पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र | magnetic field of Earth
यह नहीं मानना चाहिए कि पृथ्वी के अंदर गहराई में कोई विशाल छड़ चुंबक रखा है जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के लिए उत्तरदायी है। यद्यपि पृथ्वी के अंदर लोहे के प्रचुर भंडार हैं तथापि इसकी संभावना बहुत ही कम है कि लोहे का कोई विशाल ठोस खंड चुंबकीय उत्तरी ध्रुव से चुंबकीय दक्षिणी ध्रुव तक फैला पृथ्वी का क्रोड बहुत गर्म तथा पिघली हुई अवस्था में है तथा लोहे एवं निकिल के आयन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के लिए उत्तरदायी हैं। यह परिकल्पना संभावित जान पड़ती है। चंद्रमा जिसमें कोई द्रवीभूत क्रोड नहीं है, इसका कोई चुंबकीय क्षेत्र भी नहीं है। शुक्र ग्रह जिसकी घूर्णन गति अत्यंत मंद है इसका चुंबकीय क्षेत्र भी बहुत क्षीण है, जबकि बृहस्पति, जिसकी घूर्णन गति ग्रहों में सर्वाधिक है, इसका चुंबकीय क्षेत्र भी पर्याप्त शक्तिशाली है। किंतु इन परिवाही धाराओं की उत्पत्ति के सही कारण और उनको बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा आदि को बहुत अच्छी तरह से समझा नहीं जा सका है। ये ऐसे प्रश्न हैं जो सतत शोध के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र प्रदान करते हैं।
स्थान परिवर्तन के साथ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन भी अध्ययन का रोचक विषय है। सूर्य से उत्सर्जित होने वाले आवेशित कण एक प्रवाह के रूप में पृथ्वी की ओर आते हैं जिसे सौर पवन कहा जाता है। इन कणों की गति पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित होती है और ये स्वयं पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र व्यवस्था में बदलाव ला देते हैं। ध्रुवों के निकट पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की संरचना अन्य भागों से बिलकुल अलग होती है।
समय के साथ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन भी कोई कम लुभावने नहीं हैं। इनमें अल्पकालिक परिवर्तन भी शामिल हैं जो शताब्दियों में नजर आने लगते हैं और दीर्घकालीन परिवर्तन भी जो लाखों वर्षों के दीर्घकाल में दृष्टिगत होते हैं। ज्ञात स्रोतों के अनुसार, 1580 ई. से 1820 ई. के बीच के 240 वर्षों के समय काल में लंदन में चुंबकीय दिक्पात के मान में 3.5° का अंतर रिकार्ड किया गया, जिससे यह संकेत मिलता है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र समय के साथ परिवर्तित होता है। यह पाया गया है कि 10 लाख वर्षों में पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उलट जाती है। असिताश्म (Basalt) में लोहा होता है और असिताश्म ज्वालामुखी विस्फोट में बाहर निकलता है। जब यह ठंडा होकर ठोस में बदलता है तो इसके अंदर के छोटे-छोटे लौह-चुंबक चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के समांतर समरेखित हो जाते हैं। ऐसे चुंबकीय क्षेत्रों से युक्त असिताश्म भंडारों के भूवैज्ञानिक अध्ययनों से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा अतीत में कई बार उलट चुकी है।
पृथ्वी तत्वों एवं यौगिकों की विस्मयकारी विभिन्नताओं से भरपूर है। इसके अतिरिक्त, हम नए-नए मिश्रधातु, यौगिक, यहाँ तक कि तत्व भी संश्लेषित करते जा रहे हैं। आप इन सब पदार्थों को चुंबकीय गुणों के आधार पर वर्गीकृत करना चाहेंगे। प्रस्तुत अनुभाग में हम ऐसे कुछ पदों की परिभाषा देंगे और उनके बारे में समझाएँगे जो इस वर्गीकरण में हमारी सहायता करेंगे।
हम यह देख चुके हैं कि परमाणु में परिक्रमण करते इलेक्ट्रॉन का एक चुंबकीय आघूर्ण होता है। पदार्थ के किसी बड़े टुकड़े में ये चुंबकीय आघूर्ण सदिश रूप से समाकलित होकर शून्येतर परिणामी चुंबकीय आघूर्ण प्रदान कर सकते हैं। किसी दिए गए नमूने का चुंबकन M हम इस प्रकार उत्पन्न हुए प्रति इकाई आयतन परिणामी चुंबकीय आघूर्ण के रूप में परिभाषित कर सकते हैं.
भारत के चुंबकीय क्षेत्र का मानचित्रण
अन्वेषण, संचार एवं नाविकी में व्यावहारिक अनुप्रयोगों के कारण दुनिया के अधिकतर देशों ने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के ऐसे नक्शे बनाए हैं जिनकी परिशुद्धता भौगोलिक नक्शों के साथ तुलनीय है। भारत में, दक्षिण में त्रिवेंद्रम से उत्तर में गुलमर्ग तक एक दर्जन से अधिक वेधशालाएँ हैं। ये वेधशालाएँ मुंबई के कोलाबा में स्थित, भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान (IIG) के अधीन कार्य करती हैं। भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान, कोलाबा एवं अलीबाग वेधशालाओं के विस्तार स्वरूप, औपचारिक रूप से 1971 में स्थापित किया गया। भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान अपनी देशव्यापी वेधशालाओं के माध्यम से भू, समुद्र तल एवं अंतरिक्ष के चुंबकीय क्षेत्र एवं उनमें होने वाले उतार-चढ़ावों पर निगाह रखता है। इसकी सेवाएँ तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC), राष्ट्रीय समुद्र-विज्ञान संस्थान (NIO) एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा प्रयोग की जाती हैं। यह उस विश्वव्यापी व्यवस्था का अंग है जो लगातार प्रयत्नपूर्वक भू-चुंबकीय आंकड़ों को सुधारती रहती है। अब भारत का 'गंगोत्री' नामक एक स्थायी केंद्र है।
FAQ'S -
1. पृथ्वी के अंदर चुंबकीय क्षेत्र क्या है?
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, जिसे भू-चुंबकीय क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। वही चुंबकीय क्षेत्र है जो पृथ्वी के आंतरिक भाग में से अंतरिक्ष में फैलता है। जहां ये सूर्य से आ रही सौर पवन(solar wind) और चार्ज कणों से पृथ्वी को बचाता है।
2. पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र सरल शब्दों में क्या है?
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र , जिसे भू-चुंबकीय क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है, वह चुंबकीय क्षेत्र है जो पृथ्वी के आंतरिक भाग से लेकर अंतरिक्ष तक फैला हुआ है, जहां यह सौर हवा, सूर्य से निकलने वाले आवेशित कणों की एक धारा के साथ संपर्क करता है।
3. पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र कक्षा 11 क्या है?
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, जो एक बार चुंबक जैसा दिखता है , अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला हुआ है। पृथ्वी का चुंबकीय ध्रुव उत्तरी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव पर अंटार्कटिक चुंबक के बीच आधे रास्ते में स्थित है। इसीलिए कम्पास चुंबक का उत्तरी ध्रुव उत्तर की ओर इशारा करता है (उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव आकर्षित होते हैं)।
4. पृथ्वी चुंबकीय कैसे है?
रेडियोधर्मी ताप और रासायनिक विभेदन के परिणामस्वरूप पृथ्वी का बाहरी कोर अशांत संवहन की स्थिति में है। यह एक ऐसी प्रक्रिया को स्थापित करता है जो स्वाभाविक रूप से होने वाले विद्युत जनरेटर की तरह है, जहां संवहन गतिज ऊर्जा को विद्युत और चुंबकीय ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
5. पृथ्वी एक चुंबक है कैसे?
'पृथ्वी एक चुंबक है'' इसका प्रमाण दीजिये।
पृथ्वी के भौगोलिक उत्तर और दक्षिण को मिलाने वाली रेखा (भौगोलिक अक्ष) तथा चुंबकीय अक्ष और दक्षिण को मिलाने वाली रेखा (चुंबकीय अक्ष) के बीच लगभग 17∘ का कोण है। इसी कारण से विप्र्ति ध्रुवो में आकर्षण होता है । इस प्रकार सिद्ध होता है कि पृथ्वी एक चुंबक है।
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