'प्रायश्चित' कहानी का सारांश || Prayshit kahani ka Saransh
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'प्रायश्चित' कहानी का सारांश || Prayshit kahani ka Saransh |
प्रश्न- 'प्रायश्चित' कहानी का सारांश या कथानक अपनी भाषा में लिखिए।
उत्तर - 'प्रायश्चित' कहानी के लेखक भगवती चरण वर्मा प्रगतिशील कहानीकार हैं। वर्मा जी की कहानियां हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट, कलात्मक और प्रभावशाली मानी जाती हैं। 'प्रायश्चित' इनकी अद्वितीय, यथार्थवादी, व्यंग्यात्मक एवं सामाजिक कहानी है। वर्मा जी ने इस कहानी की कथावस्तु में व्यक्ति की धर्मभीरूता, रूढ़िवादिता एवं पाखंडवाद को प्रस्तुत कर यह स्पष्ट किया है कि इनके पीछे मूल कारण बुद्धवादियों की धन प्राप्ति की लालसा है। कथावस्तु के चयन में कहानीकार का उद्देश्य रूढ़िगत अंधविश्वासी स्त्री समाज की धर्मभीरूता और धर्मवादियों की उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करने की चातुरी की पोल खोलना रहा है। कहानी की कथावस्तु सिर्फ इतनी है कि रामू की बहू के हाथों बिल्ली मर जाती है, जिसके पाप के प्रायश्चित में पंडित परमसुख बिल्ली के वजन के बराबर सोने की बिल्लीसहित मोटी दान-दक्षिणा और ब्राह्मण-भोज का तुरंत प्रबंध करने को कहते हैं, जिससे उनके घर का दारिद्रय दूर हो सके।
प्रायश्चित कहानी का सारांश (कथानक)
14 वर्षीय बालिका वधू रामू की बहू के घर में आते ही सास ने घर की चाबियां उसे सौंपकर अपना मन पूजा-पाठ में लगाया। बेचारी बालिका बहू घरभर की जिम्मेदारियां उठाए तो कैसे? कभी भंडारघर खुला रह जाता है तो कभी वह उसमें बैठे बैठे उसमें सो जाती है। कबरी बिल्ली इसका पूरा लाभ उठाती है। वह मौका पाते ही घी-दूध-दही को चट कर जाती है। आशय यही है कि बिल्ली ने रामू की बहू का जीना दुश्वार कर रखा है। हारकर रामू की बहू ने मन में यह निश्चय कर लिया कि या तो घर में वही रहेगी या कबरी बिल्ली ही। मोर्चाबंदी हो गई और दोनों सतर्क। एक दिन रामू की बहू ने पिस्ता, बादाम, मखाने आदि मेवों की दूध में औटाकर खीर बनाई, उस पर सोने के वर्क चिपकाए। उसने कटोरा भर कर ऐसी ऊंची ताक पर रखा, जहां बिल्ली ना पहुंच सके। रामू की बहू पान लगाने में लग गई और कबरी बिल्ली ने कटोरे पर छलांग लगाई। कटोरा झनझनाहट की आवाज के साथ फर्श पर। रामू की बहू दौड़ी आई तो देखा कि फूल का कटोरा टुकड़े-टुकड़े और खीर फर्श पर, बिल्ली डटकर खीर उड़ा रही है। रामू की बहू पर खून सवार हो गया। उसने कबरी की हत्या के लिए कमर कस ली।
प्रातः उठकर रामू की बहू दूध का कटोरा दरवाजे की देहरी पर रख कर चली गई। हाथ में पाटा लेकर वह लौटी तो देखा कि कबरी बिल्ली दूध पर जुटी है। उसने सारा बल लगाकर पाटा बिल्ली पर दे मारा। कबरी बिल्ली न हिली न डुली, बस एकदम उलट गई। पाटे की आवाज सुनकर महरी, मिसरानी और सास दौड़ी चली आई। महरी और मिसरानी ने बिल्ली की हत्या को आदमी की हत्या के बराबर बताकर तब तक काम करने से मना कर दिया, जब तक बहू के सिर से हत्या ना उतर जाए। बिल्ली की हत्या की खबर बिजली की तरह पड़ोस में फैल गई-पड़ोस की औरतों का रामू के घर तांता लग गया। महरी को पंडित को बुलाने के लिए भेजा गया।
पंडित परमसुख चौबे ने खबर सुनी तो मुस्कुराते हुए पंडिताइन से बोले- "भोजन न बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।" पंडित परमसुख पहुंचे तो औरतों की पंचायत बैठी। बिल्ली की हत्या पर मिलने वाले नरक के विषय में पूछने पर पंडित ने हिसाब लगाकर बताया कि प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में बिल्ली की हत्या पर घोर कुंभीपाक नरक का विधान है। प्रायश्चित पूछने पर पंडित जी ने बताया कि एक सोने की बिल्ली बनवा कर बहु से दान करवा दी जाए। जब तक बिल्ली न दे दी जाएगी, तब तक तो घर अपवित्र रहेगा। बिल्ली दान देने के बाद 21 दिन का पाठ हो जाए। बिल्ली वजन के प्रश्न पर पंडित परमसुख ने 22 तोले बताए। रामू की मां ने बात एक तोले से आरंभ की। मोल-तौल में 11 तोले की बिल्ली बनवाना निश्चित हुआ। पूजा के सामान के विषय में पंडित जी ने बताया कि दान के लिए करीब दस मन गेहूं, एक मन चावल, एक मन दाल, मन भर तिल, 5 मन जौ, पांच मन चना, 4 पसेरी घी और मन भर नमक भी लगेगा।
पूजा के खर्च को सुनकर रामू की मां रूआंसी होकर बोली -पंडित जी इसमें तो सौ डेढ़ सौ रुपया खर्च हो जाएगा। इस पर पंडित जी ने समझाया- "फिर इससे कम में तो काम ना चलेगा। बिल्ली की हत्या कितना बड़ा पाप है, रामू की मां! खर्च को देखते वक्त पहले बहू के पाप को तो देख लो! यह तो प्रायश्चित में उसे पैसा खर्च भी करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे वैसे थोड़े हैं, अरे सौ डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथ का मैल है।" किसनू की मां, छन्नू की दादी, मिसरानी आदि पंचों ने पंडित परमसुख की बात का समर्थन किया। इस पर रामू की मां ने ठंडी सांस लेते हुए कहा कि- "अब तो जो नाच नचाओगे नाचना ही पड़ेगा।" यह बात सुनकर पंडित परमसुख नाराज होकर पोथी पत्रा बटोरकर चलने लगे। रामू की मां ने पंडित जी के पैर पकड़े तब उन्होंने पुनः आसन जमाया। "और क्या हो?" के प्रश्न पर पंडित जी ने कहा- "इक्कीस दिन के पाठ के 21 रुपए और 21 दिन तक दोनों बखत 5-5 ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा। ….. सो इसकी चिंता ना करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूंगा और मेरे अकेले भोजन करने से पांच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जाएगा।"
अंततः पंडित जी ने कहा- "अच्छा तो फिर प्रायश्चित का प्रबंध करवाओ रामू की मां, 11 तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्ली बनवा लाऊं - दो घंटे में मैं बनवाकर लौटूंगा, तब तक पूजा का प्रबंध कर रखो - और देखो पूजा के लिए ….." अभी पंडित जी की बात पूरी भी ना हुई थी कि महरी हांफती हुई कमरे में आई और बोली - "मांजी, बिल्ली तो उठ कर भाग गई।"
प्रश्न- 'प्रायश्चित' कहानी के आधार पर पंडित परमसुख के चरित्र और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
या
'प्रायश्चित' कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर- 'प्रायश्चित' कहानी भगवतीचरण वर्मा की एक श्रेष्ठ व्यंगप्रधान सामाजिक रचना है, जिसमें मानव का स्वभाव को सुंदर मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है। पंडित परमसुख कहानी के प्रमुख पात्र हैं। कहानी के प्रारंभ में बिल्ली की मृत्यु होने के बाद वे संपूर्ण कहानी पर छाए हुए हैं। उनके कर्मकांड कम और पाखंड के द्वारा वर्मा जी ने उनके चरित्र को उजागर किया है। कहानी के आधार पर उनकी चरित्रगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. कर्मकांडी ब्राह्मण - पंडित परमसुख एक कर्मकांडी ब्राह्मण हैं। वह कर्मकांड के स्थान पर प्रकांड पाखंड में अधिक विश्वास रखते हैं। नित्य पूजा-पाठ करना उनका धर्म है। लोगों में उनके प्रति आस्था भी है। इसलिए बहू के द्वारा बिल्ली के मारे जाने पर रामू की मां उन्हें ही बुलवाती है और प्रायश्चित का उपाय पूछती है।
2. लालची - पंडित परमसुख परम लालची हैं। लालच के वशीभूत होकर ही वह रामू की मां को प्रायश्चित के लिए पूजा और दान की इतनी अधिक सामग्री बताते हैं, जिससे उनके घर के छह महीनों के अनाज का खर्च निकल आए।
3. पाखंडी - पंडित परमसुख कर्मकांडी कम पाखंडी अधिक हैं। वह पाखंड के सहारे धन एकत्र करना चाहते हैं। बिल्ली के मरने की खबर सुनकर उन्हें प्रसन्नता होती है। जब उन्हें यह खबर मिली, उस समय वे पूजा कर रहे थे। खबर पाते ही वे उठ पड़े, पंडिताइन से मुस्कुराते हुए बोले- "भोजन ना बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।"
4. व्यवहार कुशल और दूरदर्शी - पंडित परमसुख को मानव स्वभाव की अच्छी परख है। वे जानते हैं कि दान के रुप में किसी व्यक्ति से कितना धन ऐंठा जा सकता है। इसीलिए बे पहले 21 तोले सोने की बिल्ली के दान का प्रस्ताव रखते हैं, लेकिन बात कहीं बढ़ न जाए और यजमान कहीं हाथ से ना निकल जाए, वे तुरंत 11 तोले पर आ जाते हैं।
5. परम भट्ट - पंडित परमसुख परम पेटू भी हैं। पांच ब्राह्मणों को दोनों वक्त भोजन कराने के स्थान पर उन्हीं के द्वारा दोनों समय भोजन कर लेना उनके परम भोजन भट्ट होने का प्रमाण है।
6. साम-दाम-दंड-भेद में प्रवीण - पंडित परमसुख साम-दाम-दंड-भेद में अत्यधिक प्रवीण हैं। पूजा के सामान की सूची के बारे में पहले तो उन्होंने प्रेम से रामू की मां को समझाया परंतु जब वह ना-नुकुर करने लगी तो तुरंत ही बिगड़कर अपना पोथी-पत्रा बटोरने लगे और पैर पकड़े जाने पर पुनः आसन जमाकर भोजनादि
की बात करने लगे। इससे स्पष्ट होता है कि पंडित जी इन चारों विधाओं में निष्णात थे। स्पष्ट होता है कि पंडित परमसुख उपयुक्त वर्णित गुणों के मूर्तिमान स्वरूप थे।
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