भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय//bharatendu Harishchandra ka jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है आप लोगों को भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय एवं साहित्य कर दिया सभी जानकारी इस लेख के माध्यम से दी जाएंगी तो आप लोग इस पोस्ट में अंत तक जरूर बने रहें इस पोस्ट को अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और साथ ही आप लोग कमेंट करें कि किस टॉपिक पर अपनों को लेख चाहिए धन्यवाद दोस्तोंभारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय//bharatendu Harishchandra ka jivan Parichay |
जीवन परिचय- युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं असाधारण प्रतिभा संपन्न भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850ई० में काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र गिरिधरदास ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही माता-पिता के सुख से वंचित हो गए थे।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहां इन्होंने हिंदी उर्दू बांग्ला एवं अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य के अध्ययन किया है। इसके पश्चात उन्होंने क्वींस कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु काव्यरचना में रुचि होने के कारण का मन है अध्ययन में नहीं लग सका; परिणाम स्वरूप इन्होंने शीघ्र ही कॉलेज छोड़ दिया। काव्य रचना के अतिरिक्त इनकी रूचि यात्राओं में ही थी। अवकाश के समय विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं किया करते थे। भारतेंदु जी बड़े ही उदार एवं दानी पुरुष थे। अपनी उदारता के कारण से गिरी इनकी आर्थिक दशा सोचनीय हो गई और यह ऋण ग्रस्त हो गए। श्रणग्रस्ताता के समय ही यह छह रोग के भी शिकार हो गए। इन्होंने इस रोग से मुक्ति हुई होने का हर संभव प्रयास किया, किंतु मुक्त नहीं हो सके। 1850 ई० मैं किसी रोग के कारण मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में भारतेंदु जी का स्वर्गवास हो गया।
परिचय कवि एक दृष्टि में
साहित्यिक परिचय- भारतेंदु जी वाली अवस्था से ही काव्य रचनाएं करने लगे थे। अपनी काव्य रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग करते थे। कुछ ही समय के बच्चन का ध्यान हिंदी ग्रंथ की ओर आकृष्ट हुआ । हो समय हिंदी गद्य की कोई निश्चित भाषा नहीं थी। रचनाकार गद्य के विभिन्न रूपों को अपनाए हुए थे। भारतेंदु जी का ध्यान इस गांव की ओर आकृष्ट हुआ। इस समय बांग्ला गद्य साहित्य विकसित अवस्था में था। भारतेंदु जी ने बांग्ला के नाटक 'विद्यासुंदर' का हिंदी में अनुवाद किया और उसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करके भाषा के नवीन रूप का बीजारोपण किया।
सकारात्मक सोच की कहानी-
सन 1868ई० भारतेंदु जी ने 'कवि-वचन-सुधरा' नामक पत्रिका का संपादन प्रारंभ किया। इसके 5 वर्ष उपरांत सन 1873ई० मैं इन्होंने एक दूसरी पत्रिका 'हरिश्चंद्र मैगजीन' का संपादन प्रारंभ किया। आंखों के बाद इस पत्रिका का नाम हरिश्चंद्र चंद्रिका हो गया। हिंदी गद्य का परिष्कृत रूप सर्वप्रथम इसी पत्रिका में दृष्टिगोचर हुआ। प्रस्तुत हिंदी गधे को नया रूप प्रदान करने का श्रेय इसी पत्रिका को दिया जाता है।
भारतेंदु जी ने नाटक निबंध तथा यात्रा व्रत आदि विभिन्न विधाओं में गज रचना की इसके समकालीन सभी लेखक ने अपना आदर्श मानते थे और इनसे दिशा निर्देश प्राप्त करने थे। इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर तत्कालीन पत्रकारों में सन 1880ई० मैंने भारतेंदु जी की उपाधि से सम्मानित किया गया।
कृतियां- अल्पायु में ही भारतेंदु जी ने हिंदी को अपनी रचनाओं का अप्रतिम कोष प्रदान किया इनकी की प्रमुख रचना निम्नलिखित हैं-
नाटक- भारतेंदु जी ने मौलिक तथा अनुवादित दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की है जो इस प्रकार है-
मौखिक- सत्य हरिश्चंद्र, नीलदेवी, श्री चंद्रावली, भारत-दुर्दशा, अंधेर नगरी, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, विषस्य विषमौषधम्, सती प्रजापत था प्रेम जोगिनी
अनुदित- मुद्राराक्षस, रत्नावली, भारत-जननी, विद्यासुंदर, पाखंड-विडंबन, दुर्लभ बंधु, कर्पूरमंजरी, धनंजय- विजय
निबंध संग्रह- सुलोचना, परिहास-वंचक, मदालसा, दिल्ली-दरबार-दर्पण, लीलावती।
इतिहास- कश्मीर-कुसुम, महाराष्ट्र देश का इतिहास, अग्रवालों की उत्पत्ति।
यात्रा वृतांत- सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा।
जीवनियां - सूरदास की जीवनी, जयदेव, महात्मा मोहम्मद आदि।
भाषा शैली: भाषा- भारतेंदु जी से पूर्व हिंदी भाषा के स्वरूप स्थित नहीं था। भारतेंदु जी ने हिंदी भाषा को स्थायित्व प्रदान किया। उन्होंने इसे जनसामान्य की भाषा बनाने के लिए इस में प्रचलित तभ्दव एवं लोकसभा के शब्दों का यथासंभव प्रयोग किया। उर्दू फारसी के प्रचलित शब्दों को भी इस में स्थान दिया गया। लोकोक्तियां एवं मुहावरे का प्रयोग करके उन्होंने भाषा के प्रति जन सामान्य में आकर्षण उत्पन्न कर दिया। इस प्रकार भारतीय जी के प्रयासों से हिंदी भाषा सरल सुबोध एवं लोकप्रिय होती चली गई।
शैली- भारतेंदु जी की गद्य शैली व्यवस्थित और सजीव है। इनकी भी गद्य शैली पर आधारित वाक्य हृदय की अनुभूतियों से परिपूर्ण लगते हैं। उनमें जटिलता के स्थान पर प्रभाव देखने को मिलता है। भारतेंदु जी ने अग्र लिखित शैलियों का उपयोग किया -
वर्णनात्मक शैली- अपने वर्णन प्रधान निबंध एवं इतिहास ग्रंथों में भारतेंदु जी ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। वाक्यों, लोकोक्तियां एवं मुहावरा संयुक्त उनकी वर्णनात्मक शैली की अपनी अलग मौलिकता है।
विवरणात्मक शैली- भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने यात्रा चरणों में विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनकी यह शैली तभी तो पूर्ण आवास से मंडित है।
भावनात्मक शैली - भारतेंदु जी द्वारा रचित जीवनी सहित एवं कई नाटकों में भावनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है जिसमें इनके भाव पक्ष की प्रबलता दृष्टिगोचर होती है।
विचारात्मक शैली- वैष्णो माता और भारतवर्ष भारतवर्ष उन्नति कैसे हो सकती है? आदि निबंधों में भारतेंदु जी की विचारात्मक श्रेणी का परिचय मिलता है। इस शैली पर आधारित व्रत चुनाव में उनके विचारों की गंभीरता एवं विश्लेषण शक्ति के दर्शन होते हैं।
व्यंग्यात्मक शैली- भारतेंदु जी द्वारा रचित निबंध दो नाटकों आदि में यत्र तत्र व्यंगात्मक शैली के दर्शन भी होते हैं।
हास्य शैली- भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हास्य शैली में भी रचना की है। हास्य शैली में लिखी गई उनकी रचनाओं में 'अंधेर नगरी', 'वैदिकी हिंसा ना भवति'उल्लेखनीय है। के निबंधों में भी यत्र तत्र हास्य शैली का प्रयोग देखने को मिलता है।
इसके अतिरिक्त भारतेंदु हरिश्चंद्र में शोध शैली, भाषण शैली, स्त्रोत शैली, प्रदर्शन शैली एवं कथा शैली आदि में निबंधों की रचना की है।
हिंदी साहित्य में स्थान- भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया। साहित्य के क्षेत्र में इनकी अमूल्य सेवाओं के कारण ही इन्हें आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य के जनक युग युग निर्माता साहित्यकार अथवा आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रवर्तक कहा जाता है। भारतीय साहित्य में इन्हें युगदृष्टि, युगस्ष्ठता, युग-जागरण के दूत और एक युग-पुरुष के रूप में जाना जाता है।
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