मैथिलीशरण गुप्त जीवन परिचय//maithilisharan Gupt ka jivan Parichay ine Hindi

Ticker

मैथिलीशरण गुप्त जीवन परिचय//maithilisharan Gupt ka jivan Parichay ine Hindi

मैथिलीशरण गुप्त जीवन परिचय//maithilisharan Gupt ka jivan Parichay ine Hindi

नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है आप लोगों को मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय एवं साहित्य कर दिया सभी जानकारी इस लेख के माध्यम से दी जाएंगी तो आप लोग इस पोस्ट में अंत तक जरूर बने रहें इस पोस्ट को अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और साथ ही आप लोग कमेंट करें कि किस टॉपिक पर अपनों को लेख चाहिए धन्यवाद दोस्तों


मैथिलीशरण गुप्त जीवन परिचय//maithilisharan Gupt ka jivan Parichay ine Hindi


जीवन परिचय -



  1

              नाम

      मैथिलीशरण गुप्त

  2

            जन्म

          1886ई०

  3

          जन्म स्थान

  चिरगांव, झांसी, उत्तर प्रदेश 

  4

            मृत्यु

      1964ई०

  5

      मृत्यु स्थान

        चिरगांव, झांसी

  6

        पिता का नाम

      सेठ राम चरण गुप्ता

  7

      माता का नाम

        काशीबाई

  8

        गुरु 

    महावीर प्रसाद द्विवेदी

  9

          कृतियां

भारत भारती, साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध आदि।

10

      नागरिकता

    भारतीय

  11

      साहित्य में योगदान

अपने काव्य में राष्ट्रीय भाव की गंगा बहाने का श्रेय गुप्ता जी को है। द्वेदी युग के यह अनमोल रतन है।

  12

        मुख्य रचना

    साकेत

13

        पत्नी का नाम

  ज्ञात नहीं

14

        भाषा शैली

    ब्रजभाषा

15

        पुरस्कार

    विशिष्ट सेवा पदक

16

        पेशा

  लेखक, कवि

17




मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय

मैथिलीशरण गुप्त गुप्त जी का जन्म झांसी के चिरगांव में सन 1886ई° में हुआ था। आपके पिता सेठ रामचरण जी भी एक श्रेष्ठ कवि थे ‌। प्रारंभिक शिक्षा के बाद स्वाध्याय से ही इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। बाद आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए। महात्मा गांधी के साथ स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया और जेल यात्रा की। साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इन आगरा और इलाहाबाद विश्वविद्यालयों ने डी लिट की मानद उपाधि दी। साकेत महाकाव्य की रचना प्रवीण को मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। इनका अंतर्ध्यान हो गया से सन 1964ई० में हुआ था।


साहित्य परिचय-गुप्ता जी ने खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण एवं विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्ता जी की प्रारंभिक रचनाओं में इतिवृत्त कथन की अधिकता है। किंतु बाद की रचनाओं में लाक्षणिक वैचित्र्य एवं सुक्ष्म मनोभावों की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। गुप्ता जी ने अपनी रचना में प्रबंध के अंदर गति काव्य का समावेश कर उन्हें उत्कृष्टता का प्रदान की है। गुप्ता जी की चरित्र कल्पना में कहीं भी अलौकिकता के लिए स्थान नहीं है। इनके सारे चरित्र मानव है उनमें देव एवं दानव नहीं है। इनके राम,कृष्ण, गौतम आदि सभी प्राचीन चिरकाल से हमारी श्रद्धा प्राप्त किए हुए पात्र हैं। इसलिए वे जीवन पर ना और स्फूर्ति प्रदान करते हैं ‌। साकेत के रामेश्वर होते हुए भी तुलसी की भांति आराध्य नहीं है, हमारे ही बीच एक व्यक्ति है। 


कृतियां (रचनाएं)- गुप्ता जी ने लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रंथों में भारत भारती 1912, रंग में भंग 1909, जयद्रथ वध, पंचवटी, झंकार, साकेत, यशोधरा, व्दापर, जय भारत, विष्णुप्रिया आदि उल्लेखनीय हैं।


भारत भारती मैं हिंदी भाषियों में जाति के देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाओं जगाई। रामचरितमानस के पश्चात हिंदी में राम काव्य का दूसरा प्रसिद्ध उदाहरण साकेत है। यशोधरा और साकेत मैथिलीशरण गुप्त ने दो नारी प्रधान काव्य की रचना की।


भाषा शैली:- हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्य रूप देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भाव की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सुंदर अद्भुत है। वे गंभीर विषयों को भी सुंदर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। हिंदी भाषा में लोकोक्तियां एवं मुहावरे के प्रयोग से जीवंतता आ गई है। गुप्त जी मूलतः प्रबंध कर थे, लेकिन प्रबंध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीतिनाट्य, नाटक आदि क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक सफलताएं की है। उनकी रचना पत्रावली पत्र सेलिंग रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है। हिंदी शैली में गेयता प्रवाहमयता एवं संगीतत्मकता विद्यमान है।


हिंदी साहित्य में स्थान- मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत रचनाओं के कारण हिंदी साहित्य में इनका विशेष स्थान है। हिंदी काम राष्ट्रीय भावों की पुनीत गंगा को बनाने का श्रेय गुप्त जी को ही है। अतः यह सच्चे अर्थों में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को भरकर उनमें जनजागृति लाने वाले राष्ट्रकवि हैं। इनके काव्य हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।

राष्ट्रप्रेम गुप्त जी की कविता का प्रमुख स्वर है। भारत भारती में प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रेरणात्मक चित्रण हुआ है। इस रचना में व्यक्तित्व देश प्रेमी ही इनकी पर्वती रचनाओं में राष्ट्रप्रेम नवीन राष्ट्रीय भावनाओं में परिणत हो गया‌। उनकी कविता में आज की समस्याओं और विचारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं। गांधीवाद तथा कहीं-कहीं आर्य समाज का प्रभाव भी उन पर पड़ा है। अपने काव्य की कथावस्तु गुप्ता जी ने आज के जीवन से ना लेकर प्राचीन इतिहास अथवा पुराणों से ली है। यह अतीत की गौरव गाथाओं को वर्तमान जीवन के लिए मानवतावादी एवं नेत्री प्रेरणा देने के उद्देश्य ही अपना आते हैं।

नारी के प्रति गुप्ता जी का विधायक सहानुभूति करुणा से अप्लाविन है। यशोधरा, उर्मिला, कैकयी, विद्यृता। 


मृत्यु

मैथिलीशरण गुप्त जी पर गांधीजी का भी गहरा प्रभाव पड़ा था इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और कारावास की यात्रा की थी। इनके नाम हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि माने जाते हैं। महान ग्रंथ भारत भारती मैं इन्होंने भारतीय लोगों की जाति और देश के प्रति गर्व और भारत की भावना जताई है। अंतिम काल तक राष्ट्र सेवा में अथवा काव्य साधना में लीन रहने वाले और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी 12 दिसंबर सन 1964 को ई० को अपनी राष्ट्र को अलविदा कहा गए।


कवि मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं- 

  • यशोधरा

  • रंग में भंग

  • साकेत

  • भारत भारती

  • पंचवटी

  • जय भारत

  • पृथ्वी पुत्र

  • किसान

  • हिंदू

  • चंद्रहास

  • द्वापर

  • कुणालगीता आदी


पुरस्कार

  • इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्हें डी लिट की उपाधि प्राप्त हुई।

  • सन 1952 में गुप्त जी राज्यसभा में सदस्य के लिए मनोनीत हुए थे।

  • 1954 में इन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।


गुप्त जी का निधन कब हुआ था?

गुप्तजी का न्यूज़ 12 दिसंबर 1964ई० को हुआ था।


साकेत की रचना कब हुई थी?

साकेत हिंदी का प्रसिद्ध महाकाव्य है इसकी प्रकाशन 24 दिसंबर 2004 को हुआ था।


गुप्ता जी का जन्म कहां हुआ था?

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म झांसी जिले के चिरगांव नामक ग्राम में हुआ था।


रंग में भंग का प्रकाशन वर्ष क्या है?

रंग में भंग काफी का प्रकाशन सन् 1909 ई० को हुआ था।


मैथिलीशरण गुप्त जी की भाषा शैली क्या थी?

हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है ‌। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भाव की त्रिविता और प्रयुक्त शब्दों का सुंदर अद्भुत है। वह गंभीर विषयों को भी सुंदर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। हिंदी भाषा में लोकोक्तियां एवं मुहावरे के प्रयोग से जीवंतता आ गई है। गुप्तजी मूलक प्रबंधक आर थे लेकिन प्रधान के साथ-साथ मुक्तागिरी गीता नाट्य नाटक आदि क्षेत्रों में भी उन्होंने अनेक सफलताएं की है। उनकी रचना पत्रावली पत्र शैली में रचित नूतन का भी शैली का नमूना है। उनकी शैली में गेयता, प्रवाहमयता संगीतत्मकता विद्यमान है।


इसे भी पढ़ें👇👇








Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2