हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय एवं साहित्य कृतियां//hajari Prasad Dwivedi ka jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है आप लोगों को हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय एवं साहित्य कर दिया सभी जानकारी इस लेख के माध्यम से दी जाएंगी तो आप लोग इस पोस्ट में अंत तक जरूर बने रहें इस पोस्ट को अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और साथ ही आप लोग कमेंट करें कि किस टॉपिक पर अपनों को लेख चाहिए धन्यवाद दोस्तों![]() |
हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय एवं साहित्य कृतियां//hajari Prasad Dwivedi ka jivan Parichay |
हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय-
प्रसिद्ध हिंदी निबंधकार आलोचक एवं उपन्यासकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी, 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में आरत दुबे छपरा (ओझवलिया) नामक ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था। पिता श्री अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रखंड विद्वान होने के साथ-साथ ज्योतिष विद्या में भी पारंगत थे। इनके माता का नाम ज्योतिष्मती था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव के स्कूल से ही हुई। वर्ष 1920 ईस्वी में उन्होंने बस बीकापुर के मिडिल स्कूल में प्रथम श्रेणी में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत गांव के निकट ही पराशर ब्रम्हचर्य आश्रम में संस्कृत का अध्ययन प्रारंभ किया। नवंबर 1930 से द्विवेदी जी ने शांतिनिकेतन में हिंदी विषय का अध्यापन कार्य प्रारंभ किया जाए उन्हें गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर तथा आचार्य श्री मोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन किया। यहीं से उन्होंने अपना स्वतंत्र लेखन की व्यवस्थित रूप से शुरू किया। जुलाई 1950 में द्विवेदी जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्ययन के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। वर्ष 1957 मैं उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि देकर उनका विशेष सम्मान किया।
द्विवेदी जी के निबंध संग्रह "आलोक पर्व" के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य के महान लेखक द्विवेदी जी 4 फरवरी 1979 पक्षाघात के शिकार हो गए और 19 मई 1979 को ब्रेन ट्यूमर से दिल्ली में हुआ स्वर्ग सुधार गए.। हिंदी साहित्य के लिए उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
भाषा शैली द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में परमार्जित खड़ी बोली का उपयोग किया है। वैभव और विषय के अनुसार भाषा का चयनित प्रयोग करते थे। उनकी भाषा के दो रूप हैं- 1 प्रांजल व्यवहारिक भाषा, 2 संस्कृत निष्ट शास्त्रीय भाषा।
प्रांजल व्यवहारिक भाषा का उपयोग द्विवेदी जी ने सामान्य निबंधों में किया है । इस प्रकार की भाषा में उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का भी समावेश किया था। द्विवेदी जी से लिया संस्कृत निष्ठ शास्त्रीय भाषा का उपयोग उन्होंने उपन्यास और सैद्धांतिक आलोचना के क्रम में परिलक्षित किया है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की प्रमुख रचनाएं-
आलोचनात्मक
सूर साहित्य
हिंदी साहित्य की भूमिका
प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद
नाथ संप्रदाय
हिंदी साहित्य का आदिकाल
साहित्य का कुमार मर्म
मेघदूत एक पुरानी कहानी
साहित्य सहचर
कालिदास की लालित्य योजना
मध्यकालीन बोध का स्वरूप
सहज साधना
मृत्युंजय रविंद्र
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के निबंध-
कल्प लता
विचार और वितर्क
विचार प्रवाह
कुटज
कल्पतरू
गतिशील चिंतन
साहित्य सहचर
आलोक पर्व
अशोक के फूल
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के उपन्यास-
बाणभट्ट की आत्मकथा
चारुचंद्र लेख
पुनर्नवा
अनामदास का पौधा
पुरस्कार एवं सम्मान
सोवियत लैंड पुरस्कार – आलोक पर्व पर
1957 ई० पदम भूषण – उत्कृष्ट साहित्य लेखन के लिए
लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि देकर सम्मानित किया गया।
एक टिप्पणी भेजें