राष्ट्रीय राजनीति में एनसीपी का विभाजन - UPBoard.live

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भारतीय राजनीति में लंबे समय से खुद को प्रासंगिक बनाए रखने वाले शरद पवार के लिए पिछले कुछ दिन खासे मुश्किल बीते हैं। मुश्किल ऐसी कि कांग्रेस से अलग होकर पवार ने जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी राकांपा को खड़ा किया, वही अब उनके हाथ से निकलती दिख रही है। उनके भतीजे और लंबे समय तक विश्वासपात्र रहे अजीत पवार के राजनीतिक विद्रोह के चलते सीनियर पवार के समक्ष राजनीतिक अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। कुछ समय पहले एक प्रकार से सक्रिय राजनीति में सीमित भूमिका निभाने के संकेत देने वाले पवार को अब पहले से कहीं अधिक सक्रियता के साथ राजनीतिक' रण में उतरकर मुकाबला करना पड़ रहा है। इससे पहले महाराष्ट्र में ही शिवसेना भी दोफाड़ हो चुकी है। स्वाभाविक है कि राज्य की राजनीति पर तो इन विभाजनों का असर पड़ेगा ही, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति पर भी इसके असर को अनदेखा नहीं किया जा सकता। विशेषकर तब जब


विपक्षी एकता को लेकर बैठकों का दौर जारी है। ऐसे में राकांपा में टूट की गूंज दूर तक सुनाई पड़ रही है। महाराष्ट्र के ही कांग्रेसी खेमे में भी खलबली की खबरें इसका संकेत करती हैं। इस प्रकार देखा जाए तो कांग्रेस-राकांपा और शिवसेना से मिलकर बना महाविकास आघाड़ी गठबंधन अब धराशायी सा हो गया है। यदि ये तीनों पार्टियां पूरी मजबूती और एकजुटता के साथ चुनाव लड़तीं तब भाजपा के लिए राज्य में कठिनाई बढ़ सकती थी।


यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के बाद सर्वाधिक लोकसभा सीटें (48) महाराष्ट्र में ही हैं। न केवल लोकसभा चुनाव, बल्कि देश की सबसे समृद्ध नगर निकाय बीएमसी में भी भाजपा के लिए मुकाबला पहले के मुकाबले कुछ आसान होने के आसार हैं। महाराष्ट्र मैं लोकसभा के कुछ महीनों बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। उन पर भी इस बदले हुए राजनीतिक घटनाक्रम की छाप अवश्य दिखाई देगी। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ा झटका तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग और भाजपा के विरुद्ध विपक्षी दलों की राजनीतिक गोलबंदी के प्रयासों को लगेगा। जनता को यही लगेगा कि जो पार्टियां आपस में एकजुट नहीं रह सकतीं वे भला किसी गठबंधन को कैसे टिकाऊ बना सकती हैं। खासतौर से शरद पवार खुद को बड़ी असहज स्थिति में पा रहे होंगे, क्योंकि उन पर विपक्षी एकता का बड़ा दारोमदार रहा है। विपक्षी खेमा उनके राजनीतिक अनुभव और संपर्कों का लाभ उठाने की उम्मीद लगाए बैठा था। अब उनके सामने अपनी खुद की पार्टी और चुनाव चिह्न को बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है।


जिस संकट से इस समय राकांपा जूझ रही है, वह कोई नया नहीं है। पारिवारिक स्तर पर संचालित होने वाले राजनीतिक दलों में यह सिलसिला काफी पहले से चलता आया है। भारत ही नहीं, बल्कि समूचे दक्षिण एशिया में यही राजनीतिक परिपाटी दिखाई पड़ती है। यहां अधिकांश दल मुख्यतः एक परिवार पर केंद्रित हैं और उन्हें वहीं से नियंत्रित किया जाता है। इन दलों में समस्या अक्सर तभी उत्पन्न होती है जब शीर्ष नेतृत्व अवसान पर हो और पार्टी में उत्तराधिकार तय करने की स्थिति आती है। इसमें नेता प्रायः अपने रक्त संबंधी बेटे या बेटी को ही नेतृत्व की कमान सौंपते हैं। इससे वे लोग खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं, जिन्होंने पार्टी को शीर्ष तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होती है। चूंकि इन दलों में सुप्रीमो की बात ही अंतिम 'आदेश होती है तो एक स्तर पर विभाजन की स्थिति का उत्पन्न होना कोई हैरानी नहीं। हाल में विभाजित हुई शिवसेना इससे पहले भी राजनीतिक बंटवारा देख चुकी है। तब पार्टी में वर्टिकल डिविजन


यानी सीधा विभाजन तो नहीं हुआ था, लेकिन शिवसेना सुप्रीमो रहे बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने जब देखा कि पार्टी की कमान उद्धव ठाकरे को सौंपी जा रही है तो उन्होंने शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली। कालांतर में. जब ऐसा लगने लगा कि उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे को भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं तो एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं का उनसे मोहभंग हो गया। जदएस में एचडी देवेगौड़ा ने अपने बेटे कुमारस्वामी को बढ़ाया तो सिद्दरमैया पार्टी छोड़ गए। इसी प्रकार, लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव के दाहिने हाथ की भूमिका निभाने वाले शिवपाल सिंह यादव को भी अखिलेश यादव के चलते कुछ ऐसा ही कदम उठना पड़ा। चाचा-भतीजे में कभी मेल-मिलाप तो कभी मनमुटाव का सिलसिला जारी है। द्रमुक में पार्टी पर नियंत्रण के लिए खासा लंबा संघर्ष चला और आखिरकार एमके स्टालिन ने करुणानिधि की विरासत पर अपना दावा मजबूत किया। दरअसल, 2014 से पहले रक्त संबंधियों को सीधे नेतृत्व


हस्तांतरण अपेक्षाकृत आसान हुआ करता था, क्योंकि जिन नेताओं का मोहभंग होता था उन्हें राजनीतिक समायोजन के लिए वैसी अनुकूल स्थितियां नहीं मिलती थीं. "जैसी इस दौर में मिल रही है। इसका प्रमुख कारण है कि भाजपा इन टकराव का अपने राजनीतिक लाभ के लिए कहीं बेहतर तरीक से उपयोग कर रही है। भाजपा की इस रणनीति की काट क्षेत्रीय दलों को गंभीरतापूर्वक निकालनी होगी। अन्यथा राकांपा जैसे विघटन होते रहेंगे।


भाजपा ने भले ही भ्रष्टाचार, वंशवाद और भाई-भतीजावाद को एक सफल राजनीतिक विमर्श के रूप में स्थापित किया है, लेकिन यही मुद्दा भविष्य में उसके गले की फांस भी बन सकता है। राकांपा का विभाजन इसका ताजा उदाहरण है। अजीत पवार के धड़े वाले विद्रोही गुट से गलबहियां करके यह मुद्दा भाजपा के हाथ से छिटक सकता है। अजीत पवार पर भ्रष्टाचार के आरोप तो रहे ही हैं, वह उसी वंशवादी राजनीति की देन हैं जिसका भाजपा विरोध करती आई है। ऐसे में अजीत पवार जैसे नेताओं को साथ लेकर भाजपा को भले ही कुछ तात्कालिक लाभ मिल जाए, मगर यह पार्टी की दीर्घकालिक रणनीति के लिए अनुत्पादक होगा। बाहर से नेताओं के आने से पार्टी में आंतरिक असंतोष भी उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि बाहरी नेताओं को खपाने के लिए कई बार पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं को अपने हितों की बलि देनी पड़ती है। ऐसे में, भाजपा को भी दूसरे दलों में विभाजन के मुद्दे 'को 'आपदा में अवसर' बनाने के बजाय दूरगामी नुकसान के विषय में अधिक सोचना होगा।


FAQ'S -


Q. एनसीपी का उपयोग किस लिए किया जाता है?


विवरण: एनसीपी लिक्विड एंटीसेप्टिक एक एंटीसेप्टिक/कीटाणुनाशक है जिसमें हैलोजेनेटेड फिनोल, सोडियम सैलिसिलेट और फेनोलिक यौगिक होते हैं। इसका उपयोग कटने, घाव, जलने, घावों और जलने पर किया जाता है। माउथवॉश और आफ्टरशेव के रूप में.


Q. एनसीपी का दूसरा नाम देने के लिए क्या खड़ा है जो हम एनसीपी के लिए उपयोग करते हैं?


राष्ट्रीय तेल और खतरनाक पदार्थ प्रदूषण आकस्मिकता योजना , जिसे आमतौर पर राष्ट्रीय आकस्मिकता योजना या एनसीपी कहा जाता है, तेल रिसाव और खतरनाक पदार्थ उत्सर्जन दोनों पर प्रतिक्रिया देने के लिए संघीय सरकार का खाका है।


Q. एलसीपी और एनसीपी क्या है?


पीपीपी लिंक नियंत्रण प्रोटोकॉल (एलसीपी), प्रमाणीकरण प्रोटोकॉल (एपी) और नेटवर्क नियंत्रण प्रोटोकॉल (एनसीपी) से बना है। एनसीपी का उपयोग नेटवर्क परत के मापदंडों और सुविधाओं पर बातचीत करने के लिए किया जाता है। पीपीपी द्वारा समर्थित प्रत्येक उच्च-परत प्रोटोकॉल के लिए, एक NCP है।


Q. शरद पवार ने कांग्रेस कब छोड़ी?


पवार ने पाटिल सरकार में उद्योग और श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। जुलाई 1978 में, पवार ने जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बनाने के लिए कांग्रेस (यू) पार्टी से नाता तोड़ लिया। इस प्रक्रिया में, 38 वर्ष की आयु में, वह महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गये।


Q. एनसीपी पीने के लिए अच्छा है?


यह मसूड़ों को मजबूत बनाता है और दांतों को ठंडा या गर्म, मीठा या अम्लीय, किसी भी प्रकार का भोजन और पेय लेने की क्षमता देता है।


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