सदाचार पर संस्कृत में निबंध // sadachar essay in Sanskrit

Ticker

सदाचार पर संस्कृत में निबंध // sadachar essay in Sanskrit

सदाचार पर संस्कृत में निबंध // sadachar essay in Sanskrit


सदाचार पर संस्कृत में निबंध // sadachar essay in Sanskrit


आचार: परमो धर्म: / आचारस्य महत्त्वम् निबंध संस्कृत में


sadachar par nibandh,सदाचार पर निबंध, sadachar par nibandh sanskrit mein, sadachar par nibandh in sanskrit, sadachar par nibandh in hindi,sadachar par nibandh likhiye,sadachar par essay in english,सदाचार पर निबंध इन हिंदी,सदाचार पर निबंध संस्कृत में,सदाचार पर निबंध संस्कृत,सदाचार पर संस्कृत में निबंध,सदाचार पर संस्कृत में श्लोक,


सदाचारः


( आचार: परमो धर्म: / आचारस्य महत्त्वम्)


अस्माकं भारतीया संस्कृति : आचार-प्रधाना अस्ति । आचार: द्विविधः भवति-दुराचारः सदाचारः च । सताम् आचारः सदाचारः इत्युच्यते। सज्जनाः विद्वांसो च यथा आचरन्ति तथैव आचरणं सदाचारो भवति । सज्जनाः स्वकीयानि इन्द्रियाणि वशे कृत्वा सर्वैः सह शिष्टतापूर्वकं व्यवहारं कुर्वन्ति । ते सत्यं वदन्ति, मातुः पितुः गुरुजनानां वृद्धानां ज्येष्ठानां च आदरं कुर्वन्ति तेषाम् आज्ञां पालयन्ति, सत्कर्मणि प्रवृत्ता भवन्ति ।


जनस्य समाजस्य राष्ट्रस्य च उन्नत्यै सदाचारस्य महती आवश्यकता वर्तते। सदाचारस्याभ्यासो बाल्यकालादेव भवति । सदाचारेण नरः धार्मिकः, शिष्टो, विनीतो, बुद्धिमान् च भवति । संसारे सदाचारस्यैव महत्त्वं दृश्यते। ये सदाचारिणः भवन्ति, ते एव सर्वत्र आदरं लभन्ते यस्मिन् देशे जनाः सदाचारिणो भवन्ति तस्यैव सर्वतः उन्नतिर्भवति । अतएव महर्षिभिः " आचार: परमो धर्मः" इत्युच्यते। सदाचारी जनः परदारेषु मातृवत् परधनेषु लोष्ठवत्, सर्वभूतेषु च आत्मवत् पश्यति। सदाचारीजनस्य शीलम् एव परमं भूषणम् अस्ति ।



हिंदी अनुवाद


हमारी भारतीय संस्कृति मुख्यतः नैतिक है।  आचरण दो प्रकार का होता है: बुरा आचरण और अच्छा आचरण।  सदाचारी के आचरण को सदाचारी आचरण कहते हैं।  सदाचारी और विद्वान का आचरण सद्गुण है।  अच्छे लोग अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हैं और सभी के साथ शिष्टाचार से पेश आते हैं।  वे सच बोलते हैं, अपने माता, पिता, शिक्षकों, बड़ों और बड़ों का सम्मान करते हैं, उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं और अच्छे कार्यों में संलग्न होते हैं।


 सद्गुण लोगों, समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए आवश्यक है।  अच्छे आचरण का अभ्यास बचपन से ही शुरू हो जाता है।  गुण से मनुष्य धर्मी, विनम्र, विनम्र और बुद्धिमान बनता है।  दुनिया पुण्य के महत्व को देखती है।  जो सदाचारी होते हैं वे ही सर्वत्र सम्मानित होते हैं, जिस देश में सदाचारी होते हैं, वह सर्वत्र समृद्ध होता है।  इसलिए महर्षि कहते हैं, "आचरण ही सर्वोच्च धर्म है।  सदाचारी मनुष्य अन्य पुरुषों की पत्नियों को अपनी माता के रूप में देखता है, अन्य पुरुषों के धन को अपनी छड़ी के रूप में और सभी प्राणियों को अपने रूप में देखता है।  सदाचारी व्यक्ति का चरित्र सर्वोच्च आभूषण होता है।


इसे भी पढ़ें👇👇👇














Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2