राहुल सांकृत्यायन जी का जीवन परिचय // Rahul sankrityayan biography in Hindi
राहुल सांकृत्यायन जी का जीवन परिचय // Rahul sankrityayan ka jivan Parichay
जीवन-परिचय jivan Parichay- राहुल सांकृत्यायन का जन्म अपने नाना के गाँव पन्दहा जिला आजमगढ़ में, अप्रैल सन् 1893 ई० में हुआ। इनके पिता पं० गोवर्धन पाण्डेय एक कर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। राहुल जी के बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। बौद्ध धर्म में आस्था होने के कारण इन्होंने अपना नाम बदलकर राहुल रख लिया। राहुल के आगे सांकृत्यायन इसलिए लगा; क्योंकि इनका गोत्र सांकृत्य था ।
राहुल जी की प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय तथा उसके पश्चात् निजामाबाद में हुई, जहाँ इन्होंने सन् 1907 ई० में उर्दू मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् इन्होंने वाराणसी में संस्कृत की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
घुमक्कड़ी को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर राहुल जी ने श्रीलंका,नेपाल, तिब्बत, यूरोप, जापान, कोरिया, मंचूरिया, रूस, ईरान तथा चीन आदि देशों की अनेक बार यात्रा की तथा भारत के नगर - नगर को देखा। अपनी इन यात्राओं में इन्होंने अनेक दुर्लभ ग्रन्थों की खोज की। घुमक्कड़ी ही राहुल जी की पाठशाला थी और यही इनका विश्वविद्यालय। अपनी आत्मकथा में इन्होंने स्वीकार किया है कि व्हेन मैट्रिक पास करने के भी पक्ष में नहीं थे और स्नातक तो क्या, नौनी विश्वविद्यालय के भीतर कदम भी नहीं रखा।
14 अप्रैल सन 1963 ई. को राहुल जी का निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय sahityik Parichay- राहुल जी उच्चकोटि के विद्वान् और अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने धर्म, भाषा, यात्रा, दर्शन, इतिहास, पुराण, राजनीति आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है। इन्होंने संस्कृत ग्रन्थों को हिन्दी टीकाएँ कीं, कोशग्रन्थ तैयार किए तथा तिब्बती भाषा और 'तालपोथी' आदि पर दक्षतापूर्वक लिखा। वस्तुतः यह सब उनकी बहुमुखी प्रतिभा का परिचायक है।
राहुल जी के अधिकांश निबन्ध भाषा-विज्ञान और प्रगतिशील साहित्य से सम्बन्धित हैं। इनमें राजनीति, धर्म, इतिहास और पुरातत्त्व पर आधारित निबन्धों का विशेष महत्त्व है। इन विषयों पर लिखते हुए राहुल जी ने अपनी प्रगतिशील दृष्टि का परिचय दिया है।
राहुल जी ने चार ऐतिहासिक उपन्यास लिखे हैं— 'सिंह सेनापति', 'जय यौधेय', 'मधुर स्वप्न' तथा 'विस्मृत यात्री'। इन उपन्यासों में इन्होंने प्राचीन इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों को पलटने का प्रयास किया है।
राहुल जी ने बहुत-सी कहानियाँ लिखी हैं, किन्तु उनकी कहानियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए 'वोल्गा से गंगा' 'और 'सतमी के बच्चे' नामक कहानियाँ ही पर्याप्त हैं।
राहुल जी ने गद्य की कुछ अन्य विधाओं को भी अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। इनमें जीवनी, संस्मरण और यात्रा - साहित्य प्रमुख हैं। राहुल जी को सबसे अधिक सफलता यात्रा- साहित्य लिखने में मिली है।
कृतियाँ kritiyan
कहानी — सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैल की कथा ।
उपन्यास - जीने के लिए, जय यौधेय, सिंह सेनापति, मधुर स्वप्न, विस्मृत यात्री, सप्त सिन्धु ।
कोशग्रन्थ- शासन शब्दकोश, राष्ट्रभाषा कोश, तिब्बती-हिन्दी कोश ।
जीवनी - साहित्य — मेरी जीवन-यात्रा, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, असहयोग के मेरे साथी, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली आदि ।
दर्शन-दर्शन-दिग्दर्शन, बौद्ध दर्शन आदि । "
देश-दर्शन –सोवियत भूमि, किन्नर देश, हिमालय प्रदेश, जौनसार-देहरादून आदि।
यात्रा - साहित्य — मेरी लद्दाख यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, यात्रा के पन्ने, रूस में पच्चीस मास, घुमक्कड़शास्त्र आदि।
विज्ञान — विश्व की रूपरेखाएँ ।
साहित्य और इतिहास-इस्लाम धर्म की रूपरेखा, आदि हिन्दी की कहानियाँ दक्खिनी हिन्दी काव्यधारा, मध्य ,
एशिया का इतिहास आदि।
आत्मकथा-मेरी जीवन-यात्रा।
भाषा-शैली Bhasha Saili : भाषा- राहुल जी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी और नागरी लिपि के समर्थक थे। भाषा के सम्बन्ध में उनका दृष्टिकोण पूर्णतया राष्ट्रीय था।
राहुल जी के दार्शनिक ग्रन्थों और निबन्धों में चिन्तन प्रधान भाषा देखी जा सकती है। यह संस्कृतनिष्ठ, पारिभाषिक, संयत और तर्कपूर्ण है। इसी भाषा का कुछ परिवर्तित रूप उनके शोध और अनुसन्धानपरक निबन्धों में भी दिखाई देता है। प्रकृति या मानव के सौन्दर्य का चित्रण करते समय राहुल जी ने प्रायः काव्यमयी भाषा का ही प्रयोग किया है।
शब्द-प्रयोग की दृष्टि से राहुल जी ने पर्याप्त स्वच्छन्दता से काम लिया है। कहीं-कहीं त्रुटियाँ भी हुई हैं, फिर भी सम्पूर्ण हिन्दी भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखकर विचार किया जाए तो यह राहुल जी की बहुत बड़ी देन के रूप में ही स्वीकार करनी होगी। इन्होंने अनेक प्राचीन शब्दों का उद्धार किया, अनेक ग्रामीण शब्दों में भावों का संचार किया और अनेक विदेशी शब्दों को देशी बना दिया।
शैली-भाषा के समान ही राहुल जी की शैली भी सरल और सुबोध है। राहुल जी ने अपनी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है—
1. वर्णनात्मक शैली- राहुल जी ने बहुत बड़ी संख्या में यात्रा - साहित्य की रचना की है, इसलिए उनकी शैली प्राय: वर्णनात्मक है। इस शैली की भाषा सरल और प्रवाहमयी है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं।
2. विवेचनात्मक शैली - इतिहास, दर्शन, धर्म, विज्ञान आदि विषयों पर लिखते समय इनकी शैली विवेचनात्मक हो गई है। ऐसे स्थानों पर इनके चिन्तन और अध्ययन की गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस शैली की भाषा प्रौढ़, परिमार्जित और उद्धरणों से युक्त है। जटिल विषयों की व्याख्या इसी शैली में हुई है।
3. व्यंग्यात्मक शैली - राहुल जी ने समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों, परम्पराओं तथा पाखण्डों पर व्यंग्य - प्रहार किए हैं। ऐसे स्थलों पर इनका गद्य व्यंग्यात्मक हो गया है।
हिन्दी साहित्य में स्थान sahitya mein sthan- राहुल सांकृत्यायन हिन्दी के एक प्रकाण्ड विद्वान् थे। वे छत्तीस एशियाई एवं यूरोपीय भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने लगभग 150 ग्रन्थों की रचना करके हिन्दी साहित्य के क्षेत्र को अपनी प्रतिभा से आलोकित किया। मानव जीवन और आधुनिक समाज के जितने क्षेत्रों को राहुल जी ने स्पर्श किया, उतने क्षेत्रों में एक साधारण मस्तिष्क की पैठ असम्भव है। उनकी रचनाओं में विभिन्न विधाओं की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के दर्शन होते हैं। आधुनिक हिन्दी साहित्य में उनकी गणना सदैव हिन्दी के प्रमुख समर्थ रचनाकारों में की जाती रहेगी।
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन का पूरा जीवन कैसे बीता?
उत्तर- राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र ही घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता रही है। घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन् धर्म था। आधुनिक हिंदी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन एक यात्राकार, इतिहासविद् तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जाने जाते है।
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन की साहित्यिक देन क्या है?
उत्तर- वह हिंदी यात्रासाहित्य के पितामह कहे जाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिंदी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन की प्रमुख कौन-कौन सी रचनाएं हैं?
उत्तर- मेरी जीवन यात्रा (छह भाग), दर्शन-दिग्दर्शन, बाइसवीं सदी वोल्गा से गंगा, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दिमागी गुलामी, घुमक्कड़ शास्त्र उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं । साहित्य के अलावा दर्शन, राजनीति, धर्म, इतिहास, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर राहुल जी द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या लगभग 150 है।
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन की प्रथम पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर- राहुल सांकृत्यायन की प्रथम पत्नी का नाम संतोषी देवी था।
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन की कविताएं कौन-कौन सी है?
उत्तर-
•'शैतान की आँख' (1923 ई.)
•'विस्मृति के गर्भ से' (1923 ई.)
• 'जादू का मुल्क' (1923 ई.)
•'सोने की ढाल' (1938)
•'दाखुन्दा' (1947 ई.)
•'जो दास थे' (1947 ई.)
• 'अनाथ' (1948 ई.)
• 'अदीना' (1951 ई.)
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन का जन्म कहां हुआ?
उत्तर- ग्राम पन्दहा, जिला आजमगढ़
प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन की भाषा शैली कैसी थी?
उत्तर- भाषा-शैली Bhasha Saili : भाषा- राहुल जी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी और नागरी लिपि के समर्थक थे। भाषा के सम्बन्ध में उनका दृष्टिकोण पूर्णतया राष्ट्रीय था।
राहुल जी के दार्शनिक ग्रन्थों और निबन्धों में चिन्तन प्रधान भाषा देखी जा सकती है। यह संस्कृतनिष्ठ, पारिभाषिक, संयत और तर्कपूर्ण है। इसी भाषा का कुछ परिवर्तित रूप उनके शोध और अनुसन्धानपरक निबन्धों में भी दिखाई देता है। प्रकृति या मानव के सौन्दर्य का चित्रण करते समय राहुल जी ने प्रायः काव्यमयी भाषा का ही प्रयोग किया है।
शब्द-प्रयोग की दृष्टि से राहुल जी ने पर्याप्त स्वच्छन्दता से काम लिया है। कहीं-कहीं त्रुटियाँ भी हुई हैं, फिर भी सम्पूर्ण हिन्दी भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखकर विचार किया जाए तो यह राहुल जी की बहुत बड़ी देन के रूप में ही स्वीकार करनी होगी। इन्होंने अनेक प्राचीन शब्दों का उद्धार किया, अनेक ग्रामीण शब्दों में भावों का संचार किया और अनेक विदेशी शब्दों को देशी बना दिया।
शैली-भाषा के समान ही राहुल जी की शैली भी सरल और सुबोध है। राहुल जी ने अपनी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है—
1. वर्णनात्मक शैली- राहुल जी ने बहुत बड़ी संख्या में यात्रा - साहित्य की रचना की है, इसलिए उनकी शैली प्राय: वर्णनात्मक है। इस शैली की भाषा सरल और प्रवाहमयी है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं।
2. विवेचनात्मक शैली - इतिहास, दर्शन, धर्म, विज्ञान आदि विषयों पर लिखते समय इनकी शैली विवेचनात्मक हो गई है। ऐसे स्थानों पर इनके चिन्तन और अध्ययन की गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस शैली की भाषा प्रौढ़, परिमार्जित और उद्धरणों से युक्त है। जटिल विषयों की व्याख्या इसी शैली में हुई है।
3. व्यंग्यात्मक शैली - राहुल जी ने समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों, परम्पराओं तथा पाखण्डों पर व्यंग्य - प्रहार किए हैं। ऐसे स्थलों पर इनका गद्य व्यंग्यात्मक हो गया है।
हिन्दी साहित्य में स्थान sahitya mein sthan- राहुल सांकृत्यायन हिन्दी के एक प्रकाण्ड विद्वान् थे। वे छत्तीस एशियाई एवं यूरोपीय भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने लगभग 150 ग्रन्थों की रचना करके हिन्दी साहित्य के क्षेत्र को अपनी प्रतिभा से आलोकित किया। मानव जीवन और आधुनिक समाज के जितने क्षेत्रों को राहुल जी ने स्पर्श किया, उतने क्षेत्रों में एक साधारण मस्तिष्क की पैठ असम्भव है। उनकी रचनाओं में विभिन्न विधाओं की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के दर्शन होते हैं। आधुनिक हिन्दी साहित्य में उनकी गणना सदैव हिन्दी के प्रमुख समर्थ रचनाकारों में की जाती रहेगी।
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