भारतीय दंड संहिता आइपीसी की धारा 124 क्या है?

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भारतीय दंड संहिता आइपीसी की धारा 124 क्या है?

 भारतीय दंड संहिता आइपीसी की धारा 124 क्या है?

देश में इन दिनों भारतीय दंड संहिता क यानी आइपीसी की धारा 124 ए इ से जुड़े राजद्रोह कानून पर बहस ने जारी है। पिछले साल मई में उच्चतम स न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसरण में व यह कानून निलंबित है, लेकिन इसे निरस्त स करने की मांग जारी है। इस संदर्भ में विधि आयोग के अध्यक्ष ऋतुराज अवस्थी के ने हाल में कहा कि 'कश्मीर से केरल और पंजाब से पूर्वोत्तर तक की वर्तमान स्थिति के मद्देनजर राष्ट्रीय एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए इस कानून को बनाए रखना चाहिए।' उन्होंने कहा कि इसका दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त रक्षोपाय प्रस्तावित हैं। जैसे कि प्रारंभिक जांच इंस्पेक्टर या उससे ऊपर की रैंक के पुलिस अधिकारी द्वारा सात दिन में की जाएगी। सक्षम प्राधिकारी को ठोस प्रमाण के बाद प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति होगी। उन्होंने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों को राजद्रोह के अपराध के लिए अपर्याप्त बताया है । राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक कहे जाने के मुद्दे पर भी उन्होंने कहा कि, 'केवल औपनिवेशिक विरासत होना कानून निरस्त करने का वैध आधार नहीं है। अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, नीदरलैंड, नार्वे, स्पेन, आयरलैंड और मलेशिया सहित कई देशों में ऐसे कानून हैं।' कुल मिलाकर, विधि आयोग ने इस कानून को जारी रखने की सिफारिश की है। विपक्षी दल इसे आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़ रहे हैं कि इससे सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध असहमति और अभिव्यक्ति को दबाया जाएगा। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार राजद्रोह कानून सख्त बनाकर विपक्षी दलों को तंग ता करेगी। इस कानून का इतिहास पुराना है। ए इसका मसौदा वर्ष 1837 में थामस मैकाले न ने तैयार किया था। 1860 में भारतीय दंड न संहिता लागू हुई, लेकिन मैकाले के प्रारूप को शामिल नहीं किया गया। 1870 में एक न संशोधन द्वारा उसे जोड़ा गया।

केंद्र सरकार इस कानून की पुनः जांचके निर्णय से सर्वोच्च न्यायालय को सूचित कर चुकी है। इसे औपनिवेशिक होने या दुरुपयोग के आधार पर ही निरस्त करने का कोई औचित्य नहीं है। अनेक कानूनों के दुरुपयोग की शिकायतें मिलती हैं, लेकिन इस आधार पर कानून समाप्त नहीं किए जाते। कानून की उपयोगिता और आवश्यकता ही महत्वपूर्ण होती है। निःसंदेह, कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए आवश्यकतानुसार संशोधन करने चाहिए। इस दिशा में सम्यक विचार की आवश्यकता है। कानून में प्रयुक्त शब्दों एवं वाक्यांशों को और स्पष्ट करना चाहिए। 'देशद्रोह' को भी स्पष्ट किया जाए। इस कानून की अपनी उपयोगिता है। यह राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकी तत्वों से निपटने का उपकरण है। संप्रति कई राज्य सरकारें माओवादी विद्रोह से जूझ रही हैं। कहीं-कहीं विद्रोही तो सरकार का अस्तित्व भी नहीं मानते। पूर्वोत्तर अशांत है। पीएफआइ सक्रिय है। ऐसी ताकतें विधि द्वारा स्थापित सरकारों को हिंसा और अवैध तरीकों से कमजोर करने के प्रयास करती रहती हैं। राष्ट्र विरोधी ताकतें विधि निर्वाचित राजव्यवस्था पर हमले करती हैं। संविधान का अवमान होता है। उनके कृत्य राष्ट्र राज्य के विरुद्ध युद्ध है। देशद्रोह भी है । निःसंदेह, जनतंत्र में आलोचना का महत्व है। सरकारी नीतियों की आलोचना राजव्यवस्था को मजबूत करती है, लेकिन आरोप-प्रत्यारोप में वाक् संयम होना चाहिए। देशद्रोह कानून की समाप्ति से राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखंडता प्रभावित हो सकती है। अलगाववादी शक्तियां इस स्थिति का लाभ उठा सकती हैं।

लोकतंत्र भारत की जीवन श्रद्धा है। विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के मौलिक अधिकारों का मूल तत्व है।यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम श‍ नहीं है। इस स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त स निर्बंधन भी हैं। अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की कोई बात विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकती। अनुच्छेद 19 के उपखंड द्वारा प्राप्त अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय अवमान मानहानि या अपराध उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन हैं। इस संबंध में विधि बनाने से राज्य को रोका नहीं जा सकता। अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग करते समय लोकव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि बिंदुओं का संयम संविधान निर्माताओं ने ही निश्चित किया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सदुपयोग लोकतंत्र को मजबूत करता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(क) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो इसी अनुच्छेद के खंड-दो में संयम और मर्यादा के स्पष्ट निर्देश हैं। इस सीमा और संयम को तोड़ने से अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है।

संविधान सभा में विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस हो रही थी। तब मसौदा संविधान (अनुच्छेद 13) में राजद्रोह शब्द पर भी विचार हुआ। केएम मुंशी ने नए संशोधन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि 'इसमें दो परिवर्तनों का प्रस्ताव है। मूल खंड में राजद्रोह शब्द आया है। हमारे संशोधन में राजद्रोह शब्द को निकालने का प्रयास है। उसके स्थान पर उससे अच्छी शब्दावली रखी गई है। उद्देश्य है कि देशद्रोह शब्द निकाल दिया जाए। इसका आशय संदेहात्मक है। इसका प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता है। राजद्रोह शब्द संसार के सभी न्यायालयों के लिए संदेह का कारण रहा है। इसकी परिभाषा बहुत साधारण है। यह परिभाषा 1868 में दी गई थी। इसके अनुसार- राजद्रोह में ऐसा सब व्यवहार सम्मिलित है, उसका शाब्दिक रूप, कार्य रूप, लिखित रूप जिसका उद्देश्य राज्य की शांति को भंग करना हो अथवा इसके लिए लोगों को प्रेरित करना हो। तब दंड संहिता की धारा 124 ए की व्यापक आलोचना प्रचलित थी। इसलिए संविधान के मसौदे से यह शब्द निकाल दिया गया।'

लोकतंत्र में आलोचना स्वागतयोग्य है। राजद्रोह पर पुनः बहस चली है। इसका भी स्वागत होना चाहिए। जैसे प्रत्येक मनुष्य को आत्मरक्षा का अधिकार होता है, उसी तरह राष्ट्र राज्य को भी आत्मरक्षा का अधिकार है। कानून की आवश्यकता एवं उपयोगिता का विवेचन जरूरी है। इसी आधार पर दंड विधान से संबंधित राजद्रोह की धारा पर निर्णय लिया जाना चाहिए।

FAQ'S -

Q. धारा 124 कब लगती है?

आईपीसी की धारा 124 (Indian Penal Code Section 124)

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124 (Section 124) में किसी विधिपूर्ण शक्ति (Lawful power) का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित (Blocked) करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल (President and Governor) आदि पर हमला करने के संबंध में बताया गया है।

Q. धारा 124a संवैधानिक रूप से वैध है?

सुप्रीम कोर्ट के पास 1962 में एस. 124ए की वैधता निर्धारित करने का अवसर था। केदार नाथ मामले में, सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने उपरोक्त सभी उच्च न्यायालय के उदाहरणों को खारिज कर दिया। यह माना गया कि राजद्रोह मुक्त भाषण के लिए एक वैध अपवाद है जब तक कि इसका उद्देश्य हिंसा भड़काना हो।

Q. धारा 124 ए क्या है Wikipedia?

क्या है धारा 124ए? आईपीसी की धारा 124ए कहती है कि अगर कोई भी व्यक्ति भारत की सरकार के विरोध में सार्वजनिक रूप से ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम देता है जिससे देश के सामने सुरक्षा का संकट पैदा हो सकता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है

Q. देशद्रोह की सजा क्या है?

राजद्रोह में आईपीसी की धारा 124 ए लगती है और देशद्रोह में आईपीसी की धारा 121 लगाई जाती है. राजद्रोह में सजा का प्रावधान मामूली है जबकि देशद्रोह में आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक हो सकती है. राजद्रोह एवं देशद्रोह में शामिल व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता, उसे पासपोर्ट नहीं मिल सकता

Q. अनुच्छेद 124 क्या है?

भारत के संविधान का अनुच्छेद 124 सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और गठन का प्रावधान करता है । अनुच्छेद 124(1) में कहा गया है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे और जब तक संसद कानून द्वारा बड़ी संख्या निर्धारित नहीं करती है, तब तक [तैंतीस] से अधिक अन्य न्यायाधीश नहीं होंगे।

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