कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध || Essay on Cottage and Small Scale Industries

Ticker

कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध || Essay on Cottage and Small Scale Industries

कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध || Essay on Cottage and Small Scale Industries

कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध,Essay on Cottage and Small Scale Industries,small scale industries,essay on,difference between the cottage and small scale industries,micro and small scale industries,cottage industries,small and cottage industry,cottage scale industries,cottage industries small business,short note on cottage industries,cottage and small scale industries economics topics,what is cottage industries?,essay on the indian cottage industries in english .,role of cottage industries in pak economy,लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योग,लघु एवं कुटीर उद्योग,कुटीर उद्योग या लघु उद्योग पर निबंध,लघु उद्योग और कुटीर उद्योग में अंतर,लघु उद्योग,कुटीर उद्योग,लघु और कुटीर उद्योग पर निबंध,कुटीर उद्योग या लघु उद्योग,कुटीर एवं लघु उद्योग,कुटीर उद्योग पर निबंध,लघु उद्योग पर निबंध,कुटीर उद्योग पर निबंध#,कुटीर उद्योग या लघु उद्योग निबंध,कुटीर उद्योग या लघु उद्योग का निबंध,कुटीर उद्योग एवं लघु उद्योग में अंतर,राजस्थान के लघु एवं कुटीर उद्योग
Essay on Cottage and Small Scale Industries

Table of Contents-

1. प्रस्तावना

2.कुटीर उद्योगों की स्वतन्त्रता से पहले की स्थिति

3.कुटीर उद्योगों के विकास में गाँधी जी का योगदान

4.कुटीर उद्योगों की जरूरत

5.कुटीर उद्योगों का आधुनिक रूप

6.उपसंहार


नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको 'कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध (Essay on Cottage and Small Scale Industries in hindi)' के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं।  तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।


1. प्रस्तावना-  आधुनिक समय को यदि मशीनों का युग कहा जाए तो इसमें कोई भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्तमान समय में सारे कार्य मशीनों के द्वारा होने लगे हैं। मशीनों के उपयोग से बहुत अधिक कार्य बहुत कम समय में हो जाता है एवं मानव श्रम भी बचता है। लेकिन इसके साथ ही मशीनों के अत्यधिक उपयोग से बेरोजगारी भी बढी है। उदाहरण स्वरूप एक कंप्यूटर कम से कम 10 व्यक्तियों का काम कर देता है। यही कारण है कि वर्तमान समय में शिक्षित लोग भी बेरोजगार हो गए हैं। हाथ से बनी वस्तु और यन्त्र से निर्मित वस्तु में किसी प्रकार की तुलना हो ही नहीं सकती, क्योंकि मशीनी-युग अपने साथ अपरिमित शक्ति एवं साधन लेकर आया है। परन्तु विज्ञान का यह वरदान मानव-शान्ति के लिए अभिशाप भी सिद्ध हो रहा है। यही कारण है कि युग पुरुष महात्मा गाँधी ने यान्त्रिक सभ्यता के विरुद्ध कुटीर एवं लघु उद्योगों को बढ़ावा देने की आवाज उठायी। वे कुटीर एवं लघु उद्योगों के माध्यम से ही गाँवों के देश भारत में आर्थिक समानता लाने के पक्ष में थे।


थोड़ी पूंजी द्वारा सीमित क्षेत्र में अपने हाथ से अपने घर में हो वस्तुओं का निर्माण करना कुटोर तथा लघु उद्योग के अन्तर्गत है। यह व्यवसाय प्रायः परम्परागत भी होता है। दरियाँ, गलौच, रस्सियाँ बनाना, खद्दर, मोजे, शाल बुनना, लकड़ी, सोने, चांदी, तांबे, पीतल की दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं का निर्माण करना आदि अनेक प्रकार की हस्तकला के कार्य इसके अन्तर्गत आते है।


2.कुटीर उद्योगों की स्वतन्त्रता से पहले की स्थिति — कुटीर उद्योगों की स्वतन्त्रता से पहले की स्थिति बहुत उन्नत एवं सुदृढ़ थी। कुटीर उद्योग स्वतंत्रता से पहले भारत देश के बहुत से गांव में संचालित होते थे जिनके माध्यम से मानव की रोजमर्रा की आवश्यकता की पूर्ति हेतु अनेक वस्तुओं का निर्माण किया जाता था। ऐसा होने से जहां एक और लोगों को अपनी आवश्यकता की अवस्था में मिल जाती थी वहीं दूसरी ओर कुटीर उद्योग में लगे लोगों को अपना भरण-पोषण करने में भी आसानी होती थी। लगभग सभी प्रकार के कुटीर एवं लघु उद्योग अपनी उन्नति की पराकाष्ठा पर थे। 'ढाके की मलमल' अपनी कलात्मकता में बहुत ऊँची उठ गयी थी। मुसलमानी बादशाहों और नवाबों के द्वारा भी इसे विशेष प्रोत्साहन मिला। देश को आर्थिक दृष्टि से कुछ इस प्रकार व्यवस्थित किया गया था कि प्रायः प्रत्येक गाँव स्वयं में अधिक-से-अधिक आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त कर सके। किन्तु अंग्रेजी शासन की विनाशकारी आर्थिक नीति तथा यान्त्रिक सभ्यता की दौड़ में न टिक सकने के कारण ग्रामीण जीवन को औद्योगिक स्वावलम्बता छिन्न-भिन्न हो गयी। देश की राजनीतिक पराधीनता इसके लिए पूर्ण उत्तरदायी थी। ग्रामीण उद्योगों के समाप्त होने से ग्राम्य जीवन का सारा सुख भी समाप्त हो गया। कुटीर उद्योगों के समाप्त होने से ग्रामीणों के समक्ष रोजी- रोटी का संकट होने लगा। और ग्रामीण भी अपनी आजीविका हेतु नगरों की ओर रुख करने लगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कुटीर एवं लघु उद्योगों की बर्बादी के पीछे अंग्रेजी शासन रहा।


3.कुटीर उद्योगों के विकास में गाँधी जी का योगदान- गांधी जी का विचार था कि बड़े पैमाने के उद्योगों को विशेष प्रोत्साहन न देकर विशालकाय मशीनों के उपयोग को रोका जाए तथा छोटे उद्योगों द्वारा पर्याप्त मात्रा में आवश्यक वस्तुएँ उत्पादित की जाएँ। महात्मा गांधी के अनुसार कुटीर उद्योगों के अत्यधिक उपयोग से मानव को जहां एक हो रोजगार मिलेगा वहीं दूसरी ओर उसे अपनी जीविका चलाने के लिए धन भी मिलेगा। इससे गांवों में खुशहाली आएगी और ग्रामीण लोग रोजी रोटी के लिए नगर और शहरों की ओर अपना रुख नहीं करेंगे। क्योंकि कुटीर उद्योग के स्थापना से उन्हें अपने गांव में ही रोजगार प्राप्त हो जाएगा। उद्योग मनुष्य की स्वाभाविक रुचियों और प्राकृतिक योग्यताओं के विकास के लिए पूर्ण सुविधा प्रदान करता है। मशीन के मुँह से निकलने वाले एक मोटर टुकड़े को भी कौन अपना कह सकता है, जबकि वह भी उसी मजदूर के खून-पसीने से तैयार हुआ है। हाथ से बनी हुई प्रत्येक वस्तु पर बनाने वाले के नैतिक, सांस्कृतिक तथा आत्मिक व्यक्तित्व की छाप अंकित होती है, जबकि मशीन की स्थिति में इनका लोप हो जाता है और व्यक्ति केवल उस मशीन का एक निर्जीव पुर्जा मात्र रह जाता है। कुटीर एवं लघु उद्योगों में आधुनिक औद्योगीकरण से उत्पन्न वे दोष नहीं पाये जाते, जो औद्योगिक नगरों की भीड़-भाड़, पूँजी तथा

उद्योगों के केन्द्रीकरण, लोक स्वास्थ्य की पेचीदा समस्याओं, आवास की कमी तथा नैतिक पतन के कारण उत्पन्न होते हैं। कुटीर, लघु उद्योग थोड़ी पूंजी के द्वारा जीविका निर्वाह के साधन प्रस्तुत करते हैं। पारस्परिक सहयोग से कुटीर उद्योग बड़े पैमाने में भी परिणत किया जा सकता है। कुटीर उद्योग में छोटे-छोटे बालकों एवं स्त्रियों के परिश्रम का भी सुन्दर उपयोग किया जा सकता है। 


4.कुटीर उद्योगों की जरूरत- वर्तमान समय में देश में जो बेरोजगारी एवं गरीबी के हालात बने हुए हैं उसके पीछे मुख्य कारण कहीं ना कहीं कुटीर एवं लघु उद्योग का बंद होना रहा है। यदि सरकार एवं बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने कुटीर एवं लघु उद्योगों की आवश्यकता को समझा होता तो आज भी देश का हर युवा एवं ग्रामीण वासी छोटे-छोटे उद्योगों में लगे होते और वर्तमान में जो बेरोजगारी जैसी बहुत बड़ी समस्या दिखाई दे रही है वही समस्या हल हो गई होती। कुटीर एवं लघु उद्योगों की जरूरत एवं आवश्यकता को हम आज भी नहीं निकाल सकते हैं। यदि भारत जैसे देश में बेरोजगारी एवं बेकारी की समस्या को दूर करना है तो सरकार एवं उद्योगपतियों को ग्रामीण इलाकों में कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित करने होंगे। वर्तमान समय में विश्व के बहुत से देशों ने बेरोजगारी एवं गरीबी की समस्या से निपटने के लिए कुटीर उद्योग की स्थापना पर विशेष बल दिया है। भारत की दरिद्रता का प्रधान कारण कुटीर एवं लघु उद्योगों का विनाश ही रहा है। भारत में उत्पादन का पैमाना अत्यन्त छोटा है। देश की अधिकांश जनता अब भी छोटे-छोटे व्यवसायों से अपनी जीविका चलाती है। भारत के किसानों को वर्ष में कई महीने बेकार बैठना पड़ता है। कृषि में रोजगार की प्रकृति मौसमी होती है। इस बेरोजगारी को दूर करने के लिए कुटीर उद्योग का सहायक साधनों के रूप में विकास होना आवश्यक है। जापान, फ्रांस, जर्मनी, इटली, रूस आदि सभी देशों में गौण उद्योग की प्रथा प्रचलित है।


भारत में कुटीर उद्योगों और छोटे पैमाने के कला कौशल के विकास के महत्व इस रूप में भी विशेष महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि हम अपने बड़े पैमाने के संगठित उद्योगों में चौगुनी पंचगुनी वृद्धि कर दे तो भी देश में वृत्तिहीनता की विशाल समस्या सुलझायी नहीं जा सकती। ऐसा करके हम केवल मुट्ठी भर व्यक्तियों की रोटी का ही प्रबन्ध कर सकते हैं। इस जटिल समस्या के सुलझाने का एकमात्र उपाय बड़े पैमाने के साथ-साथ कुटीर एवं लघु उद्योगों का समुचित विकास ही है, जिससे कि ग्रामीण क्षेत्रों को सहायक व्यवसाय और किसानों को अपनी आय में वृद्धि करने का अवसर मिल सके।


5.कुटीर उद्योगों का आधुनिक रूप- इस समय देश में छोटे कारखानों की संख्या मोटे तौर पर एक करोड़ से अधिक आँका गयी है, परन्तु तेल की घानियाँ, खाँडसारी और ऐसी वस्तुओं के छोटे कारखाने, जिन्हें केवल एक आदमी चलाता है आदि को मिलाकर इनकी संख्या बहुत कम है। पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य उद्योगों को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने का रहा है। अतः मुख्य रूप से ध्यान इस पर दिया जाएगा कि उद्योगों का विकास विकेन्द्रीकरण के आधार पर हो, शिल्पिक कुशलता में सुधार किया जाए और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सहायता देकर छोटे उद्योग वालों की आय बढ़ाने में सहायता की जाए तथा दस्तकारों को सहकारिता के आधार पर संगठित करने के प्रयास किये जाएं। इससे छोटे उद्योगों में उत्पादन का क्षेत्र बढ़ेगा। 


6.उपसंहार—छोटे उद्योगों को गाँवों में स्थापना से न केवल ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि गाँवों में रोजगार की सुविधा भी बढ़ी है। अतः ग्राम विकास कार्यक्रमों में कुटीर एवं लघु उद्योगों का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए हमारी सरकार इन्हें वैज्ञानिक पद्धति से सहकारिता के आधार पर संचालित करने की व्यवस्था कर रही है। इसकी सफलता पर ही हमारे जीवन में पूर्ण शान्ति, सुख और समृद्धि की कल्याणकारी गूंज ध्वनित हो सकेगी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यदि देश में बेरोजगारी जैसी समस्या से निजात पाना है तो सरकार को गांवों में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे गांव वासी अपने गांव में ही रोजगार पा सके।


Frequently Asked Questions (FAQ) 


1. कुटीर उद्योग किसे कहते हैं?

उत्तर-ऐसे उद्योग जोकि ग्रामीण इलाके में संचालित होते हैं उन्हें कुटीर उद्योग कहते हैं।


2. लघु उद्योग किसे कहते हैं?

उत्तर- ऐसे उद्योग जो ग्रामीण एवं शहरी दोनों इलाकों में संचालित होते हैं उन्हें लघु उद्योग कहते हैं।


3. कुटीर उद्योगों में अधिकांश कार्य किसके द्वारा किया जाता है?

उत्तर- कुटीर उद्योगों में अधिकांश मानव श्रम का ही उपयोग किया जाता है।


4.भारत देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों की प्रमुख समस्याएँ क्या है?

उत्तर- भारत देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित है-


i) धन की समस्या

ii) कच्चे माल का उपलब्ध ना होना।

iii) कुशल श्रमिक ना मिलना।

iv) मार्केटिंग की समस्या।

v) सही मैनेजमेंट ना होना।


5. कुटीर एवं लघु उद्योगों की समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है? उपाय बताइए।

उत्तर- i) धन की समुचित व्यवस्था की जाए।

ii) कच्चे माल की उपलब्धता को बढ़ाया जाए।

iii) कारीगरों को कुशल बनाया जाए।

iv) मार्केटिंग नेटवर्क को दुरुस्त किया जाए।

v) मैनेजमेंट में अनुभवी लोगों को शामिल किया जाए।

vi) सरकार द्वारा कर में छूट दी जाए।


6.लघु एवं कुटीर उद्योग का महत्त्व बताइए।

उत्तर- लघु तथा कुटीर उद्योग अपनी वस्तुओं का उत्पादन करके राष्ट्रीय उत्पादन में सहयोग प्रदान करते हैं। यदि कुटीर एवं लघु उद्योगों के तकनीकी स्तर पर सुधार किया जाए तथा बिजली से संचालित मशीनों के उपयोग की सुविधाएं इन्हे दी जाएं तो लघु उद्योगों की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।


7. लघु एवं कुटीर उद्योग में क्या अंतर है?

उत्तर- लघु एवं कुटीर उद्योग में प्रमुख अंतर यह है कि लघु उद्योग में बाहरी व्यक्तियों के श्रम (labour) का उपयोग किया जाता है जबकि कुटीर उद्योगों में पारिवारिक श्रम का उपयोग किया जाता है।


यह भी पढ़ें👇👇👇👇


मेरा विद्यालय पर निबंध


भ्रष्टाचार पर निबंध


लाकडाउन पर निबंध


हिंदी दिवस पर निबंध


गणतंत्र दिवस पर निबंध


स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध


आतंकवाद पर निबंध


कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध


इंटरनेट पर निबंध




Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2