विद्यार्थी जीवन पर निबंध | Essay on Students life Hindi Main

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विद्यार्थी जीवन पर निबंध | Essay on Students life Hindi Main

विद्यार्थी जीवन पर निबंध | Essay on Students life Hindi Main

विद्यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है। यह काल एकाग्र चित्त होकर अध्ययन और ज्ञान चिंतन का है। यह काल सांसारिक भटकाव से स्वयं को दूर रखने का काल है। विद्यार्थियों के लिए यह जीवन अपने भावी जीवन को ठोस न्यू प्रदान करने का सुनहरा अवसर है। यह चरित्र निर्माण का समय है। यह अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने का एक महत्वपूर्ण समय है।


विद्यार्थी जीवन 5 वर्ष की आयु से आरंभ हो जाता है। इस समय जिज्ञासाए पनपने लगती हैं। ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है। बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्यत हो जाता है। उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने लगता है।


नए शिक्षक नहीं सहपाठी और नया वातावरण मिलता है। वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए। उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है। पाठ्य पुस्तक से उसे लगाओ हो जाता है। वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है। जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है।


विद्यार्थी अर्जुन की चाह रखने वाला विद्यार्थी जब विनम्रता को धारण करता है तब उसकी राहें आसान हो जाती हैं। विनम्र होकर श्रद्धा भाव से वह गुरु के पास जाता है। तो गुरु से शहर से विद्या दान देते हैं। वे उसे नीति ज्ञान एवं सामाजिक ज्ञान देते हैं। गणित की उलझनें सुलझा देते हैं। और उसके अंदर विज्ञान की समझ विकसित करते हैं। उसे भाषा का ज्ञान दिया जाता है। ताकि वह अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकें इस तरह विद्यार्थी जीवन सफलता और पूर्णता को प्राप्त करता हुआ प्रगति गामी बनता है।


विद्यार्थी जीवन मानवीय गुणों को अंगीभूत करने का काल है। सुख-दुख लाभ-हानि, सर्दी-गर्मी से पूरे होकर जब विद्यार्थी नित्य अध्ययन सील हो जाता है। तब उसका जीवन सफल हो जाता है। विद् या प्राप्ति के निमित्त कुछ कष्ट तो उठाने ही पड़ते हैं, आग में तापी बिना सोना शुद्ध नहीं होता। इसलिए आदर्श विद्यार्थी जीवन में सुख की चाह रखते हुए केवल विद्या की चाहा रखता है। वह धैर्य साहस ईमानदारी लगन शीलता गुरु भक्त स्वाभिमान जैसे गुणों को धारण करता हुआ जीवन पथ पर बढ़ता ही चला जाता है। वह संयमित जीवन जीता है। ताकि विद्या र्जन मैं बांधा उत्पन्न न हो। वह नियम वृद्ध और अनुशासित रहता है वह समय की पाबंदी पर विशेष ध्यान देता है।


विद्या केवल पुस्तकों में नहीं होती। ज्ञान की बातें केवल गुरुजनों के मुखारविंद से नहीं निकलती। ज्ञान तो झरने के जल की तरह प्रवाहमान रहता है। विद्यार्थी जीवन इस प्रवाहमान जल को पीते रहने का काल है। खेल का मैदान हो या डेबिट का समय भ्रमण का अवसर को अथवा विद्यालय की प्रयोगशाला ज्ञान सर्वत्र भरा होता है। विद्यार्थी जीवन इन भांति-भांति रूपों में बिक्री ज्ञान को समेटने का काल है। स्वास्थ्य संबंधी बातें इसी जीवन में धारण की जाती हैं। व्यायाम और खेल से तन को इसी जीवन में पुष्ट कर लिया जाता है। विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई के अलावा कोई ऐसा हुनर सीखा जाता है। जिसका आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया जा सके।


गुण- अवगुण, अच्छा-बुरा, पुण्य-पाप धर्म- अधर्म सब जगह है। विद्यार्थी जीवन में ही इनकी पहचान करनी होती है। चतुर वह है जो सार ग्रहण कर लेता है और असार एवं सड़े-गले का त्याग कर देता है। सार है विद्या सार है सद्गुण और असार है दुर्गुण विद्यार्थी जीवन में दुर्गुणों से एक निश्चित दूरी बना लेनी चाहिए।


अच्छी आदतें अपनानी चाहिए बुजुर्गों का सम्मान करना सीख लेना चाहिए। मधुर वाणी का महत्व समझ लेना चाहिए। अखाद्य तथा नशीली चीजों से दूर रहना चाहिए। शारीरिक एवं मानसिक स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए। विद्यार्थी जीवन समाप्त होने पर इन सब बातों पर ध्यान देना नासमझी ही है।


विद्यार्थी जीवन संपूर्ण जीवन का स्वर्णिम काल है। इसका पूरा आनंद उठाना चाहिए। इस जीवन में अनेक प्रकार के प्रलोभन आते हैं जिनसे सावधानी बरतने की आवश्यकता है।


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