"फ्लाइंग सिख" मिल्खा सिंह का जीवन परिचय || Biography of Milkha Singh

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"फ्लाइंग सिख" मिल्खा सिंह का जीवन परिचय || Biography of Milkha Singh

"फ्लाइंग सिख" मिल्खा सिंह का जीवन परिचय || Biography of Milkha Singh

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पूरा नाम

मिल्खा सिंह

अन्य नाम

'उड़ता सिख'

जन्म

8 अक्टूबर, 1935/ 20 नवंबर, 1929

जन्मभूमि

गोविंदपुरा (वर्तमान में पाकिस्तान)

कर्मभूमि

भारत

पत्नी 

निमृत कौर

बच्चे

एक बेटा, तीन बेटियां

सेना में भर्ती

1951

पुरस्कार

पद्म श्री


जीवन परिचय


मिल्खा सिंह का जन्म गोविंदपुरा (पाकिस्तान) 20 नवंबर 1932 को एक राठौड़ राजपूत सिख परिवार में हुआ था। वे एक सिख धावक हैं, जिन्होंने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 के ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उनको 'उड़ता सिख' का उपनाम दिया गया है। वे भारत के बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक हैं।


मिल्खा सिंह का वैवाहिक एवं निजी जीवन


चंडीगढ़ में मिल्खा सिंह की मुलाकात निर्मल कौर से हुई, जो कि साल 1955 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान थीं। साल 1962 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद 4 बच्चे हुए, जिनमें तीन बेटियां और एक बेटा है ‌ बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है।


साल 1999 में उन्होंने 7 साल के एक बेटे को गोद ले लिया। जिसका नाम हविलदार विक्रम सिंह था जोकि टाइगर हिल के युद्ध में शहीद हो गया था।


भारत के विभाजन के बाद की अफरा तफरी में मिल्खा सिंह ने अपने मां-बाप को खो दिया। अंततः में शरणार्थी बनकर ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से भारत आए।


ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुजरने की ठानी। एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ सफलतापूर्वक की और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे 400 मीटर के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे।


कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा।


व्यक्तिगत जीवन


मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर से हुआ है। वह भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान थीं। जीव मिल्खा सिंह उनके इकलौते पुत्र हैं जो शीर्ष रैंकिंग के अंतरराष्ट्रीय पेशेवर गोल्फर हैं।


करियर


तीन बार नापास कर दिए जाने के बाद भी मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गए। एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हविलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ (रेस) के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे। वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आए। वर्ष 1958 में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर के रिकॉर्ड तोड़ दिए।


उनका सबसे बड़ा और शायद सबसे सुखद क्षण तब साबित हुआ जब उन्होंने रोम में हुए वर्ष 1960 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में चौथा स्थान प्राप्त किया। वर्ष 1964 में, उन्होंने टोक्यो में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में भी देश का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1958 में रोम में आयोजित हुई ओलंपिक रेस में उन्होंने 400 मीटर वाली दौड़ की जीत के साथ-साथ वर्ष 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक भी जीते। इसके अतिरिक्त वह वर्ष 1958 के एशियाई खेलों और वर्ष 1962 के एशियाई खेलों में भी कुछ रिकॉर्ड अपने नाम किए थे।


यह वर्ष 1962 में पाकिस्तान में हुई वह रेस थी जिसमें मिल्खा सिंह ने टोक्यो एशियाई खेलों की 100 मीटर रेस में स्वर्ण पदक विजेता अब्दुल खलीक को हरा दिया था और उनको पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने 'द फ्लाइंग सिख' नाम दिया।


धावक के तौर पर मिल्खा सिंह का करियर


सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मीटर और 400 मीटर में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिता में सफलता हांसिल की। उन्होंने सन 1956 के मेलबन्न ओलंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए। लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें ना सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया।


मिल्खा सिंह ने साल 1957 में 400 मीटर की दौड़ को पूरा करके नया राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाया था।


साल 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 और 400 मीटर प्रतियोगिता में राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी। इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। सारा 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी बन गए।


साल 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद सेना ने मिल्खा सिंह को जूनियर कमीशंड ऑफिसर्स के तौर पर प्रमोशन कर सम्मानित किया। बाद में उन्हें पंजाब के शिक्षा विभाग में खेल निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया और इसी पद पर मिल्खा सिंह साल 1998 में रिटायर्ड हुए।


मिल्खा सिंह ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें "उड़न सिख" कहकर पुकारा। उनको उड़न सिख का उपनाम दिया गया था।


आधुनिक मीडिया में


मिल्खा सिंह की जीवन कथा को बायोग्राफिकल फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' में प्रदर्शित किया गया था। जिसे राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित की गई थी। जिसमें फरहान अख्तर तथा सोनम कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। जब मिल्खा सिंह से पूछा गया कि उन्होंने अपने जीवन पर फिल्म बनाने की इजाजत क्यों दी, तो उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्में युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत होती हैं और वह खुद फिल्म देखेंगे कि उनके जीवन की घटनाओं को सही तरीके से प्रदर्शित किया गया है या नहीं। वह युवाओं को यह फिल्म दिखा कर उन्हें एथलेटिक्स में शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहते थे, जिससे भारत को विश्व स्तर पर पदक जीतकर एक गर्व महसूस हो सके।


मिल्खा सिंह के शानदार रिकॉर्ड्स और उपलब्धियां


साल 1957 में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में 47.5 सेकंड का एक नया रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया।


साल 1958 में मिल्खा सिंह ने टोक्यो जापान में आयोजित तीसरे एशियाई खेलों में 400 और 200 मीटर की दौड़ में दो नए रिकॉर्ड स्थापित किए और गोल्ड मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया। इसके साथ ही साल 1958 में ही ब्रिटेन के कार्डिफ़ में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीता।


साल 1959 में भारत सरकार ने मिल्खा सिंह की अद्वितीय खेल प्रतिभा और उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया।


साल 1959 में इंडोनेशिया में हुए चौथे एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया।


साल 1960 में रोम ओलंपिक खेलों में मिल्खा सिंह 400 मीटर की दौड़ का रिकॉर्ड तोड़कर एक राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया। आपको बता दें कि उन्होंने रिकॉर्ड 40 साल बाद तोड़ा था।


साल 1962 में मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर एक बार फिर से देश का सिर फक्र से ऊंचा किया।


साल 2012 में रोम ओलंपिक के 400 मीटर की दौड़ में पहने जूते मिल्खा सिंह ने एक चैरिटी संस्था को नीलामी में दे दिया था।


1 जुलाई 2012 को उन्हें भारत का सबसे सफल धावक माना गया जिन्होंने ओलंपिक खेलों में लगभग 20 पदक अपने नाम किए हैं। यह अपने आप में ही एक रिकॉर्ड है।


मिल्खा सिंह ने अपने जीते गए सभी पदकों को देश के नाम समर्पित कर दिया था, पहले उनके मेडल्स को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रखा गया था, लेकिन फिर बाद में पटियाला के एक गेम्स म्यूजियम में मिल्खा सिंह को मिले मेडल्स को ट्रांसफर कर दिया गया।


प्रसिद्धि और लोकप्रियता के कारण


मिल्खा रोमा ओलंपिक खेलों के बाद काफी प्रसिद्ध हो गए इसके बाद वे जब भी मैदान में जाते दर्शक उनका बड़े हर्ष के साथ स्वागत करते। उनके बड़े बाल और दाढ़ी देखकर लोग समझते कि यह कोई साधु है जो इतना तेज दौड़ रहा है क्योंकि उस वक्त लोग सिख धर्म के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे।


उनकी प्रसिद्धि की एक वजह यह भी थी कि रोम खेल में जाने से पहले यूरोप में कई प्रतिभागी को पछाड़कर वे आगे निकल गए जिससे रोम खेलों में उनकी एक अलग छवि शुरू से ही बन गई।


खेलों से सन्यास


टोक्यो एशियाई खेलों में पूर्ण आशा के साथ 200 और 400 मीटर की दौड़ में भाग लेकर जीत हासिल कर भारतीय एथलेटिक्स के लिए नया इतिहास रचा। 400 मीटर की दौड़ के वक्त वे थोड़े तनाव में थे जो पिस्तौल की आवाज के साथ खत्म हुआ और पूरे जोश से दौड़कर उन्होंने नया रिकॉर्ड बना दिया।


200 मीटर की दौड़ शुरू हुई उनका मुकाबला पाकिस्तान के अब्दुल खालिक के साथ था जो कि 100 मीटर के विजेता थे। उन दोनों के कदम बराबर चल रहे थे और मुकाबला टक्कर का हो गया, फिनिशिंग लाइन के 3 मीटर पहले ही मिल्खा के टांग की मांसपेशियां खिंची और वे गिर पड़े बाद में फोटो फिनिश से विजय घोषित हुए।


इस जीत के साथ एशिया के सबसे श्रेष्ठ एथलीट भी बन गए, जापान के सम्राट ने उन्हें स्वर्ण पदक पहनाया और कहा कि 'दौड़ना जारी रखो दौड़ते रहोगे तो विश्व में सबसे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सकते हो'। कुछ वक्त बाद उन्होंने खेल से संन्यास लेकर भारत सरकार के साथ खेल में प्रोत्साहन के लिए सहयोग करना शुरू कर दिया, इस पद से वे 1998 में सेवानिवृत्त हुए।


मिल्खा सिंह के बारे में अनसुनी बातें


भारत पाक विभाजन के समय मिल्खा ने अपने माता-पिता को खो दिया था। उस समय उनकी आयु केवल 12 साल थी। तभी से वे अपनी जिंदगी बचाने के लिए भागे और भारत वापस आए।


हर रोज मिल्खा पैदल 10 किलोमीटर अपने गांव से स्कूल का सफर तय करते थे। वे इंडियन आर्मी में जाना चाहते थे, लेकिन उसमें वे तीन बार असफल हुए लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और चौथी बार वे सफल हुए।


1951, में जब सिकंदराबाद के EMC सेंटर में शामिल हुए। उस दौरान ही उन्हें अपने टैलेंट के बारे में पता चला। और वहीं से धावक के रूप में उनके करियर की शुरुआत हुई।


जब सैनिक अपने दूसरे कामों में व्यस्त होते थे, तब मिल्खा ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे। अभ्यास करते समय कई बार उनका खून तक बह जाता था, बल्कि कई बार तो उनसे सांसे भी नहीं ली जाती थीं। लेकिन फिर भी वे अपने अभ्यास को कभी नहीं छोड़ते थे। उनका ऐसा मानना था कि अभ्यास करते रहने से ही इंसान परफेक्ट बनता है। 

उनकी सबसे प्रतिस्पर्धी रेस क्रॉस कंट्री रेस रही। जहां 500 धावकों में से 6वें नंबर पर रहे थे।


1958 के एशियाई खेलों में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर दोनों में ही क्रमशः 6 सेकंड और 47 सेकंड का समय लेते हुए स्वर्ण पदक जीता। उस समय आजाद भारत में कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।


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1958 के एशियाई खेलों में भारी सफलता हासिल करने के बाद उन्हें आर्मी में जूनियर कमीशन का पद मिला।


1960 के रोम ओलंपिक के दौरान वे काफी प्रसिद्ध थे। उनकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण उनकी टोपी थी। इससे पहले रोम में कभी किसी एथलीट (Athlet) को इस तरह की टोपी में नहीं देखा गया था। लोग अचंभित थे कि मिल्खा टोपी पहनकर इतनी जी से कैसे भाग सकते हैं।


1962 में, मिल्खा सिंह ने अब्दुल खालिक को पराजित किया। जो पाकिस्तान का सबसे तेज धावक था उसी समय पाकिस्तानी जनरल अयूब खान ने उन्हें (Flying Sikh Milkha Singh) "उड़न सिख" का शीर्षक दिया।


1999 में, मिल्खा ने 7 साल के बहादुर लड़के हविलदार सिंह को गोद लिया था। जो कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल में मारा गया था।


उन्होंने अपनी जीवनी मेहरा को बेंची, जो (Milkha Singh movie) भाग मिल्खा भाग के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर हैं। अपनी जीवनी उन्होंने केवल एक रुपए में ही बेचीं। मिल्खा ने यह दावा किया है कि उन्होंने 1968 से कोई फिल्म नहीं देखी है। लेकिन भाग मिल्खा भाग देखने के बाद उनकी आंखों में आंसू आ गए थे और वे फरहान अख्तर के अभिनय से काफी खुश हुए थे।


2001 में, मिल्खा सिंह ने यह कहते हुए "अर्जुन पुरस्कार" को लेने से इंकार कर दिया की वह उन्हें 40 साल देरी से दिया गया।


एक बार बिना टिकट ट्रेन में यात्रा करते समय उन्हें पकड़ लिया गया था और जेल में डाला गया था। उन्हें तब ही जमानत मिली थी जब उनकी बहन ने उनके बेल के लिए अपने गहने तक बेच दिए थे।


मिल्खा सिंह पर बनी फिल्म


भारत के महान एथलीट मिल्खा सिंह ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी बायोग्राफी "The race of my Life" लिखी थी। मिल्खा सिंह के इस किताब से प्रभावित होकर बॉलीवुड के प्रसिद्ध निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने उनके प्रेरणादाई जीवन पर एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम 'भाग मिल्खा भाग' था। यह फिल्म 12 जुलाई, 2013 को रिलीज हुई थी।


फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया था। यह फिल्में दर्शकों द्वारा काफी पसंद की गई थी, इस फिल्म को 2014 में बेस्ट एंटरटेनमेंट फिल्म का पुरस्कार मिला था।


फ्लाइंग व उड़न सिख की मृत्यु


भारत के मशहूर, सुप्रसिद्ध एथलीट ,खिलाड़ी और युवाओं की जान मिल्खा सिंह कई महीने में कोरोना (कोविड-19) से संक्रमित हुए जिससे थोड़े समय में उनकी सेहत में सुधार देखने को मिला।


कोरोना नामक रोग से संक्रमण होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया और तबीयत में सुधार भी हुआ परंतु जून महीने में अचानक उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई है और 18 जून 2021 को रात्रि 11:30 पर महान एथलीट ने अपनी सांसे रोक ली और इस दुनिया से विदा ले ली।


People also ask


प्रश्न - मिल्खा सिंह का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- मिल्खा सिंह का जन्म गोविंदपुरा (पाकिस्तान) 20 नवंबर 1932 को एक राठौड़ राजपूत सिख परिवार में हुआ था।


प्रश्न- मिल्खा सिंह का विवाह किसके साथ हुआ था?

उत्तर- मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर से हुआ है।


प्रश्न- मिल्खा सिंह के कितने बच्चे थे?

उत्तर- मिल्खा सिंह के चार बच्चे थे।


प्रश्न- मिल्खा सिंह ने भारत सरकार द्वारा कौन से पुरस्कार को ठुकरा दिया और क्यों?

उत्तर- अर्जुन पुरस्कार को उन्होंने ठुकराया क्योंकि वह मानते थे कि वह पुरस्कार उन्हें 40 साल देरी से मिला है।


प्रश्न- मिल्खा सिंह की मृत्यु कब हुई?

उत्तर- मिल्खा सिंह की मृत्यु 18 जून 2021 को कोरोना नामक बीमारी से हुई।


प्रश्न- मिल्खा सिंह को भारत सरकार द्वारा कौन सा पुरस्कार दिया गया?

उत्तर- मिल्खा सिंह को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार दिया गया है।


प्रश्न- मिल्खा सिंह ने पहला स्वर्ण पदक कब व कहां प्राप्त किया?

उत्तर- इंग्लैंड के कार्डिक शहर में सन् 1958 को 440 मीटर की दौड़ प्रतियोगिता में सबसे पहले स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।


प्रश्न- मिल्खा सिंह की जीवनी का नाम क्या है?

मिल्खा सिंह तथा उनकी बेटी ने मिलकर 2013 में उत्तर- 'The race of my Life' नामक जीवनी लिखी।


प्रश्न- मिल्खा सिंह की बायोपिक फिल्म कौन सी है?

उत्तर- भाग मिल्खा भाग जो कि 12 जुलाई 2013 को रिलीज हुई इसमें फिल्मी दुनिया के मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह का किरदार निभाया।


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