जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत / (cognitive development theory of Jean Piaget in Hindi)
जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत / (cognitive development theory of Jean Piaget in Hindi)
"शिशु एक नन्ना वैज्ञानिक होता है।" जीन पियाजे
•जीन पियाजे स्वीटजरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे इन्होंने 1922 -23 के समय बिने की प्रयोगशाला में बुद्धि परीक्षणों में सहायता प्रदान की उसी समय से इन्होंने संज्ञानात्मक विकास पर कार्य प्रारंभ किया।
•1923 से 32 के मध्य इन्होंने 5 पुस्तकें प्रकाशित कराई जिसमें संज्ञानात्मक विकास का प्रतिपादन किया।
•1929 में जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का प्रतिपादन किया यह एक अंतः क्रियावादी विचारधारा वाला सिद्धांत है।
•बालक का संज्ञानात्मक विकास उसके परिपक्वता स्तर और उसके पूर्व अनुभवो के अंतः क्रिया द्वारा होता है।
संज्ञान शब्द का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है इसीलिए संज्ञानात्मक विकास को मानसिक व बौद्धिक विकास के नाम से भी जाना जाता है।
संज्ञानात्मक विकास के प्रवर्तक जीन पियाजे थे।
जीन पियाजे एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक मनोचिकित्सक थे। इन्होंने लगा था कई वर्षों तक एक ही आयु वर्ग के बालकों का अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य जन्म से ही सकरी व क्रियाशील प्राणी है जो लगातार अपने वातावरण से क्रिया करके कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है।
जीन पियाजे के अनुसार सीखने की प्रक्रिया में दो मानसिक क्रियाएं कार्य करती हैं-
1- संगठन (organisation)
2- अनुकूलन (adaptation)
संगठन (organisation)-
संगठन से तात्पर्य वातावरण से प्राप्त ज्ञान व सूचनाओं को अपने मस्तिष्क में एकत्रित करने से है।
अनुकूलन (adaptation)-
अनुकूलन एक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति मस्तिष्क में एकत्रित ज्ञान व सूचनाओं का प्रयोग करके अपने वातावरण या नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करता है।
स्कीमा (schema)-
जीन पियाजे ने मानसिक विकास के संबंध में स्कीमा शब्द का प्रयोग भी किया है स्कीमा से तात्पर्य हमारे मस्तिष्क में एकत्रित ज्ञान व सूचनाओं के सार्थक पैटर्न से है।
अर्थात जब भी हम अपने वातावरण से कुछ भी सीखते हैं तो उसे हम अपने मस्तिष्क में सार्थक व्यवस्थित क्रम में रख लेते हैं।
इसके अलावा जीन पियाजे में यह माना कि जब व्यक्ति अनुकूलन करता है तो इसके अंतर्गत भी दो मानसिक क्रियाएं कार्य करते हैं-
1- आत्मसातीकरण Assimilation
2- समंजन /समाविष्टीकरण/ समावेशन (accommodation)
आत्मसातीकरण Assimilation-
आत्मसातीकरण से तात्पर्य किसी भी वाह्य ज्ञान या सूचना को बिना किसी तर्क व परिवर्तन के स्वीकार करने से है। (दो चीजों में अंतर ना कर पाना)
समंजन/ समष्टीकरण /समावेशन (accommodation)-
समंजन या समावेशन एक उच्च स्तर की मानसिक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान व अनुभवों में नवीन विचारों को जोड़ता है जिससे उसका पूर्व ज्ञान और भी अधिक व्यवस्थित व तार्किक हो जाता है अर्थात पूर्व ज्ञान में संशोधन की प्रक्रिया समावेशन कहलाती है इसी प्रक्रिया के द्वारा बालक दो कार्यों या परिस्थितियों में भेद कर पाता है। (चीजों में अंतर करना सीख जाता है)
जीन पियाजे ने बौद्धिक विकास को आयु वर्ग के आधार पर चार चरणों में विभाजित किया है-
1- संवेदी गामक/ इंद्रिय गामक अवस्था (sensory motor stage)- ० से 2 वर्ष
2- पूर्व संक्रियात्मक अवस्था( pre operational stage)- 2 से 7 वर्ष
3- मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (concrete operational stage)- 7 से 11 वर्ष
4- अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था /औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (abstract operational /formal operational stage)- 11 से 15 वर्ष
संवेदी गामक या इंद्रीय गामक अवस्था (sensory motor stage)- (0- 2 वर्ष)
•जीन पियाजे के अनुसार यह मानसिक विकास की पहली अवस्था है इस अवस्था में बालक सर्वाधिक रूप से अपने इंद्रियों के प्रयोग द्वारा अधिगम करता है।
•भाषा का विकास ना होने के कारण बालक का व्यवहार मूल प्रवृत्त्यात्मक /संवेगात्मक होता है।
अर्थात बालक संवेगो के माध्यम से अपने भावों तथा विचारों की अभिव्यक्ति करता है बालक जब भी किसी नई वस्तु को देखता है तो उसे छूकर ,तोड़कर ,पटककर उसके संबंध में जानकारी प्राप्त करता है।
बालक का अधिगम प्रयास हुआ त्रुटि के सिद्धांत पर आधारित होता है संवेदी गामक अवस्था के अंतिम चरण में बालक में वस्तु स्थायित्व ( object stability) की भावना का विकास हो जाता है।
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (pre operation stage) -2 से 7 वर्ष
•जीन पियाजे के अनुसार यह मानसिक विकास की दूसरी अवस्था है इस अवस्था में बालक मूर्त या प्रत्यक्ष वस्तुओं के बारे में चिंतन करने लगता है किंतु यह चिंतन अतार्किक होता है।
•इस अवस्था में बालक में सर्वाधिक रूप में भाषा का विकास होता है।
•बालक अपने वातावरण को जानने व समझने के लिए क्यों तथा कैसे इत्यादि प्रश्नों को करना प्रारंभ कर देता है।
•इस अवस्था में बालक छोटे-छोटे समूहों का निर्माण करता है तथा उसी समूह में रहना वा खेलना पसंद करता है।
•इस अवस्था में बालक में गणितीय इकाइयों का बोध ना होने के कारण बालक में मुद्रा के संप्रत्यय का विकास नहीं होता।
•इस अवस्था में बालक में विचारों की विलोमीयता (पलटावी) reversibility of thoughts नहीं पाई जाती है।
अर्थात बालक प्रत्यक्ष वस्तुओं पर तो विचार करता है किंतु उस घटना वस्तु को उसके प्रारंभिक केंद्र बिंदु से जोड़ने में समर्थ नहीं होता है।
•इह अवस्था में बालक वस्तु स्थायित्व का पूरी तरह से प्रदर्शन करने लगता है।
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था( concrete operational stage )-7 से 11 वर्ष
जीन पियाजे के अनुसार यह मानसिक विकास की तीसरी अवस्था है इस अवस्था में बालक प्रत्यक्ष वस्तुओं तथा घटनाओं के प्रति तार्किक चिंतन करता है। साथ ही साथ अमूर्त वस्तुएं के प्रति भी विचार करने लगता है इस अवस्था में बालक अपनी अभिव्यक्ति के लिए तार्किक, क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित भाषा का प्रयोग करने लगता है।
•इस अवस्था में बालक छोटे-छोटे पदों की श्रंखला बनाने लगता है तथा बालकों में गणितीय इकाइयों का बोध हो जाने के कारण मुद्रा के संप्रत्यय का विकास हो जाता है।
•बालकों में विचारों की विलोमियता विकसित हो जाती है। अर्थात अब वे प्रत्यक्ष वस्तुओं तथा घटनाओं को उसके प्रारंभिक केंद्र बिंदु से जोड़ने में समर्थ होते हैं।
अवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएं हैं-
1-विचारों में तार्किकता तथा अंश पूर्ण प्रत्यक्षो का प्रयोग।
2-विचारों की विलोमियता का विकसित होना।
3-आयतन मात्रा भारत का आकार संबंधि गणितीय इकाइयों का बोध होना।
औपचारिक या मूर्त संक्रियात्मक अवस्था( formal operational stage /abstract operational stage)- 11 से 15 वर्ष
जीन पियाजे के अनुसार यह मानसिक विकास का सबसे उच्चतम स्तर है इस स्तर पर बालक अमूर्त वचनों के प्रति तार्किक, संक्रियात्मक, कल्पनात्मक तथा प्रत्यात्मक चिंतन करने लगता है।
•इस अवस्था में बालक को तर्क, चिंतन तथा कल्पना जैसी मानसिक शक्तियों का विकास हो जाता है। हां बालक इन्हीं मानसिक शक्तियों का प्रयोग करके स्वयं अपनी सभी समस्याओं का समाधान करने लगता है।
•इसीलिए इसे समस्या समाधान की अवस्था भी कहा जाता है।
•इस अवस्था में बालक अभिव्यक्ति के तीनों माध्यमों का प्रयोग (मौखिक, लिखित ,संकेतात्मक) करने लगता है।
•मौखिक अभिव्यक्ति को अभिव्यक्ति का सबसे निम्नतम स्तर तथा संकेतात्मक अभिव्यक्ति को अभिव्यक्ति का सबसे उच्चतम स्तर माना जाता है।
जीन पियाजे के सिद्धांत का आलोचनात्मक अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि प्रत्येक बालक एक क्रम से मानसिक विकास के इन चारों चरणों को पार करता हुआ आगे बढ़ता है। आयु वर्ग के आधार पर इनमें व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है। कभी-कभी कोई बालक इतना प्रतिभाशाली होता है की आयु के आधार पर पूर्व संक्रियात्मक स्तर पर होता है। किंतु मानसिक विकास के आधार पर वह मूर्त संक्रियात्मक स्तर पर होता है।
जीन पियाजे के मानसिक विकास के सिद्धांत से प्रभावित होकर प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ब्रूनर ने अपने संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रयोग किया।
इन्होंने आयु वर्ग के आधार पर मानसिक विकास को तीन चरणों में विभाजित किया है-
1-क्रियात्मक अवस्था (enactive stage)- 0 से 2 वर्ष
2-प्रतिबिंबात्मक अवस्था (reflective stage)- 2 से 7 वर्ष
3-संकेतात्मक अवस्था (indicative stage)- 7 से 15 वर्ष
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