भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रोत्साहन - UP Board.live

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भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रोत्साहन - UP Board.live

भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रोत्साहन - UP Board.live


मैकाले प्रवर्तित शिक्षा व्यवस्था की आलोचना हम वर्षों से नहीं, बल्कि कई दशकों से सुनते चले आ रहे हैं। तमाम शिक्षाविदों ने उसके दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला है। अंग्रेजों ने सदियों से चली आ रही भारतीय ज्ञान परंपरा की न केवल उपेक्षा की, बल्कि उसे नष्ट- भ्रष्ट भी किया। वे कला, संगीत, साहित्य, न्याय, दर्शन, स्थापत्य, मूर्तिकला, योग, धातु विज्ञान, वस्त्र-निर्माण, रसायनशास्त्र, गणित, खगोल, ज्योतिष, चिकित्सा और कृषि आदि विविध क्षेत्रों में भारतीयों की समृद्ध एवं गौरवशाली ज्ञान परंपरा से भली तरह परिचित थे। वे जानते थे कि इनके रहते भारतीयों को वास्तविक अर्थों में परतंत्र एवं परावलंबी नहीं बनाया जा सकता। इसलिए उन्होंने तमाम नीतियों एवं योजनाओं द्वारा पहले तो ज्ञान के इन परंपरागत स्रोतों को नष्ट किया और फिर सुनियोजित तरीके से इन सबके प्रति हम भारतीयों में हीन भावना विकसित की।

स्वतंत्रता के पश्चात सत्ता का हस्तांतरण तो हुआ, पर तंत्रगत नीतियों एवं तौर-तरीकों पर औपनिवेशिक मानसिकता हावी रही। समय-समय पर भारत और भारतीयता को पोषित करने वाले विचार सुनाई दिए, लेकिन परिवर्तन की निर्णायक परिणति तक वे नहीं पहुंच पाए। परिणामस्वरूप शिक्षा व्यवस्था संबंधी जिन प्रश्नों और समस्याओं से हम स्वतंत्रता के पूर्व जूझ रहे थे, उनसे बाद में भी दो-चार होते रहे। हमारा 'स्व' कहीं विस्मृत हो गया था, जिसे पाने और पहचानने का गंभीर प्रयास. बीते दशकों में लगभग नहीं के बराबर हुआ। राष्ट्र के 'स्व' को पहचानने, पाने एवं आत्मसात करने में शिक्षा और उसमें भी भारतीय ज्ञान परंपरा की महती भूमिका है। भारतीय ज्ञान परंपरा के जिन विषयों को पिछड़ा और प्रतिगामी मानकर लगभग विस्मृत कर दिया गया था, सुखद है कि अब जाकर उसकी सुध ली गई है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा के अध्ययन-अध्यापन पर विशेष बल दिया गया है। नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने की दिशा में यूजीसी ने गंभीर पहल की है। प्रत्येक विषय या कोर्स में अब भारतीय ज्ञान परंपरा से संबद्ध ऐसी बातों को जोड़ा जा रहा है, जिनसे नई पीढ़ी में भारतीय होने का गौरवबोध तो जागृत होगा ही, साथ ही उस ज्ञान के बल पर उन्हें पूरी दुनिया

में एक मौलिक एवं विशिष्ट पहचान भी मिलेगी। यूजीसी ने भारतीय ज्ञान-परंपरा पर आधारित एक पाठ्यक्रम भी तैयार किया है, जिसमें रामायण- महाभारत कालीन कृषि और सिंचाई जैसी व्यवस्था, खगोल विज्ञान की वैदिक अवधारणाएं और वैदिक गणित, सुश्रुत संहिता में वर्णित उपचार व्यवस्था आदि को प्रमुखता से जगह दी गई है। इसके साथ ही प्राचीन भारत के उन विद्वानों का भी उल्लेख है, जिन्होंने भारतीय शिक्षा को एक नई ऊंचाई दी। इनमें चरक, सुश्रुत, आर्यभट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, चाणक्य, पाणिनि, पतंजलि, मैत्रेयी और गार्गी आदि नाम प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत जिस विषयवस्तु को आधुनिक विषयों के रूप में पढ़ाने की संस्तुति की गई है, उनमें प्राचीन बीजगणित, ज्योतिष, भारतीय वाद्य यंत्र, भाषा विज्ञान, धातुशास्त्र, वास्तुशास्त्र, मूर्ति विज्ञान और प्राचीन भारत में जल प्रबंधन आदि के साथ वेद, वेदांग, भारतीय दर्शन, साहित्य, छंद, व्याकरण, निरुक्त, चिकित्सा, कृषि, अर्थशास्त्र आदि को शामिल किया गया है। यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षकों को भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रशिक्षित करने की योजना भी प्रारंभ की है। 

इसी शैक्षणिक सत्र में एक हजार शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है। सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से दो दो शिक्षकों को इसके लिए नामित करने के लिए भी कहा गया है। प्रशिक्षण की कुल अवधि में से न्यूनतम दस प्रतिशत समय भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए सुनिश्चित किया गया है। इस प्रक्रिया में भारतीय ज्ञान को एक स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाने के स्थान पर, वर्तमान में पढ़ाए जा रहे प्रत्येक विषय में उससे संबंधित प्राचीन एवं परंपरागत विषयवस्तु को जोड़ा जाएगा। विद्यालयी शिक्षा के लिए तैयार किए जा रहे पाठ्यक्रम में भी भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रमुखता से स्थान देने की पैरवी की गई है। फाउंडेशन स्तर के पाठ्यक्रम में भी इसकी झलक देखने को मिल रही है। इस स्तर के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए गए खिलौनों को भी भारतीय ही रखा गया है, ताकि बच्चे उन्हें आसानी से पहचान सकें और उनके माध्यम से अपने परिवेश के साथ सहजता से जुड़ सकें। ऐसी व्यवस्था बनाई गई है कि स्नातक स्तर के कुल अनिवार्य पाठ्यक्रम में से न्यूनतम पांच प्रतिशत क्रेडिट भारतीय ज्ञान परंपरा के पाठ्यक्रम में से छात्रों को मिले। इससे छात्रों को इस पाठ्यक्रम को पढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।

दुनिया का हर जागरूक एवं विकसित देश अपनी सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान-परंपरा एवं विरासत को सहेजने का प्रयत्न करता है। फिर भारत तो एक ऐसा देश है, जिसकी सभ्यता, संस्कृति, परंपरा आदि में दुनिया को दिशा देने वाली मौलिक, किंतु सार्वभौमिक विशेषताएं देखने को मिलती हैं। तमाम झंझावातों तथा आक्रमणों को झेलकर भी उसने. अपनी मौलिकता एवं सार्वभौमिकता नहीं खोई है। हिंसा और कलह से पीड़ित विश्व मानवता को राह दिखाने की शक्ति भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित है। सबसे बड़ी बात यह है कि एक ओर जहां यह योग, आयुर्वेद, स्थापत्य, अनुष्ठानिक कर्म, दस्तकारी, कृषि, पशुपालन, बागवानी आदि क्षेत्रों में रोजगार की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी रहेगी, वहीं दूसरी ओर अति भौतिकतावादी एवं यांत्रिक जीवनशैली से उत्पन्न विसंगितयों को दूर करने में भी सहायक सिद्ध होगी।

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