Thorndike ke niyam//थार्नडाइक के नियम

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Thorndike ke niyam//थार्नडाइक के नियम

Thorndike ke niyam//थार्नडाइक के नियम


1-तत्परता का नियम-

यह नियम कार्य करने से पूर्व तत्पर्य या तैयार किए जाने पर बल देता है यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर या तैयार होता है तो उसे शीघ्र ही सीख लेता है। तत्परता में कार्य करने की इच्छा नहीं होती है। ध्यान केंद्रित में भी तत्परता सहायता करती है।



2-अभ्यास का नियम-

यह नियम किसी कार्य से की गई वह वस्तु के बार-बार अभ्यास करने पर बल देता है। यदि हम किसी कार्य का अभ्यास करते रहते हैं तो उसे सरलता पूर्वक करना सीख जाते हैं। यदि हम सीखे हुए कार्य का अभ्यास नहीं करते हैं तो उसको भूल जाते हैं।


3-प्रभाव (परिणाम) का नियम-

इस नियम को संतोष तथा असंतोष का नियम भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार जिस कार्य को करने से प्राणी को सुख व संतोष मिलता है उस कार्य को वह बार-बार करना चाहता है और इसके विपरीत जिस कार्य को करने से दुख या असंतोष मिलता है उस कार को वह दोबारा नहीं करना चाहता है।


गौण नियम:- 

1-बहू प्रतिक्रिया का नियम

इस नियम के अनुसार जब प्राणी के सामने कोई परिस्थिति या समस्या उत्पन्न हो जाती है तो उसका समाधान करने के लिए वह अनेक प्रकार की प्रतिक्रिया ही करता है और इन प्रक्रियाओं को करने का क्रम तब तक जारी रहता है जब तक कि सही प्रक्रिया द्वारा समस्या का समाधान या हल प्राप्त नहीं हो जाता है। प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत इसी नियम पर आधारित है।


2-मनोवृति का नियम-

इस नियम को मानसिक विन्यास का नियम भी करते हैं। इस नियम के अनुसार जिस कार्य के प्रति हमारी जैसे अभिवृत्ति मनोवृति होती है। उसी अनुपात में हम सबको सीखते हैं। यदि हम मानसिक रूप से किसी कार्य को करने के लिए तैयार नहीं है तो या तो हम उससे करने में असफल होते हैं या अनेक हैं त्रुटियां कहते हैं या बहुत विलंब से करते हैं।


Thorndike ke niyam//थार्नडाइक के नियम
Thorndike ke niyam//थार्नडाइक के नियम

3-आंशिक क्रिया का नियम-

इस नियम के अनुसार किसी कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करने से कार्य सरल और सुविधाजनक बन जाता है। इन भागों को शीघ्रता और सुगमता से करके संपूर्ण कार्य को पूरा किया जाता है। इस नियम पर अंश से पूर्व की ओर का शिक्षण का सिद्धांत आधारित किया जाता है।


4-सदृश्यता अनुक्रिया का नियम-

इस नियम को आत्मीकरण का नियम भी कहते हैं। यह नियम पूर्व अनुभव पर आधारित है। जब प्राणी के सामने कोई नवीन परिस्थितियां समस्या उत्पन्न होती है तो वह उससे मिलती-जुलती परिस्थिति या समस्या का स्मरण करता है जिसका वह पूर्व में अनुभव कर चुका है। वह नवीन ज्ञान को अपने पर्व ज्ञान का स्थाई अंग बना लेता है।


5-साहचर्य परिवर्तन का नियम-

इस नियम के अनुसार एक उद्दीपक के प्रति होने वाले अनुक्रिया बाद में किसी दूसरे उद्दीपक से भी होने लगती है। दूसरे शब्दों में पहले कभी की गई क्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में उसी प्रकार से करना। इसमें क्रिया का स्वरूप तो वही रहता है परंतु परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है थार्नडाइक पावलव के शास्त्रीय अनुबंधन को ही साहचर्य परिवर्तन के नियम के रूप में व्यक्त किया।



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