ममता का योग बन भी पूर्ण रूप से अपने उफान पर है| ममता रोहतास दुर्ग पति के मंत्री की इकलौती पुत्री है| जो कि बाल विधवा है| रोहतास दुर्ग पति के मंत्री की पुत्री होने के कारण ममता सभी प्रकार के भौतिक सुख साधनो से संपन्न है| परंतु वह विधवा जीवन के कटु सत्य को अभिशाप रूप में जलने के लिए मजबूर है उसके मन मस्तिष्क में दुख रूपी आंधी तथा आंखों से आंसू बह रहे हैं| उसका मन भिन्न भिन्न प्रकार की विचारों और भावों की आंधी से भरा हुआ है|
उसकी स्थिति कांटों की दया पर सोने वाले व्याकुल व्यक्ति के समान है| अर्थात जिस प्रकार कांटो की शैया पर सोने वाला व्यक्ति हर समय व्याकुल रहता है| उसी प्रकार सभी प्रकार के भौतिक सुख साधनों से भरपूर होते हुए भी ममता के जीवन दुखदाई प्रतीत होता है| बाल अवस्था में ही विधवा हो जाने के कारण ही ममता की स्थिति दयनीय हो गई थी| हिंदू समाज में विधवा स्त्रियों को संसार का सबसे तुच्छ प्राणी माना जाता है प्रत्येक विधवा स्त्री को विभिन्न प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं अतः समाज में अनेक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है| विधवा का जीवन स्वयं विधवा के लिए भाषा बन जाता है| ममता भी एक ऐसी ही स्त्री थी \जो सभी प्रकार के भौतिक साधन होते हुए भी असहाय और दयनीय स्थिति का सामना कर रही थी| वह अपने बाल विधवा जीवन के बाहर को धो रही थी /जिससे से छुटकारा पाने को हिंदू समाज में कोई विकल्प नहीं है|
प्रशन-
1- उपरोक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए!
2- रेखांकित के अंश की व्याख्या कीजिए!
3- ममता किसकी पुत्री थी!
4- उपरोक्त गद्दाश में ममता अपने कक्ष में बैठकर क्या देख रही थी
5- उपरोक्त दांत में हिंदू विधवा की स्थिति कैसी बताइए है
6- गद्दाश के माध्यम से ममता की मन स्थिति की व्याख्या कीजिए !
उत्तर-
1- प्रस्तुत गद्दाश हमारी पाठ्यपुस्तक के गद्य खंड में संकलित ममता नामक पाठ से लिया गया है इसके लेखक जयशंकर प्रसाद है!
2- इस प्रश्न का उत्तर उपरोक्त रेखाखंड व्याख्या में देखें!
3- ममता रोहतास दुर्ग पति के मंत्री चूड़ामणि की पुत्री थी और वह बचपन में ही विधवा हो गई थी!
4- ममता अपने कक्ष में बैठकर उफनती की सोन नदी के तीव्र भाव को देख रही थी!
5- उपरोक्त गद्दाश हिंदू विधवा की स्थिति को दयनीय शोचनीय तो और उस प्राणी के समान बताया गया है जिसे कोई आश्चर्य नहीं देना चाहता है वह तरह-तरह के दुख सहने को विवश होती है!
6- ममता के मन में वेदना मस्तक मे आधी तथा आंखों से पानी की बरसात हो रही थी उसका मन भिन्न-भिन्न प्रकार के विचारों और भावो
की आंधी से भरा हुआ था!
Writer Name- roshani kushwaha
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