शूकर से नवयुग की शुरुआत || sukar se navyug ki shuruaat

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शूकर से नवयुग की शुरुआत || sukar se navyug ki shuruaat

शूकर से नवयुग की शुरुआत || sukar se navyug ki shuruaat

शूकर से नवयुग की शुरुआत,sukar se navyug ki shuruaat

शूकर से नवयुग की शुरुआत

समस्त देववृंद भय में देखते रह जाते हैं- समूचा समुद्र हिलने लगता है, उसमें से एक भव्य दांत वाला थूथन बाहर निकलता है और शूकर के सिर एवं मनुष्य के शरीर वाले देवता प्रकट होते हैं। उनके एक हाथ में पृथ्वी विनम्रता से झूल रही है, उसे वह आकाश की ओर ले जा रहे हैं, उनके कंधों पर एक भारी, खुशबूदार माला डोल रही है और उनके पैर एक कराहते हुए नाग को कुचल रहे हैं। वराह, विष्णु का शूकर- मानव अवतार इस प्रकार दैत्य को हराकर एक नया कालचक्र उद्घाटित करते हैं। सन् 500 से 1,100 ईस्वी तक फैले दक्षिण एशिया के प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में इस दृश्य को दर्शाती प्रतिमाएं उपमहाद्वीप में हर जगह बनाई जा रही थीं। इसके सबसे पहले और उत्तेजक उदाहरणों में से एक मध्य प्रदेश में उदयगिरि की गुफाओं में पाया जाता है। यह गुप्त सम्राट द्वारा निर्मित कराई गई एक विशाल प्रतिमा है जिसमें वराह को एक नाग को कुचलते हुए देखा जा सकता है। पास के एक उत्कीर्णन से पता चलता है कि यह दृश्य सम्राट की मध्य भारत के नाग सरदारों के ऊपर विजय का स्मारक है। संभावित तौर पर वराह चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रतिनिधित्व कर रहा है इस दृश्य में यह अर्थ निहित है कि देवता की तरह सम्राट ने भी अपने कौशल से नए कालचक्र की शुरुआत की।


धरती का स्वामी


वराह का मिथक तेजी से नए संदर्भों में फैल गया। उसे नए युग की शुरुआत, धरती को दुष्टता से बचाने और जमीन का बंटवारा करने के अधिकार के साथ जोड़ा जाने लगा। दक्षिण के राजवंश इसके सबसे उल्लेखनीय उदाहरण प्रदान करते हैं। प्रारंभिक पश्चिमी चालुक्य राजवंश ने न केवल शूकर को राजवंश का चिह्न बनाया, बल्कि उन्होंने ऐसी शाही उपाधि भी अपनाई जिससे उनकी पहचान वराह से की जा सके। श्री पृथ्वी वल्लभ की उपाधि का मोटे तौर पर अनुवाद है 'धरती का भाग्यशाली स्वामी' या फिर 'भाग्य का चहेता और धरती का 'प्रिय' । विष्णु अवतार के रूप में वराह भाग्य की देवी श्री और धरती की देवी पृथ्वी दोनों से विवाहित है। समकालीन उत्तर कर्नाटक में चालुक्य राजवंश ने पहला साम्राज्य बनाया था, इसलिए उनका यह दावा उनकी वैधता सिद्ध करने और उन्हें उनके प्रतिस्पर्धियों से अलग करने में मददगार था, जिसका जुड़ाव शाही देवताओं से था। अगली कई सदियों तक पृथ्वी को बचाते वराह का दृश्य चलन में रहा। मध्य काल में सभी प्रमुख शाही राजवंशों ने इसका इस्तेमाल किया। 


इनमें नौवीं सदी में मान्यखेत का राष्ट्रकूट राजवंश (समकालीन. मालखेड़, कर्नाटक), बारहवीं सदी में अनाहिलवाड़ा का सोलंकी राजवंश (समकालीन पाटन, गुजरात) और तेरहवीं सदी में द्वारसमुद्र का होयसल राजवंश (समकालीन हलेबीडु, कर्नाटक) शामिल हैं।


अंत से ही होता आरंभ - 


प्रारंभिक आधुनिक काल में दिव्य शूकर ने राजवंशों के साथ अपना प्रमुख जुड़ाव गंवा दिया, फिर भी वह दृश्य चित्रों में वर्णित होता रहा । उत्तर भारत के दरबारों में कई तरह के वराह चित्र बनाए गए। अक्सर यह भागवत पुराण पांडुलिपियों के भाग होते थे। इनमें अधिकतर समय धरती को समतल सतह के रूप में दिखाया जाता था और उस पर कुछ इमारतें बनी होती थीं। जिन दैत्यों से वराह लड़ाई करता है और जिन देवों का वह नेतृत्व करता है, उनमें फारसी प्रभाव देखे जा सकते हैं। वर्ष 1930 में रवि वर्मा प्रेस द्वारा प्रकाशित किए गए ओलिग्राफ जैसे वराह के आधुनिक चित्रों में धरती को अक्सर वृत्त रूप दिया जाता था, जिसमें भारत बीच में होता था।


मध्य काल के राजवंशों के लिए नए युग की शुरुआत के संकेत के रूप में कार्य करने के बाद धीरे-धीरे प्रारंभिक आधुनिक काल में अपने राजनीतिक अर्थ को खोने से लेकर आखिर में उठते राष्ट्रवाद और पूरे दक्षिण एशिया के देश प्रेम के प्रतीक के रूप में वापसी करने तक, समय के साथ दिव्य शूकर की छवि चक्कर काटकर वहीं आ जाती है, जहां से वह शुरू हुई थी।


Q. नव युग से आप क्या समझते हैं?


नवयुग नाम का अर्थ "नया युग या नया समय " होता है। जैसा कि हमनें बताया कि नवयुग नाम का मतलब "नया युग या नया समय " होता है, ऐसे में अगर आप अपने बच्चे का नाम नवयुग रखते हैं तो आपके बच्चे का व्यक्तित्व भी नवयुग नाम के मतलब की तरह यानि "नया युग या नया समय " जैसा हो सकता है!


Q. नवयुग क्या है नवयुग के कारणों की चर्चा करें


युग-परिवर्तन का विषय बड़ा महत्वपूर्ण और साथ ही विवादग्रस्त भी है। हमारे ज्यादातर प्राचीन विचार के भाई तो इसको सुनकर ही चौंक पड़ते हैं। उनके मस्तिष्क में लाखों वर्ष के सतयुग और कलियुग के सिद्धान्त ने ऐसी जड़ जमा रखी है कि इस बात पर विश्वास ही नहीं होता कि, युग इतना शीघ्र बदल सकता है।


Q. कलयुग के अंत में क्या होगा?


कलियुग का अंत वर्ष 428,899 ईस्वी में होगा। कलियुग के अंत के करीब, जब सद्गुण अपने सबसे बुरे स्तर पर होते हैं, तो अगले चक्र के कृत (सत्य) युग की शुरुआत के लिए एक प्रलय और धर्म की पुनः स्थापना होती है, जिसकी भविष्यवाणी कल्कि ने की थी.


Q. घोर कलयुग कब से शुरू होगा?


कलियुग की शुरुवात 3102 ई सा पूर्व से ही हुआ था अभी 2022 चल रहा है इसका अर्थ यह हुआ 3103+2022=5124 वर्ष कलियुग का बीत चूका है कलियुग की कुल आयु है 4 लाख 32 हजार वर्ष अब इसमें 5124 को घटा देते है तो इतना 426878 वर्ष अभी कलियुग का बाकी है.


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