रूस क्यों पड़ रहा है कमजोर || Why Russia is getting weak

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रूस क्यों पड़ रहा है कमजोर || Why Russia is getting weak

रूस क्यों पड़ रहा है कमजोर || Why Russia is getting weak

रूस क्यों पड़ रहा है कमजोर || Why Russia is getting weak

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गिनती विश्व के ताकतवर नेताओं में होती है। सोवियत संघ के विघटन के बाद संक्रमण काल में कमजोरी के शिकार हुए रूस को पुतिन के नेतृत्व ने नए तेवर दिए। पुतिन के कार्यकाल में रूस के नए सिरे से हुए उभार ने उन्हें रूसी जनता के बीच नायक बना दिया और वह देश के निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित हुए। हालांकि पिछले कुछ समय से पुतिन के एक के बाद एक फैसलों ने मजबूत नेता की उनकी छवि को कमजोर किया है। यूक्रेन पर हमले को लेकर उनके गलत आकलन से तो उनकी छवि प्रभावित हुई ही थी, लेकिन पिछले सप्ताह वैगनर समूह के विद्रोह ने यही दर्शाया कि पुतिन की पकड़ अब कितनी ढीली पड़ती जा रही है। वैगनर समूह के मुखिया और एक समय पुतिन के बेहद करीबी रहे वेगवेनी प्रिगोजिन की बगावत को तो पुतिन टालने में सफल रहे, किंतु भविष्य के लिहाज से यह घटना गहरे

निहितार्थों से भरी है। प्रिगोजिन के विद्रोह से राष्ट्रपति के रूप में पुतिन की सत्ता को खुली चुनौती मिली। यह न केवल पुतिन, बल्कि उन पर भरोसा रखने वाले अन्य देशों के उनके मित्र राष्ट्राध्यक्षों के लिए भी खतरे की घंटी है। इस घटना ने पुतिन के शासन के उस ढांचे पर भी सवालिया निशान खड़े किए हैं, जिसमें पहले से ही पारदर्शिता का अभाव रहा है। ऐसे में यदि रूसी जनता का पुतिन से मोहभंग हो जाए तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।

प्रिगोजिन ने अपने आक्रामक तेवरों को भले ही पिछले सप्ताह उजागर किया हो, लेकिन उसके संकेत पहले से ही दिखने लगे थे। पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को वे इस संभावित विद्रोह के संकेत पहले ही मिल चुके थे। प्रिगोजिन के क्रियाकलापों से भी यह स्पष्ट हो रहा था। वह निरंतर रूसी रक्षा मंत्री और सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों को निशाना बना रहे थे। उनका मानना था कि यूक्रेन युद्ध में रूस को मिली अधिकांश सफलता उनके सैनिकों की बहादुरी का परिणाम रही, पर इसके बदले में उन्हें और उनके सैनिकों की अनदेखी हो रही थी। यह बात सच भी है कि यूक्रेन के साथ अंतहीन से दिख रहे रूस के युद्ध में रूसी सैनिकों के बजाय वैगनर समूह के लड़ाकों ने पुतिन की झोली में कहीं अधिक सफलता डाली है। बाखमुट जैसा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण शहर वैगनर लड़ाकों ने ही जीतकर दिया। ऐसे में यदि प्रिगोजिन को अपनी उपेक्षा महसूस हो रही थी तो कहीं न कहीं उससे उपजे आक्रोश की अभिव्यक्ति होनी ही थी। प्रिगोजिन को साधने के लिए उनके 25,000 लड़ाकों को रूसी सेना के साथ जोड़ने के रूसी सरकार के प्रस्ताव ने प्रिगोजिन

के आंतरिक असंतोष की आग में घी का काम किया। प्रिगोजिन को लगा कि इसकी आड़ में उन्हें किनारे लगाने की कोशिश हो रही है और यह उनके लड़ाकों को भी अस्वीकार्य होता, क्योंकि किसी पेशेवर सेना की अनुशासनबद्ध प्रणाली से जुड़ना उनके लिए असहज करने वाला होता।

वैगनर समूह के विद्रोह ने कई चीजों से पर्दा उठाने का काम किया । इसकी गहनता से पड़ताल करें तो पाएंगे कि इस विद्रोह के बीज स्वयं पुतिन ने ही बोए। पिछले डेढ़ साल से उनके कई फैसलों ने रूस को कमजोर करने का काम किया। वह अपने देश के सामरिक हितों का सही से आकलन नहीं कर पाए। उनकी निर्णय प्रक्रिया को देखें तो लगेगा कि अपनी ताकत के बजाय कमजोर मनोदशा से उन्होंने फैसले लिए। जैसे कि यूक्रेन को जीतने के लिए वैगनर समूह को मोर्चे पर लगाना। इससे यही संदेश गया कि रूस जैसी सामरिक शक्ति को अपने पेशेवर सैन्य बल के बजाय भाड़े के सैनिकों पर अधिक भरोसा है। जबकि पूरी दुनिया

वैगनर समूह के लड़ाकों के चरित्र के प्रिगोजिन विषय में जानती है कि वह किस प्रकार के है तो वै संदिग्ध तत्वों से मिलकर बना है। यूक्रेन सकता है युद्ध में रूस को बर्बरता के जिन मामलों को बड़ी में बदनामी मिली, उनमें से अधिकांश अपनी वैगनर समूह के लड़ाकों का किया धरा है। यूक्रेन प उसके बाद यह ताजा विद्रोह और मास्को सकते है को प्रिगोजिन की खुली धमकी यही दर्शाती की संवे है कि वैगनर पर दांव लगाना पुतिन की है, क्यों कितनी बड़ी भूल रही। फिर, जिस विद्रोह लगा र‍ को पश्चिमी एजेंसियों ने समय रहते भांप पर बन लिया, रूसी एजेंसियों को उसकी कोई कई देश भनक तक नहीं लगी।

प्रिगोजिन के विद्रोह को राष्ट्रद्रोह बताते लिए हुए पुतिन से एलान किया कि वह इस समय मामले में सख्ती से निपटेंगे। उन्होंने स्पष्ट तेल किया इस हरकत को कतई बर्दाश्त नहीं में य किया जाएगा और हर हाल में नागरिकों उनक की रक्षा की जाएगी। विद्रोहियों पर में श आरोपित राजद्रोह की धाराओं से लगा कि हितों भी पुतिन बगावत करने वालों को नहीं (ल बख्शने वाले, मगर बेलारूस के राष्ट्रपति लुकारोंको के दखल से हुई सौदेबाजी

में पुतिन की सख्ती हवा हो गई। अब विद्रोहियों से नरमी बरतने की खबरें आ रही हैं। स्वाभाविक है कि लोग देर-सबेर सवाल पूछेंगे कि पुतिन का रुख एकाएक कैसे बदला ? आखिर जो पुतिन जरा सी आलोचना भी बर्दाश्त न करते हों, वह विश्वासघात के इस घूंट को कैसे पचा गए? फिलहाल भले ही विद्रोहियों और पुतिन के मध्य बीच-बचाव हो गया है, लेकिन इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में प्रिगोजिन शायद किसी अनहोनी के शिकार हो जाएं, जैसा कि पूर्व में पुतिन के तमाम विरोधियों के साथ हो चुका है। हालांकि प्रिगोजिन के मामले में यदि ऐसा होता है तो वैगनर के लड़ाकों का विद्रोह फूट सकता है, जिसकी शायद पुतिन और रूस को बड़ी कीमत चुकानी पड़े।

अपनी साख बचाने के लिए पुतिन यूक्रेन पर हमलों की रफ्तार तेज कर सकते हैं। इससे तनाव और बढ़ेगा। रूस की संवेदनशील स्थिति से चीन भी चिंतित है, क्योंकि उसने मास्को पर बड़ा भारी दांव लगा रखा है। भारत की नजर भी हालात पर बनी हुई है, क्योंकि अमेरिका सहित कई देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के बावजूद 65 प्रतिशत रक्षा साजोसामान के लिए भारत की रूस पर निर्भरता है। कुछ समय से भारत ने बड़ी भारी मात्रा में रूसी तेल आयात करना भी शुरू किया है। ऐसे में यदि वहां स्थितियां और बिगड़ेंगी तो उनका असर भारत पर भी पड़ेगा। रूस में शांति, स्थिरता और स्थायित्व भारतीय हितों के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

FAQ'S

Q. रूस यूक्रेन से कितने गुना बड़ा है?

एक तरह से देखा जाए तो रूस की इकनॉमी यूक्रेन से 10 गुना ज्यादा मजबूत है.

Q. रूस यूक्रेन संघर्ष का मुख्य कारण क्या है?

यूक्रेन युद्ध सामरिक स्वायत्तता का अभ्यास करने का एक अवसर रहा है। भारत ने तटस्थता अपनाते हुए वैश्विक शांति का समर्थन करते हुए मास्को, रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखा है। भारत ने रूस से तेल खरीदने हेतु पश्चिमी प्रतिबंधों के वातावरण में काम किया। भारत, रूस से 25% तेल खरीद कर रहा है, जो पहले 2% से भी कम थी।

Q. पूरे वर्ल्ड में सबसे बड़ा देश कौन सा है?

Duniya Ka Sabse Bada Desh Koun Sa Hai? – आपकी जानकारी के लिए बता दें की दुनिया का सबसे बड़ा देश (largest country) रूस है। रूस विश्व का एक ऐसा देश है जो क्षेत्रफल की दृष्टि में सबसे बड़ा है। जिसका क्षेत्रफल (17,098,242) है।

Q. रूस का सबसे अच्छा सम्राट कौन था?

पीटर द ग्रेट (1682-1725): रूसी नेताओं में सुधारक। 1682 से 1725 तक, पीटर द ग्रेट ने रूस के Tsardom पर शासन किया। उन्हें "ज़ार सुधारक" कहा जाता है, जिन्होंने रूस का आधुनिकीकरण किया और इसे एक यूरोपीय शक्ति के रूप में विकसित किया, जिससे वह रूसी नेताओं के बीच एक सुधारक बन गए।

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