anokhi yukti panchatantra story in Hindi || अनोखी युक्ति पंचतंत्र की कहानी

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anokhi yukti panchatantra story in Hindi || अनोखी युक्ति पंचतंत्र की कहानी

anokhi yukti panchatantra story in Hindi || अनोखी युक्ति पंचतंत्र की कहानी

पंचतंत्र की कहानी : अनोखी युक्ति


एक नगर में एक लकड़हारा और एक पशुपालक रहता था। दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। एक दूसरे पर जान देते थे। एक बार नगर में उत्सव हुआ। तब राजा की कन्या भी उस उत्सव को देखने आई। कन्या बहुत सुंदर थी सभी की आंखें राजकुमारी पर ही आ टिकी थी।


जब पशु पालक ने राजकुमारी के दर्शन कीये वो उनके प्रेम में दीवाना हो गया उसे दिन-रात हर जगह बस राजकुमारी की छवि ही दिखाई पड़ रही थी। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। उसकी इस हालत को देख उसके मित्र लकड़हारे को चिंता होने लगी। उसने अपने मित्र पशुपालक से इस दशा का कारण पूछा तब पशुपालक ने बताया कि उसे राजकुमारी से प्रेम हो गया और वह उनके बिना जीवित नहीं रह सकता।


anokhi yukti panchatantra story in Hindi || अनोखी युक्ति पंचतंत्र की कहानी


उसकी बात सुनकर लकड़हारा उसे एक सुझाव देता है कहता है कि सुना है राजकुमारी शिव भक्त है क्यूँ ना तुम इस माह की शिवरात्रि पर राजकुमारी से शिव का रूप धर कर मिलने जाओ यह सुझाव पशुपालक को पसंद आ जाता है। वो अपने पशुओं में से सबसे सुंदर नदी का चुनाव करता है। उसका पूरा श्रागार करता है और स्वम भी शिव की भांति रूप दर कल शिवरात्रि की मध्यरात्रि को राजकुमारी को संदेश भिज आता है कि आज रात्रि में शिव भगवान उन्हें दर्शन देंगे इसलिए अपने कक्ष की कुंडी कॉल कर रखे राजकुमारी यह बात मान लेती है और रात्रि में कच्छ की कुंडी खोल कर रखे है। मध्यरात्रि समय पशुपालन शिव का रूप धर राजकुमारी से मिलने आता है। जिसे देख राजकुमारी अचंभित रह जाती है। और उनके चरणों में गिर जाती है। पशु पालक उसे कहता है कि तुम देवी का रूप हो तुम्हारी तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुम्हारी समीप आया हूं। और तुम से विवाह करना चाहता हूं। राजकुमारी कहती है प्रभु इसके लिए आपको मेरे माता-पिता से बात करनी होगी। इस पर पशुपालक कहता है। कन्या तुम देवी का रूप हो इसलिए मैं केवल तुमसे बात कर सकता हूं। तुम्हारे माता-पिता साधारण मनुष्य हैं। इसलिए हमें छिपकली ही विवाह करना होगा। राजकुमारी मान जाती है और शिव रूपी पशुपालक से विवाह कर लेती है।


अब पशुपालक रोजाना अर्धरात्रि में राजकुमार के पास शिव के रूप में आने लगता है।


रोज कोई राजकुमारी के कक्ष में आता है। इसका दासियों को संदेह हो जाता है । दासी ना यह बात महारानी को बताती हैं। महारानी महाराज से बात करती हैं। दोनों राजकुमारी के पास आते हैं और सच पूछते हैं। इस पर राजकुमारी पूरा सच अपने माता-पिता को बताती है. माता-पिता बहुत प्रसन्न होते हैं कि उनकी कन्या को स्वयं भगवान शिव ने पसंद किया। राजकुमारी से अपने जा माता से मिलवाने को कहते हैं। राजकुमार जी कहती है कि वे साधारण मनुष्य से नहीं मिलते आप चाहे तो रात्रि में छिपकर उनके दर्शन कर सकते हैं। माता-पिता यही करते हैं रात्रि में पशु पालक को शिव समझ कर बहुत खुश होते हैं।


इसी खुशी के कारण राजा अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए आसपास के राज्यों में आक्रमण करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि जिस राज्य को जमाता भगवान शिव हैं वह राज्य के से परास्त हो सकता है। देखते ही देखते छोटे-छोटे युद्ध महासंग्राम में बदल जाते हैं। और राज्य चारों तरफ से घिर जाता है। संकट के समय में महाराजा अपनी पुत्री को कहते हैं कि वह भगवान शिव से कहें कि वह इस संकट से बाहर निकाले। राजकुमारी अपने पति से आग्रह करती है ‌।


अब पशुपालक चिंतित हो जाता है। ना डर कर भाग सकता है और ना अकेले युद्ध कर सकता है। वह एक नया उपाय सोचता है और शिव जी का तांडव नृत्य सीखता है और अपने मित्र लकड़हारे की मदद से एक उड़ने वाला नंदी बनाता है।


जैसे ही रात्रि का समय होता है वह सीमा पर जाकर आकाश में नंदी पर बैठ कर सबके सामने जाता है। उसे देख सब डर जाते हैं फिर धरती पर उतर कर अपने क्रोध को तांडव के रूप में दिखाता है। जिससे सभी डर जाते हैं। और वहां से भाग जाते हैं इस प्रकार पशु पालक अपने राज्य को संकट से बचाता है लेकिन उसे अपनी भूल का एहसास होता है इसलिए वह राज्यसभा में जाकर अपनी गलती स्वीकार करता है सभी दरबारी भौंचके रह जाते हैं।


राजा को क्रोध आता है लेकिन वह पशुपालक के साथ से खुशी भी हो जाते हैं क्योंकि मामला खत्म हो चुका था अगर पशुपालक चाहता तो अपना नाटक जारी रख सकता था लेकिन उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने बिना परिणाम की सोचे सभी के सामने कुबूल किया।


राजा को अपनी गलती का एहसास होता है कि उसने बिना सोचे समझे राज्यों पर हमला कर दिया। अगर पशुपालक उपाय ना करता तो वह अपना राज्य हार गया होता। सब कुछ सोचने के बाद पशुपालक को क्षमा करते हैं। और अपनी कन्या का विवाह कर उसे राज्य में सम्मानित पद प्रदान करते हैं।


यह अनोखी युक्ति पंचतंत्र की कहानी शिक्षा देती है। यह कहानी शिक्षा देती है कि उपाय से आसानी से परेशानी से बचा जा सकता है। लेकिन यह भी सीख मिलती है कि अपनी इच्छा पूर्ति के लिए झूठ बोलने का परिणाम कितना भयावह हो सकता है। और दूसरा कि बिना वास्तविकता को पता किए निर्णय लेना जानलेवा भी हो सकता है।


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