UP board live solution class 10th social science unit- 2
(समकालीन भारत-2 भूगोल)
UP board social science solutions for class 10th
अध्याय- 1 संसाधन एवं विकास
बहुविकल्पी प्रश्न-
प्रश्न-1 निम्नलिखित में से एक मिट्टी का प्रकार नहीं है?
(क) काली
(ख) पीली
(ग) लेटराइट
(घ) सीमेंट
उत्तर- (घ) सीमेंट
प्रश्न-2 निम्न में कौन अजैवीय संसाधन है?
(क) चट्टानें
(ख) पशु
(ग) पौधे
(घ) मछलियां
उत्तर-(क) चट्टानें
प्रश्न-3 पर्वतों पर मृदा अपरदन का साधन है-
(क) पवन
(ख) हिमनद
(ग) जल
(घ) पशुचारण
उत्तर-(ख) हिमनद
प्रश्न-4 पंजाब में भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है?
(क) गहन खेती
(ख) वनोन्मूलन
(ग) अधिक सिंचाई
(घ) अति पशुचारण
उत्तर- (ग) अधिक सिंचाई
प्रश्न-5 कपास की खेती के लिए कौन सी मृदा उपयुक्त है?
(क) काली मृदा
(ख) लाल मृदा
(ग) जलोढ़ मृदा
(घ) लेटराइट मृदा
उत्तर- (क) काली मृदा
अति लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न-1 भारत में सबसे अधिक कौन सी मिट्टी पाई जाती है इसका निर्माण किस प्रकार हुआ है?
उत्तर- भारत में सबसे अधिक जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। इसका निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसादो से हुआ है ।यह बहुत अधिक उपजाऊ तथा गहन कृषि योग्य होती है।
प्रश्न-2 भारत में कौन कौन-कौन सी मृदा में पाई जाती हैं?
उत्तर- भारत में जलोढ़ मृदा ,काली मृदा ,लाल व पीली मृदा, लेटराइट मृदा ,मरुस्थलीय मृदा और वन मृदा पाई जाती हैं।
प्रश्न-3 पवन अपरदन किसे कहते हैं?
उत्तर- पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मुर्दा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।
प्रश्न-4 3 राज्यों के नाम बताइए जहां काली मृदा पाई जाती है ।इस पर मुख्य रूप से कौन सी फसल उगाई जाती है?
उत्तर- काली मृदा का रंग काला होता है। इसे रेगर मृदा भी कहते हैं ।यह लावाजनक शैलों से बनती है ।यह मृदा महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा ,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है ।काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है। इसे काली कपास मर्दा के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न-5 जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर- जैव संसाधन- वे संसाधन जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है और जिनमें जीवन व्याप्त होता है ;जैव संसाधन कहलाते हैं।
जैसे- मनुष्य, वनस्पति जगत ,प्राणी जगत पशुधन तथा मत्स्य जीवन आदि।
अजैव संसाधन- वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं ,अजैव संसाधन कहलाते हैं।
जैसे- चट्टानें और धातुएं
लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न -1 नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधनों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- नवीकरणीय संसाधन- वे संसाधन जिन्हें भौतिक , रसायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है ,उन्हें नवीकरण योग्य अथवा पुनः आपूर्ति योग्य संसाधन का जाता है।
उदाहरण- सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन इन संसाधनों को सतत अथवा प्रवाह संसाधन में विभाजित किया गया है।
अनवीकरणीय संसाधन- इन संसाधनों का विकास एक लंबे भूवैज्ञानिक अंतराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुएं पुनः चक्रिय हैं और पेट्रोल ,डीजल जैसे कुछ संसाधन आज चक्रीय हैं। वह एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
प्रश्न-2 मृदा अपरदन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
मृदा अपरदन क्या है?
उत्तर- भूमि की ऊपरी परत के हट जाने की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं ।मृदा अपरदन का सबसे पहला कारण तेज बहने वाली पवनें है। ये दोनों मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं और भूमि को कृषि के लिए अनुपयोगी बना देते हैं ।कुछ मानवीय कारक भी मृदा अपरदन को बढ़ावा देते हैं। वह अपने भवन निर्माण कार्यों से प्रेरित होकर रोड़ी ,बजरी ,संगमरमर, बदरपुर आदि प्राप्त करने की इच्छा से छोटी- बड़ी पहाड़ियों को गहरे खंडों में परिवर्तित कर देते हैं। मृदा अपरदन के कारण मृदा के उपजाऊपन पर बड़ा विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न-3 पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
उत्तर- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। विभिन्न मानवीय तथा प्राकृतिक कारणों से मृदा अपरदन होता रहता है ।पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जाने चाहिए-
1- पर्वतीय ढालों पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।
2- पार्वतीय ढाल पर सीढ़ीदार खेत बनाकर अवनालिका अपरदन को रोका जा सकता है ।पश्चिमी और मध्य हिमालय में सोपान अथवा सीढ़ीदार कृषि काफी विकसित है।
3- पर्वतीय क्षेत्रों में पट्टी कृषि के द्वारा मृदा अपरदन को रोका जाता है ।इसमें बड़े खेतों को पट्टियों में बांटा जाता है। फसलों के बीच में घास की पट्टियां उगाई जाती हैं ।यह पवनों द्वारा जनित बल को कमजोर करती हैं।
4- पर्वतीय ढालों पर बांध बनाकर जल प्रवाह को समुचित ढंग से खेती के काम में लाया जा सकता है। मृदारोधक बांध अवनलिकाओं के फैलाव को रोकते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न-1 स्वामित्व के आधार पर संसाधनों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है-
व्यक्तिगत संसाधन- संसाधन निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में भी होते हैं। बहुत से किसानों के पास सरकार द्वारा आवंटित भूमि होती है जिसके बदले में वे सरकार को लगान चुकाते हैं ।गांव में बहुत से लोग भूमि के स्वामी भी होते हैं ।और शहरों में लोग भूखंडों ,घरों व अन्य प्रकार की संपत्ति के मालिक होते हैं ।बाग चारागाह, तालाब और कुआं का जल आदि संसाधनों के निजी स्वामित्व के कुछ उदाहरण हैं।
सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन- यह संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को उपलब्ध होते हैं ।गांव की चारण भूमि ,श्मशान भूमि ,तालाब और नगरीय क्षेत्रों के सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्थल और खेल के मैदान वहां रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्ध है।
राष्ट्रीय संसाधन- तकनीकी तौर पर देश में पाए जाने वाले सभी संसाधन राष्ट्रीय हैं। देश की सरकार को कानूनी अधिकार है कि वह व्यक्तिगत संसाधनों को भी आम जनता के हित में अधिग्रहित कर सकती है। सभी खनिज पदार्थ ,जल संसाधन, वन तथा वन्य जीवन ,राजनीतिक सीमाओं के अंदर संपूर्ण भूमि और 12 समुद्री 'मील 'तक महासागरीय क्षेत्र व इनमें पाए जाने वाले संसाधन राष्ट्र की संपदा हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन- कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं संसाधनों को नियंत्रित करती हैं। तट रेखा से 200 किलोमीटर की दूरी से पूरे खुले महानगरी संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है ।इन संसाधनों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता।
प्रश्न-2 मृदा के निर्माण में कौन से चार कारक सहायक होते हैं?
उत्तर- मृदा के निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है ।उदाहरण के लिए धरती की ऊपरी 2 सेंटीमीटर की परत निर्मित होने में हजारों वर्ष लग जाते हैं ।मृदा के निर्माण और उसकी उर्वरता के विकास के लिए कई कारक उत्तरदाई होते हैं ।इनमें -शैल, पेड़-पौधे ,जीव -जंतु ,स्थानीय स्थलाकृति जलवायु और 1 लंबी अवधि आदि विशेषकर उल्लेखनीय है।
1- सबसे पहला कारक शैल है जिसमें मृदा के लिए उचित सामग्री मिलती है।
2- जलवायु- जल वायु शैलों को एक लंबी अवधि में छोटे-छोटे टुकड़ों और कणों में बदल देती है।
3- पेड़ -पौधे- पेड़ -पौधों की जड़ें शैलों में घुसकर उन्हें तोड़ -फोड़ देती है।
4- अत्यंत चराई- पशु भी निरंतर चरने की क्रिया से इन शैलों में अनेक परिवर्तन ला देते हैं।
5- वर्षा- निरंतर होने वाली वर्षा का जल भी इन शैलों में घुसकर तोड़ -फोड़ का कार्य करता है ।एक लंबे समय तक अनेक कारकों के क्रियाशील रहने के कारण इन शैलों के कणों के टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है। जिससे धीरे-धीरे मृदा का निर्माण होता है। यह मृदा, वायु ,वर्षा आदि के प्रभाव के अधीन एक स्थान से दूसरे स्थानों पर निक्षेपित होती रहती है।
प्रश्न -3 मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है ?मृदा अपरदन के लिए उत्तरदाई कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। मृदा के बनने और अपरदन की क्रियाएं आमतौर पर साथ-साथ चलती है। किंतु विभिन्न मानवीय क्रियाओं से मृदा अपरदन तेजी से होने लगता है ।इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदाई हैं-
1- भौतिक कारक- मृदा अपरदन के लिए उत्तरदाई मुख्य भौतिक कारक निम्नलिखित हैं-
1- ढाल वाली भूमि पर अपरदन समतल भूमि की अपेक्षा ज्यादा होता है।
2- तीव्र मूसलाधार वर्षा से मृदा अपरदन होता है ।यह मृदा की ऊपरी परत को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं।
3- पवनें जब आंधी का रूप ले लेती हैं तो बहुत बड़ी मात्रा में मृदा उड़ा कर ले जाती है ।शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में मृदा अपरदन का यह एक बड़ा कारक है।
2- मानवीय कारक- निम्नलिखित कुछ मानवीय कारकों को भी मृदा अपरदन के लिए उत्तरदाई माना जाता है
1- पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई से भूमि पर वनस्पति का आवरण समाप्त हो जाता है ।इस स्थिति में मृदा पर जल और वायु का प्रभाव तीव्र होता है।
2- वृक्षों की जड़ें मृदा की रक्षा करती हैं। वनों के कटाव से मृदा अपरदन में तेजी आ गई है ,क्योंकि पानी और पवनों के बहाव को ब्रिज कम कर सकते हैं।
3- कृषि के गलत तरीकों से भी मृदा अपरदन होता है ।गलत ढंग से हल चलाने जैसे; ढाल पर ऊपर से नीचे की ओर हल चलाने से वाहिकाएं बन जाती हैं ।जिसके कारण अंदर से बहता पानी आसानी से मृदा का कटाव करता है।
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