भाई दूज पर निबंध || bhai duj essay in Hindi
परिचय-
"भाई दूज" यह नाम ही इस खास दिन के बारे में बहुत कुछ बताता है, जो कि असल में भाइयों के लिए कुछ खास महत्व रखता है। दरअसल यह एक ऐसा दिन होता है जब बहनें अपने भाइयों के लिए प्रार्थना करती हैं और उनके लंबे जीवन और बेहतर स्वास्थ्य की कामना करती हैं। यह काफी हद तक रक्षाबंधन पर्व के समान है। और यह आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर के महीने में मनाया जाता है। यह भारत में हर वर्ष मनाया जाता है।
भाई दूज मनाने के लिए सही दिन-
सभी त्योहारों के अपने ऐतिहासिक लाभ होते हैं और भाई दूज भी एक विशेष दिन पर ही मनाया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। हर वर्ष, हम शुभ मुहूर्त के आधार पर इस दिन को मनाते हैं। किसी भी अवसर को मनाने के लिए सही मुहूर्त का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि यह एक विशेष समारोह के लिए एक सटीक समय देता है।
भाई दूज को राष्ट्र के विभिन्न भागों में कैसे मनाया जाता है-
भारत के अलावा, यह नेपाल में भी मनाया जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसके अलग-अलग नाम है लेकिन इन सभी का महत्व हर स्थान पर समान है। उनमें से कुछ का उल्लेख मैंने यहां पर नीचे किया भी है-
नेपाल में भाई दूज-
इसे नेपाल में "भाई टीका" का नाम दिया गया है। इस अवसर पर, बहनें भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और उनके लंबे जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। बदले में भाई भी कुछ उपहार लाते हैं और इस अवसर का जश्न मनाते हैं। नेपाल में दशहरा के बाद इस त्यौहार को सबसे बड़े त्योहारों में से एक के रूप में मनाया जाता है।
बंगाल में भाई दूज-
यह पश्चिम बंगाल में काली पूजा (दिवाली) के 2 दिन बाद हर साल मनाया जाता है। यह राज्य विभिन्न प्रकार के मीठे तथा अन्य व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। जो इस मौके को और भी खास बनाता है। बहनें अपने भाइयों के लिए विभिन्न प्रकार के भोजन तैयार करती हैं और इस खास मौके का आनंद लेती हैं। वे अपने माथे पर तिलक भी लगाती हैं और इस अवसर को मनाती हैं। इसे बंगाल में "भाई फोंटा" के नाम से जाना जाता है।
आंध्र प्रदेश में भाई दूज-
आंध्र प्रदेश में, भाई दूज को "भगिनी हस्त भोजनाम" के नाम से जाना जाता है और यह कार्तिक मास के दूसरे दिन बनाया जाता है जो दीपावली का दूसरा दिन होता है। इसे यम द्वितीया के रूप में भी जाना जाता है और यह उसी आस्था के साथ मनाया जाता है जिस तरह से इसे उत्तर भारत में मनाते हैं।
महाराष्ट्र में भाई दूज-
महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है और इसे वहां 'भाऊ बीज' के नाम से जाना जाता है। हर साल इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए कुछ अनुष्ठान करती हैं और उनके लिए प्रार्थना करती हैं।
इसी तरह, पूरे राष्ट्र में अलग-अलग नामों से इस त्यौहार को मनाया जाता है जैसे- भाऊ बीज, भतरू द्वितीया, भाई दूज आदि।
भाई दूज की यम और यमुना की कहानी-
इस अवसर को मनाने के पीछे एक प्रसिद्ध कहानी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य के 2 बच्चे यम और यमुना थे और दोनों जुड़वां थे लेकिन जल्द ही उनकी मां देवी संग्या ने उन्हें अपने पिता की तरह ज्ञान प्राप्त करने के लिए छोड़ दिया। उन्होंने अपने बच्चों के लिए अपनी परछाई छोड़ रखी थी। जिसका नाम उन्होंने छाया रखा। छाया ने भी एक बेटे को जन्म दिया था जिसका नाम शनी था लेकिन उसके पिता उसे पसंद नहीं करते थे।
परिणामस्वरूप, छाया ने दोनों जुड़वां बच्चों को अपने घर से दूर फेंक दिया। दोनों जुदा हो गए और धीरे-धीरे काफी समय बीतने के बाद एक रोज यमुना ने अपने भाई को मिलने के लिए बुलाया, क्योंकि वह वास्तव में पिछले काफी समय से यम से मिलना चाहती थी। जब यम, यानी मृत्यु के देवता, उनसे मिलने पहुंचे तब उन्होंने उनका खुशी से स्वागत किया। वह अपने बहन आतिथ्य से वास्तव में काफी खुश हुए; यमुना ने उनके माथे पर तिलक लगाया और उनके लिए स्वादिष्ट भोजन भी पकाया। यम ने खुशी महसूस की और अपनी बहन यमुना से पूछा कि क्या वह कुछ चाहती है? तब यमुना ने उस दिन को आशीर्वाद देना चाहा ताकि सभी बहनें अपने भाइयों के साथ समय बिता सकें। और इस दिन जो बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाएंगी, मृत्यु के देवता उन्हें परेशान नहीं करेंगे। यम इस पर सहमत हुए और कहा ठीक है; परिणाम स्वरूप हर वर्ष इस दिन बहनें अपने भाइयों के साथ इस अवसर को मनाने में कभी नहीं चूंकती हैं।
निष्कर्ष-
हम सभी को अपने रोजाना की दिनचर्या को बदलने के लिए एक बहाना चाहिए और हमारे त्योहार हमें वैध बहाने प्रदान करते हैं। इसलिए, हमें निश्चित रूप से त्यौहार मनाना चाहिए और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यह विभिन्न तरीकों से मददगार होता है।
पहला, यह आपको अपनी दिनचर्या से छुट्टी देता है, साथ ही यह आपको उस खास दिन के ऐतिहासिक महत्व को जानने और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को बचाने में मदद करता है।
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