विभिन्न संस्कृतियों में संवाद का समय - UPboard.live

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कुछ छद्म पंथनिरपेक्षतावादी और कु प्रधानमंत्री मोदी के अंधविरोधी भारत में मुस्लिमों की स्थिति को लेकर दुष्प्रचार करते रहते हैं। ऐसे लोगों को बीते दिनों किसी और ने नहीं, बल्कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डा. मुहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल ईसा ने आईना दिखाकर उनके दुष्प्रचार की हवा निकाल दी। विश्वविख्यात इस्लामिक विद्वान अल ईसा ने भारतीय' लोकतंत्र, बहुलतावाद और भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्यों की भूरि- भूरि प्रशंसा कर दुनिया को भारत से सीखने की सलाह दी। चूंकि यह विश्व में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के मुखिया ने कहा है तो इसके गहरे निहितार्थ हैं। इससे भारत विरोधी ताकतों का वह कुत्सित अभियान नाकाम होगा, जिसमें वे पूरी दुनिया में भारत की गलत तस्वीर दिखाते हैं कि यहां मुस्लिमों के साथ अन्याय हो रहा है। अल ईसा की बातें असल में भारत में मुस्लिमों

को प्राप्त स्वतंत्रता और देश के सभी नागरिकों विशेषकर अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अवसरों एवं अधिकारों की वास्तविकता को दर्शाती हैं। अल ईसा इससे पहले सऊदी अरब में न्याय मंत्री रहे हैं। उन्हें इस्लाम की एक प्रामाणिक आवाज माना जाता है। वह इस्लामिक हलाल आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष भी हैं। वह इस्लाम को उदार बनाने, विभिन्न मान्यताओं के साथ संवाद करने और सौहार्द के हिमायती हैं। इस्लामिक जगत में अल ईसा की अहमियत को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि दो पवित्र मस्जिदों के संरक्षक सऊदी अरब के सुल्तान ने उन्हें जुलाई 2022 में हज के अवसर पर दिया जाने वाला संदेश देने के लिए चुना। उस संबोधन में अल ईसा ने संयम की सलाह देते हुए मुस्लिमों से मतभेद एवं शत्रुता भाव से बचने को कहा था।

भारत दौरे पर अल ईसा ने कई संगठनों के साथ संवाद किया। यहां कई प्रख्यात हिंदू धार्मिक गुरुओं से भी उनकी गहन चर्चा हुई। उन्होंने भारत के प्रति विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक होने के नाते कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन में विश्व के समक्ष विद्यमान समस्याओं के समाधान की क्षमता है। हिंदू धर्म गुरुओं के साथ चर्चा में उन्होंने पवित्र कुरान को लेकर भी पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि 'विभिन्न धर्मगुरु अपने राजनीतिक एजेंडे की सुविधा के अनुसार ही कुरान की व्याख्या करते हैं, जिससे गलतफहमी, अविश्वास और नफरत का माहौल बनता है। वहीं, कुरान तो वास्तव में परस्पर सम्मान की बात करती है, लेकिन उसकी मौजूदा 'व्याख्या' विविधता को प्रोत्साहन नहीं देती, जबकि विभिन्नता

को मान्यता प्रदान करने से संस्कृतियों के बीच सुगम संबंध सुनिश्चित होते हैं। इसीलिए विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद समय की आवश्यकता है।'

अल ईसा की गतिविधियां सौहार्द बढ़ाने को लेकर उनके समर्पण को दर्शाती हैं। उन्होंने तीन वर्ष पहले पोलैंड स्थित एक यहूदी यातना शिविर का दौरा करने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। वहां उन्होंने एलान किया कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग यहूदी समुदाय के साथ तालमेल और सौहार्द बनाने के लिए काम करेगी। इन दोनों समुदायों के बीच कायम राजनीतिक तल्खी को देखते हुए उनकी घोषणा उल्लेखनीय रही। उन्होंने अक्सर कहा है कि मुस्लिमों को उन विचारधाराओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए, जो गैर- मुस्लिम राष्ट्रों के साथ उनके मेल-मिलाप में बाधक बनती हैं। उनका यह रुख-रवैया उन्हें शांति के वास्तविक दूत के रूप में स्थापित करता है।

अल ईसा ने कहा कि हिंदू धर्मगुरुओं के साथ चर्चा और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से शांति एवं सौहार्द को लेकर

उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है। वह वेदों एवं उपनिषदों के अध्ययन के लिए भी उत्सुक दिखे और उनके अरबी संस्करण की अनुपलब्धता का हवाला भी दिया। उनकी दृष्टि में इस्लामिक जगत को भारतीय दर्शन समझकर उसका लाभ उठाना चाहिए। अल ईसा ने अल्पसंख्यकों को अपने संदेश में यही कहा कि अल्पसंख्यक जिस देश में रहते हों, उन्हें वहां की स्थितियों के साथ स्वयं को पूरी तरह जोड़ लेना चाहिए। अल्पसंख्यकों को उनकी यही सलाह है कि अपने देश से प्रेम कीजिए और उसके लिए किसी भी प्रकार का बलिदान करने के लिए तत्पर रहिए । इस्लाम के कट्टरपंथी रुख के धुर विपरीत अल ईसा ने भारत दौरे पर यही बात दोहराई कि विविधता ही विश्व की वास्तविकता है, जिसे सभी को स्वीकार करना चाहिए। यही सभ्यताओं के टकराव को रोकने का एकमात्र उपाय है।

'भारत के विषय में अल ईसा ने कहा कि भारतीय नागरिक भले ही अल्पसंख्यक हों या बहुसंख्यक, सभी भारतीय संविधान रूपी छत्र के नीचे एक समान हैं। भारतीय

संविधान और लोकतंत्र का प्रशस्तिगान करते हुए अल ईसा ने मोदी सरकार का उल्लेख करने के बजाय लोकतंत्र के प्रति भारत की सभ्यतागत प्रतिबद्धता और भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्यों पर ही जोर दिया, लेकिन इसके बावजूद मोदी विरोधी उनकी बातों से असहज हैं। विपक्षी दल के एक प्रवक्ता ने उनकी साख पर सवाल उठाते हुए कहा कि संभव है कि वह कोई एनजीओ चलाते हैं, जिसे भारत सरकार से सहायता की आवश्यकता हो। वहीं एक अन्य पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि मोदी को विदेशियों से इस प्रकार के प्रचार की क्या आवश्यकता है? एक अन्य प्रवक्ता ने हद ही कर दी और अल ईसा के दौरे को जनसंपर्क की कवायद बताते हुए उन्हें 'सरकारी मुसलमान' तक कह दिया। यह बहुत ही त्रासद स्थिति है जो दर्शाती है कि भारत में कुछ नेता और राजनीतिक दल किस स्तर तक वैमनस्य से भरे हैं। आखिर जिन लोगों का काम ही भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कथित भेदभाव के एजेंडे को आगे बढ़ाने से चल रहा हो, उन्हें सऊदी अरब के इस्लामिक विद्वान द्वारा भारत का प्रशंसागान और विश्व को उससे सीखने की नसीहत कैसे पचेगी। ऐसे लोगों के उलट अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अल ईसा का सार्थक संदेश जरूर पहुंचेगा। आखिर गत वर्ष हज में संबोधन देने वाला व्यक्ति यदि हमारी सभ्यता, हमारे संविधान एवं हमारी लोकतांत्रिक जीवनशैली और विविधता के प्रति हमारे सम्मान के विषय में इतनी अच्छी बातें कहे तो उसके बहुत गहरे निहितार्थ हैं।

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