जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय|| Jai Shankar Prasad biography in Hindi
जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय|| Jai Shankar Prasad biography in Hindi |
जयशंकर प्रसाद जी का संक्षिप्त परिचय
जन्म- 30 जनवरी 18 से 89 ई०
मृत्यु- 15 नवंबर 1937 ईस्वी
जन्म-स्थान- काशी, उत्तर प्रदेश।
पिता का नाम- देवी प्रसाद साहू।
युग- छायावाद के प्रवर्तक।
व्यक्तित्व- कवि, नाटककार, कहानीकार तथा उपन्यासकार।
भाषा शैली- भावात्मक शैली, चित्रात्मक शैली, अलंकारिक शैली, संवाद, वर्णनात्मक शायरी।
रचना- कहानी संग्रह, उपन्यास, निबंध, नाटक।
जीवन परिचय-
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889 ईo को गुरुवार के दिन काशी के सराय गोवर्धन में हुआ था।इनके पिता "महाशिव रतन साहू"वाराणसी के अत्यंत प्रतिष्ठित नागरिक थे।और एक विशेष प्रकार की सुरती मनाने के कारण संगिनी साहू के नाम से विख्यात थे उनकी दान शीलता सर्वविदित थी। और उनके यहां विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान होता था जयशंकर प्रसाद के पिता देवी प्रसाद साहू ने भी अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन किया इनके परिवार की गणना वाराणसी के अतिशय अमृत घरानों में थी। और धन वैभव का कोई आभाव ना था।
जयशंकर प्रसाद का कुटुंब शिव का उपासक था।इनके माता-पिता ने इनके लिए भगवान शिव से बड़ी प्रार्थना की थी। झारखंड के बैजनाथ धाम से लेकर उज्जैन के महाकाल की आराधना के फलस्वरूप उनके यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई बचपन में जयशंकर प्रसाद को झारखंडी कहकर पुकारा जाता था। और इनका नामकरण संस्कार भी बैजनाथ धाम में हुआ था।
शिक्षा-
जयशंकर प्रसाद की शिक्षा घर पर ही आरंभ हुई संस्कृत, हिंदी, फारसी और उर्दू के लिए शिक्षक नियुक्त थे। इनमें रसमेय सिद्ध प्रमुख थे। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के लिए दीनबंधु ब्रह्मचारी शिक्षक थे।कुछ समय के बाद स्थानीय क्वींस कॉलेज में जयशंकर प्रसाद का नाम लिखा दिया गया पर यहां पर भी आठवीं कक्षा तक ही पढ़ें। जयशंकर प्रसाद एक अध्यवसायी व्यक्ति थे। और नियमित रूप से अध्ययन करते थे।
पारिवारिक विपत्तियां-
जयशंकर प्रसाद के पिता महाबाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे। और इनके पिता बाबू देवी प्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिए विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशी नरेश के बाद हर हर महादेव से बाबू देवी प्रसाद का ही स्वागत करती थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
जब जयशंकर प्रसाद की उम्र मात्र 12 वर्ष की थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया इसी के बाद परिवार में गृह क्लेश आरंभ हुआ और पत्तृक व्यवसाय को इतनी क्षति पहुंचेगी।वहीं संगिनी साहू का परिवार जो वैभव में लोटता था रण के भार से दब गया पिता की मृत्यु के दो-तीन वर्षों के भीतर ही प्रसाद की माता का भी देहांत हो गया। और सबसे दुर्भाग्य का दिन तब आया जब उनके जेष्ठ भ्राता शंभू रतन चल बसे मात्र 17 वर्ष की अवस्था में ही प्रसाद को एक बारी उत्तरदायित्व संभालना पड़ा।
किशोरावस्था की पूर्वी माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही जयशंकर प्रसाद पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा कच्ची गृहस्ती घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, बिना परिवार से संबंधित अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र इन सब का सामना उन्होंने वीरता और गंभीरता के साथ किया।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी-
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म उस समय हुआ जब खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य किशोरावस्था में पर्दा परण कर रहे थे। शुरू से ही जयशंकर प्रसाद के घर में साहित्य और कला का माहौल घर के वातावरण के कारण साहित्य कला के प्रति उनमें प्रारंभ से रूचि थी कहा जाता है। कि मात्र 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने कलाधर नाम से ब्रज भाषा में एक सवाल लिखकर अपने गुरु रस में सिद्ध को दिखाया था।
जयशंकर प्रसाद जी ने वेद इतिहास पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। बगीचे- बागवानी तथा भोजन बनाने में बहुत ही शौकीन थे। वे शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वह नियमित व्यायाम करने वाले सातवें खानपान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। 'नागरी प्रचारिणी सभा' के उपाध्यक्ष हुए थे। लेकिन इतना नियमित दिनचर्या का पालन करने के बाद भी दुख और विपत्तियों के कारण वे क्षय रोग से पीड़ित हो गए और 15 नवंबर 1937 को प्रातः काल केवल 45 वर्ष की उम्र में काशी में उनका देहांत हो गया।
जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कृतियां-
काव्य-
जयशंकर प्रसाद की काव्य रचनाएं दो वर्गों में विभक्त हैं काव्य पथ अनुसंधान की रचनाएं और प्रसिद्ध रचनाएं 'आंसू', 'लहर' तथा कामायनी दूसरे वर्ग की रचनाएं हैं। उन्होंने काव्य रचना 'ब्रजभाषा' में आरंभ की और धीरे-धीरे खड़ी बोली को अपनाते हुए उस दिशा में इतनी निपुण हो गए कि खड़ी बोली के मूर्धन्य कवियों में उनकी गणना की जाने लगी। वह युगवर्तक कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए उनके लिखे निम्नलिखित काव्य ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हुए।
कानन कुसुम
महाराणा का महत्व
झरना
लहर
कामायानी
प्रेम पथिक
उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में 'कमनीय मधुर की रसीद धारा' प्रवाहित हुई और वह काव्य की शुद्ध भाषा बन गई उनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना "खोलो द्वार" 1914 ई० में "इंदु" में प्रकाशित हुई।
वे छायावाद के प्रति स्थापक ही नहीं अपितु छायावाद पद्धति पर सरस संगीत में गीतों के लिखने वाले श्रेष्ठ कवि भी हैं।उन्होंने हिंदी में करुणालय द्वारा गीत नाटिका भी आरंभ किया उन्होंने भिन्न तुकांत का भी लिखने के लिए मौलिक छंद चयन किया। और अनेक छंद का संभवत उन्होंने सबसे पहले प्रयोग किया उन्होंने नाटकीय ढंग पर काव्य, कथा शैली का मनोवैज्ञानिक पद पर विकास किया। साथी कहानी कला की नई तकनीक का सहयोग काव्य कथा से कराया।
कहानी-
कथा,कहानी के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभ कर्ता के तौर पर जाने जाते हैं। सन 1912 में 'इंदु' उनकी पहली कहानी ग्राम प्रकाशित हुई।
उन्होंने कुल 72 कहानियां लिखी हैं।
कहानी संग्रह-
छाया
प्रतिध्वनि
आकाश दीप
आंधी
इंद्रजाल
उपन्यास-
जयशंकर प्रसाद के तीन उपन्यास हैं। 'कंकाल' में नागरिक सभ्यता का अंतर यथार्थ उद्घाटित किया गया है। तितली में ग्रामीण जीवन के सुधार के संकेत हैं। प्रथम यथार्थवादी उपन्यास है। दूसरे में आदर्श उन्मुख यथार्थ है इन उपन्यासों के द्वारा प्रसाद जी हिंदी में यथार्थवादी उपन्यास लेखन के क्षेत्र में अपनी गरिमा स्थापित करते हैं। 'इरावती' ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया इनका अधूरा उपन्यास है। जो रोमांस के कारण ऐतिहासिक रोमांस के उपन्यासों में विशेष आदर का पात्र है इन्होंने अपने उपन्यासों में ग्राम नगर प्रकृति और जीवन का मार्मिक चित्रण किया है। जो भावुकता और कविता से पूर्ण होते हुए प्रौढ़ लोगों की शैल्पिक जिज्ञासा का समाधान करता है।
नाटक-
स्कंद गुप्त
चंद्रगुप्त
ध्रुवस्वामिनी
जन्मेजय का नाग यज्ञ
राज्यश्री
कामना
एक घूंट
निबंध-
प्रसाद ने आरंभ में समय-समय पर "इंदु" में विविध विषयों पर सामान्य निबंध लिखें। बाद में उन्होंने शोध परक ऐतिहासिक निबंध,यथा: सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, प्राचीन आर्यवर्त और उसका प्रथम सम्राट आदि भी लिखे हैं। यह उनकी साहित्यिक मान्यताओं की विश्लेषणात्मक वैज्ञानिकता प्रस्तुत करते हैं। विचारों की गहराई भावों की प्रबलता तथा चिंतन और मनन की गंभीरता के यह जा जबल प्रमाण हैं।
पुरस्कार
जयशंकर प्रसाद को 'कामायनी' रचना के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
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