लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है राजनीति || loktantrik mulyon ke viprit hai rajniti

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लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है राजनीति || loktantrik mulyon ke viprit hai rajniti

लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है राजनीति || loktantrik mulyon ke viprit hai rajniti

लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है राजनीति,loktantrik mulyon ke viprit hai rajniti

एक समय राजनीति में वही लोग ए आते थे जो निःस्वार्थ भाव और पूर्ण समर्पण से समाज एवं देश की सेवा करना चाहते थे, लेकिन स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद राजनीतिक परिवेश में जिस तरह की प्रवृत्तियां उभरकर सामने आ रही हैं वे राजनीति के तेजी से बदलते चरित्र को दर्शाती हैं। अब प्रत्येक दल किसी भी तरह सत्ता हासिल कर अधिक से अधिक समय तक उस पर काबिज रहना चाहता है। इसके लिए हर तिकड़म अपनाने से संकोच नहीं किया जा रहा। इसकी कीमत जनहित को चुकानी पड़ रही है। एक ताजा उदाहरण बिहार में गंगा पर बन रहे पुल के मामले से जुड़ा है। यह पुल निर्माणाधीन अवस्था में ही एक नहीं, बल्कि दो बार ध्वस्त हुआ। हर बार दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार कहती रही, लेकिन न कार्रवाई हुई और न समस्या दूर हुई। दूसरा उदाहरण बंगाल से है। इसमें एक बड़े रसूखदार और मुख्यमंत्री के अत्यंत विश्वासपात्र चहेते मंत्री महोदय और उनकी महिला मित्र स्कूलों में अध्यापक

नियुक्ति घोटाले में जेल में बंद हैं। उन पर आरोप है कि अयोग्य लोगों को गलत तरीके से नियुक्ति देकर अब तक वे करोड़ों रुपये की संपत्ति बना चुके हैं।

बात केवल घपले-घोटालों तक ही सीमित नहीं। शिक्षा के क्षेत्र में भी सरकारें अपना वर्चस्व बढ़ाने पर आमादा है। विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण के लिए राज्यपाल की जगह अब मुख्यमंत्री को कुलाधिपति (चांसलर) बनाने की तैयारी है। पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार भी ऐसा ही करने को उतावली है। इसी बीच खबर आई है कि सामाजिक उत्थान के लिए राजस्थान सरकार धोबी, नाऊ और ब्राह्मण आदि जातियों के लिए पंद्रह आयोग गठित कर रही है। प्रत्येक आयोग के अध्यक्ष के लिए प्रदेश सरकार में मंत्री स्तर का दर्जा और सुविधाएं मुहैया कराने की व्यवस्था होगी। समानता और समता लाने के बदले जातियों के आयोग बनाकर हर जाति को अपनी पहचान सुरक्षित करने के नाम पर झुनझुना पकड़ाया जा रहा है। ऐसे रुझानों के बीच और भी खतरनाक है चुनावी आहट के साथ ही राजनीतिक दलों द्वारा किस्म-किस्म की रेवड़ियां बांटने की होड़। चुनावी मौसम में सभी दल खुलकर बड़े-बड़े वादों और घोषणाओं की झड़ी लगा देते हैं। रोजगार, बिजली, सम्मान निधि, गैस सिलेंडर, कर्ज माफी, सस्ता कर्ज, मुफ्त वाईफाई और आरक्षण की सुविधा से लेकर जो मन में आए वही मतदाता को पेश कर दिया जाता है। जनता को मुफ्त की सुविधाएं देने का कोई तर्कसंगत कारण या नीतिगत आधार नहीं होता, केवल किसी तरह वोट बटोरने का तात्कालिक उद्देश्य होता है।

आज जाति, क्षेत्र और धर्म जैसे समाज विभाजक आधारों का आसरा

लेकर विभिन्न दलों द्वारा चुनाव की तैयारी जन या समुदाय विशेष के लिए उपयोगी (कस्टमाइज) तुष्टीकरण को अंजाम देने की मुहिम तेज होती जा रही है। इस प्रक्रिया का कोई ओर-छोर नहीं दिखाई पड़ता। चूंकि सामान्य मतदाता की विचार करने की शक्ति सीमित होती है इसलिए उसकी प्रतिरोध करने की शक्ति घट जाती है। साथ में प्रलोभनों की बौछार कुछ ऐसी होती है कि पहले से लाचार मतदाता आसानी से उनके बहकावे में आ जात है। सुविधाएं और धन बांट- बांटकर जनता से वोट बटोरना राजनीति को नया आधार दे रहा है। अब राजनीति में भागीदारी नागरिक जीवन में स्वेच्छा से अपनाया गया धर्म नहीं रहा। इन सबके चलते सक्रिय राजनीति में भागीदारी एक महंगा सौदा हो रहा है। आज विधायक और सांसद के चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। इसलिए प्रत्याशी भी - करोड़पति चाहिए और उनमें संदिग्ध चरित्र से लेकर आपराधिक प्रवृत्ति वालों की अच्छी-खासी संख्या होती है। राजनीतिक बिरादरी में "धनबल और बाहुबल का सहयोग एक स्वीकृत मानक सा बन गया है, जिसके एक स्तर के नीचे किसी का प्रवेश वर्जित

होता जा रहा है। राजनीतिक परिदृश्य में कथित सामाजिक उद्धार में शामिल नेताओं को भी अपना दबदबा बनाए रखने के लिए जाति को जीवित रखने में ही सही राह दिखाई पड़ती है। उसी में वे अपना भविष्य सुरक्षित महसूस करते है। वे जननेता की तरह नहीं, बल्कि एक जाति विशेष के नेता की तरह बर्ताव करते हैं। वे अतिरिक्त तत्परता से इस उपाय में लगे रहते हैं कि किस तरह जाति की शक्ति उनका समर्थन करती है। जाति आधारित जनगणना और विभिन्न प्रकार के आरक्षणों की मांग इसी किस्म की राजनीति के शिगूफे हैं। दूसरी ओर समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रस्ताव को लेकर समाज की विविधता को खतरा सूंघते हुए नकारने की कोशिश भी होती है।

आधुनिक युग में गणतंत्र की जरूरत है। कि राष्ट्र में सबकी समान भागीदारी हो। नागरिकता नागरिक होने की उस न्यूनतम व्यवस्था को रेखांकित करती है जो देश की सीमा में रहने वालों को समान आधार देती है। भारतीयों के लिए समान नागरिक संहिता भेदभाव को समाप्त करने के लिए आवश्यक होगी। तभी समता और समानता का लक्ष्य मिल सकेगा। ऐसा न

करके हम देश के लिए परिहास की स्थिति उत्पन्न करते हैं। इसके विरोध का अर्थ तो यही है कि नागरिकों की कई श्रेणियां जायज होंगी। तलाक, विवाह, उत्तराधिकार तथा धन-संपदा आदि मामलों को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार के मानक अपनाना रूढ़िवादी सोच को ही दर्शाता है।

आज जब पंथनिरपेक्षता, वैज्ञानिकता, समानता और सामाजिक समता को लक्ष्य स्वीकार किया जा रहा है तो पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता एक स्वाभाविक आवश्यकता हो गई है। विश्व के अधिकांश प्रगतिशील देशों ने इस प्रणाली को सफलतापूर्वक अपनाया है। भारतीय संविधान भी ऐसी संहिता को अपनाने पर जोर देता है। भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी बार-बार इसकी ओर ध्यान आकृष्ट किया है। भारत के सभी नागरिक इसके हकदार हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्षों के सामाजिक-राजनीतिक अनुभव का निचोड़ जिन प्रवृत्तियों की ओर संकेत करता है वे भी समान नागरिक संहिता को प्रासंगिक ठहराते हैं। इस विमर्श में विपक्ष तो आखिर विपक्ष ही ठहरा। उसे तो बस विरोध करना है। इसीलिए वह हिचकिचाता है। यहां यह याद रखना जरूरी है कि तुष्टीकरण किसी के हित में नहीं है। वह अल्पकालिक लाभ वाला हो . सकता है और अंततः देश की जड़ों को खोखला ही करेगा। जगह-जगह इसका खामिजाया भुगता जाता रहा है। आज आवश्यकता है कि सभी राजनीतिक दल इस पर विचार करें और इसे नियंत्रित करने के कारगर उपाय करें। इसी तरह जन-चेतना प्रसार के लिए भी आंदोलन आवश्यक है।

FAQ'S -

Q. लोकतांत्रिक राजनीतिक क्या है?

लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।

Q. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की क्या आवश्यकता है?

लिखित उत्तर राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है|लोकतंत्र में सरकार का निर्माण बहुमत से होता है|राजनीतिक दल जनमत के निर्माण में सहायक हैं तथा जनता में जागरूकता बढ़ाने में सहायक है। राजनीतिक दल जनता व सरकार के बीच कड़ी का कार्य करते हैं। विरोधी दल के रूप में ये सरकार की मनमानी पर रोक लगाती है।

Q. लोकतंत्र की विशेषताएं क्या हैं?

लोकतंत्र की पाँच विशेषताएँ इस प्रकार हैं - निर्वाचित प्रतिनिधि, नागरिक स्वतंत्रता, संगठित विपक्षी दल, स्वतंत्र न्यायपालिका और कानून का शासन

Q. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की क्या भूमिका है कक्षा 10?

राजनीतिक दल जनमत के निर्माण में सहायता करते हैं । वे चुनाव लड़ते हैं. चुनाव में जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, वह सरकार बनाती है। अल्पसंख्यक सदस्यता वाली पार्टी विपक्ष बनती है।

Q. राजनीतिक दलों की विशेषताएं क्या हैं?

एक राजनीतिक दल की विशेषताएं सत्ता हासिल करना, एक विचारधारा को आगे बढ़ाना, एक साझा एजेंडा रखना, सरकार स्थापित करना और लोगों और सरकार के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करना है। एक राजनीतिक दल उन लोगों का एक समूह है जो चुनाव लड़ने और सरकार को नियंत्रित करने के लिए एक साथ आते हैं।

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