कांग्रेस पार्टी क्यों हो रही है कमजोर || Congress party kyon Ho Rahi hai kamjor

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कांग्रेस पार्टी क्यों हो रही है कमजोर || Congress party kyon Ho Rahi hai kamjor

कांग्रेस पार्टी क्यों हो रही है कमजोर || Congress party kyon Ho Rahi hai kamjor

कांग्रेस पार्टी क्यों हो रही है कमजोर,Congress party kyon Ho Rahi hai kamjor

अमीर खुसरो ने लिखा है, 'बहुत कठिन है अ डगर पनघट की, कैसे मैं भर लाऊं मघवा से मटकी पनिया भरन को मैं जो गई थी, दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी। बहुत कठिन है।' राकांपा में टूट के बाद ये पंक्तियां वर्तमान में चल रही विपक्षी एकता की कवायद को चरितार्थ कर रही हैं। कई दल कहते दिख रहे हैं कि अकेले मोदी जी को हराना मुश्किल है। हमें एकजुट होकर अखाड़े में उतरना होगा। इनको यह भी अहसास है किन मोदी को अकेले हरा सकते हैं, न अखाड़े में गिरा सकते हैं। फिर भी 2024 की चुनावी चौपाल पर चर्चा चालू रखना उनकी मजबूरी है। हालांकि विपक्षी एकता की हांडी इससे पहले भी 2018 में कुछ राज्यों के चुनाव में विपक्षी दलों के अच्छे प्रदर्शन के बाद चढ़ी थी, लेकिन वह पकने से पहले ही टूट गई। आज जो दल एकता का ढोल पीट रहे हैं, वे 'पुराने ढोल के नए खोल' से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इनमें अधिकांश अलग-अलग राज्यों में मिलकर पहले भी अपना सियासी सूपड़ा साफ करा चुके हैं। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब कोई गैर-कांग्रेसी सरकार अपने दो कार्यकाल के पड़ाव पर पहुंचकर तीसरे कार्यकाल की तरफ बढ़ रही है।

आजादी के बाद से देश में विपक्षी एकता का इतिहास देखें तो 'नाकाम सरकार नाकारा नेतृत्व' उसके केंद्र में रहा है। जबकि आज परिस्थितियां विपरीत हैं, नरेन्द्र मोदी के अथक परिश्रम से दुनिया में देश का डंका बज रहा है। भारतीय लोकतंत्र के र सशक्तीकरण का गवाह बीता एक दशक कई संकटों के के समाधान का साक्षी रहा। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी, कोरोना का कहर, रूस-यूक्रेन युद्ध, खाड़ी देशों का तनाव, रूस पर विश्व के बड़े देशों के आर्थिक प्रतिबंध, घरेलू मैदान पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार, तथाकथित असहिष्णुता, अल्पसंख्यकों- दलितों के साथ भेदभाव का नकली हौव्वा, किसानों के हित के नाम पर भटकाने का खेल, लोकतांत्रिक- संवैधानिक संस्थाओं पर संकट के साजिशी दुष्प्रचार को धूल धूसरित करते हुए भारत न केवल घरेलू मोर्चे पर सफलता के कीर्तिमान स्थापित करता रहा, बल्कि वैश्विक मोर्चे पर मजबूत ताकत और अर्थव्यवस्था बनकर भी उभरा।

विपक्षी एकता की पहली इबारत तब शुरू हुई जब 1962 में चीन ने भारत पर किया। 1963 में हुए कुछ उपचुनाव में कांग्रेस को जनाक्रोश का सामना करना पड़ा। विपक्ष के दिग्गज डा. लोहिया, मीनू मसानी, आचार्य कृपलानी और मधु लिमये आदि कांग्रेस को शिकस्त देकर जीत गए। चीन के आक्रमण से देश उबरा भी नहीं था कि 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। हालांकि, तत्कालीन सोवियत संघ के हस्तक्षेप से युद्धविराम एवं ताशकंद समझौता हुआ, पर देश के आर्थिक-सामाजिक हालात बेहाल होते रहे।

चीन और उसके बाद पाकिस्तान से युद्ध के दुष्प्रभाव भरे माहौल में 1967 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव बाद लोकसभा में  एक मजबूत प्रभावी विपक्ष की मौजूदगी दर्ज हुई। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बंगाल आदि नौ प्रमुख राज्यों में विपक्ष ने एकजुट होकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया। संयुक्त विधायक दल (संविद) यानी गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं। हालांकि यह एकता विरोधाभासों और वैचारिक मतभेदों के चलते बहुत लंबी नहीं चली और कांग्रेस ने इसका फायदा उठाया। फिर आपातकाल के जुल्म विपक्षी नेताओं में एकता का जुनून जगाया। विपक्ष उ ने एकजुट होकर 1977 में अपनी अलग-अलग व वैचारिक तथा राजनीतिक पहचान को 'जनता 'पार्टी' का रूप दिया, जिसने 295 लोकसभा सीटें

तो जीतीं, लेकिन सत्ता में आते ही विरोधाभासों से भरी सरकार और पार्टी दो साल में ही बिखर गई। कांग्रेस ने इस टकराव की सियासत को 'भुनाया और 1980 के चुनाव में 'चुनें उसे जो सरकार चला सके' के नारे के साथ 373 सीटें जीतकर फिर सत्ता पर काबिज हो गई। इसके बाद हुए गठबंधन के प्रयोग या तो असफल रहे या बिखर गए। कांग्रेस को इसका खूब लाभ मिलता रहा।

भारतीय लोकतंत्र 1989 से 2014 के बीच भी गठबंधनों के युग से गुजरा, लेकिन सफलता पर प्रश्नचिह्न रहा या कांग्रेस के भरोसे रहा। लोगों में यही धारणा घर करती गई कि गैर-कांग्रेसी विपक्ष या सरकार स्थायित्व नहीं दे सकते। 2014 के बाद वक्त की करवट और लोगों की राजनीतिक परिपक्वता ने सरकार तो गठबंधन की बनाई, पर पूर्ण बहुमत भाजपा को दिया। कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी मोदी जी के नेतृत्व में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार की सफलता और स्थायित्व की कसौटी पर खरा साबित होना है। कांग्रेस का हमेशा यह सोच रहा कि या तो 'सरकार डायनेस्टी (परिवार) की हो या डिक्टेशन (निर्देश) की या डेपुटेशन (प्रतिनियुक्त) की', जिसे परिवारतंत्र अपने रिमोट से कंट्रोल कर सके, लेकिन मोदी जी ने परिवारवाद के इस गुरूर को चकनाचूर कर साबित किया कि 'डिमाक्रेसी डिलीवर कर सकती है। पिछले नौ वर्षों में यह भ्रम पूरी तरह से टूट गया है कि कांग्रेसी कंट्रोल के अलावा कोई सरकार बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर सकती। इसी हताशा से बौखलाई कांग्रेस देश और दुनिया में भारत के लोकतांत्रिक, संवैधानिक संकल्प के खिलाफ साजिशों की सूत्रधार बनती प्रतीत हो रही है।

आज वैचारिक दिवालियेपन से जूझ रहे विपक्षी कुनबे में चौतरफा विरोधाभास, मतभेद, निहित स्वार्थ दिखाई दे रहे हैं। गठबंधन पर अभी से कांग्रेस कब्जा करने की चतुराई दिखा रही है। क्षत्रपों को भी इसका अहसास है। उनके सामने गठबंधन से ज्यादा अपना गढ़ बचाना प्राथमिकता है। इन सियासी सूरमाओं को अहसास है कि जनता का मोदी सरकार को तीसरा अवसर देने का संकल्प उनका सूपड़ा साफ कर सकता है। इसलिए 'बहुत कठिन है डगर विपक्षी एकता की।

Q.1 कांग्रेस पार्टी का पूरा नाम क्या है?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, (संक्षिप्त में, भा॰रा॰कां॰) अधिकतर कांग्रेस के नाम से प्रख्यात, भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों में से एक हैं। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में 28 दिसंबर 1885 को हुई थी। इसके संस्थापकों में ए॰ ओ॰ ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे।

Q.2 भारत में कांग्रेस की सरकार कहां है?

13 मई 2023 तक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) 4 राज्यों कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में सत्ता में है जहाँ पार्टी को बहुमत का समर्थन प्राप्त है।

Q.3 कांग्रेस ने भारत के लिए क्या किया है?

कांग्रेस ने भारत को यूनाइटेड किंगडम से आजादी दिलाई और ब्रिटिश साम्राज्य में अन्य उपनिवेशवाद-विरोधी राष्ट्रवादी आंदोलनों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम और अन्य। कांग्रेस अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के साथ भारत की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से एक है।

Q.4 क्या टीएमसी और कांग्रेस एक ही है?

इस दल की नेता ममता बनर्जी है। सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस (संक्षेप में एआईटीसी, टीएमसी या तृणमूल कांग्रेस) पश्चिम बंगाल में स्थित एक भारतीय राजनीतिक दल है। 1 जनवरी 1998 को स्थापित, पार्टी का नेतृत्व इसके संस्थापक और पश्चिम बंगाल के मौजूदा मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने किया।

Q.5 कांग्रेस का गठन क्यों हुआ?

सेवानिवृत्त ब्रिटिश भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने शिक्षित भारतीयों के बीच नागरिक और राजनीतिक संवाद के लिए एक मंच बनाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद, भारत का नियंत्रण ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश साम्राज्य को हस्तांतरित कर दिया गया।

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