समुद्रगुप्त पर निबंध / Essay on Samudragupta in Hindi
समुद्रगुप्त पर निबंधनमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको समुद्रगुप्त पर निबंध (Essay on Samudragupta in Hindi)
के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं। तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।
Table of Contents
1.प्रस्तावना
2.समुद्रगुप्त का इतिहास
3.आर्यावर्त के नौ राज्यों पर विजय अभियान
4.आटविक राज्यों पर विजय
5.दक्षिण भारत की विजय
6.सीमावर्ती राज्यों से संबंध
7.विदेशी राज्यों से संबंध अथवा परराष्ट्रनीति
8.साम्राज्य विस्तार
9.अश्वमेध यज्ञ
10.समुद्रगुप्त का मूल्यांकन
11.धर्म में आस्था
12.जनसेवक
13.FAQs
समुद्रगुप्त पर हिंदी में निबंध
प्रस्तावना
गुप्त वंश के महान शासक चंद्रगुप्त प्रथम के पश्चात उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना। प्रयाग प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि समुद्रगुप्त सबसे योग्य राजकुमार था तथा उसकी प्रतिभाओं से प्रभावित होकर चंद्रगुप्त प्रथम ने उसे अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था। समुद्रगुप्त के शासनकाल का गुप्त काल इतिहास में विशेष महत्व है क्योंकि भारत राष्ट्र की सुरक्षा समृद्धि एवं संस्कृति की सवृद्धि के लिए आवश्यक था कि भारत में एकछत्र राज्य की स्थापना हो ताकि भारत एक राजनीतिक श्रृंखला में आनन्दपूर्वक रहे। राजधर्म के इसी आदर्श से अनुप्रेरित होकर भारतीय धर्म और संस्कृति के पोषक समुद्रगुप्त ने भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बांधने का दायित्व अपने ऊपर लिया तथा उसे सफलतापूर्वक निभाया।
समुद्रगुप्त का इतिहास
समुद्रगुप्त के विषय में यद्यपि अनेक शिलालेखों, स्तंभ लेखों, मुद्राओं व साहित्यिक ग्रंथों से व्यापक जानकारी प्राप्त होती हैं। परंतु समुद्रगुप्त पर प्रकाश डालने वाले अत्यंत प्रामाणिक सामग्री प्रयाग प्रशस्ति है। यह प्रयाग प्रशस्ति प्रयाग के किले के भीतर अशोक के स्तंभ पर उत्कीर्ण है। जिसे समुद्रगुप्त के राजसभा के प्रसिद्ध विद्वान हरिषेन द्वारा रचित था। इस प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के शासन काल के प्रमुख घटनाओं, विजय व शासन आदि का सुंदर वर्णन किया गया है।
समुद्रगुप्त के दिग्विजय
समुद्रगुप्त के जीवन की सबसे बड़ी घटना उसकी दिग्विजय थी। सिंहासन पर आसीन होने के पश्चात समुद्रगुप्त ने दिग्विजय की योजना बनाई। प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार इस योजना का उद्देश्य धरणि-बंध (भूमंडल को बांधना ) था। जिस समय समुद्र गुप्त शासक बना था, संपूर्ण भारत छोटे- छोटे राज्यों में विभक्त था। समुद्रगुप्त इन राज्यों पर विजय प्राप्त करना तथा भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधना चाहता था।
समुद्रगुप्त की विजय यात्रा का निम्नलिखित क्रम में वर्णन किया जा सकता है:-
आर्यावर्त के नौ राज्यों पर विजय अभियान
आटविक राज्यों पर विजय
दक्षिण भारत की विजय
सीमावर्ती राज्यों से संबंध
विदेशी राज्यों से संबंध अथवा परराष्ट्रनीति
आर्यावर्त के नौ राज्यों पर विजय अभियान
विंध्य तथा हिमालय के बीच के क्षेत्रों को आर्यवर्त कहते हैं। समुद्रगुप्त ने समस्त उत्तरी भारत के राजाओं को परास्त कर उनके राज्यों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। वह एकछत्र राज की स्थापना में पूर्णता सफल हुआ। राजनीति में ऐसे विजेता को असुरविजयी कहा जाता है। प्रयाग प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उसने आर्यवर्त के 9 राजाओं को परास्त किया था। प्रयाग प्रशस्ति के पंक्ति (13-14, 21-23) से ज्ञात होता है कि समुद्रगुप्त ने आर्यवर्त में दोबारा अभियान चलाया था। समुद्रगुप्त ने इन राज्यों के साथ कठोर नीति का अवलंबन किया और उन्हें बलपूर्वक नष्ट कर उनके राज्य को छीन लिया।
Essay on Samudragupta in Hindi
आटविक राज्यों पर विजय
दक्षिण विजय के पहले उसने आटविक नरेशों को पराजित करना आवश्यक समझा। कारण दक्षिण जाने के लिए मध्य भारत के विस्तीर्ण जंगलों से ही उसे गुजरना पड़ता। प्रयाग प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उसने आटविक राजाओं को जीता तथा उन्हें अपने सेवक बनाया। एरण की प्रशस्ति से भी इस बात की पुष्टि होती है। आटविक राज्यों की संख्या 18 थी। इस क्षेत्र को महाकांतार भी कहा गया है। आटविक राजाओ को परास्त करने के बाद ही समुद्रगुप्त दक्षिण विजय की ओर बढ़ा।
दक्षिण भारत की विजय
आटविक राजाओ को परास्त करने के बाद समुद्रगुप्त दक्षिण विजय की ओर बढ़ा। इस अभियान में समुद्रगुप्त ने दक्षिण के 12 राज्यों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। दक्षिण विजय के पश्चात समुद्रगुप्त ने दक्षिणी राजाओं के साथ धर्म विजय नीति का अवलंबन किया। उसने उन राजाओं को पराजित करने के बाद उसका राज्य फिर से उन्हीं को लौटा दिया। उन लोगों ने समुद्रगुप्त का आधिपत्य स्वीकार किया और समुद्रगुप्त उनसे उपहार तथा कर ग्रहण कर उत्तर भारत लौट गया। इसके द्वारा उसने अपनी दूरदर्शिता और राजनीतिज्ञता दर्शाई। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि समुद्रगुप्त ने मध्य भारत स्थित वकाटक सामंत को अपना सामंत बनाया। दक्षिण के राज उसे कर, आज्ञाकरण और प्रणाम द्वारा प्रसन्न करने लगे।
सीमावर्ती राज्यों से संबंध
दक्षिणी राजाओं को परास्त कर समुद्रगुप्त ने सीमांत नरेश को विजित करने की ठानी। इस अभियान में उसने दो प्रकार के शासकों को परास्त किया। पहला पांच भिन्न-भिन्न प्रदेशों के शासक और दूसरा 9 गणराज्य
सीमांत प्रदेशों ने समुद्रगुप्त को सर्वकर दिए। उसकी आज्ञाओं का पालन किया और स्वयं उपस्थित होकर प्रणाम किया और उसके सुदृढ़ शासन को पूर्णता स्वीकार किया।
विदेशी राज्यों से संबंध अथवा परराष्ट्रनीति
समुद्रगुप्त के साम्राज्य की सीमाओं से परे भारत के भीतर और बाहर विदेशी राज्य थे। जैसे सिंहल और समुद्र पार के द्विप जिनके साथ वह समुचित संबंध रखना चाहता था। जिससे शांति स्थापित करने में सहायता मिल सके। उसने उन लोगों के साथ निम्नलिखित शर्तों पर सेवा और सहयोग की संधियां की-
आत्म निवेदन, राजमहल में सेवा के लिए कन्याओं का उपहार, स्थानीय वस्तुओं की भेंट आदि।
गरुड़ मुद्रा (गुप्तों की राजकीय मुद्रा) से अंकित उसके आदेश को अपने-अपने शासन क्षेत्रों में प्रसारित करना स्वीकार किया। अतः स्पष्ट है कि उपयुक्त विदेशी राज्यों ने समुद्रगुप्त के साथ मैत्री संबंध स्थापित किया था।
साम्राज्य विस्तार
समुद्रगुप्त ने अपने अनेकानेक विजयों से एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। समुद्रगुप्त के साम्राज्य में लगभग संपूर्ण उत्तर भारत, छत्तीसगढ़ व उड़ीसा के पठार तथा पूर्वी तट के अनेक प्रदेश सम्मिलित थे। इस प्रकार उसका साम्राज्य पूर्व में ब्रह्मपुत्र, दक्षिण में नर्मदा तथा उत्तर में कश्मीर की तलहटी तक विस्तृत था।
उत्तर भारत के एक बड़े भूभाग पर समुद्रगुप्त स्वयं शासन करता था। स्वशासित प्रदेश के उत्तर और पूर्व में 5 तथा पश्चिम में नौ गणराज उसके अधीन करद राज्य थे। दक्षिण के 12 राज्यों की स्थिति भी इन्हीं के समान थी। इन करद राज्यों के अतिरिक्त अनेक विदेशी राज भी समुद्रगुप्त के प्रभाव क्षेत्र में थे।
अश्वमेध यज्ञ
दिग्विजय के पश्चात समुद्रगुप्त ने एक अश्वमेध यज्ञ भी किया था। इस अवसर पर उसने एक विशेष प्रकार के स्वर्ण मुद्राओं को प्रचलित किया। जिनके एक और घोड़े की आकृति उत्कीर्ण है तथा उसके नीचे अश्वमेध पराक्रम लिखा है। तथा मुद्रा के दूसरी ओर (राजाधिराज पृथ्वी को जीतकर अब स्वर्ग की जय कर रहा है उसकी शक्ति और तेज अप्रतिम है) अंकित है।
समुद्रगुप्त का मूल्यांकन
समुद्रगुप्त बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति था। वह रणशास्त्रों और शास्त्र ज्ञान का प्रणेता और अद्वितीय योद्धा था। विद्वानों से सतत संपर्क बनाए रखना वह अपना कर्तव्य समझता था। वह एक सुसंस्कृत व्यक्ति था और काव्य के क्षेत्र में उसकी प्रतिभा अद्वितीय थी। उसे कविराज भी कहा गया है। वह संगीत कला में भी परम निपुण था । भद्रपीठ पर बैठी वीणा बजाती हुई उसकी एक आकृति उसके एक सिक्के पर मिलती है। वह स्वयं भी काव्य रचना करता था। उसने अपने उदार पुरस्कारों द्वारा सरस्वती और लक्ष्मी के विरोध को मिटा दिया था।
धर्म में आस्था
धार्मिक क्षेत्र में वह परंपरागत धर्म की मर्यादा स्थापित करने वाला था। वह शास्त्रों से विहित मार्ग पर चलता था। वह कृपण, दीन, अनाथ और अतुर जनों का उद्धार कर्ता था। उसके जीवन का प्रमुख कर्तव्य लोकानुग्रह था। वह गरुड़ वाहन विष्णु का भक्त था, परंतु दूसरे संप्रदायों का भी आदर करता था।
जनसेवक
धार्मिक क्षेत्र में वह परंपरागत धर्म की मर्यादा स्थापित करने वाला था। वह शास्त्रों से विहित मार्ग पर चलता था। वह कृपण, दीन, अनाथ और अतुर जनों का उद्धार कर्ता था। उसके जीवन का प्रमुख कर्तव्य लोकानुग्रह था। वह गरुड़ वाहन विष्णु का भक्त था, परंतु दूसरे संप्रदायों का भी आदर करता था। उसका वैष्णव होना उसकी सामरिक नीति में किसी प्रकार रुकावट ना डाल सका और वह सर्वथा क्षत्रिय बना रहा।
एरण प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उसका परिवारिक जीवन भी बहुत सुंदर और सुखमय था । यश पराक्रम और प्रभाव से युक्त समुद्रगुप्त पुत्र पौत्रों से घिरा हुआ था। आदि से अंत तक उसका जीवन सुखमय था।
FAQs
1.समुद्रगुप्त ने कौन सी उपाधि धारण की थी?
उत्तर-समुद्रगुप्त ने "महाराजाधिराज" की उपाधि धारण की थी।
2.समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन क्यों कहा जाता है?
उत्तर- समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उपाधि उन्हें इतिहासकार ए वी स्मिथ द्वारा दी गयी है क्यूंकि वह एक वीर योद्धा, साहसी, पराक्रमी तथा निर्भीक शासक थे।
3. समुद्रगुप्त के माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर-समुद्रगुप्त के पिताजी का नाम चंद्रगुप्त प्रथम एवं माताजी का नाम कुमारदेवी था।
4. समुद्रगुप्त गुप्त वंश के कौन से शासक थे?
उत्तर- समुद्रगुप्त गुप्त वंश के दूसरे शासक थे।
5.समुद्रगुप्त के दरबारी कवि का क्या नाम था?
उत्तर- समुद्रगुप्त के दरबारी कवि का नाम हरिषेण था।
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