लोकतंत्र की आधारशिला है प्रभावी शासन - UPBoard.live

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भारत परिपूर्ण लोकतंत्र को पछाड़ भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है, पर उसकी समस्याएं विकराल हैं, जिनका समाधान उसे अधिनायकवादी साम्यवादी व्यवस्था से नहीं, वरन लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा करना है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन से भारत में त्रिस्तरीय संघीय व्यवस्था स्थापित की गई स्थानीय सरकारें, राज्य सरकारें और भारत सरकार। समस्याएं चाहे कानून-व्यवस्था की हों, प्राकृतिक आपदाओं की या विकास संबंधी, उनसे निपटने का उत्तरदायित्व स्थानीय प्रशासन का ही होता है। अन्य अभिकरण केवल तात्कालिक सहयोग प्रदान करते हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्थानीय सरकारों को संवैधानिक दर्जा भले ही 1993 में मिल गया हो, पर उन्हें अपना प्रशासनिक ढांचा बनाने का अधिकार नहीं मिला। अपने दायित्व निर्वहन हेतु वे राज्य सरकार के प्रशासनिक ढांचे पर निर्भर

रहती हैं। इतना ही नहीं, शहरी क्षेत्रों की स्थानीय सरकारों को संविधान के अनुसार अभी पूरे अधिकार भी नहीं मिले हैं। स्थानीय प्रशासन की एक समस्या विभिन्न अभिकरणों और विभागों में समन्वय न होना भी है। अक्सर कोई सड़क बनती है और कुछ दिनों बाद जल निगम, बिजली, टेलीफोन या कोई अन्य विभाग उसे खोद देता है। शहर या जिले के स्तर पर कोई वरिष्ठ 'नोडल अधिकारी होना चाहिए, जो क्षेत्रीय विकास का समन्वित माडल बना सके, जिससे विकास प्रक्रिया में विभिन्न विभाग क्रमबद्ध ढंग से अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी कर सकें। राजनीतिक प्रशासनिक कार्य-संस्कृति में एक प्रवृत्ति यह है कि स्थानीय सरकारें समस्याओं के कारण और निवारण की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर और राज्य उन्हें केंद्र सरकार पर डाल देते हैं। इससे उनमें टकराव बढ़ता है और समाधान में विलंब होता है। यदि भिन्न-भिन्न दलों की सरकारें हैं तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है। हाल में दिल्ली में बाढ़ की विभीषिका पर दिल्ली नगर निगम, दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के मध्य विवाद इसे पुष्ट करता है।

समस्याओं के कारण कुछ भी हों, निवारण तो स्थानीय प्रशासन द्वारा ही होता है। जिलाधीश से लेकर पटवारी और मेयर से लेकर पार्षद सभी जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं, पर दुर्भाग्य से आपदाओं को वे प्रायः 'भ्रष्टाचार के अवसर' के रूप में देखते हैं। फिर स्थानीय प्रशासन पर अनेक विकास योजनाओं के क्रियान्वयन का भार होने से वह भावी समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने की जगह समस्याओं के प्रकट होने की प्रतीक्षा करता है और

समाधान हेतु प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण अपनाता है, जिसमें अधिक समय, श्रम और संसाधन लगता तथा कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। आज समस्याओं के उत्पन्न होने पर सरकारें और राजनीतिक दल समाधान पर कम और आरोप-प्रत्यारोप पर ज्यादा ध्यान देते ऐसे में सरकार के गुण-दोष का वस्तुनिष्ठ आकलन नहीं हो पाता। अपने पूर्वाग्रह के कारण विपक्ष सरकार के अच्छे कामों की या तो अनदेखी करता या फिर उसे बुरा सिद्ध करने की कोशिश करता है। मोदी सरकार के प्रति विपक्षी दलों का रवैया इसका ज्वलंत उदाहरण है। संविधान विपक्षी दलों को सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना का अधिकार देता है, पर उसके प्रत्येक काम को गलत ठहराना न केवल अनुचित है, वरन जनता में अपनी साख को नीचे गिराने जैसा भी। विगत नौ वर्षों में मोदी सरकार की कार्यशैली का विश्लेषण करने पर चार प्रमुख प्रवृत्तियां दिखाई देती हैं। प्रथम, सरकार यथास्थितिवाद से

परिवर्तनवाद की ओर अग्रसर है। परिवर्तन को प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, लेकिन यदि वह जनहित को लक्ष्य करे तो न उसे जनसमर्थन मिलता है। जिस प्रकार राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर मोदी का जनसमर्थन बढ़ा है, वह प्रमाणित करता है कि लोग परिवर्तनों को पसंद कर रहे हैं। द्वितीय, सरकार "आंशिक परिवर्तन'

की जगह 'समग्र परिवर्तन' को लक्ष्य कर रही है। 'समग्र परिवर्तन' के लिए सरकार के पास उसका 'ब्लूप्रिंट' होना चाहिए। ऐसा परिवर्तन श्रमसाध्य, प्रतिरोधात्मक और धीमी गति से होता है। मोदी सरकार के निर्णयों का पूर्वानुमान विपक्ष को नहीं हो पाता, क्योंकि 'समग्र परिवर्तन' की बाधाओं को दूर करने हेतु सरकार सुविचारित, पूर्वनियोजित और गोपनीय ढंग से कदम उठाती है। तृतीय, मोदी सरकार ने अपनी पार्टी के 'ब्लूप्रिंट' को लागू करने हेतु साधन और साध्य का समन्वय किया है, पर क्या जनता इस समन्वय की स्वीकृति देगी? यह इस पर निर्भर है कि जनता साधन और साध्य में

किसे महत्व देती है? गांधीजी साधनों की शुचिता और नेहरूजी साध्य को महत्व देते थे। दोनों आदरणीय हैं। इसीलिए मोदी सरकार द्वारा साधन और साध्य के समन्वय को जनस्वीकृति मिल रही है। चतुर्थ, मोदी ने 'लोकल' को 'ग्लोबल' के जिस स्तर तक उठाया है, वह विश्व की 'पालिटिकल इकोनमी' को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने भारत की बेहतरीन मार्केटिंग की है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस से तेल खरीदना, अनेक देशों से रुपये में द्विपक्षीय व्यापार समझौता, जी-20 की अध्यक्षता करते हुए अफ्रीकी देशों को उसमें समावेशित करना आदि बहुत बड़े निर्णय हैं, जो भारत की बढ़ती ताकत की वैश्विक स्वीकार्यता का संकेतक हैं।

मोदी सरकार के फैसले से भारत के प्रति वैश्विक आकर्षण बढ़ा है, जिससे विदेशी पर्यटकों और निवेशकों की संख्या में वृद्धि होने और अर्थव्यवस्था में मजबूती आने की संभावना है, पर देसी-विदेशी पर्यटकों और निवेशकों की सुरक्षा एवं सुविधा को लेकर स्थानीय प्रशासन की चुनौतियां भी बढ़ेंगी। इसलिए हर छोटे- बड़े शहर और गांव में स्थानीय प्रशासन

को भविष्य की संभावनाओं और चुनौतियों के लिए अभी से 'प्रोएक्टिवली' योजना बनाकर उनका क्रियान्वयन करना पड़ेगा, जिससे 2047 में भारतीय लोकतंत्र की गौरवशाली छवि स्थापित करने का प्रयास सार्थक हो सके। इसके लिए पूरे देश में स्थानीय प्रशासन को दक्ष, प्रभावशाली और मितव्ययी बनाना होगा.

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