वंशानुक्रम तथा वातावरण में संबंध // Heredity and environment

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वंशानुक्रम तथा वातावरण में संबंध // Heredity and environment

वंशानुक्रम तथा वातावरण में संबंध // Heredity and environment

वंशानुक्रम तथा वातावरण /(Heredity and environment)

वंशानुक्रम तथा वातावरण में संबंध (Heredity and environment)

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वंशानुक्रम से तात्पर्य उन सभी गुणों से होता है जो किसी सन्तान को उसके माता-पिता या पूर्वजों से प्राप्त होता है।


वंशानुक्रम एक स्थिर प्रक्रिया है अर्थात वंशानुक्रम से प्राप्त गुणों में परिवर्तन करना संभव नहीं होता है।

वंशानुक्रम से प्रत्येक बालक को आगे बढ़ने के लिए गुण या योग्यताएं प्राप्त होती हैं और वातावरण उन्हीं जन्मजात गुणों को विकसित करने का कार्य करता है वंशानुक्रम एक सीमा रेखा को निर्धारित करता है। जिसके आगे किसी भी बालक का विकास कर पाना संभव नहीं होता है और वातावरण उसी सीमा रेखा के बीच विकास केसरी अवसरों को प्रदर्शित करता है।


प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वुडवर्थ ने वंशानुक्रम तथा वातावरण की तुलना धरती व बीज से की है।


अर्थात एक अच्छी फसल के लिए धरती व बीज दोनों का बेहतर होना आवश्यक है उसी प्रकार प्रत्येक बालक का वृद्धि व विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों की समान अंतः क्रिया पर निर्भर करता है। केवल अच्छे वंशानुक्रम से या केवल अच्छे वातावरण से बालक का विकास संभव नहीं होता है।


वंशानुक्रम की परिभाषाएं (definitions of heredity)-


वुडवर्थ के अनुसार- "वंशानुक्रम उन समस्त तत्वों का समावेश है जो प्राणी में गर्भाधान के समय जीवन प्रारंभ करते समय विद्यमान होते हैं।"


जेम्स ड्रेवर के अनुसार- "माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का संतानों में अवतरण वंशानुक्रम है।"


बी .एन. झा के अनुसार- "प्राणी की जन्मजात विशेषताओं का योग वंशानुक्रम है।"


रुथ बेनेडिक्ट के अनुसार- "गुणों का माता-पिता से संतानों में स्थानांतरण वंशानुक्रम है।"


रास के अनुसार- "एक संतति से भावी सन्ततियो में परंपरागत विशेषताओं का हस्तांतरण वंशानुक्रम है।"


बिल्स तथा होजरी के अनुसार-  "अपनी संतति के समान है वस्तु की पुनः सृजनात्मक प्रवृत्ति का अर्थ ही वंशानुक्रम है।" इस प्रकार वंशानुक्रम माता-पिता तथा पूर्वजों की शारीरिक ,मानसिक तथा व्यवहारिक विशेषताओं का वर्तमान सन्ततियो में हस्तानांतरण है।


वंशानुक्रम के नियम व सिद्धांत (Rules and principles of heredity)-


1- समानता का नियम (principal of equality)-


इस नियम के अनुसार प्रत्येक संतान में अपने माता पिता के समान होने की प्रवृत्ति पाई जाती है। अर्थात जैसे माता-पिता होते हैं उनकी संतान भी उसी प्रकार की होती है।


जैसे- गोरे माता-पिता की संतान का गोरा होना तथा मंद बुद्धि माता-पिता की संतान का मंदबुद्धि होना।


2- भिन्नता का नियम (principal of difference)-


इस नियम के अनुसार जब किसी संतान में अपने माता पिता से विपरीत या भिन्न गुण पाए जाते हैं तो वहां पर भिन्नता का नियम लागू होता है।


जैसे - काले माता-पिता की संतान का गोरा होना बुद्धिमान माता-पिता की संतान का मंदबुद्धि होना।


3- प्रत्यागमन का नियम (principal of regression)- 


इसे औसत के नियम के नाम से भी जाना जाता है इस नियम के अनुसार प्रत्येक गुण या योग्यता में सदैव अपने औसत की ओर बढ़ने व घटने की प्रवृत्ति पाई जाती है।



130+

प्रतिभाशाली

120 से 130

प्रखर बुद्धि

110 से 120

बुद्धिमान

90 से 110

सामान्य / औसत बुद्धि

70 से 90

मंदबुद्धि

50 से 70

अल्प बुद्धि

50 से कम या 40

जड़ बुद्धि (शिक्षण, प्रशिक्षण योग्य बालक)


जैसे- प्रतिभाशाली माता-पिता की संतान का अपेक्षाकृत कम प्रतिभाशाली या बुद्धिमान होना ,मंदबुद्धि माता-पिता की संतान का औसत बुद्धि होना। गोरे माता-पिता की संतान का कम गोरा या सांवला होना।


4- मातृ- पितृ पक्षों का नियम (मेंडल का नियम)-

Principle of maternal and fraternal aspects)-


ग्रेगर जॉन मेंडल के आनुवंशिकता का जनक माना जाता है। इन्होंने अपना प्रयोग मटर के पौधे पर किया था।


इस नियम के अनुसार प्रत्येक संतान को गुण अवगुण लक्षण या योग्यताएं अपने माता के पूर्वज तथा पिता के पूर्वज दोनों से प्राप्त होते हैं।


जैसे- आंखों का रंग, बालों का रंग, वर्णांधता तथा हीमोफीलिया जैसे लक्षण वंशानुक्रम पर आधारित होते हैं।


5- चयनित गुणों का सिद्धांत- 


इस सिद्धांत के अनुसार सामान्य मनुष्य में 23 जोड़ें या 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। किसी भी बालक का विकास इन्हीं गुणसूत्रों के चयन पर निर्भर करता है। कभी-कभी किसी बालक में गुणसूत्रों के 23 जोड़े के गुणसूत्रों को छोड़कर निम्न स्तर के गुणसूत्र भी एक समान नहीं होते हैं ऐसे बालक में डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी पाई जाती।


कभी-कभी किसी बालक में 46 के स्थान पर 47 गुणसूत्र भी पाए जाते हैं ऐसे बालक में मैंगोलिक आइडकी नामक बीमारी पाई जाती है। ऐसे बालकों का मानसिक विकास बिल्कुल न के बराबर होता है। ऐसे बालकों का सिर आकार में बड़ा माथा चपटा तथा आंखें अंदर की ओर धसी होती हैं।


6- संयोग का नियम- 


इस नियम के अनुसार वंशानुक्रम के बारे में हमेशा कोई सार्थक प्रतिक्रिया कर पाना संभव नहीं होता है। वंशानुक्रम बहुत कुछ सहयोग पर भी निर्भर करता है।


वंशानुक्रम की शाखाएं- 


वंशानुक्रम की दो प्रमुख शाखाएं हैं-


1- सुजनन विज्ञान( eugenics)-


2- सौपरिवेशिकी (euthenics)-


सुजनन विज्ञान- 


वंशानुक्रम की इस शाखा के जनक फ्रांसिस गाल्टन थे।


इन की पुस्तक का नाम heredity genius था ‌


इन्होंने सुजन विज्ञान में यह माना कि हमें जन्म से ही अच्छे वंशानुक्रम लक्ष्मण वाले बालकों को प्राप्त करना चाहिए तथा घटिया वंशानुक्रम लक्षणों को समाज से पृथक कर देना चाहिए ताकि देश का उच्चतम विकास हो सके इसके लिए फ्रांसिस गाल्टन ने कुछ सकारात्मक व नकारात्मक गतिविधियों का सुझाव दिया।


1- मंदबुद्धि, जड़ बुद्धि तथा वंशानुक्रम जनित बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों पर वैवाहिक तथा संतान उत्पत्ति पर प्रतिबंध लगाना।


2- जड़ बुद्धि व्यक्तियों के देशांतर पर रोक लगाना।


3- प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अधिक से अधिक वैवाहिक तथा संतान उत्पत्ति के अवसर देना।


4- विज्ञान की यूटेलीजेनीसिस शाखा का प्रयोग करना। सामान्य मनुष्य जर्मन प्याज को एक तापमान पर रखकर भविष्य में उसका प्रयोग करना यूटैलीजेनिसिस कहलाता है।


सौपरिवेशकी- 


सौपरिवेशिकी का संबंध एक ऐसे परिवेश से होता है जिसमें जन्म से प्राप्त सभी गुणों को विकसित होने का अवसर दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में नवोदय विद्यालय की स्थापना वंशानुक्रम की शाखा के अंतर्गत की गई थी नवोदय विद्यालय ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली बालकों का चयन करके उन्हें उनके विकास के सभी अवसर प्रदान किए जाते हैं।


वातावरण के नियम-


1- लैमार्कवाद

2- डार्विनवाद


1- लैमार्कवाद (उपार्जित लक्षणों की वंशागति)-


फ्रांसीसी वैज्ञानिक जिन्होंने जैव विकास का सबसे प्राचीन सिद्धांत दिया 1809 में इनकी पुस्तक "फिलोसफिक जूलोजिक" में मुख्यता चार बातें प्रतिपादित की गई- 


1- उपार्जित लक्षणों की वंशागति

2- अंगों का उपयोग या अनुपयोगी

3- जीवो के आकार में वृद्धि होने की प्रवृत्ति

4- वातावरण का सीधा प्रभाव


इन्होंने अपने सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए बताया कि आरंभ में सिर्फ छोटी गर्दन वाले जिराफ थे वातावरण के सीधे प्रभाव से अंगों के उपयोग व अनुप्रयोग के अंतर्गत उनकी गर्दन धीरे-धीरे लंबी होती गई वर्तमान में जिराफ की लंबी गर्दन उपार्जित लक्षणों की वंशागति है।


उदाहरण- 

1- सर्प के पैरों का गायब होना

2- मानव में निवेशक पटेल का व कृमिरूप पर 3- परिशोषिका का गायब होना।


डार्विनवाद (योग्यतम की उत्तरजीविता)-

अंग्रेजी वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों का उद्भव सिद्धांत (origin of species by natural selection) दिया इस सिद्धांत को योग्यतम की उत्तरजीविता भी कहते हैं।

इनके सिद्धांत की तीन प्रमुख बातें-


1- जीवो में संतान उत्पन्न करने की प्रचुर क्षमता होती है।

2- अनुकूलन

3- संघर्ष- (i) अंतः जातीय संघर्ष

               (ii) अंतर जातीय संघर्ष

               (iii) वातावरणीय संघर्ष


अपने सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए इन्होंने मत दिया कि आरंभ से ही छोटी व लंबी गर्दन के जिराफ मौजूद थे संघर्ष के कारण छोटी गर्दन के चिराग नहीं रहे फिर लंबी गर्दन के हिजरा योग्यतम की उत्तरजीविता को दिखाते हैं।


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