भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध / Essay on Agricultural revolution in India

Ticker

भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध / Essay on Agricultural revolution in India

भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध / Essay on Agricultural revolution in India

green revolution in india,green revolution,agricultural revolution,agricultural revolutions in india,agricultural revolution in india,essay on agriculture in english,agriculture revolution in india,agriculture revolutions in india,agricultural revolutions,green revolution and its impact in india,agriculture revolution,important agricultural revolutions in india,essay on agriculture in india,revolutions in agriculture,भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध,Essay on Agricultural revolution in India
        भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध

Table of contents- 

(I) प्रस्तावना, 

(II) किसानों की समस्याएँ, 

(III) कृषक संगठन व उनकी माँग, 

(IV) कृषक आन्दोलनों के कारण, 

(V) उपसंहार।


नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको भारत में 'कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध / Essay on Agricultural revolution in India' के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं।  तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।


भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन

(Agricultural Revolution and Peasant Movement in India)


I) प्रस्तावना- हमारा भारत देश कृषि प्रधान है और सच तो यह है कि कृषि क्रिया-कलाप ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कहते हैं कि आज भी असली भारत गांवों में बसता है। हमारे देश में आज भी इतना विकास होने के बावजूद गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती अर्थात कृषि ही है। भले ही हमारे देश का आर्थिक विकास बहुत हो गया है लेकिन यह अत्यंत खेद का विषय है कि आज भी देश में खेती- किसानी से जुड़े लोगों की हालत अत्यंत सोचनीय है। ग्रामीण क्षेत्रों की तीन-चौथाई से अधिक आबादी अब भी कृषि एवं कृषि से संलग्न क्रिया-कलापों पर निर्भर है। भारत में कृषि मानसून पर आश्रित है और इस तथ्य से सभी परिचित है कि प्रत्येक वर्ष देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा सूखे एवं बाढ़ की चपेट मे आता है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था, भारतीय जन-जीवन का प्राणतत्त्व है। अंग्रेजी शासन काल में भारतीय कृषि का पर्याप्त ह्रास हुआ।


II) किसानों की प्रमुख समस्याएँ—भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। भारत की अधिकांश जनता गाँवों में बसती है। यद्यपि किसान समाज का कर्णधार है किन्तु इनकी स्थिति अब भी बदतर है। उसकी मेहनत के अनुसार उसे पारितोषिक नहीं मिलता है। यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 30 प्रतिशत है, फिर भी भारतीय कृषक की दशा शोचनीय है। आज भी हम देखते हैं कि किसानों को उनकी फसल या उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। बहुत बार तो इतनी मेहनत करने के बावजूद भी किसानों को उनकी लागत का मूल्य भी नहीं मिल पाता है। इसके लिए बाजार व्यवस्था एवं सरकार की नीतियां दोषी हैं। किसानों की फसलों का मुख्य लाभ बाजार या मंडी में जो दलाल होते हैं अक्सर ऐसे लोग ही अधिक मुनाफा कमाते हैं। इसके अतिरिक्त मानसून भी भारतीय कृषि के लिए बहुत महत्त्व रखता है। जरूरत के वक्त बारिश ना होना एवं ओलावृष्टि से भी किसानों की फसलें बर्बाद होती हैं। इससे भी किसानों को बहुत बड़ी आर्थिक क्षति होती है।


देश की आजादी की लड़ाई में कृषकों को एक वृहत् भूमिका रही। चम्पारण आन्दोलन अंग्रेजों के खिलाफ एक खुला संघर्ष था। स्वातन्त्र्योत्तर जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ। किसानों को भू-स्वामित्व का अधिकार मिला। हरित कार्यक्रम भी चलाया गया और परिणामत: खाद्यान्न उत्पादकता में वृद्धि हुई, किन्तु इस हरित क्रान्ति का विशेष लाभ सम्पन्न किसानी तक ही सीमित रहा। लघु एवं सीमान्त कृषकों को स्थिति में कोई आशानुरूप सुधार नहीं हुआ।


आजादी के बाद भी कई राज्यों में किसानों को भू-स्वामित्व नहीं मिला जिसके विरुद्ध बंगाल, बिहार एवं आन्ध्र प्रदेश में नक्सलवादी आन्दोलन प्रारम्भ हुए।


III) कृषक संगठन एवं उनकी माँग- यदि हमें भारत देश का संपूर्ण विकास करना है तो हमें एवं सरकार को मिलकर किसानों की समस्याओं पर नितांत ध्यान देना होगा। किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिल सके इसके लिए सरकार को एक ऐसी बाजार नियंत्रित प्रणाली अपनानी होगी जिसमें मंडियों के दलालों का कोई काम न हो। किसान अपनी फसलें मंडियों एवं बाजारों में उचित मूल्य पर बेच सकें ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी होगी। इसका परिणाम यह होगा कि देश का किसान यदि समृद्ध एवं खुशहाल होगा तो राष्ट्र का आर्थिक विकास भी बहुत तीव्र गति से होगा। किसानों को संगठित करने का सबसे बड़ा कार्य महाराष्ट्र में शरद जोशी ने किया। किसानो को उनकी पैदावार का समुचित मूल्य दिलाकर उनमें एक विश्वास पैदा किया कि वे संगठित होकर अपनी स्थिति में सुधार ला सकते हैं। उत्तर प्रदेश के किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने किसानों की दशा में बेहतर सुधार लाने के लिए एक आन्दोलन चलाया है और सरकार को इस बात का अनुभव करा दिया कि किसानों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। टिकैत के आन्दोलन ने किसानों के मन में कमोवेश यह भावना भर दी कि वे भी संगठित होकर अपनी आर्थिक उन्नति कर सकते हैं।


किसान संगठनों को सबसे पहले इस बारे में विचार करना होगा कि "आर्थिक दृष्टि से अन्य वर्गों के साथ उनका क्या सम्बन्ध है। उत्तर प्रदेश की सिचित भूमि की हदवन्दी सीमा 18 एकड़ है। जब किसान के लिए सिंचित भूमि 18 एकड़ है, तो उत्तर प्रदेश को किसान यूनियन इस मुद्दे को उजागर करना चाहती है कि 18 एकड़ भूमि को सम्पत्ति सीमा का आधार मानकर अन्य वर्गों को सम्पत्ति अथवा आय सीमा निर्धारित होनी चाहिए। कृषि पर अधिकतम आय की सीमा साढ़े बारह एकड़ निश्चित हो गयी, किन्तु किसी व्यवसाय पर कोई भी प्रतिबन्ध निर्धारित नहीं हुआ। अब प्रौद्योगिक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी शनैः-शनैः हिन्दुस्तान में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाती जा रही है। किसान आन्दोलन इस विषमता एवं विसंगति को दूर करने के लिए भी संघर्षरत है। वह चाहता है कि भारत में समाजवाद की स्थापना हो, जिसके लिए सभी प्रकार के पूंजीवाद तथा इजारेदारी का अन्त होना परमावश्यक है। यूनियन की यह भी माँग है कि वस्तु विनिमय के अनुपात से कीमतें निर्धारित की जाएँ, न कि विनिमय का माध्यम रुपया माना जाए। यह तभी सम्भव होगा जब उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में किसान के शोषण को समाप्त किया जा सके। सारांश यह है कि कृषि उत्पाद की कीमतों को आधार बनाकर ही अन्य औद्योगिक उत्पादों की कीमतों को निर्धारित किया जाना चाहिए।"


IV) कृषक आन्दोलनों के कारण - भारत में कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-


(i) भारतीय कृषि को उद्योग का दर्जा न दिये जाने के कारण किसानों के हितों की उपेक्षा निरन्तर हो रही है। 


(ii) भूमि सुधारों का क्रियान्वयन दोषपूर्ण है। भूमि का असमान वितरण इस आन्दोलन को मुख्य जड़ है। 


(iii) दोषपूर्ण कृषि विपणन प्रणाली भी कृषक आन्दोलन के लिए कम उत्तरदायी नहीं है। भण्डारण को अपर्याप्त व्यवस्था, कृषि मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ावों की जानकारी न होने से भी किसानों को पर्याप्त आर्थिक घाटा सहना पड़ता है।


(iv) किसानों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का मूल्य निर्धारण सरकार करती है जिसका समर्थन मूल्य बाजार मूल्य से नीचे रहता है।मूल्य -निर्धारण में कृषकों की भूमिका नगण्य है।


(v) बीजों, खादों, दवाइयों के बढ़ते दाम और उस अनुपात में कृषको को उनकी उपज का पूरा मूल्य भी न मिल पाना अर्थात् बढ़ती हुई लागत भी कृषक आन्दोलन को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी है।


(vi) नयी कृषि तकनीक का लाभ आम कृषक को नहीं मिल पाता है।


V) उपसंहार—विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं का अवलोकन करने पर स्पष्ट होता है कि कृषि को हमेशा उपेक्षा हुई है; अतः आवश्यक है कि कृषि के विकास पर अधिकाधिक ध्यान दिया जाए।


स्पष्ट है कि कृषक हितों को अब उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरकार को चाहिए कि कृषि की उद्योग का दर्जा प्रदान करे। कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण में कृषकों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। भूमि सुधार कार्यक्रम के दोषों का निवारण, होना जरूरी है तथा सरकार को किसी भी कीमत पर डंकल प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देना चाहिए और सरकार द्वारा किसानों की मांगों और उनके आन्दोलनों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।


Frequently Asked Questions (FAQ) 


1.भारत में कृषक आंदोलन क्या है?

उत्तर- कृषि नीति को बदलने या सुधार लाने के उद्देश्य से किये गये आन्दोलन को कृषक आन्दोलन कहते हैं। कृषक आन्दोलन का इतिहास बहुत प्राचीन है एवं विश्व के सभी भागों में भिन्न-भिन्न समय पर किसानों ने कृषि नीति में परिवर्तन करने के लिये आन्दोलन किये हैं जिससे उनकी दशा (आर्थिक स्थिति) सुधर सके।


2. स्वतंत्र भारत का पहला कृषक आंदोलन किसे माना जाता है?

उत्तर - सन् 1997 में मध्य प्रदेश में फसल के नुकसान के कारण किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। जिसके मुआवजे के लिए किसानों द्वारा तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ कृषि आंदोलन किया गया। इस आंदोलन को ही स्वतंत्र भारत का पहला कृषक आंदोलन माना जाता है।


3.किसान आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

उत्तर- किसान तीनों क़ानूनों को पूरी तरह वापस लेने की मांग कर रहे हैं. वे इन क़ानूनों में किसी संशोधन के लिए तैयार नहीं हैं. किसानों की मांग है कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाकर इन तीनों क़ानूनों को निरस्त करे. किसान संघ कृषि उत्पादों की एमएसपी (minimum support price) से कम मूल्य पर ख़रीद को दंडनीय अपराध के दायरे में लाने की मांग भी कर रहे हैं.


4.भारत में कृषक आंदोलन के क्या परिणाम हुए?

उत्तर- कृषि आंदोलन के कारण किसानों के बीच एकता एवं गैर भेदभाव की भावना समाप्त हुई जिसके परिणामस्वरूप सभी वर्गों को एकजुट करने में सहायता मिली। कृषक आंदोलन करने से किसान अपनी मांगों को लेकर सीधे तौर पर सरकार के समक्ष अपनी मांग रख सके जिससे कृषि श्रमिकों को समय-समय पर लाभ मिलता रहा है।


यह भी पढ़ें👇👇👇👇


मेरा विद्यालय पर निबंध


भ्रष्टाचार पर निबंध


लाकडाउन पर निबंध


हिंदी दिवस पर निबंध


गणतंत्र दिवस पर निबंध


स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध


आतंकवाद पर निबंध


कुटीर एवं लघु उद्योग पर निबंध


इंटरनेट पर निबंध


समाचार पत्र पर निबंध


भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन पर निबंध





Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2