प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध//Adult education Essay in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे प्रौढ़ शिक्षा के महत्व पर निबंध, प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध हिंदी में सभी की जानकारी इस आर्टिकल के माध्यम से दी जाएगी। तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े और अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध//Adult education Essay in Hindi |
Table of contents
प्रौढ़ शिक्षा के महत्व पर निबंध
30 वर्ष से 50 वर्ष की अवस्था वाली स्त्री पुरुष कहलाते हैं। ऐसी निरक्षर या अशिक्षित लोगों को शिक्षा देना उन्हें साक्षर बनाना प्रौढ़ शिक्षा है। निरीक्षर, अर्धसाक्षर साक्षर या विस्मृताक्षर प्राढौ को पुनः शिक्षा देना भी प्रौढ़ शिक्षा है। अशिक्षित रहने के कारण भाग जैसे पिछड़े देश में व्यक्ति कई कारणों से अशिक्षित व अनपढ़ रह गया है। कई बार तो पढ़ने लिखने की प्रति संस्कार जातियां अरुचि बाधक बन जाती है। तो कई बार निर्धनता अथवा घर परिवार की आवश्यकता बाधक बन जाती है। स्वतंत्रता से पूर्व देहातों में ऐसे कारण प्रमुख रूप से हुआ करते थे। परंतु आज जबकि शिक्षा का अत्यधिक प्रचार हो गया है तब भी दूर देहातों में इस समस्या का ठीक प्रकार से समाधान संभव नहीं हो पाया है। प्रायः देखा गया है कि देहातों व कस्बों में अधिसंख्य प्रौढ आयु के व्यक्तियों में शिक्षा का अभाव है। अभी कुछ समय से ऐसे प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था की गई है। वह भी एकदम निशुल्क और उनके घरों तक संस्थानों के एकदम निकट। आजादी के पहले भी रात्रि पाठशाला के रूप में प्रौढ को शिक्षित करने की योजना शुरू हुई थी।
प्रौढ़ शिक्षा क्या है?
परिपक्व आयु वाले व्यक्ति को प्रौढ कहा जाता है। आजकल प्राया 40 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति को प्रौढ मान लिया जाता है। यद्यपि प्राचीन काल में जब मनुष्य की औसत आयु 100 वर्ष होती थी। तब प्रौढ़ावस्था का क्रम 50 वर्ष से अधिक माना जाता था। जहां आयु का प्रश्न है। शिक्षा ग्रहण करने के मार्ग में यह कदापि बाधक नहीं हुआ करती है। शिक्षा तो प्रत्येक आयु वर्ग व्यक्ति के लिए दीपक समान प्रकाश प्रदान करने वाली होती है दूसरे शब्दों में 30 वर्ष से 50 वर्ष की अवस्था वाले स्त्री-पुरुष पौढ कहे जाते हैं। ऐसे निरक्षर या अशिक्षित लोगों को शिक्षा देना उन्हें साक्षर प्रौढ़ शिक्षा है। निरक्षर साक्षर या विनम्रता चरणों को पुनः शिक्षक देना भी प्रौढ़ शिक्षा है। आज देश का लगभग 40% रोड वर्ग निरक्षर है इसलिए वह मानसिक दृष्टि से कमजोर है सामाजिक रूप से पिछड़ा है धार्मिक रूप से अंधविश्वासी है और राजनीतिक रूप से वोट के महत्व से अनभिज्ञ है। परिणामत: का उपहास और निरादर का पात्र और शोषण का शिकार है। अत्यंत भोला होने से वह धूततो के माया जाल में जल्दी फंस जाता है।
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प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत
आजादी के बाद जनता पार्टी के शासनकाल में 2 अक्टूबर 1978 से शिक्षा प्रौढ शुरू हुई है। इसमें शुरुआती दौर में 15 से 35 आयु वर्ग के लोगों को शिक्षा दी जाती थी। लेकिन जब ऊपरी आयु सीमा हटा दी गई है अशिक्षित जनता में भी अनपढ़ स्त्रियों को संख्या पुरुषों की अपेक्षा बहुत अधिक थी पता नहीं क्यों कन्याओं को पढ़ाना महत्वहीन माना जाता है। अपवाद स्वरूप कुछ स्त्रियां पर लिखकर विदुपी बन गई। महर्षि दयानंद राजा राममोहन राय पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी भारतेंदु हरिश्चंद्र पंडित मदन मोहन मालवीय आदि। समाज सुधार को ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया। आगे चलकर महात्मा गांधी ने स्त्री शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया। देश के स्वतंत्र होने के बाद सन 1951 में प्रथम जनगणना में भारत में शिक्षकों की संख्या 16.6% थी।
देश में जब प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों का जलसा बिछ गया तो राष्ट्रीय सरकार का ध्यान और अशिक्षित लोगों की ओर गया जिनकी आयु प्राथमिक स्कूलों में भर्ती होने के योग ना थी या वे दिन में कमाई करने के कारण उन विद्यालयों में जा नहीं सकते थे राष्ट्र की उन्नति और प्रगति में इस वर्ग का विशेष हाथ रहता है। अशिक्षित होने के कारण प्रौढ़ वर्ग का जीवन जीने के मूल्यों से अपरिचित सामाजिक गिरावट आर्थिक दुर्दशा तथा राजनीतिक जागरूकता के अभाव में राष्ट्र को उन्नति में बाधक था। सन 2 अक्टूबर 1978 को राष्ट्रपिता गांधी के जन्मदिन से प्रौढ़ शिक्षा का विधिवत श्रीगणेश हुआ। अर्थात शुरू कर दिया गया इसके लिए 600 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया था।
भारत में शिक्षा की कमी
भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से पूर्व भारत का प्राया प्रत्येक नागरिक शिक्षित होता था राष्ट्र में इसके लिए कुछ संस्थाएं प्रचलित थी गांव नगरों में मंदिरों में स्थापित पाठशालाए मदरसे आदि। बच्चों की उचित शिक्षा दीक्षा का प्रबंध करती थी। इनके अतिरिक्त उच्च शिक्षा के लिए गुरुकुल और विश्वविद्यालय भी थे। अंग्रेज विद्वान के अनुसार भारत में साक्षरता का प्रतिशत विश्व में सबसे अधिक था अंग्रेजी राज्य में पाठ शालाओं का प्रारंभिक स्वरूप हुआ। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति प्रारंभ हुई। भारत का निम्न मध्य वर्ग ग्रामीण जनता इससे वंचित रह गई या जानबूझकर वंचित कर दी गई। इस कारण निरक्षरता बड़ी। यह इस सीमा तक बढ़ी कि आज विश्व के निरक्षर वयस्कों की संपूर्ण संख्या का आधे से अधिक भाग भारत में है। भारत की जनता अशिक्षित रहे इससे अंग्रेजों का अपना हित था। कारण भारतवासी यदि शिक्षित हो जाएंगे तो कायदे कानूनों को समझने लगेंगे।
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
1-प्रौढ़ शिक्षा का क्या महत्व है?
उत्तर-प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य उन व्यक्तियों को सुरक्षित विकल्प देना है जिन्होंने यह अवसर गवां दिया है और औपचारिक शिक्षा आयोग को पार कर चुके हैं लेकिन अब वे साक्षरता आधारभूत शिक्षा कौशल विकास व्यवसायिक शिक्षा और इसी तरह की अन्य शिक्षा सहित किसी तरह की ज्ञान की आवश्यकता का अनुभव करते हैं।
2-शिक्षा निबंध का क्या महत्व है?
उत्तर-शिक्षा हम सभी के उज्जवल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है इन्हीं सब कारणों की वजह से शिक्षा हमारे जीवन में इतना महत्व रखती।
3-प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत कब हुई थी? उत्तर-1978 में शुरू किया गया राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम भारत सरकार का एक प्राथमिकता कार्यक्रम था इसका उद्देश्य 5 साल के अंत तक 35 मिलियन लोगों को साक्षर बनाना है।
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