सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय// sumitranandan pant ka jivan Parichay
हिंदी साहित्य का भारतीय इतिहास में अमूल्य योगदान रहा है। भारत भूमि पर ऐसे कई लेखक और कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से समाज सुधार के कार्य किए। जैसे जयशंकर प्रसाद महादेवी वर्मा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि। आज हम आपको हिंदी भाषा के एक ऐसे कवि के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बिना हिंदी साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती जिनका नाम है सुमित्रानंदन पंत। आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।
जीवन परिचय
जीवन परिचय- कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई उन्नीस सौ अल्मोड़ा के निकट कौसानी ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित गंगादत्त था। जन्म के 6 घंटे बाद शादी इनकी माता स्वर्ग सिधार गई। फतेह हिना का लालन-पालन पिता तथा दादी ने किया।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव में तथा उच्च शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में और बाद में बनारस के क्वींस कॉलेज में हुआ इनका काव्यगत सुरजन यहीं से प्रारंभ हुआ उन्होंने सोए कि अपना नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। काशी में पंथी जी का परिचय सरोजिनी नायडू तथा रविंद्र नाथ टैगोर की काव्य के साथ-साथ अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ और यहीं पर उन्होंने कविता प्रतियोगिता में भाग लेकर प्राप्त की। सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित होने पर इनकी रचनाओं ने काव्य- मर्मज्ञों के हृदय में अपनी धाक जमा ली। वर्ष 1950 में यह ऑल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और वर्ष 1957 तक यह प्रत्यक्ष रुप से रेडियो से संबंध रहे। यह छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने वर्ष 1916-1977 तक साहित्य सेवा की। 28 दिसंबर 1977 को प्रगति का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गया।
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गुसाईं दत्त रखा गया था। लेकिन हमको अपना नाम पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत कर लिया।
साहित्यिक परिचय-
सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के महान कवियों में से एक माने जाते हैं। 7 वर्ष की अल्पायु से ही उन्होंने कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था। वर्ष 1916 में इन्होंने 'गिरि जी का घंटा'नामक सर्वप्रथम रचना लिखिए। इलाहाबाद के 'म्योर कॉलेज' मैं प्रवेश लेने के उपरांत इनकी साहित्यिक रुचि और भी अधिक विकसित हो गई। वर्ष 1920 में इनकी रचनाएं उच्छवास" और ग्रंथि में प्रकाशित हुई। इनके उपरांत वर्ष 1927 में इनके वीणा और पल्लव नामक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। उन्होंने 'रूपाभ" नामक एक प्रगतिशील विचारों वाले का पत्र का संपादन भी किया। वर्ष 1942 में इनका संपर्क महर्षि अरविंद घोष हुआ। इन्हें कला और बूढ़ा चांद पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोकायतन, पर सोवियत भूमि पुरस्कार और चिंदबरा पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने पंच जी को पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया।
कृतियां और रचनाएं
पंत जी की कृतियां निम्नलिखित हैं।
काव्य- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, स्वर्ग किरण, युगांत, युगवाणी, लोकायतन, चिंदबरा।
नाटक- रजतरश्मि, शिल्पी, ज्योत्सना।
उपन्यास- हार
पंत जी की अन्य रचनाएं हैं पल्लविनी, अतिमा, युगपथ, लता, स्वर्ग किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चांद, शिल्पी, स्वर्णधूली आदी।
भाषा शैली- पंत जी की शैली अत्यंत सरल एवं मधुर है। बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रवाहित होने के कारण उन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई। सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।
हिंदी साहित्य में स्थान-पंत जी सौंदर्य के उपासक थे। प्रगति, नारी पर कलात्मक सौंदर्य इनकी सौंदर्य अनुभूति के तीन मुख्य केंद्र रहे। इनकी काव्य जीवन का आरंभ प्रगति चित्रण से हुआ। इनके प्रगति एवं मानवीय भावों के चित्र में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं।
इसी कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कवि कहा जाता है। पंत जी का संपूर्ण काव्य साहित्य चेतना का प्रतीक है, जिसमें धर्म-दर्शन, नैतिकता, सामाजिकता, भौतिकता, आध्यात्मिकता सभी का समावेश है।
प्रारंभिक शिक्षा- इनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई थी। 1918 में वे अपने भाई के साथ कहां से आ गई और वहां क्वींस कॉलेज मैं पड़ने लगे। मेट्रिक कोचिंग करने के बाद या इलाहाबाद आ गए। वहां पर उन्होंने सब कक्षा बारहवीं इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। 1919 में महात्मा गांधी का सत्याग्रह से प्रवाहित होकर अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गए। हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और बांग्ला का स्वाध्याय किया। इनका प्रगति से असीम लगाव था। बचपन से ही सुंदर रचनाएं लिखा करते थे।
आर्थिक संकट और मार्क्सवाद से परिचय
वर्षों के बाद सुमित्रानंदन पंत को घौर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कार्ज से जीते हुए पिताजी का निधन हो गया। कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी बेचना पड़ा। इन परिस्थितियों में वह मार्क्सवाद की और उन्मुख हुए।
उत्तरोत्तर जीवन
सुमित्रानंदन पंत जी 1931 में कुंवर सुरेश सिंह के साथ कलाकांकर प्रतापगढ़ चले गए और अनेक वर्षों तक नहीं रहे। 1938 में उन्होंने प्रगतिशील मानसिक पत्रिका रूपाभ
का संपादन किया। श्री अरविंद आश्रम की यात्रा से इनमें आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ और उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया।
1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे।
1958 में युगवाणी से वाणी काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चिंता भरा प्रकाशित हुआ जिस पर 1958 में इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
1961 में पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित हुए।
1964 में विशाल माहाकाव्य लोकायतन का प्रकाशन हुआ कालांतर मैं इनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। या जीवन प्रयत्न रचनारत रहे।
अविवाहित पंत जी के अनंत स्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौंदर्य परख भावना रही। इनकी मृत्यु 28 दिसंबर 1957 में हुई।
विचारधारा– उनका संपूर्ण साहित्य सत्यम शिवम सुंदरम के सन आदर्शों से प्रवाहित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा। जहां पर आरंभिक कविताओं में प्रगति और सुंदर के रमणीय चित्र मिलते हैं वही दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सोच में कल्पना ओ कोमल भावनाओं की और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशील। उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से प्रेरित है। पंत परंपरावादी आलोचना और प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी आलोचनाओं के सामने कभी नहीं झुके। उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्णिमा नेताओं को नकारा नहीं उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों का नम्र अवज्ञा कविता के माध्यम से खारिज किया।
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियां-
कविता संग्रह /खंडकाव्य
उच्छवास
पल्लव
वीणा
ग्रंथि
गुंजन
ग्राम्या
युगांत
युगांतर
स्वर्णधूली
कला और बूढ़ा चांद
लोकायतन
सत्यकाम
मुक्ति यज्ञ
तारा पंथ
मानसी
युगवाणी
उत्तरा
रजत शिखर
शिल्पी
सौंदण
अंतिमा
पतझड़
अवगुंठित
मेघनाथ वध
ज्योत्सना
चुनी गई रचनाओं के संग्रह
युगपत
चिंदबरम
पल्लविनी
स्वच्छंद
पुरस्कार और सम्मान-
छिंदवाड़ा के लिए ज्ञानपीठ लोकायतन के लिए सेहत नेहरू शांति पुरस्कार और हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया गया।
सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौन सा नि में उनके पुराने घर को जिसमें वह बचपन में रहा करते थे सुमित्रानंदन पंत विधिका के नाम से जाना जाता है। संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों कविताओं की मूल पांडुलिपियों छायाचित्र और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है।
स्मृति विशेष- उत्तराखंड में कुमायूं की पहाड़ियों पर बने कौसानी गांव में जहां उनका बचपन बीता था मां का उनका घर आज सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक विधिका नामक संग्रहालय बन चुका है। इस संग्रहालय में उनके चश्मे कपड़े कलम आधी व्यक्तिगत वस्तुएं और सुरक्षित रखी गई है जहां पर वही उनका प्रयोग करते थे।
सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली-
पंत जी की शैली अत्यंत सरल एवं मजदूर है बांग्लादेश अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण होने गीत आत्मक शैली अपनाई। सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतत्मकता इनकी सहेली प्रमुख विशेषताएं हैं।
सुमित्रानंदन पंत के माता-पिता का क्या नाम था?
सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम 10 गंगादत्तपंत एवं माता का नाम सरस्वती देवी था।
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय// sumitranandan pant ka jivan Parichay |
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