उद्योग किसे कहते हैं? उद्योग के प्रकार//Udyog kise kahate Hain?Udyog ke prakar

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उद्योग किसे कहते हैं? उद्योग के प्रकार//Udyog kise kahate Hain?Udyog ke prakar

उद्योग किसे कहते हैं? उद्योग के प्रकार//Udyog kise kahate Hain?Udyog ke prakar

हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विविध प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करते हैं। कृषि उत्पादकों, जैसे- गेहूं, धान आदि को हमारे उपयोग करने से पहले आटा और चावल के रूप में तैयार किया जाता है। लेकिन रोटी और चावल के अतिरिक्त हमें कपड़ों, पुस्तकों, पंखों, कारों और दवाइयों आदि की भी आवश्यकता होती है जिनका निर्माण विभिन्न प्रकार के उद्योगों में होता है। आधुनिक समय में जो अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। यह उद्योग-धंधे एक बड़ी संख्या में श्रमिकों को रोजगार प्रदान करते हैं और कुल राष्ट्रीय संपत्ति/आई में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

उद्योग किसे कहते हैं? उद्योग के प्रकार//Udyog kise kahate Hain?Udyog ke prakar
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Table of contents


उद्योग किसे कहते हैं?

उद्योग के प्रकार

भारत में उद्योग कितने प्रकार के होते हैं?

उद्योग क्या है? और उद्योग के प्रकार

उद्योग धंधे कितने प्रकार के होते हैं?

भारत में 5 उद्योग कौन से हैं?

8 उद्योग क्या है?

भारत का पहला उद्योग क्या है?

भारत का सबसे पहला उद्योग कौन सा है?

FAQ


उद्योगों के प्रकार

उद्योगों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया गया है‌। आकार, पूंजी-निवेश और श्रम शक्ति के आधार पर उद्योगों को बृहत, मध्यम, लघु और कुटीर उद्योग में वर्गीकृत किया गया है। स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को (I) सार्वजनिक सेक्टर (ii) व्यक्तिगत सेक्टर

(iii) मिश्रित और सहकारी सेक्टर में विभक्त किया गया है।

सार्वजनिक सेक्टर उद्योग सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियों का निगम है जो सरकार द्वारा निधि प्रदत्त होते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में सामान्यत: सामरिक और राष्ट्रीय महत्व के उद्योग-धंधे आते हैं। उद्योगों का वर्गीकरण करके उत्पादों के उपयोग के आधार पर भी किया गया है, जैसे-

  1. मूल पदार्थ उद्योग

  2. पूंजीगत पदार्थ उद्योग

  3. मध्यवर्गीय पदार्थ उद्योग

  4. उपभोक्ता पदार्थ उद्योग

उद्योगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कच्चे माल के आधार पर भी उनका वर्गीकृत किया गया है। इसके अनुसार यह वर्गीकरण इस प्रकार है।

  1. कृषि-आधारित उद्योग

  2. वन-आधारित उद्योग

  3. खनिज- आधारित उद्योग

  4. उद्योगों द्वारा निर्मित कच्चे माल पर आधारित उद्योग।

उद्योगों का प्रचलित वर्गीकरण, निर्मित उत्पादन को की प्रगति पर आधारित है इस प्रकार आठ प्रकार के उद्योग हैं।

  1. धातु कर्म उद्योग

  2. यात्रिक इंजीनियर उद्योग

  3. रासायनिक और संबध्द उद्योग

  4. वस्त्र उद्योग

  5. खाद संसाधन उद्योग

  6. विद्युत उत्पादन उद्योग

  7. इलेक्ट्रॉनिक उद्योग

  8. संचार उद्योग


आप कभी-कभी स्वतंत्र उद्योग के बारे में पढ़ते हैं। यह क्या है? क्या उनका संबंध कच्चे माल से है अथवा नहीं?


उद्योगों की स्थिति

क्या पूर्वी और दक्षिण भारत में लोहा-इस्पात उद्योग की स्थिति के कारणों का अनुमान लगा सकते हैं?

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में कोई भी लोहा इस्पात उद्योग क्यों नहीं है?


उद्योगों की स्थिति कई कारकों जैसे कच्चा माल की उपलब्धता शक्ति बाजार पूंजी यातायात और शर्म इत्यादि द्वारा प्रभावित होती है। इन कारणों का सापेक्षिक महत्व समय और स्थान के साथ बदल जाता है। कच्चे माल और उद्योग के प्रकार में घनिष्ठ संबंध होता है। आर्थिक दृष्टि से निर्माण उद्योग को उस स्थान पर स्थापित करना चाहिए जहां उत्पादन मूल्य और निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक वितरण करने का मूल्य न्यूनतम हो। परिवहन मूल्य एक बड़ी सीमा तक कच्चे माल पर निर्माण उत्पादों की प्रगति पर निर्भर करता है। उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है।

उद्योग किसे कहते हैं? उद्योग के प्रकार//Udyog kise kahate Hain?Udyog ke prakar
उद्योग किसे कहते हैं? उद्योग के प्रकार//Udyog kise kahate Hain?Udyog ke prakar

कच्चा माल 

भार-ह्रास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किए जाते हैं जहां यह उपलब्ध होते हैं। भारत में चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों स्थापित है? किसी तरह लुगदी उद्योग तांबा प्रगलन और आयरन उद्योग अपने कच्चे माल प्राप्ति के स्थानों के निकट ही स्थापित किए जाते हैं। लोहा इस्पात उद्योग में लोहा और कोयला दोनों ही भार-ह्रास वाले कच्चे माल है। इसलिए लोहा इस्पात उद्योग की स्थिति के लिए अनुकूलतम स्थान कच्चा माल स्त्रोत के निकट होना चाहिए। यही कारण है कि अधिकांश लोहा इस्पात उद्योग या कोयला क्षेत्रों (बोकारो, दुर्गापुर आदि) के निकट स्थित है अथवा लोहा अयस्क के स्त्रोत (भद्रावती, भिलाई और राउरकेला) के निकट स्थित है।


शक्ति

शक्ति मशीनों के लिए गति आई बल प्रदान करती है और इसलिए किसी भी उद्योग की स्थापना से पहले उसकी आपूर्ति सुनिश्चित कर ली जाती। फिर भी कोई उद्योगों जैसे एल्युमीनियम और कृतिम नाइट्रोजन निर्माण उद्योग की स्थापना शक्ति स्रोत के निकट की जाती है क्योंकि यह अधिक शक्ति उपयोग करने वाले उद्योग हैं जिन्हें विद्युत की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है।


बाजार

बाजार निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती है। भारी मशीन, मशीन के औजार, भारी रसायनों की स्थापना उच्च मांग वाले क्षेत्रों के निकट की जाती है क्योंकि यह बाजार अभिमुख होते हैं। सूती वस्त्र उद्योग में शुद्ध (जिसमें भार-ह्रआस नहीं होता) कच्चे माल का उपयोग होता है और यह प्रायः बड़े नगरी क्षेत्रों में स्थापित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ-मुंबई, अहमदाबाद, सूरत आदि। पेट्रोलियम परिशोधन शालाओं की स्थापना भी बाजारों के निकट की जाती है क्योंकि आप पर विकृत तेल का परिवहन आसान होता है और उसमें प्राप्त कई उत्पादों का उपयोग दूसरे उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। कोयला, मथुरा और बरौनी इसके विशिष्ट उदाहरण है। परिशोधन शालाओं की स्थापना में पत्तन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


परिवहन

क्या आपने कभी मुंबई चेन्नई दिल्ली और कोलकाता के अंदर और उनके चारों और उद्योगों की केंद्रीकरण के कारणों को जानने का प्रयास किया है। ऐसा इसलिए हुआ है कि यह प्रारंभ में ही परिवहन मांगों को जोड़ने वाले केंद्र बिंदु बन गए हैं। रेलवे लाइन बेचने के बाद ही उद्योगों को आंतरिक भागों में स्थानांतरित किया गया। सभी मुख्य उद्योग मुख्य रेल मार्गों पर स्थित हैं।


श्रम

क्या हम श्रम के बिना उद्योग के बारे में सोच सकते हैं। उद्योगों को कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। भारत में श्रम बहुत गतिशील हैं तथा जनसंख्या अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं।


ऐतिहासिक कारक

क्या आपने कभी मुंबई कोलकाता और चेन्नई के औद्योगिक केंद्र के रूप में उबरने के कारणों के विषय में सोचा है। यह स्थान हमारे उपनिवेश अत्यधिक द्वारा अत्यंत प्रभावित थे उपनिवेशीकरण के प्रारंभिक चरणों में निर्माण क्रियाओं को यूरोप की व्यापारियों द्वारा नव प्रोत्साहन दिया गया। मुर्शिदाबाद ढाका भदोही सूरत बड़ोदरा कोच्चि कोड कोयंबटूर मैसूर आदि स्थान महत्वपूर्ण निर्माण केंद्रों के रूप में उभरे। उपनिवेशवाद के उत्तर कालीन उद्योगिक चरण में ब्रिटेन के मूल निर्मित वस्तुओं से होड़ और औपनिवेशिक शक्ति की वेद मूलक नीति के कारण, निर्माण केंद्रों का तेजी से विकास हुआ। उपनिवेशवाद के अंतिम चरणों में अंग्रेजों ने चुने हुए क्षेत्रों में कुछ उद्योगों को प्रोन्नत किया। इससे देश में विभिन्न प्रकार के उद्योगों का बड़े पैमाने पर स्थानिक विस्तार हुआ।


औधोगिक नीति

एक प्रजातांत्रिक देश होने के कारण भारत का उद्देश्य संतुलित प्रादेशिक विकास के साथ आर्थिक समृद्धि लाना है। भिलाई और राउरकेला में लौह इस्पात उद्योग की स्थापना देश के पिछड़े जनजाति क्षेत्रों के विकास के निर्णय पर आधारित थी। वर्तमान समय में भारत सरकार पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित उद्योग धंधों को अनेक प्रकार के प्रोत्साहन देती है।


1-उद्योग के चार प्रकार कौन से हैं? 

उत्तर-प्राथमिक उद्योग

 द्वितीय उद्योग 

निष्कर्षण उद्योग 

विनिर्माण उद्योग


2-भारत में उद्योग कितने प्रकार के होते हैं?

 उत्तर-भारत में उद्योगों के प्रकार स्वामित्व के आधार पर उद्योग चार प्रकार के होते हैं निजी उद्योग इस प्रकार की उद्योग व्यक्तिगत स्वामित्व में होते हैं सरकारी उद्योग व उद्योग जो सरकार के स्वामित्व में होते हैं सहकारी उद्योग जो सहकारी स्वामित्व में होते हैं।


3-भारत का पहला उद्योग क्या है? 

उत्तर-लौह इस्पात उद्योग हैं लोहा और इस्पात उद्योग भारत में विकसित होने वाला पहला आधुनिक उद्योग था।

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