मेंढक के ऊपर रहते हैं भगवान शिव || Mendhak ke upar rahte Hain Bhagwan Shiv

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मेंढक के ऊपर रहते हैं भगवान शिव || Mendhak ke upar rahte Hain Bhagwan Shiv

मेंढक के ऊपर रहते हैं भगवान शिव || Mendhak ke upar rahte Hain Bhagwan Shiv

मेंढक के ऊपर रहते हैं भगवान शिव,Mendhak ke upar rahte Hain Bhagwan Shiv


भगवान शिव का माह है सावन और इस बार तो यह आठ सप्ताह तक रहेगा। ऐसे में शिवभक्तों के पास भोले बाबा को प्रसन्न करने का अधिक समय है । कल सावन के प्रथम सोमवार से पूर्व अंबिका बाजपेयी ले जा रहे हैं एक ऐसे देवस्थान की ओर, जहां रंग बदलता है शिवलिंग, खड़ी मुद्रा में हैं नंदी और मेढक की पीठ पर विराजे हैं नर्मदेश्वर..

देश में तमाम तीर्थस्थान और देवस्थान करोड़ों सनातनधर्मियों की आस्था का केंद्र होने के साथ ही अपनी भव्यता के कारण प्रख्यात हैं। रामलला की जन्मभूमि पर बन रहा मंदिर अपनी भव्यता लेकर पूर्ण होने की है तो काशी विश्वनाथ धाम ने विश्व की पुरातन नगरी को एक नूतन स्वरूप दे दिया है। इन सबके बीच कुछ ऐसे भी देवस्थान हैं जो सदियों से भक्तों को आकर्षणपाश में

बांधे हुए हैं। इन्हीं में से एक है लखीमपुर, उत्तर प्रदेश का मेढक मंदिर। मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा ओयल में बना मेंढक मंदिर ऐसा अनूठा मंदिर है, जहां नंदीजी की मूर्ति खड़ी मुद्रा में है, जबकि बाकी शिवमंदिरों में नंदी बैठे रहते हैं। इस मंदिर की पूरे देश में अलग पहचान इसलिए भी है क्योंकि यह पूरा मंदिर मेढक की पीठ पर बना है। जिसके मुख के पास मगरमच्छ की आकृति बनी है। मंदिर के चारों ओर बने गुंबदों में भूलभुलैया की तरह सीढ़ियां बनी हैं, जो अब बंद हैं। मंदिर में स्थापित नर्मदेश्वर का प्रतिदिन श्रृंगार होता है। एक खास बात और है कि यह पूरा मंदिर हवन कुंड परिधि के ऊपर बना हुआ है, जिसके ऊपर नर्मदेश्वर महाराज की स्थापना की गई।

अद्भुत है रंग परिवर्तन

इस मंदिर का निर्माण 250 वर्ष से भी पहले तत्कालीन ओयल स्टेट के राजा बख्श सिंह ने करवाया था। जानकार बताते हैं कि उस वक्त राजा ने युद्ध में जीते हुए धन के सदुपयोग और राज्य में सुख, शांति व समृद्धि के लिए इसका निर्माण करवाया था। जनश्रुति यह भी है कि उस वक्त अकाल से बचने के लिए किसी तांत्रिक की सलाह पर इसका निर्माण करवाया गया था। यह प्राचीन शिवमंदिर विशाल मेढक की मूर्ति की पीठ पर बना है। इस मेढक का मुंह उत्तर दिशा में, धड़ दक्षिण में, पूरब और पश्चिम में इसके पैर दिखाई देते हैं। मंदिर में शिवलिंग पर अर्पित जल नलिकाओं के माध्यम से मेढक के मुंह से निकलता है। वाराणसी के विद्वानों और कपिला के तांत्रिकों की देखरेख में इस

मंदिर का निर्माण कराया गया था। मेढक की आकृति के ऊपर 15 फीट ऊंचे चबूतरे पर बने मुख्य मंदिर के चबूतरे का निर्माण श्रीयंत्र के अनुसार है। मंदिर के गर्भगृह में सहस्त्र कमल की पंखुड़ियों से युक्त अरघे पर नर्मदा से लाया गया दिव्य शिवलिंग स्थापित है। यहां प्रतिदिन कस्बे के साथ आसपास के गांवों से लेकर शहरों तक के लोग पूजन- अर्चन को आते हैं व महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर सुबह सर्वप्रथम यहां के राजा विष्णु नारायण दत्त सिंह का परिवार पूजन 

अर्चन कर नर्मदेश्वर का आशीर्वाद लेता है, जिसके बाद शिव भक्तों के लिए कपाट खोल दिए जाते हैं। सावन माह में यहां पर कांवड़ियों का तांता लगा रहता है। मंदिर के पुजारी शांति तिवारी ने बताया, 'मैं करीब 16 वर्ष से मंदिर में पूजन-अर्चन कर रहा हूं। इसकी कई विशेषताएं हैं, इसमें स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है, उक्त स्थापित शिवलिंग नर्मदा नदी से आया था, इसलिए शिवलिंग को नर्मदेश्वर महाराज का नाम दिया गया।'

मनमोहक है स्थापत्य कला

पूरे मंदिर पर राजस्थानी स्थापत्य कला प्रदर्शित की गई है, जो कि अपने में विशेष है। पूरा मंदिर मंडूक यंत्र पर आधारित है। मंदिर के सबसे ऊपर लगा छत्र पूर्व में सूर्य की किरणों की दिशा में घूमता रहता था, वह अब क्षतिग्रस्त हो गया है। इतिहासकारों के मुताबिक, मंदिर के बाहरी दीवारों पर उत्कीर्ण शव साधना करती मूर्तियां इसके तांत्रिक मंदिर होने का प्रमाण हैं। ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था, यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। यह क्षेत्र 11वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा। चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। तंत्रवाद पर आधारित इस मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण मन मोह लेती है। मेढक मंदिर में सावन, महाशिवरात्रि के अलावा दीपावली पर भी भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं।

Q. मेंढक कौन से भगवान की सवारी है?

मेंढक, मंगल एवं कुबेर का वाहन है।

Q. भगवान शिव अब कहाँ रहते हैं?

कैलाश पर्वत को शिव का निवास स्थान माना जाता है।

Q. मेंढक कौन सा देवता है?

गोयल में बना ये मंदिर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर देवी-देवता के मेंढ़क का पूजन किया जाता है। दरअसल, माना गया है कि ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्रऔर यहां के शासक शिव के उपासक थे। जिन्होंने यहां पर राज किया था वे भगवान शिव को अपना परम गुरु और देव मानते थे। जो भगवान शंकर की पूजा-अर्चना और आराधना किया करते थे।

Q. भगवान शिव के प्रिय कौन है?

रावण को शिव का सबसे सम्मानित भक्त माना जाता है और आज भी और आज भी कुछ मंदिरों में रावण के चित्र शिव से जुड़े हुए देखे जाते हैं.

Q. मेंढक किसका प्रतीक है?

कुछ संस्कृतियों में, मेंढक प्रजनन क्षमता और पुनर्जन्म के प्रतीक हैं। दूसरों में, उन्हें बारिश या सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। और फिर भी, दूसरों में, उन्हें कीट या आपदा का शगुन माना जाता है।


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